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मीडिया के स्वामित्व में ‘एकाधिकार’ से अभिव्यक्ति की आज़ादी को ख़तरा है!

भारत सरकार ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को इस संबंध में अपनी सिफारिशें देने को कहा है। यह पहली बार नहीं है जब सरकार मीडिया के स्वामित्व पर प्रस्ताव देने के लिए ट्राई से संपर्क कर रही है।
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Image courtesy : Free Press Journal

किसी भी उदार लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र और जीवंत मीडिया जरूरी है। मीडिया बहुलवाद, विभिन्न प्रकार के मीडिया के बहु-स्वामित्व के अर्थ में, स्वतंत्र मीडिया के लिए अपरिहार्य है। क्या मीडिया के स्वामित्व में संकेंद्रण, या दूसरे शब्दों में, मीडिया के स्वामित्व में एकाधिकार,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रास्ते में बाधा बनेगा? ठोस शब्दों में, क्या क्रॉस-मीडिया स्वामित्व, अर्थात, किसी एकल व्यक्ति या कॉरपोरेट घराने के पास कई टीवी चैनल, समाचार पत्र (प्रिंट), डिजिटल समाचार और अन्य वेब पोर्टल व समाचार और मनोरंजन लाइव-स्ट्रीमिंग चैनल, और सोशल मीडिया कंपनियां आदि का स्वामित्व होना बहुल मीडिया की जीवंतता और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाएगा?

इसी तरह, क्या ऊर्ध्वाधर एकीकरण (Vertical Integration) - यानी, प्रसारण और प्रसारण सेवाओं का स्वामित्व, और उनकी वितरण सेवाएं जैसे केबल टीवी और डीटीएच ऑपरेटर, डिजिटल पोर्टल के साथ-साथ इंटरनेट सेवा प्रदाता, और दूरसंचार सेवाएं जो डिजिटल ट्रांसमिशन के माध्यम के रूप में कार्य करेंगी, डिजिटल ई-कॉमर्स , टेलीहेल्थ और टेली एजुकेशन प्लेटफॉर्म, और सोशल मीडिया सेवाओं, और यहां तक कि एक व्यक्ति या एक कॉरपोरेट समूह द्वारा हार्डवेयर आपूर्ति भी प्रतिस्पर्धा को प्रतिबंधित करते हैं, और मीडिया की स्वतंत्रता को हानि पहुंचाते हुए एकाधिकार को बढ़ावा देते हैं?

ये ऐसे सवाल हैं जिन पर मीडिया सूचना और डिजिटल संचार युग में सभी सरकारें उलझी हुई हैं। भारत सरकार ने भी भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को इस संबंध में अपनी सिफारिशें देने को कहा है। यह पहली बार नहीं है जब सरकार मीडिया के स्वामित्व पर प्रस्ताव देने के लिए ट्राई से संपर्क कर रही है (मीडिया स्वामित्व के मुद्दे के साथ ट्राई के जुड़ाव की टाइम लाइन पर बॉक्स देखें)। ट्राई से सबसे पहले 2008 में ही मीडिया स्वामित्व पर उसकी सिफारिशें मांगी गई थीं। शायद इसलिए कि दूरसंचार सभी मीडिया, विशेष रूप से उभरते डिजिटल मीडिया के लिए प्रसारण का मुख्य माध्यम बन गया है, ट्राई को अपनी सिफारिश देने के लिए कहा गया। इसके अलावा कोई अन्य स्वायत्त अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण नहीं है जो मीडिया से संबंधित मामलों पर कुछ भी कहने की स्थिति में हो।

