दिल्ली : आंगनवाड़ी कर्मियों ने संसद के पास शुरू किया 4 दिन का 'महापड़ाव'
आज मंगलवार को देश की संसद से कुछ सौ मीटर दूर देशभर कि आंगनबाड़ी कार्यक्रताओं ने अपना महापड़ाव शुरू किया है। ये प्रदर्शन वर्तमान मे चल रहे मानसून सत्र के दौरान संसद का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए किया जा रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए ये कार्यकर्ता राजधानी पहुचे हैं। ये सभी सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) - से संबंधित ऑल इण्डिया फेडरेशन ऑफ़ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (एआईएफएडब्ल्यूएच) के आह्वान पर राष्ट्रीय राजधानी पहुंचे हैं।
प्रदर्शनकारी सरकार से ग्रेच्युटी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने, सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों के साथ न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने और, सबसे महत्वपूर्ण अपने श्रम की पहचान यानी खुद को कर्मचारी होने का दर्जा दिलाने की मांग करने आई हैं।
ये उन मांगों में से कुछ मुख्य मांगे हैं जो मंगलवार को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा उठाई गई थीं। इन्ही मांगों के साथ उनके चार दिवसीय 'आंगनवाड़ी अधिकार महापड़व' की शुरूआत हो गई है।
प्रदर्शनकारियों के अनुसार, "देश अगले महीने अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। लेकिन देश की 27 लाख से अधिक महिला आंगनवाड़ी कर्मी न्यूनतम मजदूरी, पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित है। ये सभी केंद्र सरकार की पूर्ववर्ती एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) के तहत काम करती हैं। जिसे अब सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजना के रूप में जाना जाता है।"
प्रदर्शन करने वाली यूनियन ने मंगलवार को अपने प्रदर्शन के कहा, “आजादी के इतने सालों बाद भी पूर्ण रूप से महिलाओं द्वारा संचालित इस योजना में काम करने वाली महिलाओं को कर्मचारी नहीं माना जाता है। इन्हें आज एक तरह की सेविका के रूप देखा जाता है। इसलिए इन्हें आज भी वेतन नहीं मिलता है बल्कि सरकार अपनी सुविधा के अनुसार मानदेय देती है।"
इस योजना के तहत, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और छह साल से कम उम्र के बच्चों सहित इसके लाभार्थियों को पोषण, स्वास्थ्य और प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा की बुनियादी सेवाएं देने का काम सौंपा गया है।
ग्रेच्युटी पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लागू करें
AIFAWH की राष्ट्रीय अध्यक्ष उषा रानी ने मंगलवार को न्यूज़क्लिक को बताया, "देश भर के 18 से अधिक राज्यों से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं पहले दिन महापड़ाव में शामिल हुई है।" उन्होंने कहा कि अगले तीन दिनों में कार्यकर्ताओं की भागीदारी और बढ़ेगी।
उषा ने कहा, "आंगनवाड़ी महिलाएं चार दिनों तक संसद के पास यहां डटी रहेंगी। कार्यकर्ता देखेंगे कि उनके संबंधित राज्य के कितने सांसद चल रहे मानसून सत्र के दौरान आंगनवाड़ी कर्मी से संबंधित मामले को उठाते हैं।”
AIFAWH के राष्ट्रीय महासचिव ए आर सिंधु ने मंगलवार को कहा, "आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सबसे तात्कालिक मांग है केंद्र सरकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए ग्रेच्युटी पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को देश भर में लागू करने के लिए कदम उठाए।"
इस साल अप्रैल में, जस्टिस अजय रस्तोगी और एके ओका की बेंच ने माना कि आंगनवाड़ी कर्मी ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार है। ये एक कर्मचारी को सेवानिवृत्ति या इस्तीफे के समय उसकी सेवाओं के बदले में प्रदान किया जाता है।
