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खेती- किसानी में व्यापारियों के पक्ष में लिए जा रहे निर्णय 

खाद की किल्लत से किसानों की परेशानी बढ़ रही है। सरकार ने गेहूं ख़रीद पर 40 रुपए समर्थन मूल्य बढ़ाकर खाद की क़ीमत क़रीब दोगुनी कर दी है।
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कहने को तो केंद्र सरकार ने गेहूं की फसल में 40 रुपए प्रति कुंटल समर्थन मूल्य बढ़ा दी है। इसका प्रचार-प्रसार भी सार्वजनिक रूप से खूब किया गया, वहीं 50 से 500 रुपए तक खाद महंगी कर दी। इसकी कोई चर्चा नहीं। समर्थन मूल्य बढ़ने के ऐलान के साथ ही खाद , यूरिया की किल्लत शुरू हो गई। जब किसान रबी की बुआई की तैयारी कर रहा हो, ऐसे में अचानक डीएपी खाद का गायब होना और यूरिया प्रति एकड़ दो बोरी के बदले एक बोरी दिया जाना  , इन सबका पैदावार पर असर पड़ता है। अब डीएपी गायब होने से  किसान एनपीके खाद पर निर्भर है। इसके दाम भी करीब 50 से 500 रुपए तक बढ़ा दिये गए। एनपीके 12-32-16 की कीमत अब 1700 रुपए प्रति 50 किलो यानी हर बैग पर 515 रुपए की बढ़ोतरी। डीएपी की कमी का हवाला देते हुए डीएपी के वैकल्पिक खाद एनपीके के दामों में प्रति बोरी 50 से 515 रुपए तक की बढ़ोतरी की गई है। इसका सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ेगा। चौतरफा महंगाई से आर्थिक तंगी  के बीच किसानों के लिए रबी सीजन की लागत और बढ़ जाएगी। किसानों को 1 अक्टूबर से 12-32-15 खाद का 50 किलो की बैग  1700 रुपए में मिलेगा। पहले इस खाद के एक बैग की कीमत 1185 रुपए थी। 

किसान अपनी फसलों में नहीं डालना चाहते एनपीके

होशंगाबाद के किसान और किसान -मजदूर संगठन के प्रवक्ता केशव साहू बताते है, कि पहले से स्टॉक में रखी एनपीके खाद को नई कीमत पर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। केशव ने कहा, कि एनपीके किसान अपनी फसलों में नहीं डालना चाहता, क्योंकि उसमें नाइट्रोजन होता है। दूसरी तरफ इस खाद से पैदावार भी कम होता है। इसलिए एनपीके का रेट डीएपी से बहुत कम था, अब व्यापारी और सरकार की मिलीभगत से डीएपी खाद को गायब कर दिया गया और एनपीके का दाम बढ़ाकर उसे किसानों को लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है।  इस तरह सालों से जो एनपीके खाद व्यापारियों के पास पड़ा था। उसका दाम करीब 500 रुपए  अधिक कर बेचा जा रहा है। मध्यप्रदेश के लाखों किसान मजबूरन एनपीके खाद खरीद रहे हैं। केशव ने कहा, अधिकतर खाद कंपनी मंत्रियों और बड़े व्यापारियों के पास है। यानी यह अरबों-खरबों का धंधा होगा। उन्होंने कहा, सरकार एमएसपी बढ़ाने का ढोल सार्वजनिक रूप से करती है, लेकिन खाद के दाम बढ़ाने की बात सार्वजनिक नहीं करती। एक तरफ समर्थन मूल्य प्रति कुंटल गेहूं 40 रुपए बढ़ाकर सीधे-सीधे खाद पर एक हजार रुपए प्रति कुंटल बढ़ा दी । ऐसे एमएसपी बढ़ने से किसानों को क्या फायदा होेगा। इस तरह सरकार किसानों को ठगने पर तुली हुई है। केशव ने इस संबंध में प्रधानमंत्री के नाम होशंगाबाद के कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उसने लिखा, कि केंद्र सरकार डीएपी, यूरिया का पर्याप्त भण्डारन अति शीघ्र करे।

हालांकि कृभको के वरिष्ठ प्रबंधक राम शर्मा बताते हैं कि अगर किसी किसान को पुराने रेट का खाद नए रेट में बेचा जा रहा है तो यह गलत है। खाद के बैग पर जो रेट प्रिंट है, उतना  ही मूल्य किसानों से लिया जा सकता है । रबी सीजन के लिए नई दरों की घोषणा मध्यप्रदेश मार्कफेड ने की है। मार्कफेड ने अधिकारियों को निर्देश दिए है कि प्रदेश में डीएपी की कमी है।
वहीं सरकार बता रही है, कि डीएपी से जमीन की उर्वरा क्षमता पर असर पड़ता है। 

यह है किसानों के प्रति सरकार का उदारवादी रवैया!