ट्राई ने 2013 में एक परामर्श पत्र तैयार किया, और 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद अपनी सिफारिशें भेजीं भी, पर उन्हें कूड़ेदान में डाल दिया गया। अब इसी सरकार ने फिर ट्राई से अपनी राय देने को कहा है। इस कारण ट्राई ने 12 अप्रैल 2022 को एक परामर्श पत्र जारी किया था और 24 मई तक जनता और हितधारकों से टिप्पणियां और प्रति-टिप्पणियां एकत्र कीं और अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। ट्राई की सिफारिशों का सरकार पर कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं है। चूंकि सरकार ने डेटा सुरक्षा पर कानून को सालों तक लम्बित रखा, इसलिए मीडिया में स्वामित्व के संकेंद्रण पर नीतिगत निर्णय लेने में उसने एक दशक से भी अधिक समय का विलम्ब किया। दोनों ही मामलों में, क्रमशः आने वाली सरकारें बड़े कॉरपोरेट हितों से टकराने के मामले में घबराती रही हैं। फिर भी, मीडिया स्वामित्व पर इस मसौदा परामर्श पत्र में शामिल विचित्र रूप से साहसिक प्रस्तावों की असलियत की समीक्षा करना सार्थक होगा।

मीडिया स्वामित्व पर 12 अप्रैल 2022 के परामर्श पत्र का प्रस्थान बिंदु यह है कि मीडिया स्वामित्व का संकेंद्रण भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में निहित 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को प्रतिबंधित कर सकता है।

ट्राई का पेपर यह भी मानता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी के लिए राज्य का संवैधानिक कर्तव्य उस पर यह दायित्व डालता है कि वह व्यक्ति के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित न करे, न ही उसमें हस्तक्षेप करे। इस पेपर में कहा गया है कि राज्य मीडिया के संकेंद्रण को रोकने, और इस प्रकार, मीडिया की बहुलता को बढ़ावा देने के लिए भी बाध्य है। ये स्वागत योग्य रुख हैं।

पर फिर, एक स्पष्ट रूप से कॉरपोरेट समर्थक सरकार कॉरपोरेट मीडिया के एकाधिकार को रोकने के लिए कैसे कदम उठा सकती है? दक्षिण भारत में मीडिया हलकों में आशंका है कि ट्राई की सिफारिशों का इस्तेमाल ब्लैकमेल लीवर के रूप में किया जा सकता है, यहां तक कि शीर्ष मीडिया कॉरपोरेट घरानों को, जो अभी भी कुछ महत्वपूर्ण स्वतंत्र भूमिका निभाते हैं, भी "सहयोग" में लाने के लिए, ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल अपना चुनावी भाग्य चमका सके। संभवतः, मीडिया साम्राज्यों को नियंत्रित करने वाले बड़े कॉरपोरेट घरानों से चुनावों के लिए राजनीतिक फंड जुटाने पर भी विचार किया जा रहा है।

लेकिन सरकार का उद्देश्य व्यापक भी हो सकता है। सार्वजनिक दिखावे में, मीडिया को सरकार द्वारा चौथे एस्टेट के रूप में सम्मानित किया जा सकता है, जो कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के पहले तीन एस्टेट्स के बराबर राज्य का एक ‘पैरास्टेटल’ स्तंभ है। लेकिन चूंकि मीडिया का सरकारों और प्रधानमंत्रियों को बनाने या बर्बाद करने का इतिहास रहा है, इसलिए हर सरकार मीडिया को कड़े नियंत्रण में रखना चाहती है। अन्य तीन एस्टेट्स के विपरीत, मीडिया संवैधानिक रूप से अनिवार्य अंतरनिहित चेक्स-ऐण्ड-बैलेंसेज़ व्यवस्था के लिए उत्तरदायी नहीं है। भले ही सरकार शक्तिशाली कॉरपोरेट मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने का विकल्प न चुने, वह उसे विनियमित करने के लिए नीति साधन (policy instrument) रखना ज़रूर पसंद करेगी।

