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दिल्ली बुक फेयर: भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी देख लोग जी रहे क्रांति के लम्हे

दिल्ली में चल रहे वर्ल्ड बुक फेयर में पहली बार शहीद भगत सिंह की जेल डायरी की ओरिजिनल कॉपी रखी गई है। आज़ादी के अमृत महोत्सव थीम पर चल रहे बुक फेयर में भगत सिंह की जेल डायरी की ओरिजिनल कॉपी युवाओं में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
bhagat singh

चंद सीढ़ियां चढ़कर एक प्लेटफार्म पर केसरिया रंग के कपड़े में लिपटी डायरी को देख जो कैफ़ियत थी शायद ही उसे लफ़्ज़ बयां कर पाएं, इंग्लिश के हर्फ़ जैसे डायरी से निकल कर हवा में तैरने लगे, ऐसा लगा हम लाहौर की सेंट्रल जेल की उस कोठरी में जा खड़े हुए जहां इन्हें शहीद-ए-आज़म ने सोचा था। डायरी का पेज नंबर 32 और 33 खुला था और उसपर लिखे Rights (हक़) पर जाकर निगाह ठहर गई। लिखा था :

''अधिकार मांगो नहीं, बढ़कर ले लो। और उन्हें किसी के द्वारा भी तुम्हें देने मत दो। यदि मुफ़्त में तुम्हें कोई अधिकार दिया जाता है तो समझो कि उसमें कोई-न-कोई राज़ ज़रूर है। ज़्यादा संभावना यही है कि किसी ग़लत बात को उलट दिया गया है।"

बुक फेयर में रखी गई भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी

नीचे से पेज कुछ फट गए थे लेकिन अब भी जैसे लफ़्ज़ न मिटने की ज़िद पर अड़े थे।

बुक फेयर में भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी

दिल्ली में वर्ल्ड बुक फेयर चल रहा है और यहां भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी को पहली बार रखा गया है। डायरी के बग़ल में भगत सिंह का स्टेचू रखा गया है, जिसने ज़र्द (पीले) रंग की पगड़ी बांध रखी थी, रौशन चेहरा और हाथों में हथकड़ी, पर बैठने का अंदाज़ ऐसा कि लग रहा था जैसे लोगों से मुख़ातिब हो रहे हों। क़रीब से जब डायरी की लिखावट देखी तो रोंगटे खड़े कर देने वाली कैफ़ियत थी, हम 23-24 साल के उस इंकलाबी नौजवान की डायरी से रूबरू थे जिसका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे लफ्ज़ों में दर्ज है। जो पन्ने खुले थे उस पर हक़ (Rights) के साथ ही :

- एक बच्चे की मौत और तकलीफ़

- एक क्रांतिकारी की मानसिकता का ज़िक्र

- No Enemies ? (कोई दुश्मन नहीं?) और

- Child Labour (बाल मज़दूरी) का ज़िक्र था।

कहां देख सकते हैं आप इस डायरी को ?

भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी को थीम पवेलियन में रखा गया है और ख़ास बात है की इस डायरी को रोज़ सुबह रखा जाता है और शाम को ले जाया जाता है, ऐसा सुरक्षा कारणों की वजह से किया जाता है। यहां प्रभात प्रकाशन पर पता चला कि उनके स्टॉल पर अब तक जिस किताब की सबसे ज़्यादा सेल हुई है वो भगत सिंह की 'जेल डायरी' ही है।

युवाओं में दिखा उत्साह

भगत सिंह की जेल डायरी की ओरिजिनल कॉपी को देख रहे लोगों में एक हैरानी साफ़ दिखाई दे रही थी। ज़्यादा संख्या में युवा ही डायरी को निहार रहे थे, कुछ युवा तो बार-बार पलट कर देखने आ रहे थे तो कुछ लोग ट्रांसपेरेंट बॉक्स पर कुछ इस अंदाज़ में हाथ रख रहे थे जैसे वो उस डायरी को महसूस करना चाहते हों। यहां बहुत ही बातें हवा में तैर रही थीं, डायरी को देखकर एक-दूसरे से बातचीत में गुम कॉलेज की कुछ लड़कियों की आंखों की चमक बता रही थी कि उन्होंने कुछ बहुत ही ख़ास देखा है, तो कुछ एक दूसरे को बता रही थीं कि, ''मुझे तो उनकी हैंड राइटिंग बहुत ही पावरफुल लग रही है।'', कुछ युवा डायरी के साथ सेल्फ़ी ले रहे थे तो कुछ वीडियो कॉल कर अपने घर वालों को भी इस डायरी को दिखाने की कोशिश करते दिखे।

