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शिक्षा बजट: डिजिटल डिवाइड से शिक्षा तक पहुँच, उसकी गुणवत्ता दूभर

बहुत सारी योजनाएं हैं, लेकिन शिक्षा क्षेत्र के विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता उसकी खुद की विरोधाभासी नीतियों और वित्तीय सहायता की कमी से बुरी तरह प्रभावित हैं।
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केंद्रीय बजट 2022-23 लगातार दूसरा बजट है, जिसे कोरोना महामारी वर्ष में पेश किया गया है, इस दौरान देश के तमाम शैक्षणिक संस्थान लंबे समय तक बंद रहे हैं। ताजा बजट में शिक्षा के क्षेत्र में 1.04 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। पिछले बजट 2021-22 की तुलना में बजट व्यय या बीई में 11,000 करोड़ों की बढ़ोतरी की गई है, जो मुख्य रूप से डिजिटल शिक्षा के बुनियादी ढांचे पर जोर देने के लिए की गई है और यह कई अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं की अनदेखी करती है। 

वर्तमान बजटीय आवंटनों में स्कूली एवं उच्च शिक्षा के लिए पिछले वर्ष के बजट व्यय की तुलना में क्रमशः 16 फीसदी (54,874 से 63,449.37 करोड़ रुपये) और 6.5 फीसदी (38,351 करोड़ से 40,828 करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी की गई है। यद्यपि 2021-22 के बजट व्यय की तुलना में शिक्षा में कुल वृद्धि 12 फीसदी के लगभग की गई है, पर केंद्रीय बजट में शिक्षा की समग्र हिस्सेदारी और देश के सकल घरेलू उत्पाद में कमी आई है। इसलिए, वास्तविक आंकड़ों में वृद्धि ही आश्वस्त करने वाली नहीं है। 

ऑनलाइन शिक्षा और स्पष्ट डिजिटल विभाजन ने भारतीय छात्रों के सीखने के नुकसान को बढ़ा ही दिया है, खासकर हाशिए के समूहों के लिए। उन्होंने पहले से ही पस्त शिक्षा प्रणाली की खामियों को उजागर किया है। ऐसे में कई लोगों की उम्मीदें मौजूदा बजट पर टिकी हुई हैं। हालांकि यह बजट आवंटन, स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वालों की समस्या को हल करने एवं डिजिटल डिवाइड को पाटने तथा  कमजोर समूहों के प्रति सरकार की एक स्पष्ट उदासीनता को प्रदर्शित करता है। 

स्कूली शिक्षा: सुरंग के अंत में कोई रोशनी नहीं

पिछले दो वर्षों में छात्रों के शिक्षण के ऑनलाइन मोड में अभूतपूर्व परिवर्तन ने विशेषाधिकार प्राप्त और हाशिए पर रहने वालों समुदायों के बीच उपकरणों और इंटरनेट कनेक्शन तक उनकी पहुंच के अंतर को बढ़ा दिया है। वंचित परिवारों के 1,400 स्कूली बच्चों के बीच किए गए एक हालिया सर्वेक्षण (लॉक आउट : स्कूली शिक्षा पर आपातकालीन रिपोर्ट, 2021) के आंकड़े दर्शाते हैं कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में छात्रों की क्रमशः 28 फीसदी एवं 24 फीसदी संख्या ही ऑनलाइन कक्षाओं में नियमित रूप से भाग लेने में सक्षम है। इस सर्वेक्षण ने घरों में उपकरणों के अपर्याप्त वितरण, खराब कनेक्टिविटी और इंटरनेट डेटा पैकेज खरीदने के लिए धन की कमी को भी उजागर किया है। भारत सरकार द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2018 (महामारी से पहले) ने पहले ही इस बात पर प्रकाश डाला था कि केवल 8 फीसदी भारतीय परिवारों की ही इंटरनेट और उपकरणों तक पहुंच है। इसलिए, ऐसी उम्मीदें थीं कि ताजा बजटीय आवंटन में इन कमियों को दूर कर दिया जाएगा। इसके बजाय, हम देखते हैं स्कूली स्तर पर केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के तहत वित्त पोषण में 1.4 फीसदी की कटौती कर दी गई है। बीते साल 363.50 करोड़ रुपये की तुलना में यह आवंटन घटाते हुए 358.26 करोड़ रुपये किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि जहां केंद्र सरकार 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' का समर्थन कर रही है, वहीं माध्यमिक शिक्षा उपश्रेणी के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना का वर्तमान बजट में कोई आवंटन नहीं किया गया है। अनुसूचित जाति और अन्य समुदायों के लिए मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति में तथा विकलांग छात्रों की छात्रवृत्ति में भी बजट में कटौती की गई है।