विजु़अल और डिजिटल मीडिया में स्वामित्व का प्रचलित संकेंद्रण

ट्राई पेपर में तालिका 2.1 टीवी और प्रिंट मीडिया की कीमत पर डिजिटल मीडिया के सापेक्ष उच्च विकास संबंधी डेटा देती है। डिजिटल मीडिया मुख्य रूप से यहां ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म को संदर्भित करता है, जो नई फिल्मों और अन्य लाइव-स्ट्रीमिंग शोज़- जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन प्राइम वीडियो, डिज़नी + हॉटस्टार, और ज़ी 5 आदि का प्रसारण करता है। इसी तरह से हैं रिलायंस जियो टीवी जैसे वितरण प्लेटफॉर्म ऑपरेटर (DPO), जो डायरेक्ट-टू-होम (DTH) केबल सेवा संचालित करते हैं, जिसमें वे अपने सेट-टॉप बॉक्स के माध्यम से 1 जून 2022 से लगभग 40 ओटीटी प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं।

इनमें से कुछ DPO मल्टीपल सिस्टम ऑपरेटर (MSO) भी बन गए हैं, जो पारंपरिक केबल टेलीविजन चैनलों के अलावा OTT सेवाएं और इंटरनेट तथा फोन सुविधाएं भी प्रदान करते हैं। इंटरनेट प्रोटोकॉल टीवी (IPTV), जहां टेलीविजन शोज़ इंटरनेट के माध्यम से प्रसारित होते हैं, और HIT नामक साइटें जहां यूट्यूब से समाचार और अन्य वीडियो चैनल प्रसारित किए जाते हैं, वे भी अब डिजिटल मीडिया वितरण प्लेटफॉर्म का हिस्सा हैं।

ट्राई पेपर के चित्र 2.1 से पता चलता है कि 2016 और 2021 के बीच सभी प्रकार के प्रसारणों में पारंपरिक केबल टीवी प्रसारकों की हिस्सेदारी 63% से घटकर 40% हो गई। इसी अवधि के दौरान, भुगतान की गई DTH सेवाओं की हिस्सेदारी-जिसमें भुगतान की गई ओटीटी सेवाएं शामिल हैं, और पारंपरिक केबल टीवी चैनलों के अलावा अन्य लाइव-स्ट्रीमिंग सेवाएं भी हैं, 12% से बढ़कर 38% हो गई हैं।

हालांकि कुल 40 ओटीटी प्लेटफॉर्म हैं, चार आज एकाधिकार की स्थिति में हैं। Star Group के स्वामित्व वाले Disney+ Hotstar के 300 मिलियन ग्राहक थे। मार्च 2022 तक, इसकी मार्केट शेयर 41% थी, इरोज़ नाउ के पास 24% मार्केट शेयर थी। अमेज़ॉन प्राइम वीडियो की 9% है और नेटफ्लिक्स की 7% और शेष 36 ओटीटी प्लेटफार्मों की शेष 19% हिस्सेदारी है। एकाधिकार का यह स्तर भारत में पहले से ही एक वास्तविकता बन चुका है।

ट्राई के पेपर से पता चलता है कि टीवी चैनलों में लगभग 350 प्रसारकों द्वारा 901 अनुमति प्राप्त टीवी चैनल हैं और उनमें से केवल 40 पे ब्रॉडकास्टर (pay broadcaster) हैं जो 327 पे टीवी चैनल (pay TV Channels) संचालित करते हैं। इनमें मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाला न्यूज 18 नेटवर्क 2 राष्ट्रीय और 14 क्षेत्रीय समाचार चैनलों को नियंत्रित करता है। ज़ी (Zee) समूह 45 समाचार और मनोरंजन चैनल संचालित करता है, सन टीवी नेटवर्क 33 चैनलों को नियंत्रित करता है, स्टार टीवी 35 चैनल संचालित करता है, और सोनी टेलीविजन समूह 31 चैनल संचालित करता है। इसका मतलब है कि भारत में लगभग आधे टीवी चैनलों का नियंत्रण 40 टीवी प्रसारकों में से सिर्फ 5 मीडिया समूह द्वारा किया जाता है!