भरत सिंह की जेल डायरी की ओरिजिनल कॉपी को हैरानी से देखते छात्र

इस डायरी के आस-पास इन नौजवानों ने एक उत्साह से भरा माहौल बना दिया था, हर कोई एक-दूसरे को भगत सिंह के क़िस्से ऐसे सुना रहा था मानो वो उनके (भगत सिंह) बारे में बहुत ज़्यादा जानता हो शायद उत्साह के कारण ऐसा था।

'भगत सिंह ब्रिगेड' ने पेश की जेल डायरी

शहीद भगत सिंह के ही परिवार के सदस्य हैं यादविंदर सिंह संधु और उनकी एक ब्रिगेड है 'भगत सिंह ब्रिगेड' जिसके दिल्ली प्रभारी दलजीत सिंह से हमारी मुलाक़ात हुई। उन्होंने हमें बताया कि, "ये महान क्रांति ग्रंथ यादविंदर सिंह संधु के परिवार के पास आज भी बहुत ही सम्मान के साथ रखा हुआ है और सरकार के कहने पर हमने आज़ादी के अमृत महोत्सव के मौक़े पर यहां आम लोगों के लिए इस क्रांति ग्रंथ को रखा है।"

भगत सिंह ब्रिगेड से जुड़े सदस्य

इस ब्रिगेड में सचिव के तौर पर नियुक्त विपिन झा से हमारी मुलाक़ात हुई उन्होंने बताया कि, "ये पहली बार ही हो रहा है जब किसी बुक फेयर में इस अनमोल धरोहर को रखा गया है, ये जेल डायरी 404 पेज की है जो कि इंग्लिश और उर्दू में लिखी गई है और यहां ये लोगों-ख़ासकर युवाओं-में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।"

“भगत सिंह हमारे हीरो हैं”

इसमें कोई शक नहीं कि बुक फेयर के हॉल नंबर दो में भगत सिंह से जुड़ा साहित्य हो या फिर उनकी कही बातों के पोस्टर या फिर छोटे-छोटे बुकमार्क, युवा हाथों-हाथ ले रहे हैं। कोई भगत सिंह की तस्वीरों के साथ सेल्फी लेता दिखाई दे रहा है तो कोई उनके पोस्टर को अपने कमरे में लगाने के लिए खरीदते दिखाई दे रहा है।

भगत सिंह की जेल डायरी 

भगत सिंह की ओरिजनल जेल डायरी के साथ तस्वीर ले रही एक छात्रा कृति से हमने बात की तो उनका कहना था कि, "भगत सिंह आम लोगों को ख़ासकर छात्रों को आज भी बहुत प्रभावित करते हैं, उन्होंने हमारे देश के लिए जान दे दी वो हमारे हीरो हैं।"

एक और छात्र रंजीत कहते हैं, "भगत सिंह को पढ़ना हमेशा ही बहुत उत्साहित करने वाला लगता है, उन्हें पढ़कर लगता है कि हम भी जीवन में कुछ अच्छा करें।"

वहीं एक रिटायर्ड टीचर हमसे बात करते हुए कहते हैं, "भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी के साथ तस्वीर खिंचवाना एक गौरव की बात है, इन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया, जिन्होंने भी देश की आज़ादी के लिए बलिदान दिए वो सभी पूजनीय हैं, उनके विचार बहुत अहम हैं, हम तो कहते हैं कि आज भी कोई समस्या आती है तो हमें भगत सिंह बनकर उसका सामना करना चाहिए।"

