दिल्ली दंगा: पुलिस पर कोर्ट के आदेश के बाद भी आरोपपत्र पढ़ने के लिए पर्याप्त समय नहीं देने का आरोप
नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगा मामलों में गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) के तहत मुकदमे का सामना कर रहे कई आरोपियों ने मंगलवार को एक अदालत के सामने दावा किया कि आदेश के बावजूद जेल में उन्हें आरोपपत्र की प्रतिलिपि नहीं दी गयी।
आपको बता दें कि दिल्ली दंगे को लेकर पुलिस के रैवये पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। पुलिस को कई बार अपने इस रवैये के कारण कोर्ट से भी फ़टकार खानी पड़ी है लेकिन लगाता नहीं कि दिल्ली पुलिस की सेहत पर इससे कोई फ़र्क पड़ा है। क्योंकि एक बार फिर उसने कोर्ट के आदेश का ठीक से पालन नहीं किया है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पुलिस को आरोपियों को उनके आरोपपत्र की पहुँच देने को कहा था और मीडिया में इसे लीक होने पर भी पुलिस को फ़टकार लगी थी।
वहीं, कुछ आरोपियों ने मंगलवार की सुनवाई में दावा किया कि आरोपपत्र पढ़ने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया। आरोपियों ने अदालत से जेल प्रशासन को एक घंटे से ज्यादा समय देने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया ताकि वे जेल में कंप्यूटर सिस्टम पर 1800 पन्ने का आरोपपत्र पढ़ पाएं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने मामले को दो फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान आरोपियों खालिद सैफी, शिफा उर रहमान और शादाब अहमद ने दावा किया कि अदालत के आदेश के तहत जेल के कंप्यूटर पर आरोपपत्र को अपलोड कर दिया गया है लेकिन उन्हें वहां तक पहुंच नहीं दी गयी है।
मंडोली जेल में बंद सैफी ने कहा, ‘‘पुलिस अधिकारियों ने कंप्यूटर में आरोपपत्र अपलोड कर दिया है लेकिन जेल अधिकारियों ने वहां तक पहुंच की इजाजत नहीं दी।’’
तिहाड़ जेल में बंद रहमान ने कहा कि जेल प्रशासन ने अब तक उन्हें सूचित नहीं किया है कि आरोपपत्र अपलोड कर दिया गया है।
आप के निलंबित पार्षद और सह आरोपी ताहिर हुसैन ने दावा किया कि वह आरोपपत्र नहीं पढ़ पाए क्योंकि कंप्यूटर पर हमेशा कोई न कोई बैठा रहता है। हुसैन ने पेन ड्राइव में इसे मुहैया कराने का अनुरोध किया ताकि वह पुस्तकालय जाकर वहां इसे पढ़ सकें।
आरोपियों को आरोपपत्र पढ़ने के लिए ज्यादा समय नहीं दिया गया, इस तथ्य का पता चलने के बाद अदालत ने नाराजगी प्रकट की।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद ने कहा कि उन्हें आरोपपत्र पढ़ने के लिए किसी दिन तीन घंटे दिए गए जबकि किसी दिन एक ही घंटा दिया गया।
जेएनयू के छात्र शरजील इमाम ने दावा किया कि आरोपपत्र पढ़ने के लिए उन्हें दो घंटे का ही समय दिया गया। पूर्व पार्षद इशरत जहां ने कहा कि उन्हें एक घंटे दिया गया। वहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा ने कहा कि उन्हें आरोपपत्र पढ़ने के लिए केवल डेढ़ घंटे का वक्त दिया गया।
न्यायाधीश ने जब तिहाड़ जेल प्रशासन से आरोपियों द्वारा जतायी गयी चिंता पर सवाल किया तो वह कोई जवाब नहीं दे पाए।
आरोपियों ने कहा था कि उन्हें अपने वकीलों से आधे घंटे की मुलाकात के दौरान इतना विशालकाय आरोपपत्र पर चर्चा करने में मुश्किलें आती हैं। इसके बाद अदालत ने पुलिस को जेल में कंप्यूटर में आरोपपत्र की एक प्रति अपलोड करने का निर्देश दिया था।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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