हाशिए पर पड़े समूहों की लड़कियों पर महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए इन खर्चों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी। हार्वर्ड पॉलिटिकल रिव्यू जैसे अध्ययनों ने बताया है कि कोविड-19 ने युवा लड़कियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और इसकी वजह से 10 मिलियन लड़कियां माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षा से बाहर हो जा सकती हैं। लाखों छात्राओं के पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की इस अनिश्चित संभावना को देखते हुए केंद्र सरकार को उच्च आवंटन के जरिए पर्याप्त हस्तक्षेप करना चाहिए था और इसमें धन की कम नहीं आने देना चाहिए था। 

स्कूली शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण घोषणाओं के संदर्भ में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में पीएम ई-विद्या योजना के तहत 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' योजना का उल्लेख किया और इसकी मौजूदा संख्या 20 से बढ़ा कर 200 करने का प्रस्ताव किया है। हालांकि, पीएम ई-विद्या के लिए बजट आवंटन 2021-22 (बजट परिव्यय) 50 करोड़ रुपये से घटा कर 2022-23 के बजट व्यय में मात्र 10 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है। डिजिटल बोर्ड को चालू बजट में कुछ नहीं दिया गया है। यह आश्चर्यजनक है कि 2019 में शुरू की गई इस योजना ने इतने कम समय में ही अपनी ऊष्मा खो दी है। ये अल्प आवंटन एक डिजिटल क्रांति के सरकारी वादे को धराशायी कर देते हैं और वित्त मंत्री के प्रस्तावों की गंभीर कमी को उजागर करते हैं। 

बजट की घोषणा शैक्षणिक संस्थानों को फिर से खोलने की सरकार की योजना के करीब की गई थी। हमारा मजबूत तर्क है कि वित्त मंत्री के भाषण में बच्चों के शिक्षण की खाई को पाटने के लिए डिजिटल शिक्षकों और टीवी चैनलों पर जोर देना एक समस्याग्रस्त क्षेत्र है। दुनिया भर में और भारत में भी किए गए सर्वेक्षणों ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि शैक्षिक स्थानों में वास्तविक कक्षा अनुभव, शिक्षार्थी-केंद्रित शिक्षाशास्त्र, और भावनात्मक समर्थन प्रत्येक छात्र के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से हाशिए की पृष्ठभूमि से आने वाली पहली पीढ़ी के छात्रों के लिए। इसलिए, यह समय अधिकाधिक संख्या में शिक्षकों की भर्ती करने, बुनियादी ढांचे को बेहतर करने तथा कक्षाओं के लिए और अधिक राशि आवंटित करने का है। व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई-लिखाई को दोबारा बाधित नहीं किया जाना चाहिए, विशेष रूप से उन दूर-दराज के क्षेत्रों में और संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में जहां बिजली, इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल संसाधन दुर्लभ हैं। यह बच्चों की स्कूलों में सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने का भी समय है। इसी तरह, हमें समग्र शिक्षा अभियान (एसएमएसए) पर भी विचार करना चाहिए, जो इन मुद्दों को हल करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्र प्रायोजित योजना है। इस बार एसएमएसए के आवंटन में 2021-22 की तुलना में 20 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए 31,050 करोड़ रुपये के बनिस्बत ताजा बजट में 37,383 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। हालाँकि, यह राशि भी एसएमएस पर पूर्व-महामारी के पहले किए गए 38,750 करोड़ आवंटन की तुलना में कम है। इसलिए ताजा बजट में की गई इस वृद्धि में अगर मुद्रास्फीति की दर को शामिल किया जाए तो यह राशि ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी रूप से कम होगी। 

शिक्षक प्रशिक्षण और वयस्क शिक्षा में 2021-22 और 2022-23 के बीच 49 फीसदी (250 करोड़ की बजाए 127 करोड़ रुपये) की भारी कटौती की गई है। यह गिरावट नई शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 का मजाक बनाती है, जो शिक्षकों को सीखने की प्रक्रिया के केंद्र में रख कर बनाई गई थी और उनके निरंतर व्यावसायिक विकास पर जोर देती है। नीतिगत नुस्खों से बजट आवंटन का यह स्पष्ट विचलन शिक्षा प्रणाली की रीढ़-शिक्षकों-को दबाने की सरकार की मंशा को दर्शाता है। 

