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दिल्ली: शाहीन बाग़, राहत शिविर और जनता कर्फ़्यू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार रात राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कोरोना वायरस पर खुद के बचाव पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व संकट से गुज़र रहा है और हमें सतर्क रहना चाहिए। हालांकि सीएए विरोधी प्रदर्शनों और हिंसा के बाद राहत शिविर में रह रहे लोगों पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी।
राहत शिविर
Image courtesy: TheHindNews

कोरोना वायरस के कारण देश में संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। अब तक इससे जुड़े 200 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। वहीं 4 लोगों की इस वायरस की वजह से मौत हो चुकी है। गुरुवार रात प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम संबोधन में लोगों से रविवार 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू की अपील की है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने सभी मॉल्स को बंद करने का आदेश जारी कर दिया है। इससे पहले भी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने संक्रामक बीमारी एक्ट 1897 के तहत सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक गोलबंदी में 50 से ज़्यादा लोगों के जुटने पर प्रतिबंध लगा दिया था। वायरस से बचने के लिए दिल्ली मेट्रो भी तमाम तरह के कदम उठा रहा है।

हालांकि इस सबके बीच में दिल्ली में चल रहे सीएए विरोधी प्रदर्शनों और दंगों के बाद राहत शिविरों में रह रहे लोगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोनों ने चुप्पी साध रखी है। गौरतलब है कि दिल्ली में पिछले महीने हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद हजारों की संख्या में लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। पहले दंगों और अब कोरोना वायरस ने इन लोगों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है।

हालांकि सरकार का कहना है वह तेजी से हालात को सामान्य कर रही है और चाहती है कि लोग वापस अपने घर लौट जाएं लेकिन दंगा पीड़ितों के लिए स्थिति इतनी आसान नहीं है। घर बनाने और उसका मरम्मत का काम दो चार दिन में होने वाला काम नहीं है। ऐसे में कैंप छोड़कर घर जाने की चाह रखने वाले भी मजबूर हैं।

दिल्ली के मुस्तफाबाद स्थित ईदगाह में कार्यकर्ता और स्वास्थ्यकर्मी राहत शिविरों में रहने वाले लोगों से बार-बार साफ-सफाई रखने का विशेष आग्रह कर रहे हैं। इसके लिए लाउड स्पीकर से ऐलान किया जा रहा है। वॉलंटियर्स लोगों से बार-बार साबुन से हाथ धोने और आस-पास स्वच्छता के लिए कह रहे हैं। बड़ी संख्या में मास्क और सैनिटाइजर का इंतजाम किया गया है और बाहर से मिलने आने वाले लोगों पर रोक लगाई गई है। हालांकि कोरोना के बढ़ते मामलों से इन कैंपों में काम करने वाले और रहने वाले लोगों की चिंता को बढ़ा दिया है।

ईदगाह रिलीफ कैंप के मीडिया कोआर्डिनेटर मोहम्मद इमरान के मुताबिक राहत शिविर में 870 के करीब लोग रह रहे हैं। इनको चिकित्सा सहायता देने के लिए कैंप लगाया है। जहां डॉक्टर लोगों को कोरोना वायरस से निपटने के लिए क्या करें और क्या न करें भी बता रहे हैं। साथ ही कोरोना के भय से निपटने के लिए काउंसलिंग कर रहे हैं।

राहत शिविर में रहने वाली महिला सबा ने न्यूज़क्लिक से फोन पर बताया कि राहत कैंप में व्यवस्था अच्छी है लेकिन यह घर जैसा नहीं लगता है। हम जल्द से जल्द अपने घरों को लौटना चाहते हैं। यहां काफी लोग हैं और इस वजह से हमें दिक्कतें होती हैं। कोरोना को लेकर साफ सफाई पर जोर दिया जा रहा है लेकिन लोग इस वायरस से डरे हुए हैं। और जिनके पास रहने की दूसरी सुविधा है वो यहां से जा भी रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर शाहीन बाग़ में प्रदर्शनकारी अब भी डटे हुए हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार उनकी बात मान ले और वे प्रदर्शन समाप्त कर देंगी। ये महिलाएं प्रधानमंत्री की जनता कर्फ्यू की अपील को खारिज कर रही हैं। हालांकि कोरोना को देखते हुए सेनिटाइजर और मास्क का इस्तेमाल कर रही है और साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जा रहा है।

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हालांकि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को लेकर तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन महिलाओं से प्रदर्शन खत्म करने की अपील की है। कवि और वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने फेसबुक पर लिखा, 'मैं एक वैज्ञानिक होने की हैसियत से देश के सारे शाहीन बाग़ों से अपील करता हू कि वह अपना प्रदर्शन कोरोना वायरस के फैलने की वजह से स्थगित कर दें। इसके बावजूद कि मैं इस संघर्ष को देश का संविधान बचाने के लिए ज़रूरी समझता हूं और इस में खुद 20 से ज़्यादा जगहों पर सहमति जताने के लिए भाग ले चुका हूं। यह समझता हूं कि अब संघर्ष के दूसरे अहिंसक रास्ते इस्तेमाल करना चाहिए। कोरोना वायरस का खतरा जो देश के ऊपर मंडरा रहा है वह बहुत बड़ा है।'

