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डीबीसी कर्मचारी : क्या कोरोना माहमारी से भूखे पेट लड़ा जा सकता है?

प्रधानमंत्री ने इन सभी स्वास्थ्य कर्मियों के धन्यवाद की बात की और लोगों से ताली और थाली बजवाई, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?  सरकारों को चाहिए की वो इनके लिए खाली थाली न बजवाए बल्कि यह सुनिश्चित करे की इनके और इनके परिजनों की थाली में रोटी भी आए।
डीबीसी कर्मचारी
(कोरोना महामारी को लेकर आम लोगो को जागरूक करते डीबीसी कर्मचारी )

पूरा देश आज वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से लड़ने की कोशिश कर रहा है। रविवार को इसके बचाव के लिए एक दिन का जनता कर्फ़्यू भी लगा। इसके बाद सरकार ने दिल्ली सहित देश के 71 शहरों में लॉकडाउन की घोषणा की यानी इन शहरों में आपतकालीन सेवाओं के अलावा सबकुछ बंद रहेगा। लेकिन क्या हम इस महामारी से निपटने के लिए अभी गंभीर हैं, क्योंकि जो इसे नियंत्रित करने के लिए ज़मीन पर काम कर रहे है, उन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है। न ही कोई सुरक्षा, यहां तक इन स्वास्थ्य कर्मचारियों को मास्क तक उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।  

सोचिए ये कर्मचारी बिना सुरक्षा इंतजाम और बिना वेतन के काम कर सकते हैं? लेकिन दिल्ली शहर में ऐसे स्वास्थ्य कर्मचारी हैं, जो पिछले तीन महीने से वेतन न मिलने के बाद भी काम कर रहे हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जान जोखिम में डालकर दिन रात काम कर रहे हैं।  

हम यहां बात कर रहे है दिल्ली के डीबीसी कर्मचारियों की। डीबीसी (डोमेस्टिक बीडिंग चेकर्स) यानी वो कर्मचारी जो घरों में जाकर डेंगू और मलेरिया के मच्छरों की जाँच करते हैं। ये दिल्ली की तीनों नगर निगम के तहत काम करते हैं। इस महामारी में सरकार ने उन्हें कोरोना वायरस के रोकथाम के कार्य में लगाया हुआ है। ये कर्मचारी इस काम को पूरी शिद्द्त से कर रहे हैं। यहाँ तक कि ये कर्मचारी बिना किसी अवकाश के पूरे सप्ताह काम कर रहे हैं।

लेकिन क्या आपको पता है कि इन कर्मचारियों को कितना वेतन मिलता है? मात्र 13 से 14 हज़ार रुपये महीना! जी हां, और वो भी पिछले तीन महीने से नहीं मिला है।

सोचिए ये किस हालत में काम कर रहे हैं।  

जब पूरा शहर इस स्थति में अपने घरो में कई महीनों का राशन भर रहा है तो उनके पास रोज़मर्रा की ज़रूरत के लिए भी पैसा नहीं हैं।  
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(कोरोना महामारी को लेकर आम लोगो को जागरूकता अभियान के तहत लोगो जागरूक करते हुए डीबीसी कर्मचारी)

कर्मचारियों ने बताया कि नगर निगम में डीबीसी कर्मचारी काफी बदतर हालत में हैं। हमें तनख़्वाह भी सिर्फ़ 13 से 14 हज़ार रुपये महीना मिलती है और वो भी पिछले तीन महीने से नहीं मिली है। पिछले दो महीने में कोरोना वायरस का ख़तरा है, जबकि हम पहले से ही ख़तरनाक डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, पीलिया, हैजा और बिल्डिंग डिपार्टमेंट हाउस टैक्स जैसी जगहों में काम करते हैं और जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए काम करते हैं।

कर्मचारियों ने कहा, "भूखे पेट काम भी नहीं होता साहब, 1996 से लेकर अब तक 24 वर्षों से हम कर्मचारी दिल्ली नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं, जिसमें हमें कोई सुविधा नहीं दी जाती। हमारा इलाज तक होना भी दूभर है।"

आप समझिए इनका काम कितना जोखिम का है। ये लोग बिना किसी पुख्ता सुरक्षा के संक्रमित मरीजों के संपर्क में जाकर काम कर रहे हैं। कर्मचारियों ने बताया, “आज कोरोना जैसी बीमारी के लिए हम लोगों को विभाग और एसडीएम द्वारा ऑर्डर दिया गया है कि कोरोना के सस्पेक्टेड मरीजों के पास जाकर डोर टू डोर बातचीत करें। ऐसे संभव है की बिना पुख्ता सुरक्षा के यह लोग भी इससे संक्रमित नहीं होंगे लेकिन इस सब के बाद भी यह लोग अपना काम कर रहे है।”  

