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कोविड-19: क्या हमें वाकई में जानकारी है कि कुल कितने नए स्ट्रेन के मामले भारत में मौजूद हैं?

यह नया स्ट्रेन सिर्फ यूके तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने पहले से ही 31 से अधिक देशों को अपनी चपेट में ले रखा है।
Coronavirus
Image Courtesy: Pixabay

पहले से ही एक भयावह महामारी के बीच, एक नए उभर रहे खतरे ने दुनिया भर में खतरे की घंटी बजा दी है। मौजूदा कोरोनावायरस जो कि मूल रूप से यूके से उभर कर सामने आया है, एक नए स्ट्रेन (एसएआरएस-सीओ वी-2 वीयूआई 202012/01) के तौर पर उत्परिवर्तित हो चुका है। इसके बारे में वैज्ञानिकों का मत है कि यह बाकी के स्ट्रेंस से कहीं अधिक संक्रामक है। लंदन के सेंटर फॉर मैथमेटिकल मॉडलिंग ऑफ इंफेक्शियस डिजीज द्वारा किए गए एक प्रारंभिक अध्ययन के आकलन के अनुसार वायरस के इस नए संस्करण में इसके बाकी के वायरल भाई-बंधुओं की तुलना में 50% से 74% अधिक संक्रामकता की संभावना देखने में आ रही है।

वर्तमान में ब्रिटेन जहाँ इसके व्यापक प्रकोप से जूझ रहा है, वहीं इस नए स्ट्रेन से निपटने के लिए वहां पर सख्त उपायों को अपनाया जा रहा है। यह स्ट्रेन सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं देखने को मिला है बल्कि पहले से ही इसने 31 से अधिक देशों को अपने प्रभाव में ले लिया है।

भारत में भी इस नए और कहीं ज्यादा संक्रामक स्ट्रेन के मामले कुछ कोविड-19 मामलों में पाए जाने की खबर है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार सरकार का कहना है कि हमने अभी तक इसके 71 मामले दर्ज किये हैं। लेकिन क्या वाकई में हमें खबर है कि भारत में कुल कितने लोग इस नए स्ट्रेन से प्रभावित हो चुके हैं? 

इसे समझने के लिए हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। नए स्ट्रेन के यूके में पिछले तीन महीनों से भी अधिक समय से सितम्बर माह में ही उभरने के बारे में सूचना थी, और इसके चलते ही दिसंबर के मध्य में जाकर इसका प्रकोप देखने को मिला। इसके बाद जाकर कहीं भारत ने 23 दिसंबर को देश में यात्रा पर प्रतिबंध लगाये थे। सरकारी आंकड़ों का कहना है कि 26 नवंबर से 23 दिसंबर के बीच में यूके से भारत के विभिन्न हवाई अड्डों पर लगभग 33,000 यात्री उतरे थे। इसलिए नए स्ट्रेन के भारत में इससे पहले ही प्रवेश की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। दिसंबर से पहले भारत में आने वाले यात्रियों के आंकड़े काफी हद तक अज्ञात हैं।

वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में वेलकम ट्रस्ट रिसर्च लेबोरेटरी में कार्यरत भारत की शीर्षस्थ वैक्सीन वैज्ञानिकों में से एक प्रो. गगनदीप कांग इस नए स्ट्रेन की सटीक संख्या को लेकर सशंकित हैं। वे मानती हैं कि “हमें नहीं पता कि हमारे यहाँ इसके कुल कितने मामले मौजूद हैं, लेकिन हमें इस बात को याद रखना चाहिए कि मास्क और शारीरिक दूरी को अपनाने से अन्य नमूनों के साथ-साथ सभी स्ट्रेंस को कम करने में मदद मिली है। हमें लगातार टेस्टिंग, पता लगाने, अलगाव में रखने और इसके बढ़ने पर निगाह बनाए रखने की जरूरत है। इसके अनुक्रमण से हम इस बात का पता लगा सकते हैं कि कौन सी चीज़ कहाँ प्रसारित हो रही है। ऐसे में यदि किसी विशिष्ट संस्करण के बढ़ते अनुपात को देखा जाता है, तो इसे नियंत्रण में लाने तथा इसकी और निगरानी की जरूरत पर जोर दिए जाने की आवश्यकता होगी।”

नए स्ट्रेन का पता लगाने के लिए वायरस के जीनोम नमूनों के अनुक्रमण के साथ-साथ परीक्षण और इसकी ट्रैकिंग का काम बेहद अहम है। आईआईएसइआर पुणे से सम्बद्ध प्रख्यात महामारीविद डॉ. सत्यजित रथ के अनुसार हमारे पास सटीक संख्या मौजूद नहीं है। उन्होंने बताया “इस प्रश्न का पूरे विश्वास के साथ जवाब देने के लिए जरुरी अनुक्रमण के काम को व्यापक तौर पर करने की तो बात ही छोड़ दें, हम तो अपने यहाँ व्यापक परीक्षण के काम तक को नहीं कर रहे हैं। इसलिये सवाल सिर्फ संभावित-संक्रमित लोगों की ट्रैकिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे यहाँ व्यापक स्तर पर जांच का अभाव बना हुआ है। इसके साथ ही यह धारणा कि वायरस का यह संस्करण सिर्फ यूके से ही आ सकता है, यह अपनेआप में तथ्यों पर आधारित नहीं है।” 

इस बात की संभावना काफी प्रबल है कि इन प्रतिबंधों को अमल में लाये जाने से काफी पहले से ही भारत में नया स्ट्रेन प्रविष्ठ कर गया हो, लेकिन फिलहाल हमें एहतियाती उपायों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। प्रोफेसर कांग का इस बारे में कहना है “ऐसा होना पूरी तरह से संभव है। यह सितम्बर से ही यूके में बना हुआ था। लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अभी तक यह एक संस्करण है, जिसके बारे में हमें पता चल सका है। लेकिन हम सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके निहितार्थ जो बढ़ते संक्रमण में फलित हो सकती है, के बारे में समझ रहे हैं। इसे नियंत्रण में कैसे रखा जाय, यह काफी हद तक हमारे हाथ में है।”

रथ ने भी इस संभावना के प्रति अपनी सहमति जताई है। उनका कहना था “जैसे कि हम इस बारे में कदम उठा रहे हैं और अनुक्रम के काम को करेंगे, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि वायरस को भारी संख्या में अलग-थलग किया जा सकता है, जिसके चलते अंततः हम इसके “प्रभावी प्रविष्टि बिंदु” के बारे में कुछ संकेत हासिल कर पाने में समर्थ हों।” 

ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस नए स्ट्रेन के चलते क्या भारत में एक बार फिर से संक्रमण के मामलों में गंभीर उछाल की संभावना है? सटीक आंकड़ों के अभाव में हमेशा से ही अनिश्चित भविष्य मुहँ बाए खड़ा रहता है। इस बारे में प्रोफेसर कांग कहती हैं “लेकिन इसकी संभावनाओं को लेकर बेहतर अंदाजा लगा पाने को संभव किया जा सकता है, यदि हमें इस बात की जानकारी हो कि किस अनुपात में मौजूदा चिन्हित स्ट्रेंस पहले से मौजूद संस्करण से हैं।” 

विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को इस विषय में कुछ उपायों को अपनाने की जरूरत है। प्रोफेसर कांग के अनुसार “अच्छे आंकडें ही सब कुछ हैं। भलीभांति आयोजित और सूचीबद्ध किये गए परीक्षणों के जरिये हम इसके बारे में पता लगाने से लेकर इसे अलगाव में डालने में समर्थ हो सकते हैं। इसके प्रसार और प्रतिरक्षा से पलायन की रोकथाम के लिए नैदानिक, महामारी विज्ञान, अनुक्रमण एवं प्रयोगशाला के आंकड़ों की जाँच को इस प्रकार से किये जाने की आवश्यकता है जिससे कि भविष्य में इसके रोकथाम एवं निगरानी तंत्र के काम को एकीकृत तरीके से किया जा सके।”

रथ “वृहद पैमाने पर सुव्यवस्थित वायरस के अलगाव अनुक्रम” प्रकिया पर जोर देते हैं। वे पहले से मौजूद शारीरिक दूरी और मास्क पहनने जैसे उपायों को आवश्यक मानते हैं।

प्रोफेसर रथ ने नए स्ट्रेन के नामकरण को लेकर भी अपनी चिंता जताई है। वे स्पष्ट करते हुए कहते हैं “हमें इन अलग-अलग स्ट्रेंस का ‘यूके संस्करण’ या ‘दक्षिण अफ्रीका संस्करण’ के तौर पर उल्लेख नहीं करना चाहिए, जैसे कि हमें मौजूदा वायरस को ‘चाइना वायरस’ के तौर पर उद्धृत नहीं करना चाहिए। हमें इसके पहले संस्करण का उल्लेख ‘एसएआरएस-सीओवी-2 वीयूआई202012/01’ के तौर पर करना चाहिए (या शायद संक्षेप में कहने के लिए सिर्फ ‘वीयूआई20201201’ कहना चाहिए?), और दूसरे वाले को 501वाई.वी2 नाम से पुकारना चाहिए। जिन शोधकर्ताओं ने इसकी खोज की है वे इन्हें इसी नाम से पुकारते हैं।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

COVID-19: Do We Really Know How Many Cases from the New Strain are in India?

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