किसान-मजदूर संगठन के अध्यक्ष लीलाधर बताते हैं, कि  रबी की बुआई सर पर है और किसानों को प्रति एकड़ दो के बजाय एक बोरी यूरिया देने का निर्णय सरकार ने ले लिया है। केंद्र सरकार का कहना है कि यूरिया से जमीन खराब हो रही है। अब सरकार को यह निर्णय सीजन से पहले लेना था। एकाएक बदलाव करेंगे, तो जमीन तो ठीक हो नहीं जाएगी। इसे धीरे-धीरे ही ठीक किया जा सकता है। किसान पहले से फसल चक्र तय कर लिया है। कितने पर गेहूं बोना है, उसकी लागत कितनी आएगी । अब किसान हैरान-परेशान है। खाद कहां से लाए, यूरिया के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ेंगे। यूरिया की कालाबाजारी हो रही है। उन्होंने कहा, डीएपी के बदले एनपीके  खाद का इस्तेमाल किसानों को करना है, जो किसान बहुत कम करते हैं, इसका भी दाम बढ़ा दिया गया। यह सब तो किसानों के हित में नहीं है। यह है सरकार का किसानों के प्रति उदारवादी रवैया!

25 बोरी खाद के लिए रोज तहसील का चक्कर काट रहे किसान

होशंगाबाद जिले के बाबई तहसील से 8 किलोमीटर दूर आरी गांव के किसान उमाशंकर सेठ बताते हैं, कि वह 25 एकड़ में गेहूं बोते हैं। इस बार वह बहुत परेशान है, कि क्योंकि उन्हें खाद कहीं से मिल नहीं रहा है। यूरिया की भी किल्लत है। वह रोज खाद के लिए तहसील और जिले का  चक्कर लगा रहे हैं। उसने कहा, 25 बोरी डीएपी खाद और 50 बोरी यूरिया की जरूरत है। कहां मिलेगा पता नहीं बोआई सर पर है। सारा काम छोड़कर खाद के पीछे लगे हैं। उसे डर है, कि आखिर में कहीं व्यापारियों से ब्लैक में खाद न खरीदना पड़े। इससे लागत बहुत बढ़ जाएगी। उसने कहा, यूरिया का सरकारी रेट 273 है, जबकि निजी दुकान पर  इसी यूरिया का 330 रुपए देने पड़ते हैं।

इसी तरह किसान मनमोहन बताते हैं, कि यह दिक्कत 30 सितम्बर के बाद आने लगी, इससे पहले खाद की इतनी दिक्कत नहीं थी।  वहीं देवी सिंह बताते हैं, कि 40 एकड़ में वे गेहूं बाते है, अगर सोसाइटी से खाद नहीं मिला, तो खुले बाजार से लेंगे। इससे लागत बहुत बढ़ेगी।दरअसल सरकार  खेती को किसानों के लिए घाटे का सौदा बनाने पर तूली हुई है। जिससे परेशान होकर किसान खेती छोड़ दें और सारी जमीन कारपोरेट के हाथों में चली जाए। जब तक संघर्ष कर सकते हैं करेंगे। दिल्ली के बॉर्डर पर भी तो  किसान पिछले एक साल से संघर्ष कर ही रहे हैं।

खाद की किल्लत सरकार की लापरवाही

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह बताते है कि खाद की यह किल्लत सरकार की लापरवाही और खाद माफियाओं के साथ सांठगांठ का नतीजा है। यह किल्लत जितने ज्यादा और जितने अधिक दिनों तक रहेगी, किसानों से लूट भी उतनी ही अधिक होगी।

उन्होंने कहा, "पिछले साल रबी की फसल के लिए 82.27 लाख मीट्रिक टन खाद की आवश्यकता पड़ी थी। इस बार मानसून के सामान्य रहने से संभव है कि खाद की आवश्यकता में और इजाफा हो जाये। मगर सरकार और सहकारी समितियां अभी तक यह बताने की स्थिति में ही नहीं हैं कि प्रदेश में इस समय कितनी मात्रा में खाद उपलब्ध है।"
 
प्रदेश में खाद का बड़ा हिस्सा बाहर से आता है। शिवराज सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने  बाहर से खाद मंगाने के लिए क्या प्रयास किए हैं। आमतौर पर सरकार बहाने बनाती है कि खाद के लिए रेलवे के रैक उपलब्ध नहीं हैं। मगर यह समस्या तब आती है, जब बोवनी के ऐन मौके पर सरकार खाद की व्यवस्था करने के प्रयास करती है। जाहिर है कि यदि एक माह पहले से खाद की उपलब्धता के प्रयास सरकार करती तो यह संकट ही पैदा नहीं होता।

जसविंदर सिंह ने कहा, "यूरिया और डीएपी को छोड़कर बाकी खादों की कीमतों में 300 से लेकर 600 रुपये तक प्रति बोरा कीमत नरेंद्र मोदी सरकार ने बढ़ाई हैं। इसलिए पहले आई खाद को भी जानबूझकर छुपा लिया गया है ताकि एक अक्टूबर के बाद इस खाद को बढ़ी हुई कीमतों से बेच कर किसानों को लूट जा सके।"

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में एक सौ 10 लाख हेक्टेअर से अधिक क्षेत्र में गेहूं का पैदावार होता है। यहां गेहूं का उत्पादन क्षमता पंजाब से अधिक है। किसान खाद-बीज आदि के लिए को-ऑपरेटिव बैंक से कर्ज लेते हैं। ऐसे में लागत बढ़ेगी, तो किसानों को और ज्यादा कर्ज लेना पड़ेगा। इस बार किसानों को जहां खाद के अभाव में पैदावार कम होने की उम्मीद लग रही है, तो दूसरी ओर खाद की कीमत बढ़ाकर सरकार किसानों पर चोट कर रही है। किसानों का कहना है,  कि इस तरह से खाद में बदलाव करके सरकार कौन से किसान हित का काम कर रही है। यह सब आम आदमी के समझ में आनी चाहिए। 

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