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दिल्ली: सैकड़ों ठेका सीवर कर्मियों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट, बिना नोटिस हटाए गए!

दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में दिल्ली जल बोर्ड के तहत काम करने वाले सैकड़ों ठेका सीवर कर्मचारियों की इस छंटनी के ख़िलाफ़ गुरुवार, 28 दिसंबर को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में एक जन सुनवाई रखी गई।
press conference

देश की राजधानी दिल्ली में सीवर सफाई करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों को बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि ये सब उस जगह हो रहा है जहां की सरकार ये वादा करके आई थी कि वो सभी ठेका कर्मचारियों को पक्का करेगी लेकिन आज सैकड़ों कर्मचारियों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट आ चुका है और वे बेहद तकलीफ भरे दौर से गुज़र रहे हैं। ये बातें खुद पीड़ित कर्मचारियों ने एक जन सुनवाई में बताईं। दिल्ली में बीते दो महीने से सैकड़ों सीवरकर्मी अपने वेतन का इंतज़ार कर रहे हैं। न वेतन मिला न कोई आश्वासन, बल्कि इन सभी ठेका कर्मियों को ठेकदार ने नौकरी से निकाल दिया गया।

दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में दिल्ली जल बोर्ड के तहत काम करने वाले सैकड़ों ठेका सीवर कर्मचारियों की इस छंटनी के ख़िलाफ़ गुरुवार, 28 दिसंबर को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में एक जन सुनवाई रखी गई। इस जन सुनवाई में पिछले 10-15 साल से सीवर की सफाई और मरम्मत का काम कर रहे कर्मचारी शामिल हुए।

इस जन सुनवाई के लिए एक बड़ा जूरी पैनल बनाया गया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस, पूर्व संसद सदस्य और एआईकेएस के उपाध्यक्ष हन्नान मौल्ला, राज्य स्तरीय आश्रय निगरानी समिति के सदस्य इंदु प्रकाश सिंह, सेंट्रल ट्रेड यूनियन सीटू के राष्ट्रीय सचिव अमिताव गुहा, दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर सरिता भोई, सेंटर फॉर वर्कर्स मैनेजमेंट के निदेशक दिथी भट्टाचार्य, सामाजिक कार्यकर्ता अनिल वर्गीस, दिल्ली उच्च न्यायालय की निगरानी समिति के अध्यक्ष वकील हरनाम सिंह, दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष संजय गहलोत और द मूकनायक की संस्थापक संपादक मीना कोटवाल ने 15 श्रमिकों की गवाही सुनी और इसके बाद आपसी सहमति से कई सिफारिशें भी दीं।

पूरी दिल्ली से लगभग 300 कर्मचारी इस सुनवाई के लिए एकत्र हुए जिन्होंने जूरी पैनल और दर्शकों से अपना दर्द और शिकायतें साझा कीं। श्रमिकों द्वारा दी गई गवाही से उनकी कामकाजी परिस्थितियों की चौंकाने वाली हक़ीक़त सामने आईं।

पश्चिमी दिल्ली के पीतमपुरा के श्रमिकों ने कहा कि उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उनका सही वेतन आख़िर क्या है, कई बार ठेकेदार द्वारा बिना किसी रसीद के उन्हें नकद भुगतान किया गया। एक कर्मचारी ने, नाम न बताते हुए कहा, "हम 15 सालों से काम कर रहे हैं, कई ठेकेदार आते हैं और चले जाते हैं लेकिन हमें अपनी 450 रुपये की दैनिक मज़दूरी के लिए लड़ना पड़ता है।" नवजीवन विहार में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि उन्हें दिवाली और दशहरे का भी वेतन नहीं मिला और तब से उनका परिवार क़र्ज़ लेकर गुज़ारा कर रहा है।

दक्षिणी दिल्ली के कालकाजी के एक कर्मचारी ने कहा कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना या कारण के 7 दिसंबर को अचानक नौकरी से हटा दिया गया। एक अन्य मामले में, ईदगाह स्टोर के एक कर्मचारी ने वेतन न मिलने पर सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उनका आरोप है कि शिकायत दर्ज होने के बाद उन्हें नौकरी से हटा दिया गया और तब से किसी भी ठेकेदार ने उन्हें काम पर नहीं रखा है। इन कर्मचारियों का आरोप है कि ठेकेदारों द्वारा डराने-धमकाने की रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है जिससे कर्मचारी अपनी समस्याएं बता ही नहीं पाते हैं।

इस जन सुनवाई के दौरान एक बात लगभग सभी कर्मचारियों ने कही कि उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है और वर्तमान में उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के काम से निकाल दिया गया। सीवर में इंसान का उतरना गैरकानूनी है, लेकिन सुनवाई के दौरान ये जानकरी सामने आई कि मरम्मत समेत कई मामलों में आज भी बिना किसी सुरक्षा उपकरण के कर्मचारियों को सीवर में उतरना पड़ता हैं। हालांकि कर्मचारियों ने ये भी कहा कि पिछले कुछ सालों में ये काफ़ी कम हो गया है, अब सीवर लाइन में कोई बड़ी गड़बड़ी होती है तभी कर्मचारी को सीवर में उतरना पड़ता है।

दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष, संजय गहलोत, जो जूरी का हिस्सा थे, उन्होंने जन सुनवाई के दौरान कर्मचारियों द्वारा बताई गई सभी बातों का संज्ञान लिया और आश्वासन दिया कि वह बकाया भुगतान जारी करने के लिए तत्काल कार्रवाई करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी नौकरियां सुरक्षित रहें।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील, कॉलिन गोंसाल्वेस, जो जूरी पैनल का हिस्सा थे, ने श्रमिकों से कहा, “बिना नोटिस के आपको हटाना अवैध है। आपको आपका पूरा वेतन न देना और वेतन नकद में देना गैरकानूनी है।” इसके साथ उन्होंने दिल्ली सरकार की नीति को लेकर भी सवाल उठाए।