उन्होंने आगे लिखा, 'सड़कों पर प्रदर्शन हम कभी भी कर सकते हैं। यह हर नागरिक का हक़ है, मगर हर नागरिक का यह फ़र्ज़ भी है कि वह किसी भी महामरी को फैलने से रोके। कोरोना वायरस पर जितनी वैज्ञानिक जानकारी हासिल हुई है वह बताती है कि यह न सिर्फ बड़ी तेज़ी से फैलता है बल्कि इस में मृत्यु की दर भी बहुत ज़्यादा है। आमतौर पर ज़ुकाम का वायरस, फैलता तेज़ी से है पर जानलेवा नहीं होता। हमारे देश में यह वायरस बाहर से आया है इस लिए अवाम में इसकी इम्युनिटी बहुत कम है और फैलने का खतरा बहुत ज़्यादा। अभी तक ये वायरस अमीरों तक महदूद है, पर इसके ग़रीब बस्तियों में फैल जाने का ख़तरा है, हमने संविधान बचाने की क़सम खाई है, देश बचाने के लिए प्रदर्शन वापस लें यह भी फ़र्ज़ है। संघर्ष जारी रहना चाहिए, उस का प्रदर्शन जारी रखना ज़रूरी नहीं।'

इसी तरह स्वराज पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने भी देश में चल रहे सीएए विरोधी प्रदर्शनों को बंद करने की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनता कर्फ्यू की अपील को ट्वीट करते हुए योगेंद्र यादव ने ट्विटर पर लिखा, “देश भर में जहां भी ‘शाहीन बाग़’ धरने हैं, उनसे विशेष अपील: 22 मार्च को सांकेतिक धरना भी न करें। वैसे भी बड़ी संख्या में इकठ्ठा न होने की अपील पहले ही कर चुका हूं।'

हालांकि यह अपील बड़ी संख्या में समाजसेवी और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा ही की जा रही है लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से इस तरह की अभी तक कोई अपील नहीं की गई है।

इस बात का जिक्र प्रदर्शनकारी कर रहे हैं। प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाली सोफिया कहती हैं, 'हमारे लिए कोरोना वायरस से ज्यादा ख़तरनाक एनआरसी और सीएए है। इसलिए सीएए के खिलाफ हमारी यह लड़ाई लड़ाई जारी रहेगी। बीमार होने के डर से हम अपने आंदोलन को छोड़कर घर नहीं बैठ सकते।'

हालांकि प्रदर्शनकारियों के इस तरह के ‘हठ’ को लेकर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग नाराज़ हैं। नाम न छापने के शर्त पर एक स्थानीय निवासी ने कहा, 'कोरोना वायरस के ख़तरे को देखते हुए शाहीन बाग़ का धरना अब खत्म होना चाहिए। केंद्र सरकार ने इनकी मांग भले ही न मानी हो लेकिन देश भर के 12 राज्य एनपीआर और एनआरसी से इनकार कर चुके हैं और इसलिए शाहीन बाग़ की प्रदर्शनकारी महिलाओं को अपनी उपलब्धियों पर गौर करते हुए अपना आंदोलन खत्म कर देना चाहिए।'

वो आगे कहते हैं, 'शाहीन बाग़ का धरना अब लगातार अपना समर्थन खोता जा रहा है। धरने पर कुछ शातिर लोगों ने कब्जा कर लिया है। अगर अभी आप जाकर कोरोना के खतरे के बारे में बात करेंगे तो आपको सरकार का एजेंट बता दिया जाएगा। जबकि हालात यह है कि इस वायरस का ख़तरा बूढ़ों पर ज्यादा है। एक आरटीआई में यह सामने आया है कि शाहीन बाग़ में बूढ़े लोगों की संख्या ज्यादा है लेकिन कोई कुछ नहीं सुनेगा। अगर कुछ महिलाएं सुनना भी चाहेंगी तो दूसरा पक्ष आकर हल्ला मचा देगा। मंच से कोई कुछ बोल देता है तो दूसरा आकर उसके उलट बोलता है। यहां स्थितियां उतनी बेहतर नहीं रहीं जितनी शुरुआत में थी।'

कुछ लोगों का यह भी कहना था कि सरकार का रवैया भी समझ में नहीं आ रहा है। जब कोरोना वाकई इतना बड़ा ख़तरा है तो केंद्र सरकार सीएए-एनपीआर पर एक बार पुनर्विचार का आश्वासन देकर भी ये धरना ख़त्म करा सकती है। या केजरीवाल या उनके कोई मंत्री यहां आकर एक अपील कर सकते हैं। सरकार अगर ज़रा सा भी लचीला रुख अपनाए तो समस्या का समाधान हो सकता है।

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