एनईपी के नीतिगत उद्देश्य का जोरदार वकालत करने वाला एक और कार्यक्रम है-प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) कार्यक्रम, जो मूलतः साक्षरता और बाल स्वास्थ्य के लिए है। हालांकि, सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजनाओं में पिछले वर्ष के बजट व्यय से महज 0.79 फीसदी अधिक राशि आवंटित की गई है। यह आवंटन कम है क्योंकि अधिकांश राज्यों में स्कूल फिर से खुलने वाले हैं। 

इस बात के काफी सबूत हैं कि मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएमएस) के छात्रों के नामांकन, प्रतिधारण और पोषण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, विशेष रूप से कमजोर समूहों के बच्चों पर। हालांकि, एमडीएमएस जिसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण रखा गया है, के लिए धन के आवंटन में 2021-22 के 11,500 करोड़ रुपये के प्रावधान की तुलना में 11 फीसदी की कटौती के साथ महज 10,233 करोड़ रुपये दिया गया है। यदि हम मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हैं, तो यह कटौती वास्तविक रूप में विस्तारित होगी, इस प्रकार हाशिए पर सरकार की उदासीनता को उजागर करेगी। यह इतना ही नहीं है। यहां तक कि अल्पसंख्यकों के विकास के लिए एक केंद्रीय कार्यक्रम-मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना-को भी इस बार कोई बजटीय आवंटन नहीं मिला है। यह बजट दो नए कार्यक्रम पेश करता है, स्टेट एजुकेशन प्रोग्राम टू इम्प्रूव रिजल्ट्स (ASPIRE) एवं इग्ज़ेम्प्लर। हालांकि, इन योजनाओं के बड़े हिस्से का वित्त पोषण विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के ऋण से किया जाएगा, जो स्कूली शिक्षा में बढ़ते निजी हस्तक्षेप को दर्शाता है। स्ट्रेंथिंग टीचिंग-लर्निंग एंड रिजल्ट फॉर स्टेट्स (STARS) में 15 फीसदी की वृद्धि की गई है और उसे 485 करोड़ रुपये बढ़ा कर 550 करोड़ रुपये कर दिया गया है। 

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने पर एनईपी के फोकस के साथ उपरोक्त तीनों नीतियों के उद्देश्य ओवरलैप करते हैं। वे स्कूलों में डिजिटल शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के उपायों पर भी प्रकाश डालते हैं। हालांकि उनका कार्यान्वयन चुनिंदा राज्यों तक ही सीमित है। 

सरकार ने पिछले साल के बजट में 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाने की घोषणा की थी। एनईपी कहता है कि आदिवासी क्षेत्रों में 750 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय खोले जाने चाहिए तथा 15,000 स्कूलों को अवश्य मजबूत किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से, पिछले साल और इस साल के बजट में इनके लिए कोई धन आवंटित नहीं किया गया है। 

उच्च शिक्षा: जहां समानता, पहुंच, गुणवत्ता दूभर हैं 

छात्रों की दी जाने वाली वित्तीय सहायता में 2021-22 की तुलना में 2022-23 में पहले की 2,482 करोड़ की तुलना में 2,078 करोड़ रुपये के प्रावधान के साथ 16 फीसदी की कटौती ऊंच्च शिक्षा पर सबसे बड़े आघातों में एक है। शोध-अनुसंधान से यह स्थापित है कि उच्च शिक्षा तक पहुंच को बेहतर बनाने के लिए सरकारी वित्तीय सहायता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

