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प्रमोटर पर चले मुकदमा और एपीपीसीबी की ज़िम्मेदारी तय हो: पूर्व सचिव सरमा

भारत सरकार के पूर्व सचिव और आंध्र प्रदेश कैडर के 1965 बैच के आईएएस अधिकारी ई.ए.एस.सरमा ने विशाखापत्तनम गैस त्रासदी के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगमोहन रेड्डी को एक चिट्ठी लिखी है।
आईएएस अधिकारी ई.ए.एस. सरमा

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम् में एक दक्षिण कोरियाई कंपनी के भारतीय शाखा के स्वामित्व वाले निजी क्षेत्र के रासायनिक संयंत्र में एक बड़े गैस रिसाव के बाद  कम से कम 11 लोगों की मौत हो गयी है और बड़ी संख्या में बच्चों समेत 200 से अधिक लोग अस्पताल में भर्ती कराये गये हैं। रिपोर्ट के अनुसार मृतकों में एक नाबालिग़ भी शामिल है।

एलजी पॉलीमर्स संयंत्र से एक स्टाइरीन वाष्प के रिसाव के बाद यह त्रासदी हुई थी, और कुछ 20 श्रमिक उस समय वहां मौजूद थे, जो 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद फिर से इस संयत्र को चालू करने की तैयारी कर रहे थे। इस रिसाव से क़रीब 5 किमी के दायरे में आने वाले गांवों प्रभावित हुए हैं।

इस घटना के बाद भारत सरकार के पूर्व सचिव ई.ए.एस. सरमा ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी को पत्र लिखा है कि वे अधिकारियों को "प्रमोटरों और एलजी पॉलिमर के वरिष्ठ प्रबंधकों पर तत्काल मुकदमा चलाने" के साथ-साथ एपीपीसीबी (APPCB) और औद्योगिक सुरक्षा विभाग के अफ़सरों पर "ज़िम्मेदारी को तय करने" का निर्देश दें”।  पत्र में उन्होंने आरोप लगाया है कि, “एलजी पॉलिमर एक दक्षिण कोरियाई कंपनी है, जिसे हर आने वाली सरकार ने सिर चढ़ाकर रखा है। यह कंपनी सरकारी सीलिंग अधिशेष भूमि पर चल रही है, जिसका मूल्य सैकड़ों करोड़ रुपये का है और सरकार ने जब कभी ज़मीन को वापस लेने की कोशिश की है, कंपनी ने सरकार को मुकदमेबाजी में घसीट लिया है। इसके बावजूद, एपीपीसीबी ने इस यूनिट की स्थापना के लिए सहमति (सीएफ़ई) और 2019 की शुरुआत के आसपास इसके संचालन के लिए विस्तार पर सहमति (सीएफ़ओ) आख़िर कैसे दे दी ? एपीपीसीबी ने स्पष्ट रूप से या तो राज्य सरकार से या केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मंज़ूरी नहीं ली है।”

सरमा ने पूछा है, "भारत में संचालित होने वाली एक विदेशी कंपनी ने अपने कार्यों को यूं ही हीले हवाली और इतनी लापरवाही से कैसे चलाया?" 

नीचे पूरी चिट्ठी दी गयी है:

प्रिय श्री जगन मोहन रेड्डी महोदय,

टेलीविज़न में दिखाये जा रहे दृश्यों से मुझे लगता है कि कि विजाग के बाहरी इलाक़े में पेंडूरथी के आस स्थित वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर के निर्माण स्थल पर ज़हरीली गैसों का एक गंभीर रिसाव हुआ है।

मेरा अनुमान है कि इस स्थल के आस-पास तीन किमी तक सैकड़ों लोग, ख़ासकर महिलायें और बच्चे, गैसों के संपर्क में आ गये हैं और गंभीर रूप से बीमार हो गये हैं। उन्हें शहर के विभिन्न अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा भीषण हादसा ऐसे समय में हुआ है, जब जिला प्रशासन COVID अभियान में व्यस्त है।

इस दुर्घटना को लेकर कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन्हें मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं। ये पहलू इस प्रकार है:

