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हरियाणा: ‘सुनवाई नहीं तो तेज़ होगा आंदोलन’, खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने खोला मोर्चा!

प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि जिन मांगों को लेकर सरकार ने सहमति जताई थी या जिन बिंदुओं पर समझौते हुए थे, अब उन्हें भी लागू नहीं किया जा रहा।
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फाइल फ़ोटो।

हरियाणा में बीते लंबे समय से आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने मनोहर लाल खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है। चुनावी साल में ये कार्यकर्ता, बीजेपी-एलजेपी गठबंधन की सरकार पर लगातार वादाखिलाफ़ी और अनदेखी का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं। आरोप ये भी है कि सरकार अपने ही वादों को अमल में लाने पर चुप्पी साधे हुए है। आज, शुक्रवार 9 जून को अंबाला के उपायुक्त कार्यालय पर इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की ओर से बड़ा प्रदर्शन किया गया जिसमें जिला प्रशासन के माध्यम से सीएम मनोहर लाल खट्टर के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा गया।

प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सरकार लंबे समय से उनकी मांगों को लेकर अनदेखी कर रही है। इन कार्यकर्ताओं का गंभीर आरोप है कि "जिन मांगों को लेकर सरकार ने सहमति जताई थी, या जिन बिंदुओं पर समझौते हुए थे, सरकार अब उन मांगों को भी लागू नहीं कर रही, उल्टा आंगनवाड़ी केंद्रो को बंद करने और कार्यकर्ताओं पर बिना ट्रेनिंग ऑनलाइन काम को लेकर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने की तैयारी में है जिसके चलते इन लोगों को मजबूरन सड़कों पर उतरना पड़ा है।"

आंदोलन को और तेज़ करने की चेतावनी

कार्यकर्ताओं ने शासन-प्रशासन को चुनौती देते हुए ये भी कहा कि "अगर सरकार जल्द ही उनकी मांगो पर सुनवाई नहीं करती तो वे आगे अपने आंदोलन को और तेज़ करने के साथ ही आने वाले विधानसभा चुनावों में भी सरकार को आईना दिखा देंगे क्योंकि अगर सरकार अपने ही वादों को पूरा नहीं कर पाती तो, तो ऐसी सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

जिला प्रधान और राज्य महासचिव अनुपमा का कहना है कि "वे अपनी मांगों को लेकर कई बार सरकार से गुहार लगा चुके हैं, ज्ञापन भी सौंप चुके हैं लेकिन सरकार ने अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की। उल्टा कार्यकर्ताओं को लेकर अनर्गल बातें फैलाई जा रही है जिससे सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। इन वर्कर्स की अनगिनत समस्याएं है जोकि सरकार ने खुद ही पैदा कर रखी हैं।"

अनुपमा बताती हैं, "सरकार ने पिछले साल जिले में कई आंगनवाड़ी केंद्रों को प्ले-वे बनाया था। इस सत्र में शिक्षा विभाग ने बाल वाटिका शुरू कर दिया जिससे आंगनवाड़ी केंद्र से बच्चों को स्कूल में ले जाने की बात हुई। आंगनवाड़ी केंद्र के प्ले-वे और बाल वाटिका दोनों में 3 से 6 आयु वर्ग के बच्चे लेने हैं। ऐसे में सरकार स्पष्ट नहीं कर रही की कौन से बच्चे कहां जाएंगे।"

क्या दिक्कतें हैं इन कार्यकर्ताओं की?

कई कार्यकर्ताओं ने बताया कि "कई सालों से आंगनवाड़ी सेंटर में वर्कर और हैल्पर के पद खाली हैं। रजिस्टर और ज़रूरी सुविधाएं भी नहीं दी जाती। इसके अलावा ईंधन और वर्दी का उचित पैसा भी नहीं मिलता। ऑनलाइन काम करने के लिए फोन व रिचार्ज की सुविधा भी नहीं है, ऐसे में मामूली कमाई करने वाली कार्यकर्ताओं को समय से वेतन, प्रमोशन और ट्रेनिंग भी नहीं मिलती, जो इनके लिए और बड़ी दिक्कत है।"

