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जानिये नर्सिंग और मिडवाइफ़ से जुड़े नए प्रस्तावित क़ानून का क्या है विवाद?

पूरे देश की नर्सें और मिडवाइफ़(दाई/प्रसाविका) केंद्र द्वारा नर्सिंग शिक्षा और क़ानूनों में प्रस्तावित बदलावों का विरोध कर रही हैं।
नर्सिंग

राष्ट्रीय नर्सिंग एवं मिडवाइफ़री कमीशन बिल, 2020 क्या है?

5 नवंबर को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने आम जनता को सूचित किया कि वह मौजूदा 'इंडियन नर्सिंग काउंसिल एक्ट, 1947' को खत्म करने पर विचार कर रही है। साथ में कहा गया कि 'नेशनल नर्सिंग एवम् मिडवाइफ़री कमीशन' बनाने के लिए नया कानून लाने की योजना बनाई जा रही है। मंत्रालय ने विधेयक का एक मसौदा तय भी कर लिया है और 6 दिसंबर तक उस पर सलाह व टिप्पणियां आमंत्रित करने का ऐलान किया है।

मंत्रालय के मुताबिक़, प्रस्तावित विधेयक का मक़़सद, नर्सिंग और प्रसूति पेशेवरों की शिक्षा और उनके द्वारा दी जाने वाली सेवा के स्तर का नियंत्रण और प्रबंधन, संस्थानों का आंकलन, केंद्रीय और राज्य रजिस्टरों का प्रबंधन और एक ऐसे तंत्र का निर्माण है, जो स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, शोध और विकास को बढ़ावा दे। साथ ही ताजा वैज्ञानिक घटनाक्रमों को अपने भीतर ढाल सके।

फिलहाल जो कानून लागू है, उसके ज़रिए इंडियन नर्सिंग काउंसिल (INC) नाम की एक स्वायत्त नियामक संस्था का गठन हुआ है। यह संस्था नर्सिंग अर्हता के पैमाने तय करती है और नर्सिंग शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देती है।

क्यों स्वास्थ्यकर्मी इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं?

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वास्थ्य कर्मियों का कहना है कि इस विधेयक के ज़रिए ज़मीन पर काम करने वाले कर्मचारियों की कोई मदद नहीं की जा रही है, बल्कि इससे पुराने कानून के प्रावधानों को कमज़ोर किया जा रहा है, ताकि केंद्र का ज़्यादा नियंत्रण किया जा सके। "ऑल इंडिया गवर्मेंट नर्सेज़ फेडरेशन (AIGNF)" के मुताबिक़, जब स्वास्थ्य मंत्रालय कानून का मसौदा तैयार कर रहा था, तब उसने देश के नर्सिंग क्षेत्र के पेशेवरों के ज़्यादातर हिस्से के मत पर ध्यान ही नहीं दिया।

11 नवंबर को AIGNF के महासचिव जी के खुराना द्वारा राष्ट्रपति को लिेखे एक ख़त में बताया गया है कि भारत में 95 फ़ीसदी नर्सेज़ या तो अस्पतालों या फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करती हैं, केवल 5 फ़ीसदी नर्स ही शैक्षणिक शाखा से जु़ड़ी हैं। लेकिन इन 95 फ़ीसदी नर्सिंग पेशेवरों के मत को विधेयक का मसौदा तैयार करते वक़्त ध्यान में नहीं लिया गया। AIGNF के मुताबिक़, नर्सिंग शिक्षा के तंत्र में प्रस्तावित इस बड़े बदलाव के बारे में AIGNF से सलाह भी नहीं ली गई, जबकि यह संगठन सरकारी अस्पतालों, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की नर्सों और नर्सिंग कॉलेज के शिक्षकों का एकमात्र प्रतिनिधि संगठन है।

नए आयोग के सदस्य कौन होंगे?

