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प्रति किसान औसत क़र्ज़ के मामले में पंजाब सबसे ऊपर : ताज़ा आंकड़े

नाबार्ड के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक पंजाब के 24.92 फ़ीसदी किसानों ने कमर्शियल, को-ऑपरेटिव और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से 73673.62 करोड़ रूपये का क़र्ज़ लिया हुआ है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : iStock

 

पंजाब के किसान इस वक़्त भारी क़र्ज़ में डूबे हुए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शेष राज्यों के मुकाबले पंजाब में प्रति किसान औसत क़र्ज़ सबसे ज़्यादा है। पुख्ता आंकड़ें बताते हैं कि क़र्ज़ के मामले में यह सूबा पहले नंबर पर है। इन दिनों पंजाब बाढ़ ग्रस्त है और सरकारी सहायता के बावजूद किसानों को बैंकों, सहकारी बैंकों और आढ़तियों प्राइवेट फाइनेंसरों से और ज़्यादा क़र्ज़ लेना पड़ेगा वरना शायद खेती-बाड़ी का काम-धंधा भी एक बार रुक सकता है।

ये आंकड़ें चौंकाने वाले हैं कि पंजाब में प्रति किसान औसत क़र्ज़ 2.95 लाख रूपये है, जो कृषि से हो रही आय से बहुत कम है। नाबार्ड के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक पंजाब के 24.92 फीसदी किसानों ने कमर्शियल, को-ऑपरेटिव और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से 73673.62 करोड़ रूपये का क़र्ज़ लिया हुआ है। खेत-मज़दूरों द्वारा लिए गए क़र्ज़ अलहदा हैं। खेत-मज़दूरों और निम्न वर्गीय किसानों पर साहूकारा क़र्ज़ा है, जिसके पुख्ता आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं।

संसद में वित्त मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में खुलासा किया है कि पंजाब के सरकारी और गैर सरकारी बैंकों से 21.42 लाख खाताधारक किसानों ने 64694.03 करोड़ रूपये का क़र्ज़ लिया हुआ है जबकि सहकारी बैंकों से 50635 किसानों ने 1130.13 करोड़ रूपये का क़र्ज़ लिया है। इसी मानिंद ग्रामीण बैंकों से 2.99 लाख किसान खाताधारकों ने 7849.46 करोड रूपये का क़र्ज़ लिया हुआ है। आढ़तियों अथवा साहूकारों के क़र्ज़ को मिला लें तो यह क़र्ज़ एक लाख करोड़ के क़रीब हो जाता है।

पंजाब में तक़रीबन 23 हज़ार पंजीकृत आढ़तिए हैं। राज्य के साथ लगते सूबे हरियाणा में औसत प्रति किसान क़र्ज़ 2.11 लाख रूपये है। यही क़र्ज़ गुजरात में 2.28 लाख रूपये है। अन्य राज्यों के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य प्रदेश में प्रति किसान क़र्ज़ 1.40 लाख रूपये, आंध्र प्रदेश में 1.47 लाख रूपये और उत्तर प्रदेश में औसत प्रति किसान क़र्ज़ 1.13 लाख रूपये है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सर्वेक्षण के मुताबिक 2015-16 में पंजाब में 10.53 लाख किसान परिवार हैं।

ख़ास बात है कि सूबे की आम आदमी पार्टी सरकार ने पिछले कुछ समय से नई खेती नीति की तैयारी शुरू की है। इससे पहले भी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा दो बार नई खेती नीति लागू करने की कवायद हुई थी। लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। प्रख्यात कृषि विशेषज्ञ सुच्चा सिंह गिल कहते हैं कि "किसानी का क़र्ज़ तो बढ़ ही रहा है-किसान खुदकुशी में भी इजाफा हो रहा है। सरकारें अगर सजिंदा होती तो ऐसे हालात नहीं होने थे।"

किसानों के लगातार क़र्ज़दार होते जाने के वक़्त-वक़्त पर कई कारण रहे हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अब ज़्यादा संकट इसलिए गहराया हुआ है क्योंकि किसानों ने गैर कृषि कार्यों के लिए क़र्ज़ लिए हुए हैं। पंजाब के नौजवानों में जब से विदेश जाने यानी 'स्टडी वीज़ा' का रुझान बढ़ा है, तब से किसान बेहद ज़्यादा क़र्ज़ ले रहे हैं। स्टडी वीज़ा पर गए सभी नौजवानों को अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हो पाती है। इधर क़र्ज़ में फंसे अभिभावक भारी मुसीबत का सामना करते हैं। सरकार की तरफ से किसानों की चिंता के तौर पर उन्हें मुफ़्त बिजली मुहैया करा दी जाती है, हालांकि यह समस्या का ठोस समाधान नहीं। सरकार उन बड़े किसानों को भी मुफ़्त में बिजली दे रही है, जिन पर कोई क़र्ज़ नहीं। खुद किसान संगठन कई बार मांग कर चुकेे हैं कि क़र्ज़ मुक्त किसानों की बिजली सब्सिडी बंद की जाए और उस पैसे से क़र्ज़दार किसानों को राहत दी जाए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)

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