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हरियाणा: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन, आशा वर्कर्स के साथ भी दिखाई एकजुटता

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने बीजेपी-एलजेपी गठबंधन की सरकार पर वादाख़िलाफ़ी और अनदेखी का आरोप लगाया।
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हरियाणा में बीते लंबे समय से आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। एक ओर आशा कार्यकर्ता लंबे समय से हड़ताल पर बैठी हैं तो वहीं बीते सोमवार, 4 सितंबर को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने भी एक बार फिर मनोहर लाल खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल कर ज़ोरदार प्रदर्शन किया। इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने आशाकर्मियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए बीजेपी-एलजेपी गठबंधन की सरकार पर वादाखिलाफ़ी और अनदेखी का आरोप लगाया। इन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार अपने ही वादों को अमल में लाने पर चुप्पी साधे हुए है।

बता दें कि हरियाणा में करीब 50 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं हैं, जबकि 20 हज़ार से ज्यादा आशाकर्मी हैं, जो लगातार सरकार से अपनी मांगों को लेकर गुहार लगा रही हैं और प्रदर्शन कर सरकार तक अपनी बातें पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि अभी तक सरकार की ओर से न तो इनकी सुनवाई हो रही है, न ही इन्हें कोई आश्वासन ही मिल पा रहा है। इसके उलट बीते दिनों आशा कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया कार्रवाई भी देखने को मिली थी।

समय पर मानदेय नहीं, वर्दी-किराए के पैसे नहीं

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन समर्थित आंगनवाड़ी संगठन से जुड़ी बिजनेश ने न्यूज़क्लिक को जानकारी दी कि कल हरियाणा के फतेहाबाद में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार से मिलने वाले मानदेय में घोटाले को लेकर लघु सचिवालय में प्रदर्शन किया। इसके अलावा पूरे प्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं के समर्थन और अपने मानदेय, वर्दी और फ्लेक्सी फंड समेत अन्य मांगों को लेकर आवाज़ बुलंद की।

बिजनेश के मुताबिक सरकार ने साल 2022 के आंदोलन में जिन मांगों को माना था, उनमें से अधिकांश खट्टर सरकार ने अभी तक लागू ही नहीं की है। इसके उलट आंगनवाड़ी कर्मियों को मानदेय समय पर नहीं मिल रहा, आए दिन अलग-अलग तरीके से उनके काम का बोझ बढ़ाया जा रहा है। जिसके चलते आंगनबाड़ी वर्कर व हेल्पर में असंतोष बढ़ रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो वह सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगी।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका यूनियन के अनुसार बीते तीन साल से आंगनवाड़ी वर्कर्स को वर्दी और फ्लेक्सी फंड का पैसा सरकार की तरफ से नहीं दिया गया है। कई माह से भी आंगनवाड़ी वर्कर्स का पैसा बकाया है। इसके अलावा सरकार बगैर संसाधन के आंगनवाड़ी वर्कर्स से ऑनलाइन काम करा रही है। जबकि न तो उन्हें इसकी ट्रेनिंग दी गई और न ही उनके पास संसाधन है। समय पर कंटीजेंसी नहीं मिल रही है और न ही आंगनवाडी सेंटरों का किराया दिया जा रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार एक साजिश के तहत इन आंगनवाड़ी सेंटरों को बंद करने का प्रयास कर रही है।

ग्रेच्युटी और आंगनवाड़ी केंद्रों में खाली पड़े पदों पर भर्ती नहीं

ध्यान रहे कि इन कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगों में इनकी ग्रेच्युटी का मुद्दा भी शामिल है, जिसका हक़ बीते साल लंबी लड़ाई लड़ने के बाद इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से हासिल किया था। इसके अलावा आंगनबाड़ी केंद्रों में खाली पड़े पदों पर भर्ती के साथ ही प्रोमोशन और समय से मानदेय की मांग भी ये कार्यकर्ता प्रमुखता से उठा रही हैं।


गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 1,320,708 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं, जिनमें से 25,152 कार्यकर्ता हरियाणा में हैं। वहीं, देशभर में कुल 1,182,263 आंगनवाड़ी सहायिकाएं हैं, जिनमें से हरियाणा में 24,485 सहायिकाएं हैं। इनमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को जहां 12 हज़ार के करीब मानदेय मिलता है, वहीं सहायिकाओं को करीब 7 हज़ार भुगतान किया जाता है। ऐसे में 2018 से ही आंगनवाडी कार्यकर्ता मांग करती आ रही हैं कि सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मानदेय बढ़ाने के वादे को पूरा करे। हरियाणा में वर्कर्स और सहायिकाओं के मासिक मानदेय में क्रमश: 1500 रुपये और 750 रुपये की बढ़ोतरी की मांग की जा रही है।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चों को पूरक पोषण, स्कूल जाने से पहले दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। आंगनवाड़ी केंद्र 6 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए 'क्रेच' की तरह भी काम कर रहे हैं लेकिन आंगनवाड़ी संगठनों का आरोप है कि सरकार निजीकरण के लाभ के लिए इन केंद्रों को बंद करने की साजिश रच रही है।

जाहिर है आंगनवाड़ी से जुड़ी ये महिलाएं वो फ्रंटलाइन वर्कर हैं, जिन्हें 'कर्मचारी' का दर्जा नहीं दिया जाता है। ये सभी महंगाई भत्ते, सेवानिवृत्ति लाभ, सेवा नियम आदि की भी मांग लंबे समय से कर रही हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने उन्हें अग्रिम पंक्ति का कार्यकर्ता भी घोषित किया था। लेकिन तब भी इनकी अनदेखी हुई थी और अब भी सरकार इनकी मांगों को अनसुना करती ही नज़र आ रही है।

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