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दिल्ली: हज़ारों की संख्या में आशा वर्कर्स की ‘संघर्ष रैली’, केंद्र के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा!

सामाजिक सुरक्षा, पेंशन नियमितीकरण और न्यूनतम वेतन समेत कई मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर हज़ारों आशा कार्यकर्ता एकजुट हुईं।
asha workers

सोमवार, 30 अक्टूबर को देशभर की हज़ारों आशा कार्यकर्ता और सहायिका, न्यूनतम वेतन समेत कई अन्य मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली पहुंची। ये सभी वर्कर्स सीटू से जुड़े ‘आशा वर्कर्स एंड फैसिलिटेटर फेडरेशन ऑफ़ इंडिया(AWFFI)’ के आह्वान पर संसद भवन के पास जंतर-मंतर पर एकत्र हुईं।

आशाओं ने अपनी इस रैली को 'संघर्ष रैली' का नाम दिया जिसमें कम से कम 17 राज्यों की दस हज़ार से ज़्यादा आशा वर्कर्स और फैसिलिटेटर्स आज सामाजिक सुरक्षा, पेंशन नियमितीकरण और न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रति माह जैसी मांग को लेकर जंतर-मंतर पर एकजुट हुईं।

बिहार के गया ज़िले से आईं गीता कुमारी ने कहा, “हम आज 20 से ज़्यादा घंटे काम करते हैं लेकिन शुरूआत में हमारा काम सिर्फ़ जच्चा-बच्चा की देखभाल करना था। हमारा काम लगातार बढ़ रहा है लेकिन  मानदेय नहीं बढ़ रहा है। आज भी हमें सिर्फ़ दो हज़ार रूपये मिलते हैं। दो हज़ार में एक आदमी का भी पेट नही भरता है लेकिन सरकार के मुताबिक़ हम उससे घर चला लेंगे।"

फेडरेशन ने अपने बयान में कहा कि "सभी राज्यों से लामबंदी के कोटे को पार करते हुए इस भारी लामबंदी ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ गुस्से को दर्शाया है। इससे नाराज़ दिखे पुलिस और प्रशासन ने कार्यक्रम को समय से पहले ही बंद कराने का प्रयास किया। कार्यक्रम की शुरूआत में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। विभिन्न राज्यों में संघर्षों के दौरान बनाये गए गीत - प्रस्तुत किए गए जिससे प्रतिभागियों में उत्साह भर गया।"

बिहार के ही सारण ज़िले से आई नाज़मा खातून ने कहा, "मैं 17 साल से आशा वर्कर हूं लेकिन आज भी हमें दो हज़ार ही मानदेय मिलता है। ये कैसा न्याय है? आज जब भी कोई ख़तरनाक बीमारी आती है तो सबसे पहले हमें ही उसका सामना करना पड़ता है। कोरोना में जब नेता और बड़े अफसर अपने घरों में बंद थे तब हम घर-घर जाकर प्रवासी मज़दूरों का सर्वे कर उनकी देखभाल करते थे। पोलियों से भी लड़ाई हमने लड़ी और आज देश पोलियों मुक्त हो गया है।"

'आशा संघर्ष रैली' का उद्घाटन सीटू के महासचिव तपन सेन ने किया। उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं को राज्य स्तर पर 'उनके शानदार संघर्षों' के लिए बधाई दी। सेन ने उनसे राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष तेज़ करने के लिए कहा। इसके अलावा उन्होंने सरकार पर 'कॉरपोरेट-सांप्रदायिक गठजोड़' का गंभीर आरोप लगाया।

AWFFI के अध्यक्ष पीपी प्रेमा ने अध्यक्षीय भाषण दिया। फेडरेशन की महासचिव मधुमिता बंदोपाध्याय ने मुद्दों और मांगों के चार्टर और फेडरेशन के अब तक के संघर्षों और उपलब्धियों के बारे में बताया।

