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'चुनावी बांड' योजना: केंद्र सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए रद्द किया

ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनाव आयोग को छह साल पुरानी योजना में योगदानकर्ताओं के नामों का खुलासा करने का आदेश दिया।
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फोटो साभार : पीटीआई

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक मानते हुए इसे रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत का कहना है कि चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एसबीआई राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करेगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एसबीआई भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत करेगा और ECI इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि 12 अप्रैल, 2019 के न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद से खरीदे गए चुनावी बांड का विवरण, विवरण में प्रत्येक चुनावी बांड की खरीद की तारीख, बांड के खरीदार का नाम और खरीदे गए चुनावी बांड का मूल्य शामिल होगा।

साथ ही 12 अप्रैल, 2019 के अंतरिम आदेश के बाद से आज तक चुनावी बांड के माध्यम से योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण चुनाव आयोग को देना होगा। एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए प्रत्येक चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करना होगा, जिसमें लिए जाने की तारीख और चुनावी बांड का मूल्य शामिल होगा। चुनाव आयोग को ये विवरण 13 मार्च 2024 तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना चाहिए।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह संविधान के तहत सूचना के अधिकार और बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।

ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनाव आयोग को छह साल पुरानी योजना में योगदानकर्ताओं के नामों का खुलासा करने का आदेश दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग और सर्वसम्मत फैसले सुनाए, जिससे केंद्र सरकार को झटका लगा।

फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि यह योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

पीठ ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों की राजनीतिक निजता और संबद्धता का अधिकार भी शामिल है।

अदालत जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अमान्य ठहराया।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि जारीकर्ता बैंक चुनावी बांड जारी करना बंद करेगा और भारतीय स्टेट बैंक 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बांड का विवरण चुनाव आयोग को देगा।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल दो नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस योजना को सरकार द्वारा 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था। इसको राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।

इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है।

कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान बताए बिना अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है।

आलोचकों का कहना है कि इससे चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता खत्म हो जाती है और सत्तारूढ़ पार्टियों को फायदा मिलता है।

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