कोर्ट ने अपने 72 पेज के निर्णय में केंद्र और राज्यों को "आंगनबाड़ी कर्मियों के दुर्दशा पर गंभीरता से ध्यान देने" के लिए भी कहा था, क्योंकि ये सभी महिला कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती है। इसके बावजूद इन्हें बहुत ही कम पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। सीटू से संबद्ध गुजरात राज्य आंगनवाड़ी कर्मचारी संघ सहित आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और संगठनों द्वारा दायर याचिका पर फैसला देते हुए कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी।
सिंधु ने न्यूज़क्लिक को बताया कि चार दिवसीय 'महापड़ाव' के माध्यम से आंगनवाड़ी देखभालकर्ताओं ने कहा, “यूनियन सांसदों पर "हमारी न्यायसंगत और वैध" मांगों को अपना समर्थन देने के लिए दबाव डाल रही है। हमने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (जो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का प्रभार संभालती हैं) से मिलने की भी मांग की है। हालांकि, हमें अभी तक उनके कार्यालय की ओर से कुछ नहीं बताया गया है।”
किसानों, ट्रेड यूनियनों ने भी एकजुटता ज़ाहिर की
मंगलवार को आंगनबाड़ी कर्मियों के विरोध प्रदर्शन में किसान नेताओं और ट्रेड यूनियन भी शामिल हुए। उनमें से, कई वक्ताओं ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आरोप लगाए और कहा कि जिसका उन्हें डर था वही हो रहा है। "अपर्याप्त बजट आवंटन के माध्यम से योजना को कमजोर किया जा रहा है। जिसके बाद इसे कॉर्पोरेट या गैर सरकारी संगठनों(एनजीओ) को शामिल करके आईसीडीएस का निजीकरण करने की योजना बनाई जा रही है।
मंगलवार को सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला ने कहा, "आंगनवाड़ी केंद्र हैं जहां मज़दूरों और किसानों के बच्चों को उचित पोषण और बचपन की देखभाल मिलती है। परंतु आश्चर्यजनक रूप से मोदी सरकार आईसीडीएस योजना को कमजोर करके अपनी जनविरोधी नीतियों को जारी रखना चाहती है।"
सीटू के राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन ने मांग की कि आंगनवाड़ी देखभालकर्ताओं सहित योजना कार्यकर्ताओं को श्रम कानूनों के दायरे में लाया जाए। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, "देश में आंगनवाड़ी महिलाओं का संघर्ष अन्य मज़दूर यूनियनों द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई को महत्वपूर्ण ऊर्जा प्रदान कर रहा है। यही कारण है कि देश के सभी मज़दूर अपने श्रम को मान्यता दिलाने की लड़ाई में इन महिलाओं के साथ खड़े हैं।”
केरल के राज्यसभा सांसद एलमाराम करीम ने मंगलवार को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "केंद्र सरकार को 45वें और 46वें भारतीय श्रम सम्मेलनों की सिफारिशों को लागू करके देश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की कामकाजी परिस्थितियों में तत्काल सुधार करना चाहिए।"
यह पूछे जाने पर कि क्या इस मुद्दे को संसद के अंदर भी उठाया जाएगा। इसपर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद ने इस बात पर अफसोस जताया कि सदन की कार्यवाही सुचारु रूप से नहीं चल रही है। क्योंकि सरकार बढ़ी हुई कीमतों और पैकेज्ड फूड पर जीएसटी पर चर्चा की अनुमति नहीं दे रही है।
उन्होंने कहा, "लेकिन जैसे सांसदों को संसद में मुद्दे उठाने की अनुमति मिलने के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का मामला उठाया जाएगा।"
इस बीच, मंगलवार को हरियाणा और दिल्ली में आंदोलन के दौरान क्रमश: 975 और 991 कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की बर्खास्तगी के खिलाफ भी नारेबाजी की गई और उनकी तत्काल बहाली की मांग उठाई गई ।
AIFAWH की महासचिव एआर सिंधु ने मंगलवार को न्यूजक्लिक को बताया, "यूनियन महापड़ाव के तीसरे दिन विरोध स्थल पर ही समीक्षा बैठक करेगी, ताकि भविष्य की कार्रवाई की घोषणा की जा सके।"
इसे भी देखें : आंगनवाड़ी अधिकार महापड़ाव: हज़ारों महिलाओं के हक़ों की लड़ाई
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