NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिकी रंगभेद से डॉ. लोहिया भी टकराए थे
डॉ. लोहिया ने मई 1964 में इस अमानवीय प्रथा को सह कर भागने की बजाय उससे मोर्चा लिया था। संयोग से यह वही 1964 का वर्ष है जब नागरिक अधिकारों के असाधारण सेनानी मार्टिन लूथर किंग जूनियर के संघर्षों के कारण अमेरिका में काले लोगों को नागरिक अधिकार देने वाला बिल जून के महीने में पास हुआ।
अरुण कुमार त्रिपाठी
09 Jun 2020
अमेरिकी रंगभेद
Image courtesy: WION

अमेरिका के काले लोगों के अधिकार के आंदोलन से भारत का रिश्ता पुराना है। वहां के रंगभेद का अपमान इंसानी बराबरी के समाजवादी योद्धा और लोकसभा सदस्य डॉ. राम मनोहर लोहिया को भी झेलना पड़ा था। स्वभाव और सिद्धांत के अनुकूल डॉ. लोहिया ने मई 1964 में इस अमानवीय प्रथा को सह कर भागने की बजाय उससे मोर्चा लिया था। संयोग से यह वही 1964 का वर्ष है जब नागरिक अधिकारों के असाधारण सेनानी मार्टिन लूथर किंग जूनियर के संघर्षों के कारण अमेरिका में काले लोगों को नागरिक अधिकार देने वाला बिल जून के महीने में पास हुआ था और इसी वर्ष अक्टूबर के महीने में किंग को नोबेल पुरस्कार मिला था। हालांकि यह बिल एक साल पहले 1963 में अमेरिकी सीनेट में पेश किया गया था लेकिन उसे पेश करवाने वाले राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी की जून के महीने में हत्या कर दी गई थी और इस बिल को आगे बढ़ाकर पारित करवाने का श्रेय राष्ट्रपति लिंडन जानसन को मिला।

सांसद डॉ. लोहिया अपनी विश्व यात्रा के दौरान वर्ष 1964 के अप्रैल महीने के आखिरी हफ्ते में अमेरिका में थे। वे गांधी, भारतीय स्वाधीनता संग्राम और मौजूदा नेहरू सरकार पर लगातार व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने एरिजोना विश्वविद्यालय में एक वार्ता में कहा, `` मेरा मानना है कि गांधी ने विश्व की बलिवेदी पर भारत को कुरबान कर दिया। गांधी ने अहिंसा का पालन करते हुए कई ऐसे काम किए जिससे देश को अस्थायी तौर पर नुकसान हुआ। लेकिन अगर अहिंसा और असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों को दुनिया ने अपनाया तो भारत को हुई इस अस्थायी क्षति से दुनिया का भला होगा और इस प्रकार गांधी ईसा मसीह और बुद्ध के रूप में याद किए जाएंगे।’’ उन्होंने राष्ट्रपति जानसन को अहिंसा का बिस्मार्क बनने की सलाह देते हुए कहा कि वे रूस के राष्ट्रपति ख्रुश्चेव के साथ शिखर वार्ता करके दुनिया की गरीबी और समस्याओं का हल निकालें।

संयोग से उसी दौर में मार्टिन लूथर किंग रंगभेद के विरुद्ध अहिंसक आंदोलन चलाते हुए काले लोगों को नागरिक अधिकार दिलाने का प्रयास कर रहे थे। इस बीच भारत में जातिभेद के विरुद्ध संघर्ष चलाने वाले डॉ. लोहिया को अमेरिकी रंगभेद के कटु अनुभव से दो चार होना। 26 मई 1964 को डॉ. लोहिया अमेरिका के दक्षिणी इलाके के मिसीसिपी प्रांत में थे। यह प्रांत रंगभेद की नीतियों, काले लोगों की गरीबी और उन पर होने वाले अत्याचार के लिए के लिए कुख्यात था। यहां प्लांटेशन के लिए अफ्रीका से लाए गए काले लोगों का न सिर्फ शोषण होता था बल्कि उनकी लिंचिंग भी होती थी। साठ के दशक के आरंभिक वर्षो में यहां 539 काले लोगों की लिंचिंग की गई थी। हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद काले लोगों की स्थिति में तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ था लेकिन उन्हें नागरिक अधिकार प्राप्त होना अभी भी एक सपना था। वही सपना जिसके बारे में 1963 में अपने प्रसिद्ध वाशिंगटन मार्च में मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि मेरा एक सपना है।