रैली को AIKS के कोषाध्यक्ष पी कृष्णप्रसाद, AIAWU के महासचिव बी वेंकट, SKM के नेता हन्नान मौल्ला, AIDWA नेता सविता सहित भाईचारा संगठनों के नेताओं ने संबोधित किया। इसके अलावा MDMWFI के महासचिव जयभगवान और AIFAWH की अध्यक्ष उषारानी ने आशा कार्यकर्ताओं के संघर्षों के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए पूरे देश में ज़मीनी स्तर पर स्कीम वर्कर्स आंदोलन को मजबूत करने का आह्वान किया।

बी वेंटक ने केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा, "सरकर हर चुनाव में कहती है 'अबकी बार डबल इंजन सरकार' लेकिन हम यहां उन्हें बताने आए हैं कि उनके डबल इंजन से मुकाबला करने के लिए हमारा ट्रिपल इंजन तैयार है। मज़दूर, किसान और खेत मज़दूर, ये तीनों मिलकर उनके राजनीतिक और पूंजीवाद के गठजोड़ को हराएंगे।"

इस संघर्ष रैली में पंजाब से दो गैर-संबद्ध यूनियन और यूपी से भी एक यूनियन शामिल हुई।

पंजाब के मोगा से आईं मनदीप कौर ने कहा, "हम 24 घंटे ऑन ड्यूटी होते हैं लेकिन सरकार हमारा मानदेय नही बढ़ाती है, बल्कि सरकार जो मानदेय हमें देती है वो इतना कम है जिसमें आप कुछ कर नही सकते।"

उत्तराखंड के टिहरी ज़िले से आया आशाओं का एक जत्था मोदी सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करते हुए रैली स्थल पर पहुंचा। जत्थे में शामिल कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्हें पहाड़ों पर काम के दौरान ख़तरनाक स्थिति में काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि उन्हें देर रात तक डिलीवरी के समय जाना पड़ता है। उनके यहां से अस्पताल 40 किलोमीटर दूर है। इस दौरान कोई हादसा होता है तो प्रशासन अपना पल्ला छाड़ लेता है। 

AWFFI की राष्ट्रीय सचिव सुरेखा ने समापन भाषण दिया और कार्रवाई की रूपरेखा की घोषणा की। सुरेखा ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि "आशाएं इस देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। आज के हेल्थ इंडेक्स में बढ़ोतरी दिखाता है कि आशाओं ने अपनी मेहनत से देश की सेवा की है। सरकार भी इसे समय-समय पर मानती रही है। कोरोना काल के बाद विश्व के संगठनों ने भी हमारे काम की तारीफ़ की लेकिन सरकार ने हमारे मानदेय में बढ़ोतरी नही की है।"

सविता ने कहा, "आज हम अपने वर्कर होने का अधिकार और न्यूनतम वेतन 26000 की मांग करने आए हैं। देशभर में आशा सड़कों पर हैं। बीते दिनों हरियाणा में आशाओं ने ऐतिहासिक 73 दिनों की हड़ताल की और जीती। इसी तरह बिहार में भी 32 दिनों की हड़ताल हुई थी। अभी भी महाराष्ट्र की आशाएं संपूर्ण हड़ताल पर हैं। यही हाल जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। हम अलग-अलग राज्यों में आंदोलन करते हैं तो सरकार कहती है कि ये केंद्र की योजना है। इसलिए हम आज केंद्र सरकार को अपनी मांग बताने और चेतवानी देने आए हैं। वो हमारी मांगों पर जल्द से जल्द सुनवाई करे, नहीं तो हम भविष्य में और मजबूत आंदोलन करने को मजबूर होंगे।"

आशा वर्कर्स की इस संघर्ष रैली में शामिल कार्यकर्ताओं और संगठनों ने मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ घर-घर जाकर अभियान चलाने और 26-28 नवंबर, 2023 को विभिन्न राज्यों की राजधानी में 'मज़दूर-किसान महापड़ाव' में शामिल होने का आह्वान किया।

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