आज भी गूंजते हैं भगत सिंह के इंकलाबी नारे

इसमें कोई शक नहीं कि शहीद भगत सिंह हर जाति, हर मज़हब के ही नहीं बल्कि ग़रीबों, किसानों और मज़दूरों के भी हीरो हैं, अक्सर हमें देश में होने वाले आंदोलनों में उनकी तस्वीर दिखती है और नारे गूंजते सुनाई देते हैं। आज भी उनके इंकलाबी नारे उतने ही अहम लगते हैं जितने उस वक़्त (अंग्रेज़ी हुकूमत के वक़्त) लगते थे। और शायद यही वजह है जो वो कहा करते थे-"वे मुझे मार सकते हैं, मेरे विचारों को नहीं"

कैसे भविष्य का सपना देखते थे भगत सिंह?

अक्सर एक सवाल उठता है कि भगत सिंह ने किस तरह के भविष्य का सपना देखा था? इस सवाल के बहुत से जवाब शहीद भगत सिंह की जेल डायरी में मिलते हैं। एक जगह वो लिखते हैं-Man and Mankind (मानव और मानव जाति)-जिसमें वो लिखते हैं, “मैं एक मानव हूं और वह सब कुछ जो मानवता को प्रभावित करता है उससे मेरा सरोकार है।”(रोमन ड्रामाटिस्ट)

भगत सिंह की जेल डायरी को देखने से अंदाज़ा होता है कि ये डायरी उन्हें जेल अधिकारियों की तरफ से 12 सितंबर 1929 को दी गई थी। डायरी के पन्ने पटलने से एहसास होता है कि वो मार्क्स, लेनिन, एंजेल्स, रवींद्रनाथ टैगोर, ऑस्टिन, हॉब्स, सुकरात, प्लेटो, अरस्तु के जीवन और विचारों से बहुत प्रभावित थे।

एक जगह वो लिखते हैं :

“महान लोग महान इसलिए हैं,

क्योंकि हम घुटनों पर हैं

आइए, हम उठें!”

भगत सिंह अपनी जेल डायरी में 'ज़िंदगी का मकसद' (Aim of Life) पर लिखते हैं :

“ज़िंदगी का मकसद अब मन पर क़ाबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है। मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं, बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है। सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी के वास्तविक अनुभवों से भी करना है। सामाजिक प्रगति सिर्फ़ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी। आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है, जब सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो।”

उनकी डायरी में एक जगह 'श्रम का अधिकार' का ज़िक्र है जिसमें वो लिखते हैं :

“जो कोई भी कठिन श्रम से कोई चीज़ पैदा करता है उसे यह बताने के लिए ख़ुदा के किसी पैगाम की ज़रूरत नहीं कि पैदा की गई चीज़ पर उसी का अधिकार है।”

वहीं एक जगह 'दमन' का ज़िक्र करते हुए लिखा गया है कि :

“बेशक दमन किसी समझदार को पागल बना देता है।”

अपनी डायरी में भगत सिंह एक जगह 'ग़रीब मज़दूर' के बारे में लिखते हैं :

“...और हम लोग, जिन्होंने इसे अंजाम देने का बीड़ा उठाया, इस दुनिया में कुजात ही रहे। एक अंधी किस्मत, एक विराट निर्मम तंत्र ने काट-छांट कर हमारे अस्तित्व का ढांचा निर्धारित कर दिया। हम उस वक़्त तिरस्कृत हुए जब हम सबसे अधिक उपयोगी थे। हमें उस वक़्त दुत्कार दिया गया, जब हमारी ज़रूरत नहीं थी और हमें उस वक़्त भुला दिया गया, जब हमारे ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूटा हुआ था। हमें बीहड़-बंजर साफ करने के लिए उसकी सारी आदिम भयंकरताओं को दूर करने के लिए तथा उसके विश्व-पुरातन अवरोधों को छिन्न-भिन्न कर डालने के लिए भेज दिया जाता है। हम जहां भी काम करते, वहां एक दिन एक नया शहर जन्म ले लेता: और जब यह जन्म ले ही रहा होता, तब यदि हममें से कोई वहां चला जाता, तो उसे 'बिना निश्चित पते का आदमी' कहकर पकड़ लिया जाता और सिरफिरा-आवारा कहक़र उस पर मुकदमा चलाया जाता।”