इस प्रस्तावित विधेयक के बारे में एक बड़ी चिंता इसके द्वारा इंडियन नर्सिंग काउंसिल का खात्मा है। INC स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है। इसकी जगह राष्ट्रीय नर्सिंग एवम् मिडवाइफ़री कमीशन (NNMC) को लाने का प्रस्ताव है। इसमें सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली खोज और चयन समिति के सुझावों के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा उनकी नियुक्ति होगी। खोज समिति के दूसरे सदस्यों में चार विेशेषज्ञ ऐसे होंगे, जिन्हें नर्सिंग और प्रसूति शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य नर्सिंग शिक्षा और नर्सिंग स्वास्थ्य शोध में 25 साल से ज़्यादा का अनुभव होगा। एक विशेषज्ञ ऐसा होगा जिसके पास प्रबंधन या कानून या अर्थशास्त्र या विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में 25 साल से ज़्यादा का अनुभव होगा। पांचों विशेषज्ञों की नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी। स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव भी इसके सदस्य बनेंगे।

यह खोज समिति फिर NMMC के 40 सदस्यों को नामित करेगी, जिसमें नर्सिंग संस्थानों और अस्पतालों के प्रतिनिधि और नर्सिंग व प्रसूति पेशे के ख्यात सदस्य होंगे।

अलोचकों का कहना है कि चुनावों को हटाकर और सदस्यों को नामित करने की शक्ति अपने पास लाकर, प्रस्तावित नए कानून ने केंद्र सरकार को बहुत ज़्यादा ताकत दे दी है। अब राज्यों के मतों को कोई जगह नहीं दी जाएगी।

प्रस्तावित NNMC के उद्देश्य भी नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की तरह ही हैं। नेशनल मेडिकल कमीशन की स्थापना सितंबर, 2020 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को हटाकर की गई थी। पूरे देश में इस कदम का डॉक्टरों ने खूब विरोध किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। प्रस्तावित NNMC की तरह ही NMC में भी 25 सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार एक समिति के सुझावों पर करेगी।

नर्स क्यों विरोध प्रदर्शन की बात कर रही हैं?

मौजूदा महामारी ने स्वास्थ्यकर्मियों पर बहुत दबाव डाला है, खासकर सरकारी अस्पतालों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में काम करने वाली नर्सों पर, जहां पहले से ही बेहद कम संख्या में स्टॉफ की नियुक्ति है।  पूरे देश में नर्सें, नियंत्रित सेवा शर्तों और मरीज़ सेवाओं की मांग कर रही हैं। उनकी यह भी मांग है कि मरीज़ों से नर्सों का अनुपात निश्चित किया जाए और काम करने की स्थितियां सुधारी जाएं। लेकिन अब प्रस्तावित नए विधेयक ने उन्हें और ज़्यादा नाराज़ कर दिया है।

AIGNF के मुताबिक़ मौजूदा सरकार द्वारा हाल के वक़्त में उठाए गए सभी कदमों ने नर्सिंग पेशवरों की ज़िंदगी मुश्किल कर की है। AIGNF ने बताया कि कई सालों से वे लोग सरकार से नर्सों की समस्याओं का समाधान करने के लिए एक केंद्रीय तंत्र बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनके काम को आसान करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। AIGNF ने नए विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले केंद्र सरकार से अपील की है कि वो सभी दावेदारों और हितग्राहियों से ठीक ढंग से सलाह ले। संगठन ने एक 29 बिंदुओं वाला चार्टर भी निकाला है।

संघ ने कहा है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे एक महीने के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर एक विरोध प्रदर्शन शुरू करेंगे। उस स्थिति में अगर अस्पतालों में मरीज़ों को पर्याप्त सेवा और सुविधाएं नहीं मिल पाईं, तो इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार होगी।

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 को नर्स और मि़डवाइफ का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। ऐसा फ्लोरेंस नाइटेंगल की 200वें जन्मवर्ष के उपलक्ष्य में किया गया है। साथ में यह बताने की कोशिश भी है कि स्वास्थ्य सेवा को बदलने में नर्सों ने कितनी अहम भूमिका निभाई है। AIGNF का कहना है कि ठीक इसी साल सरकार नर्सों के प्रति बेपरवाही दिखा रही है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Explained: Why a New Law for Nursing and Midwifery Is Creating a Stir

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