‘टोटल डिजिटल लर्निंग’ योजना के अंतर्गत भी 35 फीसदी कटौती देखी जा रही है, उसका आवंटन 646 करोड़ से घटा कर 421 करोड रुपये कर दिया गया है। एमओओसी, एषोध सिंधु, एचइएसपीआइएस, नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, नेशनल एकेडमिक डिपॉजिटरी, पीएमईविद्या, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट इस बजट में फंड में कटौती देख रहे हैं। इस श्रेणी के तहत एकमात्र नेशनल मिशन ऑन एजुकेशन को आइसीटी के जरिए 100 फीसदी की बढोतरी मिली है, जिसका नीति दस्तावेज बताता है कि इस अभियान का प्राथमिक उद्देश्य इसकी कनेक्टिविटी बढ़ाना, सामग्री का निर्माण करना, एवं संस्थानों तथा शिक्षार्थियों के लिए उपकरणों की पहुंच की व्यवस्था करना है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारण का बजट भाषण शिक्षक-स्वतंत्र शिक्षण और डिजिटल शिक्षकों पर जोर देता है, जबकि एनईपी किसी भी प्रभावी शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षकों के महत्त्व पर जोर देता है। यह विश्वविद्यालय और कॉलेज के शिक्षकों के वेतनमान में सुधार के लिए 2022-23 के बजट में निधि आवंटन को 10 करोड़ रुपये से घटा कर 10 लाख रुपये कर देता है, जो सीधे-सीधे 99 फीसदी की कटौती है। इस बजट में स्कूलों की तरह उच्च शिक्षा में भी शिक्षकों की भूमिका को दरकिनार कर दिया गया है। अनुसंधान और नवोन्मेष के फंड में 19 फीसदी की कटौती ने एनईपी से एक खतरनाक संभावना और एक विडंबनापूर्ण प्रस्थान को सामने लाया है, जो शिक्षा और विकास में योगदान करने के लिए नवाचार और अनुसंधान की मुख्य पूर्वापेक्षाओं पर विचार करता है। 

सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना के लिए फंड में 68 फीसदी की वृद्धि की गई है। उसके आवंटन को 2021-22 के 167 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 280 करोड़ रुपये कर दिया गया है। बज़ट में केंद्रीय विश्वविद्यालयों को दिए जाने वाले अनुदान और आइआइटी, आइआइएम, एनआइटी और आइआइईएसटी के समर्थन में पिछले वर्ष की मामूली वृद्धि हुई है। हालांकि, उच्च शिक्षा प्रणाली में महामारी से प्रेरित भयावहता को कम करने के लिए बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं है।

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के आवंटन में 32 फीसदी की कटौती की गई है, उसकी राशि पिछले वर्ष की 3,000 करोड़ की तुलना में 2,043 करोड़ रुपये कर दी गई है। इस कार्यक्रम की आधारशिला है-शिक्षा की गुणवत्ता, समानता, पहुंच और अनुसंधान में सुधार करना है, इसलिए यह कटौती समावेशी उच्च शिक्षा के प्रति सरकार की इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है। इसके अलावा, धन आवंटन का तौर-तरीका उच्च शिक्षा को तेजी से निजी हाथों में सौंप कर उसकी अच्छी सार्वजनिक प्रकृति में कटाव लाने निजी हाथों में सौंप कर उसे नष्ट करने धोखा देता है। इसके अलावा, आवंटन पैटर्न सार्वजनिक उच्च शिक्षा सेवा को तेजी से निजी हाथों में सौंपने के जरिए उसके असल मकसद को धोखे से खत्म करता है। 

सावधानी के नोट

भारत फिलहाल उच्च मुद्रास्फीति (5.5 फीसदी) के दौर से गुजर रहा है और सबसे लंबे लॉकडाउन के बाद शिक्षा क्षेत्र को फिर से खोल रहा है। इस संदर्भ में, यह उम्मीद की गई थी कि सरकार छात्रों को शैक्षिक स्थानों में वापस लाने और भविष्य में उनके रोजगार के अवसर बढ़ाने को लेकर शिक्षा को उत्प्रेरक बनाने का एक ईमानदार और ठोस प्रयास करेगी। इसकी बजाय, हम महत्त्वपूर्ण उच्च और स्कूली शिक्षा क्षेत्रों में भारी कटौती देखते हैं। इसके अलावा, शिक्षक-विकास के प्रति सरकार की उदासीनता और शिक्षा में गुणवत्ता, समानता और अनुसंधान में सुधार लाने मे कोताही निस्संदेह छात्रों, मुख्य रूप से वंचित समुदायों के बच्चों को, अधर में छोड़ देगा। पीपीपी मोड में नियोजित संस्थानों के लिए उच्च आवंटन निजीकरण के लिए अनुपातहीन दबाव को दर्शाता है, जिनकी सामर्थ्य और पहुंच की कमी व्यापक रूप से जानी जाती है। ऐसा लगता है कि सरकार शिक्षा को एक उपकरण मानती है और उन लोगों के निरंतर बहिष्कार की एक जगह रूप में पसंद करती है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। डिजिटल शिक्षा महामारी के कहर से पैदा हुए शून्य को नहीं भर सकती। अफसोस है! इस डिजिटल ट्रेन में सवार होकर किसी व्यक्ति के कहीं पहुंचने की संभावना नहीं है।

(निवेदिता सरकार राजधानी दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं, और अनुनीता मित्रा शिकागो की एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।) 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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