बुक फेयर में रखी गई भगत सिंह की ओरिजिनल जेल डायरी

उनकी डायरी में स्वतंत्रता, राज्य, समाजवाद, न्याय, कानून, नागरिक और उनके अधिकार समेत बहुत से मुद्दों पर विचार लिखे गए हैं।

एक जगह वो नैतिकता और भूख पर लिखते हैं कि :

“उस शख्स के लिए नैतिकता और धर्म महज़ अल्फ़ाज़ हैं, जो ज़िंदगी चलाने के लिए नालियों में से मछली पकड़ता है और सर्द रात के ठंडे झोंकों से बचने के लिए गली में रखे बैरल्स के पीछे सिकुड़ जाता है।” ~होरेस ग्रीले (अमेरिकी पत्रकार और राजनीतिज्ञ होरेस ग्रीले, 1811-1872)

“किसी हुक्मरान से यह उम्मीद की जाती है कि उसकी हुकूमत में कोई भी ठंड और भूख से पीड़ित न हो। आदमी के पास जब ज़िंदगी के लिए ज़रूरी मामूली चीजें भी न हों तो वह नैतिकता के मापदंड कैसे कायम रख सकता है?”

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एक 23 साल के आज़ादी के दीवाने की डायरी में बहुत से ऐसे विचार हैं जो उनकी उम्र से कहीं आगे की सोच को बयां करते हैं, और इस डायरी में आज़ादी का जो ज़िक्र है उसका एक हिस्सा कुछ यूं है-

“... क्या यह भूल जाना सच्ची आज़ादी है? 

नहीं ! सच्ची आज़ादी है 

अपने जो लोग जंजीर में जकड़े हैं 

उनका दर्द महसूस करना 

और तन-मन से उन्हें मुक्त कराने में जुट जाना। 

गुलाम वे हैं, जो 

नफ़रत, उपहास और गाली का 

सामना करने के बजाय 

सिकुड़े हुए चुपचाप बैठे रहते हैं

गुलाम हैं वे, जो ग़लत होने के 

बावजूद होंगे बहुमत में 

बजाए सही होने के बावजूद अल्पमत में।”

~(जेम्स रसेल लॉवेल-अमेरिकी कवि, निबंधकार और संपादक 1819-1891) 

भगत सिंह की डायरी में जहां एक तरफ जोश से भरी इंकलाबी बातें हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन तमाम बातों और एहसासों का ज़िक्र है जो एक आम इंसान के ख़ास विचारों के मालिक होने की तस्दीक करते हैं।

एक नौजवान जिसने अपने देश के लिए न सिर्फ़ बहुत से सपने देखे थे बल्कि उन्हें पूरा करने के कुछ सूत्र भी अपनी डायरी में जमा कर छोड़ गए थे।

आज उन्हीं 'फॉर्मूलों' से सजी डायरी की ओरिजिनल कॉपी उन्हीं आम जन के बीच पेश की गई है जिनके लिए भगत सिंह ने ये सबकुछ लिखा था। जिस वक्त नौजवानों की भीड़ इस ओरिजिनल जेल डायरी को हैरत भरी निगाहों से देख रही थी हम सोच रहे थे कि जिस उम्र के ये नौजवान भगत सिंह की हैंडराइटिंग देखकर हैरान हैं उसी उम्र में भगत सिंह से आख़िरी बार जब उनकी माता लाहौर जेल में मिलने पहुंची थी तो उन्होंने भगत सिंह से कहा था कि “बेटा भगत, तू इतनी छोटी उम्र में मुझे छोड़कर चला जाएगा।” जिसके जवाब में भगत सिंह ने कहा था कि “बेबे, मैं देश में एक दीया जला रहा हूं, जिसमें न तो तेल है और न ही घी। उसमें मेरे रक्त और विचार मिले हुए हैं। अंग्रेज़ मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरी सोच व मेरे विचार को नहीं, और जब भी अन्याय व भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जो भी शख़्स तुम्हें लड़ता हुआ नज़र आए, वह तुम्हारा भगत होगा।”

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