बता दें कि इन कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगों में इनकी ग्रेच्युटी का मुद्दा भी शामिल है जिसका हक़ इन्होंने बीते साल लंबी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट से हासिल किया था। इसके अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों की खस्ता हालत को लेकर भी ये कार्यकर्ता प्रमुखता से आवाज़ उठा रही हैं। इनका गंभीर आरोप है कि इन सेंटरों को बंद करने की दिशा में, ये सब सरकार की एक साज़िश है।

गौरतलब है कि साल 2021 में मुख्यमंत्री और यूनियन की बैठक में कई समझौते हुए थे। इस दौरान सरकार की ओर से इन कार्यकर्ताओं को हर साल सितंबर में महंगाई भत्ता देने का वादा किया गया था। साल 2021 में महंगाई भत्ता दिया भी गया लेकिन अगले साल 2022 में भत्ता नहीं दिया गया। इसके अलावा कई आंगनवाड़ी वर्कर्स को पदोन्नति के बाद सुपरवाइज़र बनाया जाना था लेकिन आरोप है कि डेढ़ साल से सरकार ने ये वादा भी पूरा नहीं किया। वहीं इनका कहना है कि केंद्रों को भी गैस सिलेंडर का 15 साल पुराना 350 रुपए रेट दिया जा रहा है, जो बेहद कम हैं। साथ ही नई शिक्षा नीति के चलते छात्रों के भविष्य के साथ ही शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का भविष्य भी सवालों में फंसता दिखाई देता है। वैसे भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लेकर सरकारों का ज़्यादातर उदासीन रवैया ही देखने को मिला है, जिसके चलते ये सभी बार-बार कभी स्थानीय सड़कों पर तो कभी राजधानी के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन को मजबूर हैं।

वैसे ये हाल सिर्फ़ हरियाणा ही नहीं है। देशभर के कई राज्यों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका अपने मानदेय बढ़ोत्तरी और अन्य मांगों को लेकर समय-समय पर हड़ताल और प्रदर्शन करती रही हैं। ये कार्यकर्ता और सहायिका जाति, नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं से संबंधित सभी प्रकार के डेटा इकट्ठा करती हैं और घर-घर को जागरूक करने का काम भी करती हैं। महामारी काल के दौरान भी इनकी सेवाएं निरंतर जारी रहीं, जिसके चलते कई कार्यकर्ताओं की मौत की ख़बरें भी सामने आईं। मौत के बाद परिवार की अन्य महिला सदस्यों को नौकरी और साथ ही मुआवज़े की मांग को लेकर भी इन कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया हालांकि इन्हें तब भी कोई ख़ास सफलता नहीं मिली।

लोकसभा में प्रस्तुत एक आंकड़े के अनुसार देश में लगभग 14 लाख  आंगनवाड़ी केंद्र हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इन केंद्रों का संचालन 13 लाख 25 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और11लाख 81हज़ार सहायिकाओं के ज़रिए किया जाता है। ये कार्यकर्ता मुख्यतः देश के ग्रामीण इलाकों में काम करती हैं। ऐसे में पोषण ट्रैकर-ऐप का उपयोग करने के बारे में कोई उचित प्रशिक्षण नहीं दिया जाना भी इनके लिए एक सिरदर्दी है।

बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो राष्ट्रीय स्तर पर 2016-17 में आंगनवाड़ी कर्मियों के लिए 15,000 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया था। इसके बाद के कुछ सालों में मामूली इजाफे के अलावा 2018-19 में यह बढ़कर16,882 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वर्ष2019-20 में इसमें 3000 करोड़ रुपये से अधिक का उछाल देखा गया और यह बढ़ कर 20,000करोड़ रुपये हो गया। तब से बीते दो बजट में ये आंकड़ा इसी के आसपास रहा है। ऐसे में ये सोचने वाली बात है कि आख़िर बजट का इतना पैसा इन कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के काम कैसे नहीं आ रहा? आख़िर क्यों ये बार-बार सड़कों पर उतरने को मजबूर हो रही हैं?

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