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संकट: टेक छंटनी की एक नई लहर

पूंजीवादी संकट के मुख्य सामाजिक परिणामों में से एक है बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी।
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2022 में तकनीकी क्षेत्र की मंदी

वर्ष 2022 अंत के करीब है, और दुनिया की कोई बड़ी टेक कंपनी ऐसी नहीं होगी जिसने अपने कुछ कर्मचारियों को न निकाला हो। ये कंपनियां आर्थिक रूप से कमजोर नहीं हैं। ये हैं उच्च-लाभ और उच्च-वेतन वाली उच्च-तकनीकी दिग्गज कंपनियां। आम तौर पर माना जाता है कि उनके पास सामान्य व्यापार चक्र (business cycle) का तनाव झेलने लायक पर्याप्त वित्तीय ताकत होती है। लेकिन अमेरिका में पूरी तरह मंदी आने से पहले ही वे सक्रिय नज़र आए। सो आने वाली मंदी का प्रभाव कम करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी उनका सबसे पहला उपाय रहा।

कथित तौर पर दुनिया एक ऐतिहासिक डिजिटलाइजेशन प्रक्रिया की ओर अग्रसर है। चौथी औद्योगिक क्रांति को विकास का इंजन माना जाता है। इसलिए, स्वाभाविक रूप से, वह तकनीकी क्षेत्र ही है जो हर जगह व्यापार चक्र, या अर्थव्यवस्थाओं के बूम-बस्ट चक्र (boom-bust cycle) का नेतृत्व कर रहा है। नीचे दिया गया चार्ट हर प्रमुख तकनीकी दिग्गज में प्रभावित श्रमिकों की संख्या का अनुमान लगाता है। हाई-टेक सेक्टर अकेला सेक्टर नहीं है जो छंटनी का सामना कर रहा है। तेल की कीमतों में तेज वृद्धि के बावजूद तेल कंपनियों के मुनाफे में गिरावट की संभावना है, इसलिए वे भी इस छंटनी की होड़ में शामिल हो गई हैं।

टेक और ऑयल मेजर्स द्वारा छंटनी

पिछली मंदी का एक संक्षिप्त अवलोकन

पूंजीवाद में दिन-रात की तरह विकास और संकट बारी-बारी से होते हैं। पूंजीवादी संकट के मुख्य सामाजिक परिणामों में से एक है बड़े पैमाने पर बेरोजगारी। तकनीकी रूप से, यदि विकास लंबे समय तक बहुत कम रहता है, तो उसे मंदी कहा जाता है। आधिकारिक तौर पर उसे मंदी के रूप में परिभाषित करने के लिए ठहराव की अवधि (duration of stagnation) अलग-अलग देशों में भिन्न होती है। और हर मंदी के अपने राजनीतिक नतीजे भी होते हैं। संकट का फैलाव, साथ ही इसका प्रभाव, पूंजीवाद के सभी क्षेत्रों में एक समान नहीं होता। एक या कुछ क्षेत्र पहले संकट के आगमन का संकेत देते हैं और कुछ क्षेत्र इसका खामियाजा भुगतते हैं।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में मंदी की गतिशीलता को समझने के लिए, आइए हम युद्धोत्तर मंदी का संक्षिप्त विवरण देखें । 1945 के बाद युद्धोत्तर युग में 3 लघु मंदियों के बाद, 1968-69 में चौथी मंदी ने छात्रों और श्रमिकों के एक उभार को जन्म दिया, एक आभासी युद्धोत्तर क्रांतिकारी उभार।

1974 में, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी से वृद्धि की। इस ऑयल शॉक ने सामान्य मुद्रास्फीति में भारी वृद्धि शुरू की। इसने 1975 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में युद्ध के बाद की पांचवी मंदी की शुरुआत की। भारत में, इस प्रक्रिया के कारण 1974 में रेलवे हड़ताल और 1975 में आपातकाल लागू हुआ।