जन सुनवाई में मौजूद कर्मचारियों की गवाही सुनने के बाद जूरी पैनल ने निम्नलिखित सिफारिशें दीं:

* सभी ठेका सीवर कर्मचारियों की तत्काल बहाली और वेतन सहित सभी लंबित बकाया का भुगतान किया जाना चाहिए। इसके अलावा उन्हें भविष्य निधि और अन्य सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए।

* अकुशल श्रमिकों के लिए दिल्ली सरकार की न्यूनतम मज़दूरी अधिसूचना (01 अक्टूबर, 2022) के अनुसार, श्रमिकों को कम से कम 17,494 रूपये प्रति माह का भुगतान किया जाना चाहिए।

* जूरी ने दिल्ली जल बोर्ड के 700 संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के आम आदमी पार्टी सरकार के प्रयास की सराहना करते हुए, उन्हें 240 दिनों से अधिक काम करने वाले सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करने को कहा।

* रिट याचिका (सिविल) 5232/2007 के अदालती आदेशों का अक्षरशः कार्यान्वयन किया जाए जिसमें  मृत्यु के मामले में 30 लाख रूपये की अनुग्रह राशि के भुगतान की सिफारिश करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 20/10/2023 के आदेशों का कार्यान्वयन किया जाए।

* जूरी ने यह भी सिफारिश की कि काम के दौरान मृत्यु होने पर उन्हें बिना किसी देरी के तुरंत मुआवज़ा दिया जाए। जूरी ने इसे बढ़ाकर एक करोड़ रूपये तक करने का भी आग्रह किया।

* जूरी ने सभी क्षेत्रों में सभी मज़दूरों के लिए ईएसआई और पहचान पत्र देने को कहा है। इसके अलावा सीवर श्रमिकों के बच्चों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में छात्रवृत्ति का प्रावधान किया जाए।

यूनियन नेताओं ने इन सिफारिशों के साथ शुक्रवार को सीईओ, दिल्ली जल बोर्ड से संपर्क करने का फैसला किया और कर्मचारियों ने तब तक ‘DJB वरुणालय’ में एकत्र होने का फैसला किया जब तक उन्हें उनका उचित वेतन नहीं दिया जाता और उनकी नौकरियां वापस नहीं दी जातीं।

इस जन सुनवाई का आयोजन दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM), म्युनिसिपल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन (CITU), दिल्ली जल बोर्ड सीवर डिपार्टमेंट मजदूर संगठन, आल DJB एंप्लॉयीज वेल्फेयर एसोसिएशन, जल -मल कामगार संघर्ष मोर्चा, दिल्ली जल बोर्ड कर्मचारी यूनियन, सीवरेज एंड एलाइड वर्कर्स फोरम (SSKM), नेशनल कैम्पेन फॉर डिग्निटी एंड राइट्स ऑफ़ सीवरेज एंड एलाइड वर्कर्स (NCDRSAW), पीपल्स मीडिया एडवोकेसी एंड रिसोर्स सेंटर (PMARC), विमर्श मीडिया और मगध फाउंडेशन ने किया था।

सरकार में ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग मामले को एक-दूसरे पर अक्सर टाल देते है। बीते सालों में दिल्ली के कर्मचारी, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच पीसकर रह गए हैं। इस मामलें में भी दिल्ली सरकार के मंत्री ने यह कहा कि अफसर जल बोर्ड का फंड नहीं दे रहे हैं।


दिल्ली की कैबिनेट मंत्री ने एलजी को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया कि "चीफ सेक्रेटरी के आदेश पर फाइनेंस सेक्रेटरी आशीष चंद्र वर्मा ने अगस्त से ही फंड रोक रखा है। मामले में तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो दिल्ली में पानी की किल्लत हो सकती है।"

आतिशी ने नोटिंग में कहा है कि "सीवर और पानी के कार्यों, कर्मचारियों के वेतन और अन्य कार्यों के लिए दिल्ली जल बोर्ड का साल 2023-24 का कुल बजट 4839.5 करोड़ रुपये अप्रूव्ड है। फाइनेंस डिपार्टमेंट ने 1598 करोड़ रुपये की पहली किश्त मई में जारी करने की मंजूरी दी थी। इसमें सीवर वर्क के लिए 1300 और वॉटर सप्लाई वर्क के लिए 298 करोड़ रुपये फंड जारी किया गया। 1598 करोड़ रुपये की पहली किश्त में से 910 करोड़ रुपये अभी भी बकाया है। अक्टूबर तक बजट की दूसरी किश्त भी जारी हो जानी चाहिए, लेकिन पहली किश्त का ही पूरा फंड अब तक नहीं मिला है।”

आपको बता दें फंड नहीं मिलने के चलते 17 नवंबर को जल बोर्ड के कॉन्ट्रैक्टर्स ने भी काम बंद करने की घोषणा कर दी। यूनियन नेता वीरेंद्र गौड़ ने कहा ये कि "यूनियन अपना संघर्ष जारी रखेगी क्योंकि ये कर्मचारियों के मौलिक अधिकार का सवाल है। हम मज़दूरों की मांग को लेकर मुख्य नियोक्ता दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ से मिलेंगे और अगर जल्द ही मामले का समाधान नहीं हुआ तो हम मज़दूरों के साथ मिलकर जल बोर्ड का मुख्यालय वरुणालय भवन का घेराव करेंगे।"

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