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न्यायालय ने एससी-एसटी संशोधन कानून, 2018 को वैध ठहराया

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने या वरिष्ठ अधिकारियों से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
SC

दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अनुसूचित जाति-जनजाति संशोधन कानून, 2018 को संवैधानिक रूप से वैध करार देते हुए कहा कि अदालत सिर्फ़ उन मामलों में अग्रिम जमानत दे सकती है जहां पहली नजर में मामला नहीं बनता हो।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अनुसूचित जाति-जनजाति संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने फैसले में कहा कि इस कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने या वरिष्ठ अधिकारियों से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है। 

इस पीठ के एक अन्य सदस्य न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट ने अपने अलग लेकिन सहमति वाले फैसले में कहा कि प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने साथी नागरिक के साथ समता का व्यवहार करने और भाईचारे की अवधारणा को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

न्यायमूर्ति भट ने कहा कि इस कानून के तहत यदि पहली नजर में मामला नहीं बनता होगा तो अदालत प्राथिमकी निरस्त कर सकती है और उदारता के साथ अग्रिम जमानत का इस्तेमाल संसद की मंशा को निष्फल कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति और जनजाति संशोधन कानून, 2018 की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत की 2018 की एक व्यवस्था को निष्प्रभावी बनाने के लिए कानून में यह संशोधन किया गया था। इस फैसले में एससी-एसटी कानून के कठोर प्रावधानों को हल्का कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल जनवरी में 2018 के संशोधित कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इस संशोधन के माध्यम से इस प्रावधान को बहाल किया गया था कि इस कानून के तहत दर्ज मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

शीर्ष अदालत ने अपने 2018 के फैसले में सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ इस कानून के कठोर प्रावधानों के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का जिक्र करते हुए कहा था कि इस कानून के तहत दायर शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी।

शीर्ष अदालत की इस व्यवस्था के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे जिनमें कई व्यक्तियों की जान चली गयी थी और अनेक जख्मी हो गए थे।

संसद ने न्यायालय की इस व्यवस्था को निष्प्रभावी करने के लिए नौ अगस्त, 2018 को कानून में संशोधन करने संबंधी विधेयक को मंजूरी दी थी।

बाद में केन्द्र सरकार ने भी मार्च, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर की थी।

न्यायालय ने एक अक्टूबर, 2009 को शीर्ष अदालत के मार्च 2018 के फैसले में दिए गए दो निर्देशों को वापस लेते हुए पहले की स्थिति बहाल कर दी थी।

इस कानून में 2018 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ अत्याचार के किसी आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत की संभावना खत्म कर दी गई थी और यह भी प्रावधान किया था कि आपराधिक मामला दर्ज करने से पहले किसी प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होगी और न ही गिरफ्तारी के लिए किसी से अनुमति लेनी होगी।
मायावती ने किया स्वागत

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। 

मायावती ने ट्वीट किया, ''अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के संघर्ष के कारण ही केन्द्र सरकार ने 2018 में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून में बदलाव को रद्द करके उसके प्रावधानों को पूर्ववत बनाए रखने का नया कानून बनाया था, जिसे आज उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून को बधाई एवं उनके संघर्ष को सलाम। न्यायालय के फैसले का स्वागत।''

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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