अगली वैश्विक मंदी 1982 में अमेरिका में शुरू हुई। मंदी आते-आते रोनाल्ड रीगन ने उसके पिछले वर्ष- 1981 में- अमेरिकी राष्ट्रपति पद जीता था। मंदी के प्रति उनकी प्रतिक्रिया ने रीगनॉमिक्स को जन्म दिया। यूके में, प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने थैचरवाद नामक मिलती-जुलती दक्षिणपंथी नीतियों का पालन किया। रेगनॉमिक्स और थैचरवाद ने नवउदारवाद, यानी रूढ़िवादी (conservative) आर्थिक सिद्धांत का प्रारंभ किया। रीगन ने अपने 200 बिलियन डॉलर के स्टार वार्स कार्यक्रम को शुरू करके भी सैन्यवाद और युद्ध-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए मंदी को दूर किया।

इसके बाद, 1990 के दशक के आरंभिक दौर में, वैश्विक मंदी शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत पतन के बाद सैन्य खर्च में तेज घटाव का एक उत्पाद थी, जिसके कारण कुल मांग में कमी आई। इसके परिणामस्वरूप मंदी आई। 1991 के खाड़ी युद्ध से सैन्यीकरण की वापसी और सैन्य खर्च में वृद्धि हुई। इसके बदले में, तेल की कीमतों में एक और तेज वृद्धि और मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई। इससे मंदी और बढ़ गई। मंदी के दौर में जापान, दक्षिण कोरिया और चीन से सस्ती कारों के आयात के कारण अमेरिका में ऑटोमोबाइल कंपनियों के कई प्लांट खत्म हो गए। अमेरिका में हर छह श्रमिकों में से एक ने नौकरी खो दी और कुछ क्षेत्रों में 1992 में नौकरियों में ह्रास 20% को पार कर गया।

इसके पश्चात, 2002 में प्रमुख वैश्विक टेक कंपनियों में मंदी देखी गई। NASDAQ वह स्टॉक एक्सचेंज है जहां अधिकांश वैश्विक टेक कंपनियां सूचीबद्ध हैं। 2002 में, NASDAQ इंडेक्स क्रैश हो गया। इसने दुनिया भर में तकनीकी क्षेत्र में एक मिनी मंदी की शुरुआत को चिह्नित किया। 1990 के दशक में, नई अर्थव्यवस्था और आईटी क्षेत्र की विकास क्षमता के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था। जबरदस्त ओवरइन्वेस्टमेंट था। इसे ‘डॉटकॉम बबल’ के नाम से जाना जाने लगा। अगली सदी के मुहाने पर, 2002 में यह बुलबुला फूट गया। नई सहस्राब्दी मंदी के साथ शुरू हुई। यह कुछ साल बाद भारतीय आईटी क्षेत्र में गूंज उठा।

अगली वैश्विक मंदी जो 2008 में शुरू हुई लगभग 100 वर्षों में दूसरी सबसे बुरी थी और इसकी तुलना 1930 के महामंदी (Great Depression) से की गई थी। अमेरिकी वित्तीय क्षेत्र को पहली बार 2008 में मंदी (meltdown) का सामना करना पड़ा, जिससे 2009 में सभी देशों के लगभग सभी क्षेत्रों में एक चौतरफा आर्थिक संकट पैदा हो गया। इसे एक डिप्रेशन के रूप में वर्णित किया गया - तीव्रता में मंदी से कहीं अधिक। अमेरिका में लगभग 20% फर्मों का सफाया हो गया। बचे हुए फर्मों में भी रोजगार का ह्रास हुआ। इस मंदी के साथ-साथ, दुनिया में भी वैश्विक दक्षिणपंथी उभार देखा गया।

महामारी ने एक सामान्य व्यापार चक्र की अवधि को विकृत कर दिया और तकनीकी रूप से अमेरिका और कई यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं ने फरवरी 2021 तक एक लघु मंदी देखी और यह केवल 1 तिमाही तक चली क्योंकि विकसित देशों की सरकारों ने मिलकर 9 ट्रिलियन डॉलर की भारी रकम महामारी राहत पर लगाई, जिसने अर्थव्यवस्थाओं को जल्दी से मंदी से बाहर निकाला।

इस बार, 2022 में हम टेक कंपनियों में संकट की पहली लहर देख रहे हैं। वे एक ऐसे संकट के अग्रदूत बन गए हैं जिसने अगले कुछ महीनों में पूरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने का डर पैदा कर दिया है। कई यूरोपीय देश, मंदी की अपनी तकनीकी परिभाषा के अनुसार, पहले ही मंदी में प्रवेश कर चुके हैं।

इस तकनीकी मंदी की अनूठी विशेषताएं क्या हैं?

