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रोहतक में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की महारैली, सरकार को याद दिलाए वादे!

हरियाणा सरकार ने बीते साल 2022 में आंगनवाड़ी आंदोलन के दौरान जिन मांगों को माना था, उनमें से अधिकांश को अब तक लागू ही नहीं किया है।
Haryana

हरियाणा में बीते लंबे समय से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं प्रदेश की मनोहरलाल खट्टर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। अलग-अलग संगठनों से संबंध ये कार्यकत्रियां सिलसिलेवार तरीके से विरोध प्रदर्शन और हड़तालें कर रही हैं, लेकिन सिवाय आश्वासन के अब तक इनकी मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इसी कड़ी में आज मंगलवार, 12 सितंबर को रोहतक में इन कार्यकत्रियों और सहायिकाओं की एक महारैली आयोजित हुई, जिसमें जल्द मांगें पूरी न होने की स्थिति में बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी गई।

बता दें कि एआईयूटीयूसी से संबंधित आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका यूनियन की इस महारैली में रोहतक के अलावा झज्जर, कैथल, रेवाड़ी, भिवानी, करनाल, सोनीपत-पानीपत समेत अन्य जिलों की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। मानसरोवर पार्क से सुबह 10 बजे शुरू हुई ये रैली दोपहर करीब तीन बजे डीसी ऑफिस पर जाकर संपन्न हुई, जहां उपायुक्त के माध्यम से हरियाणा के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया।

ज्ञापन में मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए संगठन ने लिखा है, “सरकार के बड़े अधिकारियों व यूनियनों के बीच जिन विषयों के ऊपर सहमति बनी थी, उनको भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री जी की तरफ से वर्ष 2018 में वर्कर के 1500 रुपये, सहायिका के 750 रुपये मासिक मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गई थी, वो भी अभी तक हरियाणा सरकार ने नहीं दिए हैं।"

ज्ञापन में कई और समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और साहिकाओं की मांगों को रखा गया है, जिसमें लंबित पड़े महंगाई भत्ते से लेकर, आंगनवाड़ी केंद्रों में खाली पड़े पदों पर भर्ती सहित आंगनवाड़ी कर्मियों को श्रमिक का दर्जा दिए जाने की बात कही गई है। इस मांग पत्र में हड़ताल के दौरान काटे गए 75 प्रतिशत मानदेय के भी शीघ्र भुगतान की बात कही गई है, जिसके लिए कार्यकर्ता बीते लंबे समय से सरकार से गुहार लगा रहे हैं।

मानदेय समय से नहीं मिलता और काम का बोझ बढ़ता ही जा रहा है

संगठन की प्रदेश महासचिव पुष्पा दलाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हरियाणा सरकार ने बीते साल 2022 में आंदोलन के दौरान जिन मांगों को माना था, उनमें से अधिकांश को अब तक लागू ही नहीं किया। सरकार ने हड़ताल की अवधि के मानदेय में मात्र 100 रुपये कटौती की बात कही थी, लेकिन बड़े अधिकारियों ने चार महीने के मेहनताने में से जोर जबरदस्ती 75 प्रतिशत की कटौती कर ली है। इसके अलावा आंगनवाड़ी कर्मियों पर विभिन्न तरीकों से काम का बोझ बढ़ाया जा रहा है। मानदेय समय पर नहीं मिलता, केंद्रों का किराया नहीं मिलता, कार्यकर्ताओं को स्वयं अपने पैसों से गैस सिलेंडर भरवाना पड़ता है।

पुष्पा दलाल आगे कहती हैं कि आंगनवाड़ी में कार्यरत औरतें तमाम समस्याओं से जूझ रही हैं।विभाग में करीब 5,000 वर्कर व हेल्पर्स के पद खाली पड़े हुए हैं, लेकिन इन पर नियुक्ति नहीं हो रही है, जिससे उनके कार्य का बोझ भी मौजूदा कार्यरत वर्कर्स व हेल्पर्स पर डाला जा रहा है। इसके अलावा विभाग से बाहर के कार्य भी इन्हीं वर्कर-हेल्पर से लिए जाते हैं। वर्कलोड लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन मानदेय नहीं। कई कार्यकत्रियां अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं, उन्हें कंप्यूटर के काम देकर उनका मानसिक दबाव बनाया जा रहा है, जिसके लिए उन्हें किसी और की सहायता लेनी पड़ती है और उसे पैसों का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ता है। विभाग द्वारा बिना किसी सुविधा और स्मार्टफोन के ही वर्कर्स से ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग और सरकार की अनदेखी

एआईयूटीयूसी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्यवान ने प्रदर्शनकारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के साथ एकजुटता दिखाते हुए न्यूजक्लिक को बताया कि बीते लंबे समय से ये कार्यकत्रियां सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग कर रही हैं, न्यूनतम वेतन 21,000 रुपये के लिए गुहार लगा रही हैं, लेकिन सरकार इसे अनसुना कर केंद्र द्वारा जारी पैसा भी इन्हें नहीं दे रही, जिसकी ये हक़दार हैं। इसके अलावा महंगाई भत्ता, वर्दी का पैसा, एरियर, केंद्रों का किराया आदि इन्हें कुछ नहीं दिया जा रहा, जिससे इन कार्यकर्ताओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

उपाध्यक्ष सत्यवान के मुताबिक प्रदेश के सभी आंगनवाड़ी संगठन फिर वो सीआईटीयू और एआईयूटीयूसी सभी एक साथ इस संघर्ष में शामिल है। क्योंकि सरकार अपने वादों से पीछे हट रही है और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं औऱ साहिकाओं के हक़ों की अनदेखी कर रही है। क्योंकि ये कार्यकत्रियां सीधे तौर पर पूरक पोषण, स्कूल जाने से पहले दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराती हैं, इसलिए इनके प्रति सरकार को गंभीर और संवेदनशील होना चाहिए।

गौरतलब है कि साल 2021 के स्वास्थ्य मंत्रालय के एनएफएचएस-5 आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में पांच साल से कम उम्र के अविकसित बच्चों की संख्या 27.5 प्रतिशत थी। ऐसे में इन केंद्रों की महत्ता और बढ़ जाती है लेकिन हाल ही में मनोहर लाल खट्टर सरकार की तरफ से इन कार्यकर्ताओं को लेकर की गई अनर्गल टिप्पणी भी कुछ और ही कहानी कहती है। वहीं इन कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का कहना है कि सरकार उन्हें बुरा बनाकर धीरे-धीरे आंगनवाड़ी केंद्रों को बंद कर देना चाहती है, जिसकी शुरुआत पहले कदम के तौर पर हो चुकी है।

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