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आर्थिक संकट और जनता की बदहाली को लेकर वामदलों का साझा धरना-प्रदर्शन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में गांधी पार्क के सामने ये धरना देशभर में 10 से 16 अक्टूबर तक चल रहे संयुक्त अभियान के तहत दिया गया। वामपंथी दल एकजुट होकर उत्तराखंड में तीसरी शक्ति बनने का प्रयास कर रहे हैं।
leftist protest

गहराते आर्थिक संकट और जनता की बदहाली को लेकर वामपंथी दलों- भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) ने सोमवार को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में गांधी पार्क के सामने धरना दिया। ये धरना प्रदर्शन देशभर में 10 से 16 अक्टूबर तक चल रहे संयुक्त अभियान के तहत आयोजित किया गया था। वामपंथी दल एकजुट होकर उत्तराखंड में तीसरी शक्ति बनने का प्रयास कर रहे हैं। राज्य में जिसकी सख़्त ज़रूरत है। यूकेडी सिर्फ़ नाम भर की रह गई है। बीच-बीच में नए-नए राजनीतिक संगठन बनाने के प्रयास भी होते हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच फंसी जनता के पास कोई मज़बूत तीसरा विकल्प भी नहीं है।
 
आर्थिक मंदी के चलते देश में बढ़ती बेरोजगारी, छंटनी, सार्वजनिक क्षेत्र जैसे बी.एस.एन.एल, रेलवे, टी.एच.डी.सी., रक्षा, एयर इंडिया के निजीकरण के खिलाफ वामपंथी पार्टियों ने आवाज़ उठायी।
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“आर्थिक मंदी मोदी जनित है”
भाकपा (माले) के राज्य सचिव राजा बहुगुणा का कहना है कि मोदी सरकार एक के बाद एक बड़े घरानों को भारी छूट दे रही है, इसके चलते आम जनता की तकलीफ़ दिनों-दिन बढ़ रही है। लोगों की क्रय शक्ति घट गई है। इसे बढ़ाए बिना आप मंदी से छुटकारा नहीं पा सकते। बहुगुणा ने कहा कि जनता की बदहाली और आर्थिक मंदी मोदी जनित है। मोदी सरकार ने जो नोटबंदी लागू की उसके नतीजे आज हम देख रहे हैं। वह कहते हैं कि यूं तो सारी दुनिया में मंदी का असर दिख रहा है लेकिन भारत और ब्राजील की मंदी अलग है।
 
दिसंबर में उत्तराखंड में होगा वामपंथी दलों का सम्मेलन
भाकपा (माले) के राज्य सचिव कहते हैं कि जनता के मुद्दों को लेकर सभी वामपंथी दल एकजुट हो रहे हैं। अगले महीने नवंबर में उनकी शीर्ष नेताओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक होनी है। वामपंथी दलों को मजबूत करने के लिए दिसंबर में तीनों वामपंथी पार्टियों का सम्मेलन आयोजित करने की योजना है। इसमें तीनों पार्टियों को राष्ट्रीय महासचिव भी शामिल होंगे।
 
मंदी का असर महिलाओं पर भी
कार्यक्रम में मौजूद अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की प्रांतीय अध्यक्ष इंदु नौडियाल ने कहा कि आर्थिक मंदी का महिलाओं पर भी बहुत असर पड़ा है जबकि वे अदृश्य सी स्थिति में रहती हैं। नौडियाल कहती हैं कि महिलाएं घर और बच्चे की परवरिश करते हुए पूरे-पूरे दिन काम कर रही हैं। दिन भर मेहनत के बाद उन्हें अपेक्षित मेहनताना भी नहीं मिलता। वह कहती हैं कि जब छंटनी हो रही है तो उसका सबसे ज्यादा असर औरतों पर पड़ता है। महंगाई चरम पर है, जिसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ता है।
 
इंदु राज्य में शुरू किए गए मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना पर भी सवाल उठाती हैं। महंगाई से जूझ रहे लोगों को सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराने के इरादे से ये योजना शुरू की गई है। वह कहती हैं कि राज्य के मुखिया ने दाल के लिए बहुत हल्ला मचाया और इस योजना में वो हमें चने की दाल दे रहे हैं। महंगाई नहीं है तो आप उड़द या अरहर की दाल देते। उनका कहना है कि सरकार अपनी योजनाओं का हल्ला बहुत मचाती है लेकिन उसका क्या असर रहा, ये देखा नहीं जाता। उनके मुताबिक जनधन योजना में भी महिलाओं की दिलचस्पी नहीं रही। क्योंकि इससे उनका कुछ भला नहीं हुआ।
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वामपंथी दलों के राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में कहा गया कि सरकार की पैंतरेबाजी मंदी से छुटकारा नहीं दे सकती है। बल्कि आने वाले दिनों में इसके भयंकर परिणाम होंगे। आज कॉर्पोरेट और वर्तमान सरकार भारत की जनता पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से बोझ डालने का कार्य कर रही है। रिजर्व बैंक के कोष से जो 1.76 करोड़ रुपये लिए गए उसका इस्तेमाल बहुत जरूरी आवश्यकताओं के लिए किया जाना चाहिए था लेकिन मोदी सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
 
वामपंथी दलों की मांग
रोजगार के लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए। रोजगार मिलने तक बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।

न्यूनतम वेतन कम से कम 18 हजार रुपये किया जाए।

सरकार, जिन कामगारों की नौकरी खत्म हुई है उनके लिए गुजारे लायक मासिक मजदूरी सुनिश्चित करे।

सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक, रक्षा, कोयला क्षेत्र में एफडीआई पर रोक, बीएसएनएल, रक्षा, रेलवे, एयर इंडिया का निजीकरण बंद हो।

मनरेगा का आवंटन बढ़ाया जाए और न्यूनतम 200 दिनों का काम दिया जाए।

कृषि संकट दूर करने के लिए एकमुश्त कर्ज़ माफ़ी, उपजों का दाम डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाए।

वृद्धावस्था, विधवा एवं विकलांगों को न्यूनतम पेंशन तीन हजार रुपये प्रति माह दी जाए।
 
धरने-प्रदर्शन में कहा गया कि राष्ट्रवाद की भावना को आगे रखकर जनता के हित से जुड़े जरूरी मुद्दे पीछे कर दिए गए हैं। देशभर में नौकरियां खोने की वजह से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। केंद्र सरकार की नवरत्न कंपनियों के निजीकरण की बात से ही हताशा फैल रही है। उत्तराखंड में टिहरी बांध (टीएचडीसी) के भी निजीकरण का अंदेशा जताया जा रहा है। जब जनता मंदी से हांफ रही है, उसी समय में अंबानी-अडानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति लगातार बढ़ रही है। ये समय किसानों, कामगारों, छोटे व्यापारियों सबके एकजुट होने का है।

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