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विशेषज्ञ ने जलवायु परिवर्तन के चलते मच्छर जनित बीमरियों के बढ़ने की आशंका जताई

"उप-सहारा अफ़्रीक़ा, दक्षिणपूर्व एशिया और लातिन अमेरिका में मच्छर जनित बीमारियों का पहले ही प्रकोप है लेकिन अब ये यूरोप में भी दिखाई दे रही हैं।"
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फ़ोटो साभार: ET

गर्मी बढ़ने के साथ ही मच्छरों का प्रकोप बढ़ने लगता है और उनका प्रजनन काल होने के कारण इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि होती है। एक विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि इन हालात में ऐसे इलाकों में मच्छरों की संख्या में बढ़ोतरी होगी जहां पहले इनकी संख्या कम थी।

रिकेट बेनकिसर कंपनी में वैश्विक कीट नियंत्रण नवाचार संबंधी अनुसंधान एवं विकास निदेशक अभिजीत दास के अनुसार उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिणपूर्व एशिया और लातिन अमेरिका में मच्छर जनित बीमारियों का पहले ही प्रकोप है लेकिन अब ये यूरोप में भी दिखाई दे रही हैं।

दास ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ तापमान बढ़ने से पर्यावरणीय स्थितियां भी बदलती हैं, ऐसे में मच्छर जनित बीमारियां अन्य स्थानों पर भी फैलेंगी। कुछ स्थानों में मच्छरों में प्रजनन का वक्त बढ़ने का अनुमान है जिससे मच्छरों के मौसम की अवधि भी बढ़ेगी। अगर दस वर्षों में मच्छरों का मौसम पांच माह था तो यह अब बढ़कर छह अथवा सात माह हो सकता है।’’

दास का मानना है कि यह प्रचलन बढ़ता रहेगा। उनके अनुसार मौजूदा साक्ष्य इस ओर इशारा करते हैं।

‘एक्सप्लोरेशन इन लैबोरेटरी एनिमन साइंस’ नामक पत्रिका में पिछले वर्ष प्रकाशित एक शोधपत्र में कहा गया है कि जलवायु कारक मसलन तापमान में बढ़ोतरी, बढ़ता समुद्र स्तर, वर्षा, वायु और सूर्य की रोशनी की अवधि आदि इस संबंध में अहम हैं।

‘वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम’ में प्रभाव आकलन निदेशक डॉ केट एंड्रेज के अनुसार जलवायु परिवर्तन मच्छर जनित बीमारियों के खतरों को बढ़ाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ उदाहरण के तौर पर जब लोग पानी की कमी के कारण पानी का संग्रह करते हैं तो इससे स्थानीय मच्छर प्रजनन स्थल और बीमारी का खतरा बढ़ सकता है…।’’

मच्छर जनित बीमारियों की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के अनुसार यूरोप में मलेरिया के मामले 62 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं, वहीं डेंगू, जीका और चिकनगुनिया के मामले 700 प्रतिशत तक बढ़े हैं।

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