डिजिटल मीडिया एकाधिकार के साथ ही पैदा हुआ है। विश्व स्तर पर, Google-Facebook का द्वै-अधिकार समस्त डिजिटल खर्च का 60% हिस्सा ले लेता है-अधिकतर ऑनलाइन विज्ञापन के लिए। वेब ब्राउज़िंग के लिए Google प्रमुख एकाधिकार खोज इंजन है। Google अन्य समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की सामग्री को ऑनलाइन साझा करता है और इस प्रक्रिया में इन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, जर्नल और अन्य नियतकालीन पत्रिकाओं तथा अन्य निजी वेबसाइटों की सामग्री इस्तेमाल कर, उन्हें एक भी रुपया दिये बिना, बड़े पैमाने पर विज्ञापन राजस्व प्राप्त करता है। ट्राई के पेपर में कहा गया है कि 25 फरवरी 2021 को, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी, लगभग 800 प्रकाशकों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था, ने Google से संपर्क किया और उनसे उनकी सामग्री को ऑनलाइन साझा करने हेतु क्षतिपूर्ति करने और विज्ञापन राजस्व का 85% हिस्सा बांटने के लिए कहा।

क्या सरकार को कदम उठाना चाहिए?

जबकि मीडिया स्वामित्व में एकाधिकार पहले से ही एक वास्तविकता है, जो मीडिया बहुलवाद, समाचार रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने के लिए बाध्य है, मिलियन-डॉलर सवाल यह है कि क्या सरकार को अपनी खुद की मीडिया नियामक संस्था स्थापित करके मीडिया बाजार को विनियमित करने के लिए कदम उठाना चाहिए? क्या यह कड़ाई से आग में गिरने का मामला नहीं होगा? ट्राई परामर्श पत्र मीडिया की स्वतंत्रता के संदर्भ में केवल मीडिया के निजी एकाधिकार स्वामित्व के निहितार्थ से संबंधित परामर्श के मुद्दों को फ्रेम करता है। परंतु वह सरकारी एकाधिकार द्वारा मीडिया के विनियमन के मुद्दे को पूरी तरह से अनदेखा करता है। यह एकतरफापन अन्यथा अच्छी तरह से प्रलेखित ट्राई के विस्तृत परामर्श पत्र की ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। यह आवश्यकता पड़ने पर सरकार के हाथों केवल मीडिया को ब्लैकमेल करने के लिए एक साधन के रूप में कार्य करेगा।

ट्राई का परामर्श पत्र क्रॉस-मीडिया स्वामित्व का विस्तृत विश्लेषण करने के लिए संपूर्ण अध्याय IV और निजी एकाधिकार द्वारा ऊर्ध्वाधर एकीकरण (vertical integration) की समान विस्तृत परीक्षण के लिए अध्याय V को समर्पित करता है। हालांकि ट्राई का परामर्श पत्र मीडिया के स्वामित्व के बारे में है, न कि मीडिया विनियमन के बारे में, जब यह एक मीडिया नियामक का प्रस्ताव करता है तो इसका मीडिया की स्वतंत्रता के लिए दूरगामी प्रभाव होना तय है। लेकिन ट्राई का पेपर यह मुद्दा नहीं उठाता कि क्या निजी एकाधिकार मीडिया के सरकारी एकाधिकार नियमन के लिये बहाना हो सकता है? ट्राई की रिपोर्ट केवल एक नियामक के औचित्य को रेखांकित करती है, लेकिन इस बात से बचती है कि वह क्या और कैसे विनियमित करेगा।

जब गोदी मीडिया की परिघटना के बारे में भारत में पहले से ही व्यापक चिंताएं हैं, तो मीडिया के स्वामित्व पर ट्राई का यह परामर्श पत्र विश्वास नहीं दिलाता कि वह मीडिया की स्वतंत्रता की गारंटी करेगा।

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