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सोनभद्र : विशेषज्ञयों ने निवासियों से फ़्लोराइड दूषित पानी से बचने को कहा 

क्षेत्र में पीने के पानी में फ़्लोराइड संदूषण जायज़ सीमा से दस गुना अधिक है। जिसके परिणामस्वरूप निवासी विभिन्न प्रकार की बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं।
सोनभद्र
करुना नदी में ओबरा पावरप्लांट से राख को बहाया जा रहा है। फोटो - सौरभ शर्मा

कोन (सोनभद्र): पैंतीस वर्षीय विजय कुमार शर्मा की पीठ के निचले हिस्से में लकवा मारे जाने की वजह से पिछले पांच साल से बिस्तर पर पड़े हैं। यहां तक कि उन्हे शौच तक जाने के लिए अपने दो बेटों का सहारा लेना पड़ता है।

शर्मा अब यह मानने लगे हैं कि वह फिर कभी अपने पैरों पर नहीं चल पाएंगे, और वे इसी हालत में परलोक सिधार जाएंगे। बिस्तर पर पड़े मध्यम आयु वर्ग के मरीज ने कहा कि वे जिस भूजल को पीते हैं, उसमें फ्लोराइड संदूषण होने के कारण उन्हे लकवा मार गया है।

विजय ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मेरे डॉक्टरों ने मुझे बताया कि भूजल में अधिक मात्रा में फ्लोराइड के संदूषण के कारण ऐसा हुआ है। पूरे सोनभद्र क्षेत्र में पानी जहर में बदल गया है, जिसका हमारे स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ रहा है और लोग इसके कारण जल्दी मर रहे हैं।"

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विजय कुमार शर्मा, सोनभद्र में फ़्लोराइड के अधिक जमा होने के कारण विकलांग हो गए थे। फोटो-सौरभ शर्मा

संसद में सरकार द्वारा दिए गए एक उत्तर के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 114 से अधिक बस्तियों में, भूजल, जो पानी के स्रोत के रूप में काम करता है, फ़्लोराइड से दूषित हो गया है। राज्य के लोगों के दाँत और अस्थि-पंजर-संबंधी स्वास्थ्य पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ा है, जिसमें सोनभद्र सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में से एक है।

विजय ने कहा कि उनके बेटों में से एक को शहर से दवाइयां लाने के लिए काम से छुट्टी लेनी पड़ती है, क्योंकि दवाइयां गाँव के बजाय केवल शहर में ही उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि उनके बेटे उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान और कई अन्य प्रमुख अस्पतालों में ले गए थे, लेकिन समस्या का कोई निवारण नहीं हुआ।

शर्मा ने बताया, “हमने बहुत पैसा खर्च किया, यहां तक कि अपनी दो गायों और ज़मीन के एक छोटे से हिस्से को इलाज के लिए बेच दिया। अब, मैं होम्योपैथिक दवाएं ले रहा हूं। मरने से पहले मेरी अंतिम इच्छा अपने बेटे की शादी धूमधाम से करना था, लेकिन अब ऐसा करना असंभव लग रहा है।"

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की दूषित होने की समस्या को खराब स्वास्थ्य सेवा ढांचा ओर अधिक बढ़ा रहा है।

कोन क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में केवल दो डॉक्टर हैं। फिलहाल, उनमें से एक प्रसूति अवकाश पर है जबकि दूसरे सप्ताह में केवल दो बार आते है। उपचार का लाभ उठाने के लिए, लोग पहले झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं। जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो वे जिला अस्पताल में पहुँच जाते हैं। न्यूज़क्लिक को ज़िले के विभिन्न गाँवों के कम से कम एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों से बात करने के बाद यह जानकारी मिली है।

उनके स्वास्थ्य के मुद्दों से जुड़ा एक अन्य प्रमुख कारण औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कचरा भी है जो सोन और करुणा नदियों के पानी में बह कर आता है। इन जल निकायों को क्षेत्र की जीवन रेखा माना जाता है।

