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कोविड-19 : शीर्ष वैज्ञानिकों ने बताया कैसे भारत तीसरी लहर से निपट सकता है

विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में बड़े स्तर पर महामारी के फैलाव को रोकने के लिए भारत को कोरोना जांच, आइसोलेशन और जीनोम सीक्वेंसिंग में तेज़ी लानी होगी। इसके अलावा टीकाकरण और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकेंद्रीकरण पर ध्यान देना होगा।
कोविड-19 : शीर्ष वैज्ञानिकों ने बताया कैसे भारत तीसरी लहर से निपट सकता है

कोरोना की तीसरी लहर की संभावना ने कई सारी विवेचनाओं को जन्म दिया है। कुछ दिन पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाई गई टास्क फोर्स ने दावा किया था कि राज्य में एक महीने के भीतर तीसरी लहर आ सकती है। टास्क फोर्स का कहना था कि इसके लिए कोरोना का "डेल्टा प्लस" वैरिएंट जिम्मेदार होगा।

लेकिन इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में टास्क फोर्स के एक सदस्य ने कहा कि उन्होंने 2-4 हफ़्तों में तीसरी लहर के आने की बात नहीं कही थी, बल्कि टीम ने तीसरी लहर के लिए तैयार रहने की जरूरत पर जोर दिया था। यहां तक कि एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने भी तीसरी लहर के बारे में चेतावनी देते हुए कह चुके हैं कि यह लहर अगले 6 से 8 हफ़्तों में देश को प्रभावित कर सकती है। 

तीसरी लहर की संभवना और कोरोना से जुड़ी भयावह यादों के ताजा रहने के चलते कुछ चीजों पर विचार करने की जरूरत है।

तीसरी लहर को लाने वाले कारक क्या हो सकते हैं?

मशहूर जीवाणु विज्ञानी और अशोका यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर शाहिद जमील ने न्यूज़क्लिक से बात करते करते हुए तीन आयामों पर ध्यान केंद्रित करवाया। उन्होंने कहा, "तीसरी लहर के आने का वक़्त और प्रबलता तीन चीजों पर निर्भर करेगी- 1) अब भी वायरस के लिए कौन सी आबादी मुफ़ीद है. मतलब ऐसे लोग जिनका टीकाकरण नहीं हुआ या जिनमें अबतक संक्रमण नहीं फैला 2) देश के अलग-अलग हिस्सों में लॉकडाउन खुलने के बाद हमारा व्यवहार कैसा रहता है 3) ज़्यादा संक्रामक वैरिएंट सामने आते हैं या नही?"

प्रोफ़ेसर जमील आगे कहते हैं, "पहले कारक का बड़े स्तर पर टीकाकरण की नीति अपनाकर समाधान किया जा सकता है। दूसरे कारक से पैदा होने वाली समस्याएं और उनके समाधान, व्यक्तिगत फ़ैसलों पर निर्भर करेंगे। फिर तीसरा कारक हमारे नियंत्रण से परे है, क्योंकि वायरस में होने वाला बदलाव अनियमित ढंग से होता है। लेकिन इसे भी संक्रमण में कमी और टीकाकरण में तेजी लाकर रोका जा सकता है। कम संक्रमण फैलने का मतलब होगा कि वायरस का विभाजन कम होगा, जिससे वायरस में म्यूटेशन की संभावना कम होगी। ज़्यादा टीकाकरण से ज़्यादा लोगों के पास पर्याप्त सुरक्षा होगी, जिससे फैलाव कम होगा।"

मशहूर टीका विशेषज्ञ और CMC वेल्लोर में कार्यरत प्रोफ़ेसर गगनदीप कांग भी प्रोफ़ेसर जमील से सहमति जताते हुए कहती हैं, "तीसरी लहर लाने वाले संवाहक, पुरानी लहरों की तरह ही होंगे। कोरोना वैरिएंट हमारे लिए चिंता का विषय बने रहेंगे। हमें समझने की जरूरत है कि जब तक वायरस की दर बढ़ती रहेगी, तब तक इसमें म्यूटेशन की संभावना ज़्यादा रहेगी। ज़्यादातर म्यूटेशन चिंता का विषय नहीं होते- बड़ी संख्या में यह म्यूटेशन हो ही रहे हैं, इसकी थोड़ी संभावना रहेगी कि यह तीसरी लहर की प्रबलता में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं।"

