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हरियाणा: विधानसभा कूच से पहले आशा कार्यकर्ता हिरासत में, सरकार पर दमनकारी रवैया का आरोप!

ख़बर लिखे जाने तक आशा कार्यकर्ताओं को पुलिस गाड़ियों में भरकर घंटों से एक जगह से दूसरी जगह घूमा रही है, वहीं पंचकूला सेक्टर-5 के पुलिस थाने में सीआईटीयू के नेताओं को पुलिस ने हिरासत में रखा है।
Asha workers

हरियाणा की 20 हज़ार से अधिक आशा कार्यकर्ता बीते 21 दिनों की हड़ताल के बाद आज सोमवार, 28 अगस्त को विधानसभा घेराव के लिए निकली थीं, लेकिन विधानसभा कूच से पहले ही पंचकूला में पुलिस प्रशासन ने न सिर्फ इनके काफिले को रोक दिया बल्कि सैंकड़ों की संख्या में इन कार्यकर्ताओं और यूनियन नेताओं को हिरासत में भी ले लिया। खबर लिखे जाने तक आशा कार्यकर्ताओं को पुलिस गाड़ियों में भरकर घंटों से एक जगह से दूसरी जगह घूमा रही है, वहीं पंचकूला सेक्टर-5 के पुलिस थाने में 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) के नेताओं को पुलिस ने हिरासत में रखा है। किसी को भी विधानसभा नहीं पहुंचने की सख्त हिदायत दी गई है।

बता दें कि आशा कार्यकर्ताओं को चंडीगढ़ पहुंचने से रोकने के लिए शासन-प्रशासन एक दिन पहले ही हरकत में आ गया था और सरकारी निर्देश के जरिए पंचकूला में धारा-144 लागू करने के साथ ही कई यूनियन नेताओं के घरों और केंद्रीय मज़दूर संगठन 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू)' रोहतक के दफ्तर पर पुलिस ने अपना डेरा जमा लिया। हालांकि इसके बावजूद आशा वर्कर्स ने सरकार को चुनौती देते हुए हर हाल में विधानसभा की ओर बढ़ने का ऐलान किया। जिसके बाद कई जिलों में बसों में बैठने से पहले ही इन कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, तो कहीं कुछ को बसों में बैठाकर उनके जिलों से दूर अंजान जगहों पर छोड़ दिया गया।


बीते 21 दिनों से जारी है हड़ताल

ध्यान रहे कि हरियाणा में केंद्रीय मज़दूर संगठन 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू)' से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले आशा वर्कर्स बीते 8 अगस्त से राजव्यापी हड़ताल पर बैठी हैं। ये हड़ताल पहले तीन दिवसीय थी, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते इसे और आगे बढ़ा दिया गया। हड़ताल मानदेय बढ़ोत्तरी समेत कई अन्य मांगों को लेकर की जा रही है, जिसे लेकर प्रदेश की आशा वर्कर्स लंबे समय से प्रदर्शन और संघर्ष करती आ रही हैं।

हरियाणा आशा वर्कर यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष सुरेखा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "पुलिस ने उनका फोन जब्त कर लिया है, उनके कई साथियों के साथ धक्का-मुक्की भी हुई है। इसके अलावा सुबह से उन्हें और अन्य आशा कार्यकर्ताओं को भूखे-प्यासे बिना रुके सिर्फ बसों में घुमाया जा रहा है। सरकार उन्हें जायज मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन नहीं करने दे रही। जिन वर्कर्स को सरकार कोरोना योद्धा और स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहती है, आज उन्हीं का सड़कों पर अपमान हो रहा है। इसके बावजूद आशा कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि ये उनके हक की लड़ाई है, जिसे हर हाल में सरकार से जीतना ही है।"