राजकोषीय दबाव: आम तौर पर, आधुनिक युग में, वह राज्य ही होता है जो दर में कटौती और ऋण विस्तार, कर कटौती और छूट की अपनी मौद्रिक नीति के माध्यम से अर्थव्यवस्था में विकास को बनाए रखता है और सार्वजनिक निवेश का विस्तार करके प्रोत्साहन प्रदान करता है। मंदी तब आती है जब ये सभी विकास प्रोत्साहन नीतियां अपनी सीमा तक पहुंचती हैं। विकास को बनाए रखने के लिए राज्य का प्रभावी हस्तक्षेप मैक्रोइकॉनॉमिक कारकों के चलते, यानी मुद्रास्फीति के कारण प्रतिबंधित है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व हाल के दिनों में बार-बार, 2022 में चार बार और सिर्फ पिछले डेढ़ साल में छह बार ब्याज दरों में वृद्धि करने के लिए मजबूर हुआ। दरों में कटौती से विकास को गति मिलती लेकिन उच्च मुद्रास्फीति इसकी अनुमति नहीं देती है। ब्रिटेन और यूरोप के कुछ अन्य देशों में भी यही स्थिति है। इसलिए सरकारें पाती हैं कि उनके हाथ बंधे हुए हैं।

मुद्रास्फीति में भारी वृद्धि: यूक्रेन युद्ध के चलते बढ़ी हुई ऊर्जा की कीमतें हर जगह समग्र मुद्रास्फीति दर में तेज वृद्धि कर रही हैं। महामारी के चलते भी उच्च खर्च के कारण बढ़ती मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति है; तो सभी देशों के केंद्रीय बैंकों ने रूढ़िवादी रुख अपना लिया है और दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। महामारी के आघात के बाद, राजकोषीय गुब्बारे (fiscal balloon)के विस्तार और इसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति के कारण, सरकारें छोटे बजट घाटों को सहने के लिए मजबूर हैं। अर्थव्यवस्था को पम्प-प्राइमिंग (सरकार द्वारा देश में नकदी बढ़ाना) करना मुश्किल है।

शेयर बाजार की अटकलें: आम तौर पर, मुद्रास्फीति से प्रेरित मंदी में, खुदरा, उपभोक्ता सामान, ऑटोमोबाइल्स, गैजेट्स और रियल एस्टेट इत्यादि जैसे बड़े पैमाने पर खपत वाले सेक्टर मंदी और बिक्री में गिरावट का खामियाजा भुगतते हैं। लेकिन इस बार टेक सेक्टर पहले नंबर पर क्यों है? आमतौर पर आईटी और डिजिटल टेक सेक्टर को मंदी से बचा हुआ माना जाता है। लेकिन पूँजीवाद में अतिनिवेश और अतिउत्पादन के कारण बुलबुले अवश्यंभावी हैं। मीडिया हाइप ही निवेश को प्रेरित करता है। निवेश संबंधी निर्णय लेने के लिए भले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग होता हो, भीड़ की मानसिकता निवेशकों में विद्यमान रहती है। एक दुष्चक्र में, यह भीड़ मानसिकता कुछ शेयरों को आसमान छुआ देती हैं और बदले में, इन शेयरों द्वारा संचालित शेयर बाजार उछाल निवेशकों की और भी बड़ी भीड़ को आकर्षित करता है।

