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‘दमन-विरोधी प्रदर्शन’ : हरियाणा में पुलिस कार्रवाई के बाद हज़ारों आशाकर्मी सड़कों पर!

मंगलवार, 29 अगस्त को हरियाणा में आशाकर्मियों और मज़दूर संगठन सीटू ने ‘दमन विरोधी’ प्रदर्शन किया। विधानसभा कूच के दौरान पुलिस कार्रवाई को लेकर आशाकर्मियों में भारी रोष है।
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हरियाणा में आशा वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) से जुड़ी आशाकर्मी बीते 22 दिनों से हड़ताल पर हैं। हड़ताल पर बैठीं इन आशाकर्मियों के पहले से तय कार्यक्रम के तहत इन्होंने सोमवार को विधानसभा कूच का ऐलान किया था हालांकि इस कूच को असफल करने के लिए कई आशाकर्मियों और सीटू नेताओं को हिरासत में ले लिए गया था। सीटू राज्य कमेटी ने इस कार्रवाई की निंदा की है। हालांकि हिरासत में लिए गए सभी वर्कर्स और नेताओं को बिना शर्त रिहा कर दिया गया लेकिन सीटू ने इस पुलिस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए प्रदेश भर में सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। सीटू के मुताबिक़ पुलिस की कार्रवाई आशाकर्मियों के आंदोलन को रोकने की एक कोशिश थी।

सीटू के राज्य उपाध्यक्ष सुखबीर सिंह, सतबीर सिंह, सुरेंद्र सिंह, राज्य कोषाध्यक्ष विनोद कुमार एवं राज्य सचिव विनोद ने संयुक्त प्रेस बयान जारी करते हुए कहा कि "एक तरफ तो हरियाणा के मुख्यमंत्री कहते हैं कि सबकी सुरक्षा करना असंभव है और दूसरी तरफ रात से ही प्रदेश भर में आशा वर्कर्स और सीटू नेताओं के घर पर पुलिस भेज कर उन्हें नज़रबंद कर लिया और जगह-जगह पर बड़ी संख्या में आशा वर्कर्स और सीटू नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया।"

आशा वर्कर्स यूनियन, हरियाणा की सुनीता ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि "सरकार ने प्रदर्शन से पहले ही हमारे लोगों को उठाना शुरू कर दिया। हमारा विधानसभा कूच 28 अगस्त को था लेकिन पुलिस ने 27 तारीख से ही हमारे लोगों को गांव से उठाना शुरू कर दिया। कई जगह तो पुरुष पुलिस वालों ने ही महिला आशाकर्मियों को हिरासत में लिया।"

सुनीता ने पुलिस कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाते हुए पुलिस के रवैये को 'अमानवीय' बताया। इसके अलावा उन्होंने इस क़दम को सरकार व पुलिस की 'तानाशाही' बताया और कहा, "सोमवार सुबह से ही पुलिस, आशा वर्कर्स और उनके नेताओं को गिरफ्तारी करके बस में घुमाए जा रही थी और शाम को उनको लाडवा के बस स्टैंड पर छोड़कर चली गई। दूर-दूर से आई हुई महिलाओं को घर तक पहुंचाने का कोई प्रबंध नहीं किया गया। पंचकुला की तरफ तो कोई बस भी नहीं जा रही थी। इससे साफ़ तौर पर साबित होता है कि राज्य की सरकार को प्रदेश की बेटियों की कोई चिंता नहीं है लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री व सरकार को यह नहीं पता कि ये हिंदुस्तान की बेटियां हैं जो अंतरिक्ष तक जा पहुंची हैं, अंधेरी रातें इनका क्या बिगाड़ेंगी। आख़िरी दम तक हम आपके ज़ुल्म का मुकाबला करेंगे।"