एलजी पॉलिमर एक दक्षिण कोरियाई कंपनी है, जिसे हर आने वाली सरकार ने सिर चढ़ाकर रखा है। यह कंपनी सरकारी सीलिंग अधिशेष भूमि पर चल रही है, जिसका मूल्य सैकड़ों करोड़ रुपये में है और सरकार ने जब कभी ज़मीन को वापस लेने की कोशिश की है, इस कंपनी ने सरकार को मुकदमेबाज़ी में घसीट लिया है। इसके बावजूद, एपीपीसीबी ने इस यूनिट की स्थापना की सहमति (सीएफ़ई) और 2019 की शुरुआत के आसपास  इसके संचालन के लिए विस्तार पर सहमति (सीएफ़ओ) आख़िर कैसे दे दी? एपीपीसीबी ने स्पष्ट रूप से या तो राज्य सरकार से या केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मंज़ूरी ली है।

पहली ही नज़र में यह इकाई अत्यधिक प्रदूषण पैदा करने वाली इकाई है और इसके आवासीय क्षेत्रों के क़रीब स्थित होने के कारण, एपीपीसीबी को अपने परिचालन का विस्तार करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। ऐसे में सवाल उठता है कि एपीपीसीबी ने इस तरह के विस्तार की अनुमति कैसे दे दी ?

विशाखापत्तनम् के बाहरी इलाक़े में होने वाला यह पहला औद्योगिक हादसा नहीं है। पिछले दिनों लगभग 30 से 40 दुर्घटनायें हुईं हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई श्रमिकों और नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, जिसमें किसी भी प्रमोटर पर मुकदमा नहीं चला और राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी को सज़ा तक नहीं हुई। ये हालात प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के अफ़सरों और प्रवर्तकों के बीच मिलीभगत की तरफ़ इशारे करते हैं। मुझे आश्चर्य नहीं होगा प्रमोटरों को सभी तरह के राजनीतिक नेताओं से समर्थन हासिल हो।

जब हाल ही में लॉकडाउन का पहला चरण समाप्त हो गया, तो एलजी पॉलिमर को स्पष्ट रूप से एक अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) इस आधार पर दिया गया कि यह "अत्यावश्यक" उद्योग है। सूझ-बूझ की कोई सीमा निर्धारित नहीं होने के चलते इस तरह की एक प्लास्टिक निर्माण इकाई को "अत्यावश्यक" कहा जा सकता है। इस चूक के लिए सरकार के किसी वरिष्ठ को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

सैद्धांतिक तौर पर प्रदूषण, कोरोना जैसी बीमारियों को लेकर शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को कमज़ोर कर देता है। यह विडंबना ही है कि ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस फैलने के कारण एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है, क्या केंद्र और राज्य दोनों को संयुक्त रूप से शराब की बिक्री और औद्योगिक प्रदूषण जैसी उन गतिविधियों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जो मानव प्रतिरक्षा को कमज़ोर करते हैं।

अपने अधिकारियों को प्रमोटरों और एलजी पॉलिमर के वरिष्ठ प्रबंधकों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई के लिए निवारक उपाय के रूप में निर्देश दें।

कृपया ऐसी औद्योगिक इकाई के संचालन और निर्माण कार्य दुबारा शुरू करने की अनुमति देने के लिए एपीपीसीबी  और औद्योगिक सुरक्षा विभाग के अफ़सरों की ज़िम्मेदारी तय करें।

सवाल है कि भारत में काम करने वाली एक विदेशी कंपनी ने यों ही हीले हवाली और इतनी लापरवाही से अपने कार्यों का संचालन कैसे किया?

ऐसा लगता है कि इस तरह की विदेशी कंपनियां भारत में इसलिए चल पा रही हैं, क्योंकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने "व्यापार को आसान बनाने" के नाम पर पर्यावरण मंजूरी प्रक्रियाओं में लगातार ढील दी है और प्रदूषणकारी उद्योगों को देश में कारखाने स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया है, यह जानते हुए भी कि यदि वे भूमि के क़ानून का उल्लंघन करते हैं, तो राज्य के आधिकारिक अंगों से उन्हें सुरक्षा मिलेगी।

आसपास के क्षेत्र के श्रमिकों और लोगों के स्वास्थ्य पर जो प्रतिकूल असर पड़ रहा है, उसका भुगतान कौन करेगा ? इस मामले में आईपीसी की कार्यवाही और भारी नागरिक दंड दोनों की मांग की जाती है।

सादर,

आपका

ई.ए.एस. सरमा

पूर्व सचिव, भारत सरकार

विशाखापत्तनम्

07-05-2020

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Prosecute Promoters, Fix Responsibility on APPCB: E A S Sarma on Visakhapatnam Gas Leak

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