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एम्स और सफ़दरजंग के डॉक्टरों ने मध्य प्रदेश के डॉक्टरों के समर्थन में निकाला मार्च

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के साथ एक तत्काल बैठक करनी चाहिए और अगले 24 घंटों के भीतर इस मुद्दे को हल करना चाहिए। “ऐसा नहीं होने पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।’’
एम्स और सफ़दरजंग के डॉक्टरों ने मध्य प्रदेश के डॉक्टरों के समर्थन में निकाला मार्च
फोटो साभार : अमर उजाला

नयी दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी के बीच मध्य प्रदेश सरकार और हड़ताल कर रहे छह शासकीय मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों के बीच खींचतान जारी है। अपनी मांगों को लेकर प्रदेश के लगभग 3,000 जूनियर डॉक्टर रविवार को आठवें दिन भी हड़ताल पर हैं।  इन्होंने विरोध में सामूहिक इस्तीफ़ा भी दे दिया था। एम्स और सफदरजंग के रेजीडेंट डॉक्टरों ने मध्य प्रदेश में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के समर्थन में यहां रविवार को मोमबत्ती लेकर मार्च निकाला।

मध्य प्रदेश के डॉक्टर मानदेय बढ़ाने और उनके या उनके किसी परिजन के संक्रमण होने पर उन्हें अस्पताल में बिस्तर मुहैया करवाने की मांग कर रहे हैं।

दोनों अस्पतालों के डॉक्टरों ने श्री अरबिंदो मार्ग तक मार्च किया और मध्य प्रदेश के अपने बिरादरी के सदस्यों के लिए न्याय की माँग की।

फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण के मिश्रा (सेवानिवृत्त) से भी मुलाकात की और उन्हें मध्य प्रदेश में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों की मांग से अवगत कराया।

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के साथ एक तत्काल बैठक करनी चाहिए और अगले 24 घंटों के भीतर इस मुद्दे को हल करना चाहिए। “ऐसा नहीं होने पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।’’

मध्यप्रदेश: जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल आठवें दिन भी जारी, बातचीत बेनतीजा

मध्यप्रदेश सरकार और हड़ताल कर रहे छह शासकीय मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों के बीच तनाव बना हुआ है जिससे इन अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।

हड़ताल पर गये इन जूनियर डॉक्टरों का एक दल रविवार शाम को प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से मिला, लेकिन उनके बीच हुई यह मुलाकात भी बेनतीजा रही।

सारंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मुझे पता चला कि वे (जूनियर डॉक्टरों का दल) मेरे निवास पर आये हुए हैं। उस वक्त मैं घर पर नहीं था। जैसे ही मुझे पता चला, मैं तुरंत उनसे मिलने अपने आवास पर आया। हालांकि, उन्होंने मेरे से मुलाकात करने का समय नहीं लिया था।’’

उन्होंने कहा कि मैंने उनसे कहा कि कोरोना वायरस महामारी के इस कठिन समय में मरीजों के हित में काम पर लौट आएं।

सारंग ने बताया, ‘‘मैंने उन्हें कहा कि यहां तक मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भी आपकी इस हड़ताल को अवैध करार दिया है और 24 घंटे के भीतर काम पर लौटने के लिए कहा था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने उनकी मांगे मान ली हैं।’’

सारंग ने बताया, ‘‘मूल्य सूचकांक के तहत जूनियर डॉक्टरों के स्टायपेंड (मानदेय) में 17 प्रतिशत की वृद्धि मान्य की गयी है, लेकिन वे 24 प्रतिशत वृद्धि पर अडे़ हुए हैं।

इसी बीच, मध्यप्रदेश जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (जूडा) का कहना है कि सरकार जब तक हमारी मांगों के बारे में लिखित में आश्वासन नहीं देगी, तब तक हमारी हड़ताल जारी रहेगी।

जूडा के अध्यक्ष अरविंद मीणा ने बताया, ‘‘अब तक राज्य सरकार के साथ हमारा कोई समझौता नहीं हुआ है। हमारी हड़ताल जारी है।’’

मीणा ने बताया कि हमारी छह मांगे हैं। इनमें मानदेय में बढ़ोतरी, कोविड में काम करने वाले डॉक्टरों एवं उनके परिजनों के लिए अस्पताल में इलाज की अलग व्यवस्था तथा कोविड ड्यूटी को एक साल की अनिवार्य ग्रामीण सेवा मानकर बांड से मुक्त करना आदि शामिल हैं।

उन्होंने दावा किया कि प्रदेश सरकार ने इस साल छह मई को उनकी मांगों को पूरा करने का वादा किया था, लेकिन तब से इस मामले में कुछ नहीं हुआ है।

वहीं, भोपाल स्थित शासकीय हमीदिया अस्पताल के एक चिकित्सक ने कहा कि जूनियर डॉक्टरों के प्रदर्शन के कारण स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।

मालूम हो कि मध्यप्रदेश में कोरोना महामारी के बीच छह सरकारी मेडिकल कॉलेज –भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर एवं रीवा – के लगभग 3,000 शासकीय जूनियर डॉक्टर अपनी छह मांगों को लेकर 31 मई से हड़ताल पर हैं। तीन जून को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस हड़ताल को अवैध करार देते हुए जूनियर डॉक्टरों को 24 घंटे के भीतर हड़ताल खत्म करने और चार जून दोपहर ढाई बजे तक काम पर लौटने का आदेश दिया था।

अदालत ने कहा था कि निर्धारित समय सीमा पर जूनियर डॉक्टर हड़ताल समाप्त कर काम पर नहीं लौटते हैं तो राज्य सरकार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।

हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश देने के कुछ ही घंटों बाद तीन जून को ही करीब 3,000 जूनियर डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया और अदालत के आदेश के बावजूद अब तक काम पर नहीं लौटे हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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