इसके लिए इन्हे एक लिस्ट भी दी गई है जिसके बाद इन सभी की ड्यूटी अलग-अलग क्षेत्र में लगाई गई है।

इन कर्मचारियों की यूनियन है ‘एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन’ इसके अध्यक्ष देवन्द्र शर्मा ने बताया की इन काम के लिए विभाग द्वारा हमें अपनी सुरक्षा के लिए कोई भी किट उपलब्ध नहीं कराई गई है।

वे सवाल करते है, “क्या हम इंसान नहीं? क्या गुनाह किया है जो विभाग में आज तक हमारा कोई नाम नहीं। 24 वर्षों से काम तो लिया जाता है लेकिन किसी पोस्ट (पद) का नाम तक नहीं।”

आगे वो कहते हैं कि हर काम तो हम से लिया जाता है लेकिन भूखे पेट लिया जाता है। कई कई महीनों से तनख्वाह न देना, सुरक्षा मांगने पर नौकरी से निकाल देने की धमकी दे देना यह हमारा वर्तमान और भविष्य बन चुका है। न तो निगम प्रशासन और न हमारे अधिकारी ही हमारे लिए चिंतित हैं। जबकि विभाग हमें रीड की हड्डी बताता है लेकिन उनकी खुद की रीड की हड्डी विभाग ने तोड़ रखी है।

डीबीसी कर्मचारियों को कई ज़ोन में दिंसबर महीने से ही वेतन नहीं मिला है। 23 मार्च यानी आज सुबह निगम कमिश्नर ने कुछ कर्मचारियों के वेतन को रिलीज किया हैं। लेकिन अभी दिल्ली में कई ज़ोन के कर्मचारी हैं जो वेतन का इंतजार कर रहे हैं।  

एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन का कहना है कि हम कर्मचारी किसी भी काम को लेकर न नहीं करते, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे भविष्य की सुरक्षा भी की जाए और अगर कोरोना वायरस जैसी ख़तरनाक बीमारी जिसे लेकर पूरा विश्व परेशान हैं उसके लिए कम से कम हमें एक मास्क तो मुहैया कराया जाए।

आपको भी पता है पूरे साउथ एमसीडी में ऐलान हो चुका है कि सभी विभाग बंद रहेंगे, सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही खुला रहेगा जिसमें हम डीबीसी भी ज़मीनी तौर पर डोर टू डोर जाकर काम करते हैं और सभी लोगों को कालोनी में जिसमें अस्पतालों में, होटल्स में, दुकानों पर और अब सस्पेक्टेड केसों पर भी जाकर उनको भी शिक्षित करना है।  
 
इन लोगों के साथ में आंगनवाड़ी की आशा वर्कर और अन्य लोगों को भी लगाया गया है लेकिन सभी परेशान हैं क्योंकि सरकार ने इन्हे सुरक्षा नहीं दी है। सरकार को समझना चहिए की ये कर्मचारी ही जो ज़मीन में इस महामारी से लड़ रहे है उनकी सुरक्षा का क्या? बिना इनके सहयोग के हम इस महामारी से लड़ नहीं सकते हैं।  

आपको बता दे डीबीसी कर्मचारियों की यह समस्या काफी समय से है। सरकार ने कई बार माना कि यह हमारे स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ की हड्डी हैं, लेकिन कभी इनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया।

एमसीडी कहती है कि यह उसके कर्मचारी नहीं है, जबकि यह लोग सारे काम करते हैं। अपने काम के अलावा भी इनसे अन्य काम लिया जाता है, जैसे अवैध होर्डिंग हटाना, हाउस टैक्स वसूलना आदि। इसके बावजूद इन्हे अबतक कोई पद नहीं दिया गया है। ये लोग पिछले कई सालों से अपनी इन्ही माँगो को लकेर धरना प्रदर्शन, यहाँ तक की भूख हड़ताल भी कर चुके हैं और हर बार इन्हें आश्वासन दिया जाता है। लेकिन इसी तरह इन्हें काम करते हुए 24 साल हो गए लेकिन इनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

इस संकट की घड़ी में सबसे आगे डॉक्टर और नर्स तो लड़ ही रहे हैं। लेकिन साथ में अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी या फिर सफाई कर्मचारी और परीक्षण विभाग के कर्मचारी भी उतनी ही मुस्तैदी से लड़ रहे हैं। क्या इनके बिना, इनके सहयोग के बिना हम लड़ सकते हैं? शायद नहीं।

ये हमारी सरकारों को भी पता है इसलिए देश के प्रधानमंत्री ने इन सभी के धन्यवाद की बात की और इनके सम्मान में रविवार को शाम में लोगों से ताली और थाली बजवाई लेकिन क्या यह पर्याप्त हैं?  सरकारों को चाहिए कि वो इनके लिए खाली थाली न बजवाए बल्कि यह सुनिश्चित करे कि इनके और इनके परिजनों की थाली में रोटी भी आए।

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