किसी कंपनी के प्रदर्शन और वित्तीय मूल सिद्धांतों (financial fundamentals) का अक्सर उसके उच्च शेयर मूल्य से कोई लेना-देना नहीं होता। जैसा कि एलन ग्रीनस्पैन ने एक बार कहा था, “यह उत्साह तर्कहीन है और शेयर बाजार के साथ-साथ प्रमुख पूंजीवादी फर्में भी ऐसे ही तर्कहीन उत्साह के आधार पर कार्य करती हैं।“ एक बार निवेशकों को यह एहसास हो जाता है कि अच्छे दिन खत्म हो गए हैं तो ऐसा उत्साह (exuberance) समाप्त हो जाता है। कोई आश्चर्य नहीं कि 2022 में मेटा, गूगल, अमेज़ॉन और कई अन्य टेक कंपनियों के शेयरों में औसतन 16% की गिरावट आई।

बिक्री और विकास में गिरावट: लेकिन मंदी का संबंध केवल शेयर बाजार की अटकलों से नहीं होता। वह बहुत व्यापक है। मुख्य समस्या बाजारों के सिकुड़ने के कारण बिक्री में गिरावट है। जब धीमी रफ्तार से बढ़ रही मंदी वैश्विक हो रही हो तो बाजार सिकुड़ने के लिए बाध्य हैं। जब कई कंपनियों के लाभ मार्जिन कम हो जाते हैं और कई दीवालिया हो जाते हैं, तो कम-से-कम नए ऑर्डर आते हैं। नए निवेश दुर्लभ हो जाते हैं। सफल नए IPO (नए शेयरों की आरंभिक सार्वजनिक पेशकश) दुर्लभ हो जाते हैं। नौकरियों का ह्रास बढ़ता है और इसलिए क्रय शक्ति घट जाती है। मांग सिकुड़ती है और तकनीकी बिक्री (tech sales) और विकास भी।

2019 में बड़ी टेक कंपनियों के रेवेन्यू में 12% की बढ़ोतरी हुई। बड़ी टेक कंपनियों ने महामारी का मुकाबला किया, और 2020 में उनके राजस्व में 19% की वृद्धि हुई। महामारी के बाद की रिकवरी के दौरान, 2021 में, वैश्विक बड़े तकनीकी (global big tech) राजस्व में 27% की वृद्धि देखी गई। लेकिन वित्त वर्ष 22 में इसके 18% तक गिरने का आंकलन किया गया है। और उच्च विकास को बनाए रखना मुश्किल है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों द्वारा आईटी खर्च में 2021 में 10% के अपेक्षा 2022 में केवल 3% की वृद्धि का अनुमान है। गिरते राजस्व के कारण उन्होंने डिजिटलीकरण के अपने एजेंडे को रोक दिया है।

2021 तक, तकनीकी उद्योग (tech industry) नए श्रमिकों की भर्ती कर रहा था, साथ ही साथ मौजूदा श्रमिकों के एक वर्ग को लेऑफ कर रहा था; उच्च वेतन वाले लोगों की जगह कम वेतन वाले लोगों और पारंपरिक कौशल वाले लोगों की जगह नए कौशल वालों को लाया जा रहा है। अब भर्ती पर रोक सामान्य होती जा रही है। 2021 में, यूएस टेक सेक्टर ने 245,000 नए कर्मचारियों की भर्ती की। लेकिन FY22 में, पहले ही, टेक रोज़गार अगस्त तक 2.1% गिर चुका।

टेक उद्योग ने नवंबर 2022 में अमेरिका में अनुमानित 5.8 मिलियन लोगों को रोजगार दिया। इन उच्च-मजदूरी वाले लोगों में से लगभग 10 लाख लोगों का 2023 में नौकरी खो देना अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वैश्विक आईटी क्षेत्र में एक सामान्य मंदी को लाने वाला निश्चित संकेत साबित होगा। यूरोप पहले से ही मंदी में डूब रहा है, भारत, चीन जैसी उच्च विकास वाली अर्थव्यवस्थाएं और दक्षिण अफ्रीका जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी संकट की आंच महसूस करने के लिए अभिशप्त हैं। अतः राजनीतिक उथल-पुथल भी अवश्यंभावी हैं।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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