लोहिया मिसीसिपी प्रांत के जैक्सन शहर के तौगुलू कालेज में व्याख्यान देने गए थे। उनके साथ उनकी मित्र और लेखिका रूथ स्टीफेन और कालेज के प्रेसीडेंट श्रीमान बीटल्स भी थे। वे मोरीजान कैफीटेरिया में लंच करने गए। लोहिया अपनी पारंपरिक वेशभूषा धोती कुर्ता पहने हुए थे। लेकिन उनका सांवला रंग उनके लिए भेदभाव का सबब बना। कैफीटेरिया के मैनेजर ने कहा कि वह काले लोगों को भोजन नहीं कराता।

यह स्थिति लोहिया के लिए काफी अपमानजनक थी और अमेरिकी रंगभेद से उनका सामना भी था। उन्हें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उन्होंने उसे जज्ब करते हुए मैनेजर से कहा कि वे कल वापस आएंगे। उस रात कालेज में राज्य की स्थिति पर मिसीसिपी के आंदोलनकारी छात्रों और लोहिया के बीच काफी देर तक चर्चा चलती चली। लोहिया ने कहा कि वे कल कैफीटेरिया में दोबारा विरोध जताने जाएंगे। लोगों ने उन्हें समझाया कि ऐसा करना खतरनाक है। न्यू ओरेलियान और अटलांटा में तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है और उन पर गोली भी चलाई जा सकती है। अटलांटा जार्जिया प्रांत का वह शहर है जहां मार्टिन लूथर किंग का जन्म हुआ था और जहां रंगभेद भयंकर था। लेकिन लोहिया पर मित्रों की चेतावनी का असर नहीं हुआ। उन्होंने दोस्तों से कहा,  `` अगर मैं पीछे हटता हूं तो यह मेरे अहिंसा के सिद्धांत के विरुद्ध होगा। अगर मैं ठिठक जाता हूं तो यह मेरी कायरता होगी और इससे यह भी साबित होगा कि काले लोगों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति मेरा कोई सरोकार नहीं है।’’

अगले दिन मारीसन कंपनी के अधिकारियों को बता दिया गया कि डॉ. लोहिया कैफिटेरिया में आएंगे। लोहिया के साथ एडविन व जैनेट किंग्स और छात्र भी गए। वे लोग कुछ दूरी पर खड़े रहे और कुर्ता धोती पहने हुए डॉ. लोहिया उस कैफिटेरिया में घुसे। गोरे मैनेजर ने कहा,  `` हम आप से कोई लेन देन नहीं करना चाहते। यह एक निजी संपत्ति है और आप यहां से चले जाइए।’’ लोहिया ने विनम्रता किंतु दृढ़तापूर्वक वहां से जाने से इनकार कर दिया। पुलिस अफसर ने कहा कि आपने मैनेजर की बात सुन ली है न। अब यहां से चले जाइए। वरना हमें आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा। लोहिया ने वहां से हटने से इनकार कर दिया। लोहिया को बाहर खड़ी पुलिस वैन में बिठाया गया। लेकिन पुलिस की वह गाड़ी थाने नहीं गई। वह करीब एक घंटे शहर में घूमती रही। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