न्यूज़क्लिक ने करुणा नदी का दौरा किया जो ओबरा पावर प्लांट के दक्षिण-पश्चिमी छोर की ओर बहती है और दो ऐसे प्रमुख पाइप मिले जो अपशिष्ट जल यानि गंदे पानी और राख को नदी में बहाने का कम रहे थे। इस रिपोर्टर ने बिजली संयंत्र से संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्हौने उनसे बात करने की ज़हमत नहीं उठाई। हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी राधेश्याम ने स्वीकार किया कि ओबरा पावर प्लांट लगातार उल्लंघन करता है और उनके अनुसार प्लांट पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

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करुना नदी में ओबरा पॉवरप्लांट से राख के साथ दूषित पानी बहाया जा रहा है

नदी में दूषित पानी के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और कि वे निश्चित रूप से एक टीम भेजकर इसका निरीक्षण करेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।

अफ़सर ने कहा, “हमारे विभाग ने अतीत में उन पर जुर्माना लगाया है। पिछली बार जब हमने संयंत्र का निरीक्षण किया था तो हमें कोई उल्लंघन नहीं मिला। अगर ऐसा हो रहा है, तो मैं इस हफ़्ते अपनी टीम भेज उनके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करने के लिए कहूंगा।"

विश्वकर्मा ने कहा कि एनजीटी और राज्य सरकार के पर्याप्त कार्रवाई का आदेश देने के बावजूद, एकमात्र कदम गाँव से पूरी तरह पलायन ही रास्ता है।

विश्वकर्मा ने कहा, “पानी का कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं है। जल निगम ने कई स्थानों पर हैंड पंपों में एक फिल्टर लगाया है, लेकिन वे कितने प्रभावी हैं, इसका अंदाजा फ्लोराइड के शिकार लोगों की संख्या से लगाया जा सकता है। जिस योजना के तहत सरकार दरवाजे पर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का वादा करती है वह अभी शुरू भी नहीं हुई है। पानी के टैंकर गांवों में तभी भेजे जाते हैं, जब संबंधित लोग पानी भेजने की जरूरत महसूस करते हैं।"

नवंबर 2019 में, एक समिति को सोनभद्र में पानी का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। न्यूज़क्लिक ने उस रिपोर्ट को हासिल किया है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि पानी में फ्लोराइड संदूषण जायज सीमा से दस गुना है और यह लोगों में विकृति पैदा करता है और विकलांग बच्चों के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है, यह लोगों में दांत और हड्डियों के कमजोर होने के मुख्य कारणों में से एक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पीने के पानी में फ्लोराइड की जायज सीमा 1.5 पीपीएम (प्रति मिलियन) से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन सोनभद्र के मामले में पीपीएम का स्तर 12 पीपीएम से 13 पीपीएम के बीच पाया गया है।

एस.के. उपाध्याय, मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि उनके ज़िले के दो ब्लॉक का पानी फ़्लोराइड के कारण दूषित है।

उन्होंने कहा, “म्योरपुर और चोपन ब्लॉकों में फ्लोराइड एक बड़ी समस्या है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग हर प्रभावित गांव में चिकित्सा शिविर आयोजित करके इसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। समस्या को समाप्त करने के लिए सबसे अच्छा और एकमात्र उपाय दूषित पानी न पीना है।"

प्रभावित गांवों में फ़्लोराइड ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए ज़िम्मेदार जल निगम के अधिकारी टिप्पणी के लिए अनुपलब्ध थे।

वाटर एड सोसाइटी के एक पदाधिकारी फर्रुखा ख़ान ने कहा कि फ़्लोराइड से संबंधित बीमारियों को समाप्त करने के लिए जागरूकता और पोषण भी महत्वपूर्ण कारक हैं।

उन्होंने कहा, “इसमें केवल फ़्लोराइड हटाने वाले प्लांट ही मददगार नहीं हैं। पोषण के साथ-साथ जागरुकता को भी महत्व दिया जाना चाहिए। जागरुकता की कमी वास्तविक समस्या से अधिक खतरनाक है।"

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Experts Ask Sonbhadra’s Residents to Avoid Drinking Water Due to Fluoride Contamination

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