सुनीता कहती हैं, “सरकार भले ही हमारे साथ न हो लेकिन हरियाणा की जनता ने हमारा साथ दिया। थोड़ी देर में ही गांव के लोग हमारे समर्थन में आए और हमने सड़क जाम किया। कई गांवों के सरपंच ने फोन कर कहा कि हम आपके साथ हैं, खाने की व्यवस्था भी की और आश्वस्त किया अगर पुलिस उन्हें घर नहीं छोड़ेगी तो वो उन्हें घरों तक ले जाएंगे। लेकिन देर रात स्थानीय पुलिस ने हमारे प्रदर्शन के बाद बसों का इंतज़ाम किया और हम आज सुबह अपने घरों तक आए।"

सीटू नेताओं ने संयुक्त रूप से कहा कि "ये लोकतंत्र की हत्या है क्योंकि पिछले 20 दिन से हरियाणा की 20 हज़ार से ज़्यादा आशा वर्कर्स अपनी न्यायोचित मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। सरकार ने हड़ताल पर बैठी आशाओं के साथ वार्ता करके मांगों और समस्याओं का समाधान करने की बजाय हड़ताल को ख़त्म करने के लिए इसे लंबा खींचा और सोमवार को बड़ी संख्या में हुई गिरफ्तारी तानाशाही का सबूत है जिसे किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जाएगा। प्रदेश भर में प्रदर्शन करके सीटू इसका करारा जवाब देगी।"

सीटू नेताओं ने हरियाणा के कई न्यायप्रिय संगठनों, संस्थाओं, बुद्धिजीवियों और जन संगठनों से भी अपील की है कि वो भी इस कथित तानाशाही के ख़िलाफ़ आशाओं को अपना समर्थन दें और इनके विरोध प्रदर्शनों में शामिल होकर हरियाणा की 20 हज़ार बेटियों की न्याय की आवाज़ को उठाने में साथ दें। वहीं इसके अलावा सीटू ने तमाम यूनियनों के सदस्यों से भी अनुरोध किया कि वे इस "दमन विरोधी" प्रदर्शनों में बढ़चढ़ कर भाग लें।

आशा वर्कर्स यूनियन की अध्यक्ष सुरेखा ने कहा कि "सरकार ने पूरी कोशिश की कि हम पंचकुला न पहुंच पाएं लेकिन हमने सैकड़ों की संख्या में पंचकुला पहुंचकर बता दिया कि हम पीछे हटने वाले नहीं है। कई जगह तो हमारी आशा वर्कर्स पुलिस को चकमा देकर पहुंची जबकि कई जगह नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी थी इसके बाद भी वे खुद ही बसों को लेकर आईं।"

उन्होंने भी पुलिस के व्यवहार को अमानवीय बताते हुए कहा, "हमारे कुछ लोगों को पुलिस ने रास्तों से उठाया और एक कोठरी में बंद कर दिया। उन्हें पीने का पानी तक नहीं दिया बल्कि शौचालय की भी व्यवस्था नहीं थी। इसी तरह जिन महिलाओं को बसों में बैठाया गया उन्हें भी दिन भर न पानी दिया और न ही किसी को शौचालय जाने दिया। रात को जब हमने पुलिस को चेतावनी दी और कहा कि हम सभी इन्हीं सड़कों पर सो जाएंगे उसके बाद जाकर उन्होंने बसों का इंतज़ाम किया।"

सुरेखा कहती हैं, "ये कोई पहला मौका नहीं था, इससे पहले भी फरवरी में सरकार ने ऐसा ही किया था। तब हम मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं थे और न सोचा था कि सरकार ऐसा व्यवहार करेगी लेकिन इस बार हम भी तैयार थे। इनकी लाख कोशिश के बाद भी हज़ारों आशाकर्मी पंचकुला पहुंच गईं, ये एक जगह हमें जाने से रोकना चाहते थे लेकिन कल पूरे हरियाणा में रात 9 बजे तक सैकड़ों जगह विरोध प्रदर्शन हुए। इस बात से साफ़ हो गया कि आशाएं इनकी पुलिस से डरती नहीं है।"

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