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बिजली कर्मचारियों-इंजीनियरों और सरकार के बीच बढ़ता तनाव

बिजली (संशोधन) विधेयक-2022 और निजीकरण के विरोध तथा पुरानी पेंशन बहाली हेतु बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों का 23 नवम्बर को दिल्ली में विशाल प्रदर्शन करने करने की तैयारियाँ शुरू कर दी है।
power protest
फाइल फ़ोटो। फ़ोटो साभार : द हिन्दू

बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों ने नरेंद्र मोदी सरकार की चुनौती देते हुए कहा कि अगर बिजली कर्मचारियों और आम उपभोक्ताओं की सहमति के बग़ैर "बिजली (संशोधन) विधेयक-2022" संसद में पास होता है, तो देशव्यापी आंदोलन किया जायेगा।

बिजली विभाग के नेताओं का कहना है, दरअसल इस संशोधन के ज़रिये केंद्र सरकार बिजली वितरण हेतु निजी घरानों को सरकारी बिजली वितरण के नेटवर्क के जरिए बिजली आपूर्ति करने की सुविधा देने जा रही है।

दिल्ली में प्रदर्शन

बिजली (संशोधन) विधेयक-2022 और निजीकरण के विरोध तथा पुरानी पेंशन बहाली हेतु बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों का 23 नवम्बर को दिल्ली में विशाल प्रदर्शन करने करने की तैयारियाँ शुरू कर दी है।

इस रैली में आउटसोर्सिंग समाप्त करने संविदा कर्मियों को नियमित करने का मुद्दा भी उठाया जायेगा। बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों की रैली दिल्ली के रामलीला मैदान से प्रारंभ होकर जंतर मंतर तक जाएगी।

स्टैंडिंग कमेटी और स्टेकहोल्डर में चर्चा नहीं

प्रदर्शन के बारे में न्यूज़क्लिक से बात करते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि लोकसभा ने इलेक्ट्रीसिटी (संशोधन) बिल 2022 को संसद की ऊर्जा मामलों की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया है। लेकिन स्टैंडिंग कमेटी ने अभी तक बिजली कर्मचारियों और आम उपभोक्ताओं से इस पर कोई चर्चा नही की है।

दुबे ने कहा कि बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को विश्वास में लिए बिना इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 को संसद में पारित कराने की किसी भी एक तरफा कार्यवाही का कड़ा विरोध किया जाएगा। उन्होंने ने आगे कहा कि 27 लाख बिजली कर्मचारी व इंजीनियर ऐसे किसी भी कदम के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने हेतु बाध्य होंगे।

पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन ने कहा कि ने देश के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजकर यह अपील की गई है कि ऊर्जा क्षेत्र और बिजली उपभोक्ताओं के व्यापक हित में वे इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 का पुरजोर विरोध करें।

भ्रामक बयान

केंद्रीय विद्युत मंत्री आर के सिंह के बयान को भ्रामक और जनता के साथ धोखा बताते हुए दुबे ने कहा की बिजली (संशोधन) बिल 2022 के जरिए उपभोक्ताओं को चॉइस देने की बात पूरी तरह गलत है।

दरअसल इस संशोधन के जरिए केंद्र सरकार बिजली वितरण हेतु निजी घरानों को सरकारी बिजली वितरण के नेटवर्क के जरिए बिजली आपूर्ति करने की सुविधा देने की योजना बना रही रही है।

बिजली के सरकारी निगमों ने अरबों खरबों रुपए खर्च करके बिजली के “ट्रांसमिशन” और “डिस्ट्रीब्यूशन” का नेटवर्क खड़ा किया है और इसके अनुरक्षण पर सरकारी निगम प्रति माह करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। इस बिल के जरिए इस नेटवर्क के उपयोग की छूट निजी घरानों को देने की सरकार की मंशा है।

ओडिशा के निजीकरण की विफलता

पावर इंजीनियर्स फेडरेशन का कहना की कि इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 में कोई नया संशोधन करने के पहले ओडिशा के निजीकरण की विफलता और देश के कई स्थानों पर निजी क्षेत्र को दिए गए विद्युत वितरण के फ्रेंचाइजी की विफलता का सम्यक विश्लेषण किया जाना जरूरी है। निजी क्षेत्र के फ्रेंचाइजी मुनाफे वाले शहरी क्षेत्र में भी विफल साबित हुए हैं। अब केंद्र सरकार विफलता के इसी प्रयोग को इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 के जरिए आम जनता पर थोपना चाहती है।

दुबे ने यह भी बताया कि विगत वर्ष किसान आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को प्रेषित पत्र में भी लिखित आश्वासन दिया है कि इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) बिल 2022 सभी स्टेकहोल्डर्स को बिना विश्वास में लिए और सभी स्टेकहोल्डर्स से बिना चर्चा किए संसद में नहीं रखा जाएगा।

लेकिन केंद्र सरकार ने और केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने आज तक न ही बिजली के उपभोक्ता संगठनों से और न ही बिजली कर्मचारियों के किसी भी संगठन से इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) बिल 2022 के माध्यम से प्रस्तावित संशोधनों पर कोई वार्ता की है। उन्होंने कहा कि जबकि बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़े स्टेकहोल्डर बिजली के उपभोक्ता और बिजली के कर्मचारी हैं।