लोहिया ने इस घटना पर प्रेस कांफ्रेंस की और कहा, `` मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरा मकसद अमेरिकी जीवन के अंधेरे पक्ष की ओर ध्यान खींचना नहीं है। इस तरह के अंधेरे कोने हर जगह हैं और भारत में भी हैं। ...लेकिन अगर किसी सार्वजनिक स्थल पर जाना कानून का उल्लंघन है तो मैं गिरफ्तार होने को तैयार हूं। मैंने जानबूझकर इस कानून को मानव जाति के एक सदस्य के रूप में तोड़ा है। इसीलिए मैंने अपने दूतावास और संसद को सूचित भी नहीं किया है।’’ लोहिया से वहां के बेचैन आंदोलनकारी छात्रों ने बहुत सारे सवाल पूछे और उन्होंने उन्हें ढांढस बंधाने के लिए भारतीय  स्वाधीनता संग्राम के प्रसंग सुनाए। लोहिया ने कहा कि हो सकता है कि वे आंदोलन में शामिल होने भारत से फिर अमेरिका आएं।

इस बीच लोहिया की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही अमेरिका के उपविदेश मंत्री जार्ज बाल ने मिसीसिपी राज्य सरकार को उन्हें रिहा करने और भारतीय दूतावास से माफी मांगने का आदेश जारी किया। विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने लोहिया से फोन पर इस व्यवहार के लिए माफी मांगी। लोहिया ने उनसे कहा, ``मैं अपने साथ वही व्यवहार चाहता हूं जो अमेरिकी नागरिक के साथ होता है। अगर जैक्सन में मेरे साथ अमेरिका के आम काले नागरिक जैसा व्यवहार होता है, तो मैं क्या कह सकता हूं।’’  इस बीच खबर आई कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका से प्रतिनिधि अदलाई स्टीवेंसन लोहिया से मिलकर उनकी गिरफ्तारी पर बात करना चाहते हैं। लोहिया ने हंसते हुए कहा कि स्टीवेंसन को मुझसे नहीं स्वतंत्रता की देवी (स्टैच्यू आफ लिबर्टी) से माफी मांगनी चाहिए। इस तरह की तमाम माफी राष्ट्रपति जानसन को मांगनी चाहिए। अमेरिका में हुई एक और सभा में विभिन्न तबके के नेताओं ने लोहिया को हिरासत में लिए जाने की निंदा की।

इस बीच मार्टिन लूथर किंग और उनके 17 साथियों की नागरिक अधिकारों के लिए गिरफ्तारी हुई। उनके संघर्ष का परिणाम निकला और 20 जून 1964 को अमेरिकी सीनेट ने अमेरिका के सार्वजनिक जीवन में भेदभाव को मिटाने वाले नागरिक अधिकार विधेयक को भारी बहुमत से पारित कर दिया। इस संघर्ष में किंग ने गांधी से मिली प्रेरणा को स्वीकार किया था। इसी कड़ी में लोहिया जैसे गांधीवादी का प्रतिरोध मौजूं हैं।

लोहिया दुनिया में समता के लिए समर्पित थे। यही वजह है कि उनकी सप्तक्रांति के सिद्धांत में नर नारी समता के पहले सिद्धांत के बाद दूसरा सिद्धांत राजनीतिक, आर्थिक और त्वचा के रंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव मिटाने का संकल्प लेता है।  

(अरुण कुमार त्रिपाठी वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Ram Manohar Lohia
America
Racism
racism in america
Black People and White People

Trending

क्या फिर से मंदिर मस्जिद के नाम पर टकराव शुरू होगा?
क्या राजनेताओं को केवल चुनाव के समय रिस्पना की गंदगी नज़र आती है?
बंगाल चुनाव: पांचवां चरण भी हिंसा की ख़बरों की बीच संपन्न, 78 फ़ीसदी से ज़्यादा मतदान
नौकरी देने से पहले योग्यता से ज़्यादा जेंडर देखना संविधान के ख़िलाफ़ है
भाजपा की विभाजनकारी पहचान वाले एजेंडा के कारण उत्तर बंगाल एक खतरनाक रास्ते पर बढ़ सकता है
लेबर कोड में प्रवासी मज़दूरों के लिए निराशा के सिवाय कुछ नहीं