कांग चेतावनी देते हुए कहती हैं, "इस तथ्य के बावजूद कि हमारी एक बड़ी आबादी इस वायरस से अतीत में संक्रमित रह चुकी है, भारत में बड़ी संख्या वायरस से संक्रमित ना हुए लोगों की भी है। क्योंकि भारत की आबादी काफ़ी बड़ी है।"

लेकिन पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में काम करने वाले, जाने-माने इम्यूनोलॉजिस्ट सत्यजीत रथ एक बार फिर दोहराते हैं कि महामारी की प्रबलता में हुई बढ़ोत्तरी का सीधा सा मतलब यह नहीं होता कि इसकी लहर ऊपर जा रही है, फिर कमी आने का मतलब यह लहर नीचे जा रही है। वे कहते हैं, "मुझे लगता है अभी हमें महामारी से निजात नहीं मिली है और हमें आगे अलग-अलग प्रबलता वाले फैलाव भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में देखने को मिल सकते हैं। बता दूं कि भविष्य में होने वाले महामारी विस्फोट में हमें वही पुराने उपायों- शारीरिक दूरी और सरकारी प्रशासन द्वारा तेजी से संदेश देने से मदद मिलेगी। यह भी है कि ज़्यादा आसानी से फैलने वाले वायरस वैरिएंट भी भविष्य में कोरोना के फैलाव में अपनी भूमिका निभाएंगे।"

क्या भारत टेस्टिंग, आइसोलेशन और सीक्वेंसिंग के पैमाने पर खरा उतरेगा

बढ़ते कोरोना मामलों को रोकने के लिए ज़्यादा लोगों की जांच और उन्हें अलग-थलग करने के उपाय रामबाण साबित हुए हैं। दूसरी तरफ सीक्वेंसिंग ज़्यादा करने से हमें वायरस के बदलाव को समझने में मदद मिलेगी। सवाल यह है कि क्या भारत इन शमन तकनीकों में विकास और सुधार कर चुका है या नहीं।

इस मुद्दे पर प्रोफ़ेसर जमील कहते हैं, "यह कहना बहुत मुश्किल है कि कितनी जांच पर्याप्त होती है। भारत ने अब तक 40 करोड़ टेस्ट किए हैं, जो सिर्फ़ अमेरिका के 50 करोड़ टेस्ट से ही कम हैं। जिस तरह के संसाधन हमारे पास हैं, उसे देखते हुए यह तारीफ़ के काबिल है। लेकिन बहुत बड़ी आबादी होने के चलते, हम कई देशों से पीछे हैं, मतलब हमारे यहां हर दस लाख की आबादी पर 2,80,000 टेस्ट ही हुए हैं। हमारी कमजोर कड़ी ग्रामीण इलाकों में कम जांच है, पहली लहर में यह बहुत अहमियत नहीं रखते थे, लेकिन दूसरी लहर में संक्रमण तेजी से भीतरी इलाकों में फैला है। यहां हम कमजोर साबित हुए हैं।"

सीक्वेंसिंग बढ़ाने के मुद्दे पर वे कहते हैं, "जहां तक सीक्वेंसिंग की बात है, तो 3 करोड़ कोरोना के मामलों में हमने 30,000 सीक्वेंसिंग की हैं। यह 0.1 फ़ीसदी है, जो बेहद कम है। लेकिन कम से कम यह दिसंबर तक भारत द्वारा की गई सीक्वेंसिंग का दोगुना है। दूसरी लहर में रोजाना आने वाले मामलों की बड़ी संख्या के चलते यह दर बहुत कम हो गई है।"

प्रोफ़ेसर जमील कहते हैं, "सीक्वेंसिंग इसलिए की जाती है ताकि हम जान सकें कि आबादी में कौन सा वैरिएंट चल रहा है और आने वाले हफ़्तों में क्या सामने आ सकता है। हमारी सीक्वेंसिंग की दर, आबादी में फिलहाल फैले संक्रमण के बारे में बताने के लिए पर्याप्त है, लेकिन यह अग्रिम चेतावनी देने में सक्षम नहीं होगी। लेकिन सबसे ज़्यादा अहम यह है कि सीक्वेंसिंग से हासिल जानकारी को स्वास्थ्य उपायों में किस तरह इस्तेमाल किया जाता है।"  

प्रोफ़ेसर रथ भी इस बात से सहमति जताते हैं कि हमारा देश सीक्वेंसिंग में काफ़ी पीछे है। वे कहते हैं, "कोरोना वैरिएंट निगरानी के लिए जरूरी नमूनों की पूरी सीक्वेंसिंग करने के पैमाने से भारत बहुत दूर है। सीक्वेंसिंग के नमूनों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इसमें बहुत तेज बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।"

