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क्या आप साफ़ पानी पी रहे हैं?...चौंका देंगे सरकारी आंकड़े

स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ पानी बेहद ज़रूरी होता है, लेकिन राज्यसभा में जो आंकड़े केंद्र सरकार की ओर से पेश किए गए हैं, वे बता रहे हैं कि हम साफ़ पानी नहीं पी रहे हैं।
water shortage

कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी।

ये कहावत बताने के लिए काफी है कि इस देश में कितनी विविधता है। चाहे वह सांस्कृतिक तौर पर हो या भौगोलिक तौर पर... लेकिन जिस तरह से जल-जंगल और ज़मीन की लूट और दोहन हो रहा है वो एक बड़ी समस्या और मानव जीवन के लिए ही चुनौती बनता जा रहा है।

जंगलों के कटने से सबसे ज्यादा प्रभावित जल होता है... और ग़लत नहीं कहा गया है कि ‘’जल ही जीवन है’’। विज्ञान की दृष्टि से हमारे शरीर में करीब 60 फीसदी पानी होता है, हमारे दिमाग में 85 फीसदी, हड्डियों में 25 फीसदी और खून में 79 फीसदी पानी होता है। यही कारण है कि एक इंसान बग़ैर खाने के तो महीने भर या उससे ज्यादा जीवित रह सकता है लेकिन बग़ैर पानी के शायद हफ्ते भर भी नहीं। अपनी ज़िंदगी में एक शख्स औसतन 75 हज़ार लीटर पानी पीता है। और इंसान को स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन दो लीटर पानी तो पीना ही चाहिए।

पानी का इतना महत्व जानने के बाद भी क्या ख़ुद के लिए ये सुनिश्चित कर सकते हैं, जो पानी हम पी रहे हैं वो हमें हेल्दी बना रहा है? जिसका जवाब है शायद नहीं... दरअसल ऐसा हम नहीं राज्यसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़े बोल रहे हैं। आंकड़ों में बताया गया है कि देश के लगभग सभी राज्यों के ज़्यादातर ज़िले ऐसे हैं, जहां ग्राउंड वाटर में ज़हरीली धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई है।

सरकार की ओर से पेश किए गए आंकड़े...

* 25 राज्यों के 209 ज़िले ऐसे हैं जहां के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है।

* 29 राज्यों में 491 ज़िलों के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां ग्राउंड वाटर में आयरन की मात्रा 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है।

* 21 राज्यों में 176 ज़िले ऐसे हैं, जहां के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में सीसा तय मानक 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है।

* 11 राज्यों में 29 ज़िलों के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां ग्राउंड वाटर में कैडमियम की मात्रा 0.003 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा पाई गई है।

* 16 राज्यों के 62 ज़िलों के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में क्रोमियम की मात्रा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मिली है।

* 18 राज्यों के 152 ज़िले ऐसे हैं, जहां के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में यूरेनियम 0.03 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा पाया गया है।

वैसे जल शक्ति मंत्रालय के दस्तावेज़ यही कहते हैं कि देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पानी ग्राउंड वाटर से ही मिलता है। लिहाज़ा ग्राउंड वाटर में तय मानक से ज्यादा ख़तरनाक धातुओं की मात्रा होने के मतलब पानी ज़हर बन चुका है।

राज्यसभा में सरकार ने उन रिहायशी इलाकों का भी आंकड़ा पेश किया जहां पीने पानी का स्रोत भी प्रदूषित हो चुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 671 इलाके फ्लोराइड, 814 इलाके आर्सेनिक, 14079 इलाके आयरन, 9930 इलाके खारापन, 517 इलाके नाइट्रेट और 111 इलाके भारी धातु से प्रभावित हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पानी की समस्या शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा है। क्योंकि भारत की आधी से ज्यादा आबादी गावों में रहती है। यहां पीने के पानी का मुख्य स्रोत तालाब, नदी, कुआं या हैंडपंप होता है। ऐसे में यहां पीने के लिए पानी सीधा ग्राउंड वाटर से ही आता है। क्योंकि ग्राउंड वाटर को साफ किया नहीं जाता, ऐसे में ज्यादातर ग्रामीण प्रदूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं।

स्वास्थ्य के लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है कि प्रदूषित पानी?

ग़ौर कीजिए कि जब आप बीमार होते हैं तो डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह ज़रूर देता है। लेकिन फिल्टर्ड या बॉयल्ड वॉटर...यानी छना हुआ या उबला हुआ पानी।

ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक, आयरन, सीसा यानी लीड, कैडमियम, क्रोमियम और यूरेनियम की मात्रा तय मानक से ज्यादा होने का सीधा-सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।

आर्सेनिक ज्यादा होने का मतलब त्वचा संबंधित बीमारी या कैंसर हो सकता है।

आयरन ज्यादा होने से अल्ज़ाइमर और पार्किंसन जैसी नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।

पानी में सीसी ज्यादा होना नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकता है।

कैडमियम की मात्रा ज्यादा होने से किडनी संबंधित परेशानी हो सकती है।

क्रोमियम की मात्रा ज्यादा होने से छोटी आंत में हाइपरलेशिया डिफ्यूज़ हो सकता है, जिससे ट्यूमर होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

पीने के पानी में यूरेनियम की मात्रा ज्यादा होने से किडनी से जुड़ी बीमारियां और कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

क्या कहते हैं डॉक्टर?

न्यूज़क्लिक ने जब डॉक्टर योगेश जैन से सवाल किया क्या आयरन और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने से हमारे शरीर में नुकसान हो सकता है। तो उन्होंने भी इस विषय को गंभीर बताया। उन्होंने फ्लोराइड को लेकर कहा कि ये ज़रूरी नहीं की देश के हर हिस्से में पाया जाए। हालांकि अगर वॉटर लेवल ज़्यादा गहरा होता है, या पानी के लिए ज्यादा ख़ुदाई करनी पड़ती है, तो फ्लोराइड के रॉक्स मिलने की संभावना है। ऐसी स्थिति में कैंसर या त्वचा संबंधित रोग होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। हालांकि डॉक्टर योगेश ने ये भी कहा कि जिन इलाकों में आसानी से पानी मिल जाता है, वहां ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। जबकि आयरन की मात्रा बढ़ने से पानी के स्वाद में ज़रूर बदलाव आता है, लेकिन बीमारी को लेकर इतनी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।

केंद्र सरकार ने आंकड़ा तो पेश कर दिया लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी लेने के वक्त पल्ला झाड़ दिया और सारा ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ दिया। केंद्र सरकार की ओर से संसद में कहा गया कि पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी राज्यों की है। हालांकि केंद्र सरकार भी इसको लेकर बहुत सी योजनाएं चला रही है।

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