Related Stories

ia
एम.के. भद्रकुमार
अमेरिका की चीन नीति अंतिम मोड़ पर
20 April 2021
अमेरिकी मीडिया की कहानी पर विश्वास किया जाए तो चीन के लिए राष्ट्रपति बाइडेन के जलवायु दूत जॉन केरी की चार दिवसीय यात्रा कुछ खास छाप नहीं छोड़ पाई है
amc
सोनाली कोल्हटकर
अमेरिका: क्या दांते राइट की हत्या पुलिस बजट को कम करने की वज़ह बनेगी?
19 April 2021
जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के मामले में मिनेपोलिस में चल रही डेरेक चाउविन की सुनवाई के 3 हफ़्ते हो चुके हैं। इस बीच ब्रुकलिन सेंटर के उपमहानगरीय इलाके म
इराक़ ने अमेरिका से देश से अपने सैनिकों की वापसी में तेज़ी लाने के लिए कहा
पीपल्स डिस्पैच
इराक़ ने अमेरिका से देश से अपने सैनिकों की वापसी में तेज़ी लाने के लिए कहा
16 April 2021
इराक की सरकार ने अमेरिकी सैनिकों की देश से वापसी के लिए एक निश्चित समयसीमा तय करने के अपने प्रयासों को बढ़ा दिया है। मीडिया की विभिन्न रिपोर्टों के

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • MIgrants
    दित्सा भट्टाचार्य
    प्रवासी श्रमिक बगैर सामाजिक सुरक्षा अथवा स्वास्थ्य सेवा के: एनएचआरसी का अध्ययन
    20 Apr 2021
    ‘अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों का अनुभव एक सहायक नीतिगत ढाँचे की ज़रूरत पर ध्यान दिला रहा है। प्रवासी श्रमिकों की इन जटिल समस्याओं का निराकरण करने के लिए केंद्र, राज्य एवं समुदाय आधारित संगठनों द्वारा…
  • Election Commission of India
    संदीप चक्रवर्ती
    बंगाल चुनाव: निर्वाचन आयोग का रेफरी के रूप में आचरण उसकी गरिमा के अनुकूल नहीं
    20 Apr 2021
    निर्वाचन आयोग ने बंगाल में जारी लंबी चुनावी प्रक्रिया में आलोचना के कई कारण दे दिए हैं। अगले तीन चरण बहुत महत्वपूर्ण हैं।
  • library
    अनिल अंशुमन
    ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी पर ‘विकास का बुलडोजर‘ रोके बिहार सरकार 
    20 Apr 2021
    ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी के प्रति वर्तमान सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये और तथाकथित फ्लाई ओवर निर्माण के नाम पर लाइब्रेरी के वर्तमान अध्ययन कक्ष लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के सरकारी फरमान के खिलाफ…
  • tunisia
    पीपल्स डिस्पैच
    ट्यूनीशियाई राज्य समाचार एजेंसी टीएपी के विवादास्पद प्रमुख ने विरोध के बाद इस्तीफा दिया
    20 Apr 2021
    देश के पत्रकार संघ ने बाद में घोषणा की कि वह 22 अप्रैल को अपनी पहली हड़ताल की योजना को वापस लेगा और इसके साथ ही सरकार के बारे में समाचारों के बहिष्कार को भी बंद करेगा।
  • corona
    अजय कुमार
    20 बातें जिन्हें कोरोना से लड़ने के लिए अपना लिया जाए तो बेहतर!
    20 Apr 2021
    न लापरवाह रहिए, न एकदम घबराइए। न बीमारी से डरिए, न सरकार से। जहां जब जो ज़रूरी हो वो सवाल पूछिए, वो एहतियात बरतिये।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें