दिल्ली: एकबार फिर बढ़ रहे डेंगू के मामले, इससे लड़ने के लिए कितनी तैयार है व्यवस्था !
आज दिल्ली में डेंगू बीमारी फिर अपने पूरे पैर पसार रही है और लगातार दिन पर दिन डेंगू के अलावा मलेरिया,चिकनगुनिया से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली सरकार और नगर निगम दावे कर रही है की उन्होंने इससे लड़ने के लिए कमर कस ली है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पूरे शहर मे होर्डिंग लगा दिए हैं और कह रही कि डेंगू पर वार, दिल्ली है तैयार! लेकिन इसके नियंत्रण और रोकथाम के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की मानें तो सरकारों के दावे जो भी हों लेकिन हकीकत ये है कि जमीन पर हालात बेहद खराब हैं और वे बिना किसी सुरक्षा के काम करने को मजबूर हैं। इससे सवाल उठता है कि क्या डेंगू से लड़ने के लिए राजधानी तैयार है? या फिर सरकार जमीन पर काम करने के बजाए प्रचार में लगी हुई है ।
क्या है हाल
दिल्ली में पिछले महीने डेंगू के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। सितंबर के आखिरी हफ्ते में 400 से ज्यादा मामलों की पुष्टि हुई है। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की ओर से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने 28 सितंबर तक डेंगू के 693 मामले मिले।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल 21 सितंबर तक मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी के 525 मामलों की पुष्टि हुई थी जबकि इसके अगले हफ्ते में 412 मामले दर्ज हुए थे। रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अब तक डेंगू के 937 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। हालांकि इस साल अब तक डेंगू के कारण किसी भी शख्स की मौत रिपोर्ट नहीं हुई है।
साल 2015 में दिल्ली में डेंगू का भयंकर प्रकोप देखने को मिला था जब सिर्फ अक्टूबर में ही 10,600 से ज्यादा मामले मिले थे। यह 1996 के बाद दिल्ली में डेंगू का सबसे भयंकर प्रकोप था।
रिपोर्ट कहती है कि इस साल 28 सितंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में मलेरिया के 125 और चिकनगुनिया के 23 मामलों की पुष्टि हुई है।
एमसीडी ने कहा है कि वह डेंगू के प्रसार को रोकने के लिए अभियान चला रही है। दिल्ली में डेंगू के मामलों में बढ़ोतरी के बीच कई लोगों को वायरल संक्रमण है और उनमें कोविड और डेंगू दोनों के लक्षण दिख रहे हैं जिससे डॉक्टरों को सटीक बीमारी का पता लगाने में परेशानी हो रही है।
अस्पतालों में बढ़ रही है मरीज़ों की संख्या
दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल में लगातार डेंगू और अन्य बुखारों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। अस्पताल के निदेशक के मुताबिक ओपीडी में चार से पांच हजार मरीज आ रहे थे। लेकिन, पिछले दो सप्ताह से मरीजों की संख्या सात हजार को भी पार कर रही है। उन्होंने बताया जिन मरीजों में डेंगू की पुष्टि होती है और उनकी प्लेटलेट्स 50 हजार से कम होती हैं तो उन्हें भर्ती कर लिया जाता है। बाकी लोगों को दवा देकर घर भेज दिया जाता। इसी प्रकार दिल्ली नगर निगम अस्पताल मे बाड़ा हिन्दू राव मे भी मरीजों की संख्या हजार से अधिक बढ़ गई है।
इसी प्रकार सेंट्रल दिल्ली के राम मनोहर अस्पताल मे भी मरीजों की संख्या बढ़ गई है।
जानकारों की माने तो अभी ये संख्या और बढ़ सकती है, इसलिए अस्पतालों को और दुरुस्त करने की आवश्यकता है क्योंकि हमने पिछले सालों मे देखा है सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कैसे चरमरा जाती हैं।
मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के खिलाफ ज़मीन पर काम करने वाले घरेलू प्रजनन जांचकर्ताओं (डीबीसी) यानी वो लोग जो घर-घर जाकर जाँच करते हैं और वो उसके रोकथाम के लिए दवाओं क छिड़काव जैसे काम करते हैं। उनका कहना है कि अगर कहीं मच्छर पैदा हो रहे हैं तो वे, उसके रोकथाम के लिए भी कार्य करते हैं। इनकी संख्या अभी 3500 है जो कि जरूरत से कम है। जो कर्मचारी काम भी कर रहे हैं, उन्हें कई महीनों तक सैलरी नहीं मिलती है। इसके आलावा भी उनको कई तरह की समस्या है। सबसे बड़ी समस्या तो यह है की सरकार ने इन्हें आजतक कोई पोस्ट ही नहीं दिया है।
एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन जो इन कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करती है। उसका कहना है कि दिल्ली में डीबीसी कर्मचारी लगातार अपनी पूरी मेहनत को 26 साल से बरकरार रखे हैं और इस साल भी दुगनी ताकत लगाकर काम कर रहे हैं। इसके बावजूद इस बीमारी के बीच साउथ दिल्ली नगर निगम के 4 जोन नजफगढ़ जोन, वेस्ट जोन, साउथ जोन और सेंट्रल जोन के 1350 डीबीसी कर्मचारियों को 1 अक्टूबर से लेकर 2 अक्टूबर तक के लिए उनकी सेवाओं के लिए ब्रेक दिया गया था। जो हम डीबीसी कर्मचारियों को नागवार गुजर रही है क्योंकि हमारी सेवा विस्तार जो कि सन 2021 में 1 अक्टूबर से लेकर 30 सितंबर 2022 तक का था ।उस सेवा विस्तार को आगे बढ़ाते हुए निगम अधिकारियों ने 2022 में 1 अक्टूबर और 2 अक्टूबर का दो दिनी सेवा विस्तार में ब्रेक दिया।
वे कहते हैं कि इसकी वजह से कर्मचारी काफी आहत हुए हैं और दिल्ली में की जाने वाली घर घर जाकर मच्छरों की घरेलू प्रजनन जाँच प्रक्रिया पर भी विराम लगा। जिसकी वजह से दिल्ली में यह और बड़ी महामारी का रूप ले सकती है।
उनके अनुसार निगम अधिकारियों को इस बारे में उन लोगों ने 2 हफ्ते पहले मीटिंग कर लिखित और मौखिक रूप से चेताया था कि हमारा सेवा विस्तार 30 सितंबर को समाप्त होगा जिसको पिछले सभी मेयर ने बिना ब्रेक दिए जारी रखा था।लेकिन इस बार इस आपातकालीन स्थिति में भी हमारी सेवा को उचित ना समझते हुए अभी तक सेवा विस्तार के आर्डर जारी नहीं किए गए हैं। शायद अब दिल्ली की जनता इस महामारी के लिए भगवान भरोसे छोड़ दी गई है क्योंकि 2 दिन किसी भी तरह की दवा छिड़कने, ब्रीडिंग चेक करने इत्यादि का काम नहीं हुआ।
बदतर हालात में काम करने को मजबूर हैं डीबीसी कर्मचारी!
डीबीसी कर्मचारी और यूनियन के अध्यक्ष देवानंद ने न्यूज़क्लिक से खास बातचीत की और वर्तमान हालत के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अभी हालात बद से बदतर हो गए हैं। सरकार पहले कहती है कि हम कोई काम करते ही नहीं है और अब महामारी के समय हमें ही आगे किया जाता है। हम बिना किसी सुरक्षा के काम करने को मजबूर है यहाँ तक कि डेटा एंट्री करने के लिए भी डायरी भी अपने पैसे का खरीदना पड़ता है ।
यूनियन नेता के मुताबिक पहले एक कर्मचारी एक दिन में 50 से 60 घरों की जांच करता था लेकिन अब अधिकारी कह रहे हैं कि 100 से 120 घरों की जांच करो जो कि एक असंभव कार्य है। इसके अलावा किसी घर में मच्छर का लार्वा मिल रहा है तो उस क्षेत्र के कर्मचारी को नौकरी से हटाया जा रहा है। क्योंकि हम जब किसी घर जांच कर जाते हैं उसके चार पाँच दिन बाद वहाँ लार्वा पैदा हो जाता है तो उसमें कर्मचारी क्या कर सकता है? क्योंकि हम एक घर जहां जांच करते है वहाँ वापस दोबारा जांच करने में लगभग 15 दिन का समय लग जाता है उस दौरान वहाँ अगर मच्छर पैदा हो जाता है क्योंकि डेंगू के मच्छर चार से पाँच दिन मे पैदा हो जाता है। लेकिन अधिकारी इसके लिए भी हमें ही जिम्मेदार मानते हैं।
देवानंद आगे कहते हैं कि कोरोना में भी मास्क तक नहीं दिया गया था। काम करने के नियमों को ताक पर रखकर काम कराया जा रहा है जिसका परिणाम है कि कर्मचारी लगातार हादसों का शिकार हो रहे हैं और कई कर्मचारी खुद बीमारी का शिकार होकर मौत के मुंह में समा रहे हैं।
आगे उन्होंने कहा कि दक्षिणी दिल्ली के बदरपुर में एक कर्मचारी बहुमंजिला इमारत के छत पर टंकी चेक करने गया और वहाँ से गिर गया और गंभीर रूप से घायल हो गया और अभी अस्पताल में है। उसका ऑपरेशन होना है लेकिन विभाग ने उसकी कोई भी आर्थिक मदद नहीं की। बेशर्मी तो यह है कि उसे छुट्टी तक नहीं दी गई और उसका वेतन काटा जा रहा है। जबकि ये हादसा टल सकता था क्योंकि नियम है ऊंची जगह पर जब भी जांच करनी है तब दो कर्मचारी होने चाहिए लेकिन कर्मचारी के कमी के कारण अकेले जाना पड़ता है। इसके साथ ही हेलमेट या बाकी किसी तरह का कोई सुरक्षा उपकरण नहीं होता है। जो इस तरह के हादसों को दावत देता है।
ये हालत तो उन कर्मचारियों की है जो डेंगू और अन्य जानलेवा बीमारियों के रोकथाम के लिए कार्य करते हैं। अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि ये किस हालत में काम कर रहे हैं। इन्हें न्यूनतम वेतन दिया जाता है इसके अलावा इन्हें न कोई छुट्टी या अन्य कोई सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा नहीं है। इस हालात में अगर कोई दुर्घटना होती तो उन्हें किस तरह का आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
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