सुरेखा आगे कहती हैं कि "ये बड़े दुख की बात है कि सरकार ने उनके 21 दिनों के प्रदर्शन और हड़ताल को अनदेखा कर अभी तक आशा कार्यकर्ताओं से कोई बातचीत नहीं की। लेकिन हमारे विधानसभा कूच को विफल बनाने के लिए सारे सरकारी हथकंडे अपना लिए गए। यूनियन के नेताओं के घर पर पुलिस पहुंची। आशाओं को गांव की गलियों में रोका गया, नाके लगाए गए। जो किसी तरह आगे बढ़ गईं, उनके साथ ज्यादती की गई। ये बहुत निंदनीय है कि सरकार बातचीत के बजाय एक दमन का रवैया अपनाए हुए है।"

क्या हैं आशा वर्कर्स की प्रमुख मांगें?

  • आशा वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी हो और उन्हें पक्का किया जाए।
  • मानदेय और प्रोत्साहन राशियों को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा जाए।
  • पीएफ और रिटायरमेंट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ मिले।
  • अनुभव और योग्यता के आधार पर पदोन्नति हो।
  • सभी आशा सेंटर पर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के साथ बैठने की व्यवस्था हो।
  • मीटिंग, फैसिलिटेटर विज़िट के लिए अतिरिक्त पैसा मिले।
  • किराया भत्ता, ड्रेस और बाकी ज़रूरतों के लिए उचित राशि मिले।

हरियाणा आशा वर्कर यूनियन के मुताबिक प्रदेश में आशा कर्मियों की स्थिति बेहद खराब है। उन्हें अभी भी 2018 में मिलने वाला पुराना इंसेंटिव ही जारी है, जबकि काम और महंगाई में कई गुना इजाफा हो गया है। उन्हें ऑनलाइन काम करने के साथ ही अन्य विभागों के काम जो उनके लिए सूचीबद्ध नहीं है, उसे करवाने पर भी ज़ोर दे रही है। पहले उनके जिम्मे सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के कार्य थे लेकिन अब नशाखोरी और पुलिस के अन्य विभागों के सर्वे भी उन्हीं से करवाए जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें न तो कोई अवकाश मिलता है और न ही किसी तरह की कोई सुविधा। कई आशाकर्मियों की शिक्षा बहुत ज़्यादा नहीं है, जिससे उन्हें अन्य विभागों के काम समझने और उसे कंप्यूटर और मोबाइल से करने में काफी दिक्कत आ रही हैं, ऐसे में उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी अलग से दी जा रही है जिसके चलते ये कार्यकर्ता मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं।

महंगाई के हिसाब से काफी कम इंसेंटिव

ज्ञात हो कि वर्तमान में हरियाणा में 20,000 से अधिक आशा कार्यकर्ता हैं। एनएचएम के तहत, वे केंद्र द्वारा सूचीबद्ध 60 से अधिक गतिविधियों के लिए कार्य-आधारित प्रोत्साहन की हकदार हैं। इसके अलावा, आशा को नियमित गतिविधियों के एक सेट के लिए केंद्र से 2,000 रुपये का प्रोत्साहन मिल रहा है। प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों के अलावा, राज्यों को आशा के लिए मासिक भुगतान तय करने की भी अनुमति है। हरियाणा में यह राशि 4,000 रुपये है। सभी भत्ते मिलाकर कुल इन्हें नौ से 10 हज़ार के आस-पास का मानदेय मिलता है, जो आज की महंगाई के हिसाब से काफी कम है। इसके अलावा इन कार्यकर्ताओं के ढ़ाई से तीन हज़ार रूपये मीटिंग और फैसिलिटेटर के यहां आने-जाने में खर्च हो जाते हैं। ऐसे में ये क्या खाएं और क्या बचाएं। परिवार की जिम्मेदारी इन पर अलग से है।

गौरतलब है कि हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में कई कर्मचारी संगठन, युवा, महिलाएं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार के खिलाफ पहले ही मोर्चा खोले हुए हैं। सभी सरकार पर अनदेखी और वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में खट्टर सरकार के लिए आशा वर्कर्स का तेज होता आंदोलन निश्चित तौर पर एक नई चुनौती होगा।

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