वह आगे कहते हैं, "ऊपर से आगे लंबे वक़्त में महामारी के फैलाव से निपटने को तैयार रहने के लिए ठोस योजनाओं और रणनीति- बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकृत स्वास्थ्य सुविधाएं, शारीरिक दूरी के दौर में आर्थिक पुनर्गठन, वायरस वैरिएंट पर गंभीर योजना, उसके नतीज़ों और अगली पीढ़ी के वैक्सीन विकास प्रक्रिया में उनको समाहित करने को लेकर भी कमी दिखाई देती है।"

रथ कहते हैं, "यह भी साफ़ नहीं है कि शहरी और ग्रामीण भारत में इन हस्तक्षपों को पहुंचाने के मामले में समानता है या नहीं, या यह आगे भी होगी या नहीं।"

प्रोफ़ेसर कांग ने जोर दिया कि भारत में संक्रामक दर नीचे रहनी चाहिए। जब हमने उनसे टेस्टिंग से होने वाले फायदे के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, "जब तक सामने आने वाले नए मामलों के साथ हमारी टेस्टिंग रफ़्तार पकड़े रहती है, हम ठीक रहेंगे। हमें कोरोना मामलों को कुल जांच के 5 फ़ीसदी से नीचे, बेहतर होगा कि 3 फ़ीसदी के नीचे रखने की जरूरत है। फिलहाल हम इस जांच पैमाने पर सही बैठ रहे हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हमने इसका बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया था, हमें जांच क्षमताओं को उसी अनुपात में बढ़ाना था, ताकि कोरोना के मरीज़ों की पहचान कर उन्हें अलग-थलग किया जा सके।"

वह कहती हैं, "ऐसा लगता है जैसे वक़्त के साथ कोरोना मरीज़ों की पहचान का अभियान कमजोर पड़ गया है। इसे तेज करने की जरूरत है। संक्रमित मामलों के 5 फ़ीसदी के बराबर सीक्वेंसिग का लक्ष्य बनाया जाता रहा है। लेकिन हम अतीत में इसे पूरा नहीं कर सके। उम्मीद है कि भविष्य में इसे पूरा किया जा सकेगा। धीरे-धीरे सीक्वेंसिंग के नमूने बढ़ रहे हैं और इनके नतीज़े आने की प्रक्रिया में तेजी आ रही है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह तेजी जारी रहे।"

तीसरी लहर की संभावना के बीच रोकथाम

तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए, क्या रोकथाम के उपाय जारी रखने चाहिए या नहीं, यह एक अहम सवाल है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए शारीरिक दूरी को बनाए रखना जरूरी है। लेकिन लंबे वक़्त के लिए अर्थव्यवस्था को बंद रखना भी ख़तरा है।

प्रोफ़ेसर जमील महामारी को रोकने में लॉकडाउन की असफलता को बताते हुए ज़्यादा बेहतर उपायों के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं, "एक सीमा के पार लॉकडाउन काम नहीं करते और आजीविका व अर्थव्यवस्था को ज़्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। लॉकडाउन संक्रमण को धीमा करते हैं, पर उसे रोकते नहीं हैं। ज़्यादा बेहतर तरीका बड़े पैमाने पर सर्विलांस और जहां संक्रमण फैल रहा है, वहां स्थानीय स्तर पर रोकथाम के लिए उठाने जाने वाले कदम हैं। इस तरह के तरीकों को बरकरार रखना होगा।"

वह आगे कहते हैं, "हम दो वज़हों से दूसरी लहर के जैसी स्थिति का सामना आगे नहीं करेंगे- पहला, केंद्र और राज्य सरकारें अस्पतालों को पुख्ता करेंगी, ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने जैसे कदम उठाएंगी। दूसरी बात, दूसरी लहर में वायरस के बड़े पैमाने पर फैलने के चलते, अब कम लोग वायरस संक्रमण के लिए संवेदनशील होंगे, टीकाकरण की दर भी बढ़ रही है, हालांकि यह जरूरत से कम है।" प्रोफ़ेसर जमील आगे कहते हैं कि बहुत ज़्यादा संक्रामक नए वैरिएंट के ना आने की स्थिति में, अगर तीसरी लहर आ भी जाती है तो उसकी प्रबलता कम होगी। साल का अंत, सबसे ज़्यादा सावधान रहने का वक़्त होगा, जब त्योहारों का मौसम होगा। तब तापमान कम हो जाएगा और ज़्यादा लोग घरों के भीतर रहेंगे, तबतक अप्रैल और मई की तबाही को भी वक़्त बीत चुका होगा।"

इस बात पर प्रोफ़ेसर कांग कहती हैं, "हमें समाज को चलाने की जरूरत है, तो अगली लहर की संभावना के तहत लगाने वाले प्रतिबंधों को संतुलित करने की जरूरत है। यह बिल्कुल है कि लोगों में जितना ज़्यादा टीकाकरण होगा, हमें उतने ही कम प्रतिबंध लगाने की जरूरत होगी।"

लेकिन प्रोफ़ेसर रथ रोकथाम के लिए प्रतिबंधात्मक उपायों के पूरी तरह खिलाफ़ हैं। उनके मुताबिक़, इससे सिर्फ़ आर्थिक जड़ता को ही लंबा वक़्त मिलेगा। वह कहते हैं, "ऐसे वक़्त में आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रखने के लिए सक्रिय सामुदायिक भागीदारी की जरूरत है और ऐसी अधोसंरचना बनाने की जरूरत है, जिससे सशक्त समुदायों को आर्थिक गतिविधियों के संचालन के दौरान शारीरिक दूरी की अपनी नीतियों में मदद मिले। 

तैयारी और अतीत से सीख

कोरोना की भयावह दूसरी लहर से सीखना हम सभी के लिए जरूरी है। इस सवाल पर कि क्या हमें स्वास्थ्यतंत्र में कुछ तेज-तर्रार कदम देखने को मिलेंगे, प्रोफ़ेसर कांग कहती हैं, "हमें सर्विलांस बढ़ाना होगा, सिर्फ़ SARS-CoV2 के लिए नहीं, बल्कि श्वसन लक्षणों और दूसरी चिंताजनक बीमारियों के लिए भी निगरानी तेज करनी होगी। हमें अपने प्राथमिक स्वास्थ्यतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि जल्दी स्वास्थ्यसेवा, वो भी घर के पास उपलब्ध करवाना हमारे स्वास्थ्यतंत्र का आधार बन सके। 

वह आगे कहती हैं, "इस सबसे ऊपर, हमें अच्छे "रेफरल सिस्टम" की जरूरत है, ताकि ज़्यादा बेहतर सेवा की  चाह रखने वालों को आसानी से स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाई जा सके। सार्वजनिक स्वास्थ्यतंत्र को अपना प्रदर्शन मापने लायक होना चाहिए और उसे जनता के साथ साझा करना चाहिए। आंकड़ा तंत्र और आंकड़ों को साझा करना बहुत जरूरी है, जो शायद भारत के स्वास्थ्यतंत्र का सबसे नज़रंदाज किया गया पहलू है।"

प्रोफ़ेसर रथ ने भी कुछ खामियों और कुछ सीखों की तरफ़ इशारा किया। उन्होंने कहा, "स्पष्ट था कि हमारे पास अहम स्वास्थ्य सुविधा संसाधनों के साथ-साथ कुशल कर्मियों की कमी थी। खासकर ग्रामीण भारत के गरीब़ों के लिए यह सुविधाएं अनुपलब्ध थीं।"

वह आगे कहते हैं, "प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नेटवर्क में, सार्वजनिक क्षेत्र की इन सुविधाओं को ज़्यादा बेहतर बनाना ही हमारी सीख है। आसान पहुंच वाले जांच केंद्र, तंत्र और सुविधाओं को बनाने की जरूरत है। खासकर ग्रामीण इलाकों के लिए। यह हमारी दूसरी सीख है। फिर सामुदायिक सशक्तिकरण और सक्रिय भागीदारी की कमी भी, एक जरूरी अनिवार्यता की कमी थी।

प्रोफ़ेसर जमील ने सुझाव देते हुए कहा,"सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी का अच्छा प्रसार, ज़्यादा से ज़्यादा टीकाकरण, अच्छा सीरो सर्विलांस और सीक्वेंसिंग के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में आंकड़ों का उपयोग हमारी मदद करेगा। इससे अस्पतालों की ज़्यादा क्षमता और आपात आपूर्ति भी तैयार रहती है।"

प्रोफ़ेसर जमील आखिर में कहते हैं, "लेकिन सबसे अहम हमारा व्यवहार रहने वाला है। हममें से हर कोई इस जंग में कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर भागीदार बन सकता है।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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