उन्होंने बताया कि दिल्ली रैली के पहले बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की देश भर में विभिन्न प्रान्तों में सम्मेलन चल रहे हैं। यदि बिजली कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना इस बिल को संसद में रखा जाता है तो यह सरकार के लिखित आश्वासन का खुला उल्लंघन होगा और इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा ।

निजी कंपनियां व सरकारी नेटवर्क का इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ के नेता महेंद्र राय का कहना है कि जहां तक यह सवाल है कि इससे उपभोक्ताओं को चॉइस मिलेगा यह पूरी तरह गलत है। क्योंकि इस बिल के अनुसार "यूनिवर्सल सप्लाई ऑब्लिगेशन" अर्थात सबको बिजली आपूर्ति करने की अनिवार्यता केवल सरकारी निगमों की होगी। निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां सरकारी नेटवर्क का इस्तेमाल कर केवल मुनाफे वाले “इंडस्ट्रियल” और “कमर्शियल” उपभोक्ताओं को ही बिजली देगी।

आर्थिक संकट

उनके अनुसार इस प्रकार घाटे वाले “घरेलू” उपभोक्ताओं और “ग्रामीण” क्षेत्र के उपभोक्ताओं को बिजली देने का काम केवल सरकारी बिजली वितरण कंपनी के पास रहेगा। इससे सरकारी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियां आर्थिक रूप से पूरी तरह कंगाल हो जाएगी और उनके पास बिजली ख़रीदने के लिए भी आवश्यक धनराशि नहीं होगी ।

राय ने बताया कि इस संशोधन बिल के जरिए किसी भी प्रकार आम उपभोक्ता के लिए बिजली सस्ती नहीं होने वाली है। इसका मुख्य कारण यह है कि बिजली की लागत का 80 से 85% बिजली खरीद का मूल्य होता है और बिजली खरीद के करार 25- 25 वर्ष के लिए पहले से ही चल रहे हैं। अतः बिजली खरीद के मूल्य में कोई कमी नहीं आने वाली है।

बिजली संशोधन विधेयक-2022 और पावर सेक्टर के निजीकरण के मुद्दे पर बिजली कामगारों के देशव्यापी मुहिम और 23 नवंबर को दिल्ली में आयोजित प्रदर्शन का "वर्कर्स फ्रंट" ने भी समर्थन किया है। पावर कारपोरेशन के सेवानिवृत्त अधिशासी अभियंता और वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश उपाध्यक्ष ई. दुर्गा प्रसाद ने कहा है बिजली संशोधन विधेयक-2022 के संदर्भ में किसान आंदोलन में हुई वार्ताओं में सरकार ने लिखित रूप से आश्वस्त किया था कि स्टेकहोल्डर्स को सुने बिना विधेयक संसद सत्र में पेश नहीं किया जायेगा लेकिन वादा-खिलाफ़ी कर इसे संसद के पिछले सत्र में पेश कर दिया गया।

हालांकि बिजली कर्मचारियों के देशव्यापी हड़ताल की चेतावनी और किसान आंदोलन के दबाव में संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। लेकिन इस अवधि में संसद की स्थायी समिति ने सभी स्टेकहोल्डर्स से अभी तक चर्चा नहीं की है। इससे बिजली कर्मचारियों को आशंका है कि कहीं पुनः शीतकालीन सत्र में विधेयक मौजूदा स्वरूप में ही पारित न कर दिया जाये। इसी वजह से बिजली कर्मचारियों द्वारा देशव्यापी मुहिम शुरू की गई है।

किसानों व ग़रीबों पर असर

दुर्गा प्रसाद ने कहा कि “बिजली संशोधन विधेयक के प्रावधान कारपोरेट बिजली कंपनियों के हितों की पूर्ति हैं”। इससे “डिस्कॉम” का भारी भरकम नेटवर्क मुफ्त में ही कारपोरेट बिजली कंपनियों द्वारा मुनाफाखोरी के लिए इस्तेमाल करने की छूट होगी। इसके अलावा “क्रास सब्सिडी” और सब्सिडी खत्म होने का प्रावधान विधेयक में है।

इसका सीधा असर किसानों व गरीबों पर पड़ना तय है। टेलीकॉम कंपनियों की तरह बिजली उपभोक्ताओं को च्वॉइस के विकल्प से बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार की बातें महज प्रोपेगैंडा से ज्यादा कुछ नहीं है।

वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश उपाध्यक्ष के अनुसार मुम्बई से लेकर ओडिशा तक डिस्काम के निजीकरण के जो भी प्रयोग हुए हैं उनसे वहाँ न सिर्फ बिजली महंगी हुई है बल्कि उपभोक्ताओं को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दुर्गा प्रसाद ने कहा कि इसका उदाहरण यह कि किस तरह ओडिशा में "चक्रवात" के वक्त ध्वस्त हुए बिजली नेटवर्क की मरम्मत कराने से निजी कम्पनी ने हाथ खड़े कर दिए जबकि एग्रीमेंट के अनुसार मरम्मत कराना उसकी जवाबदेही थी।

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