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FRA: 16 लाख से ज्यादा आदिवासी परिवारों पर वन भूमि से बेदखली का खतरा, 10 को SC में फाइनल सुनवाई

16 लाख से अधिक आदिवासी और जंगल में रहने वाले परिवारों पर एक बार फिर से बेदखली का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि वन भूमि पर उनके दावों को राज्य सरकारों द्वारा खारिज कर दिया गया है। इन सभी लोगों का भविष्य अब 10 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय में होने वाली फाइनल सुनवाई पर अटका है। सुप्रीम कोर्ट वनाधिकार कानून (FRA) 2006 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले मामले में कल फाइनल सुनवाई करेगा।
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वनाधिकार कानून (FRA) आदिवासी और वन-निवासी समुदायों के व्यक्तिगत अधिकारों, सामुदायिक अधिकारों और अन्य वन अधिकारों को मान्यता देता है, जिनका 13 दिसंबर 2005 को या उससे पहले वन भूमि का कब्जा था। इस मामले में, 13 फरवरी, 2019 को, शीर्ष अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया था कि जिनका दावा खारिज हो गया है उन्हें वह बेदखल कर सकता हैं। खास है कि उस समय तक लाखों की बड़ी संख्या में वन-भूमि अधिकारों के दावे दायर होने बाकी थे। इसके साथ ही अदालत ने राज्यों को अस्वीकृत किए दावों की समीक्षा करने और 4 महीने के भीतर रिपोर्ट या हलफनामे प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था। 

हालांकि जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) जो कानून को लागू करने के लिए नोडल मंत्रालय भी है, के हस्तक्षेप के बाद बेदखली के आदेश पर 28 फरवरी को रोक लगा दी गई थी। इसने राज्य सरकारों द्वारा खारिज किए गए दावों में कमियों को  उजागर करते हुए, आदेश का विरोध किया था।

नवीनतम MoTA डेटा के अनुसार, जून 2022 तक, दायर किए गए 42.76 लाख व्यक्तिगत दावों में से लगभग 38% यानी 16.33 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था। इसी तरह, दायर किए गए 1.69 लाख सामुदायिक दावों में से 40,422 दावों को खारिज कर दिया गया था। वहीं, 2019 के बेदखली आदेश और जून 2022 के बीच के तीन वर्षों में, राज्यों में व्यक्तिगत दावों की संख्या में 1.92 लाख और सामुदायिक अधिकारों में 20,752 की वृद्धि हुई थी। विभिन्न स्तरों पर अस्वीकृत आदेशों की समीक्षा के वनवासियों के पक्ष में काम करने की उम्मीद थी। हालांकि, आधिकारिक आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। 2019 बेदखली का आदेश लगभग 17.1 लाख व्यक्तिगत परिवारों को विस्थापित करने वाला था। अगर सुप्रीम कोर्ट अपने पिछले आदेश को बरकरार रखता है तो 16.3 लाख से अधिक परिवारों पर अभी भी बेदखली की तलवार लटकी हुई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय परिवार का औसत आकार 4.8 है। इसका मतलब है कि करीब 78 लाख व्यक्तियों को उनकी (स्थानीय) भूमि से बेदखल कर दिया जाएगा। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र द्वारा जबरन बेदखली का यह एक अभूतपूर्व आंकड़ा होगा। हालांकि उस समय की गई समीक्षा प्रक्रिया के बाद, खारिज किए गए व्यक्तिगत दावों की संख्या में मामूली कमी आई हैं। यह घटकर 17.10 लाख से 16.33 लाख और सामुदायिक दावों की संख्या 45,045 से 40,422 हो गई हैं। 

पिछली बार जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले में बेदखली का आदेश दिया था, तो जनजातीय संगठनों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसने केंद्र सरकार को अदालत से आदेश को वापस लेने का आग्रह किया। दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ह्यूमन इकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर बुधादित्य दास ने द वायर साइंस को बताया कि एफआरए का उद्देश्य "वन भूमि के स्वामित्व के संघर्ष में स्थानीय वन अधिकारियों द्वारा वनवासियों के होने वाले रोजमर्रा के उत्पीड़न को समाप्त करना है।"  .

“वास्तविक आवेदकों के लिए जिनके दावे खारिज कर दिए गए हैं, इस तरह का उत्पीड़न फिर से सामान्य हो जाएगा। जहां कहीं भी वन भूमि पर विकास और संरक्षण परियोजनाओं का प्रस्ताव या योजना बनाई जाती है, उन्हें उनकी सहमति या सार्थक पुनर्वास के बिना जबरन बेदखल किया जा सकता है, ”दास ने कहा।  "यह एफआरए की धारा 4(5) का उल्लंघन होगा।" 

अधिनियम की धारा 4(5) के अनुसार:

"अन्यथा प्रावधान के अलावा, किसी भी वन निवासी अनुसूचित जनजाति या अन्य पारंपरिक वन निवासी को मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने तक उसके कब्जे वाली वन भूमि से बेदखल या हटाया नहीं जाएगा।"

तीन स्तरों पर अस्वीकृति

दावों की प्रक्रिया जांच के तीन स्तरों से गुजरती है। पहले: वन भूमि अधिकारों का दावा करने वाले व्यक्तियों और समुदायों को अपने संबंधित गांवों की ग्राम सभाओं में आवेदन दाखिल करना होता है।

पहले स्तर पर, वन अधिकार समिति ग्राम सभा सदस्यों और ग्रामीणों से मिलकर आवेदनों की जांच करती हैं और आगे की जांच के लिए उप-मंडल (तहसील) स्तर की समिति (एसडीएलसी) अगले स्तर पर वैध दावों की सिफारिश करती हैं। एसडीएलसी का नेतृत्व एक उप-मंडल अधिकारी करता है और सदस्यों के रूप में वन और पंचायत अधिकारी शामिल होते है। यह जिला स्तरीय समिति (डीएलसी) के अंतिम स्तर पर विचार के लिए दावों की सिफारिश करता है। डीएलसी का नेतृत्व जिला कलेक्टर करता है, जिसके सदस्यों में से एक के रूप में संभागीय वन अधिकारी या उप वन संरक्षक होता है। यदि डीएलसी एक दावे को मंजूरी देता है, तो सरकार भूमि का मालिकाना हक देती है। यदि कोई दावा खारिज कर दिया जाता है, तो दावेदार ग्राम सभा में अपील कर सकते हैं।

वन अधिकारों पर ओडिशा के एक स्वतंत्र शोधकर्ता तुषार दास ने कहा, "इतनी बड़ी संख्या में अस्वीकृति का मुख्य कारण एसडीएलसी और डीएलसी में वन अधिकारियों द्वारा किए गए कानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन को गलत या अवैध अस्वीकृति का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।" विशेष रूप से, डीएलसी और एसडीएलसी द्वारा खारिज किए गए दावों को पुन: सत्यापन के लिए ग्राम सभाओं को वापस कर दिया जाता है। एफआरए में समितियों को अस्वीकृति के कारणों को निर्दिष्ट करने की भी आवश्यकता होती है। लेकिन अक्सर, "दावेदारों और ग्राम सभाओं को अस्वीकृति के कारणों के बारे में सूचित नहीं किया जाता है, और दावेदारों को अपील करने से वंचित किया जाता है," दास ने कहा।

MoTA के आंकड़ों के अनुसार, जून 2022 तक कम से कम 10 लाख व्यक्तिगत दावों को खारिज कर दिया गया था या SDLC और DLC स्तरों पर लंबित थे। सुप्रीम कोर्ट की एक वरिष्ठ वकील शोमोना खन्ना ने कहा, "अगर कोई धोखाधड़ी के आवेदन होते हैं, तो उन्हें ग्राम सभा स्तर पर ही खारिज कर दिया जाता है, क्योंकि ग्राम समुदायों को पता होता है कि किसके पास कितना और किस हिस्से का मालिकाना कब्जा है।" इसलिए उनके अनुसार, एसडीएलसी और डीएलसी स्तरों पर लाखों अस्वीकृतियों से संकेत मिलता है कि या तो कई राज्यों में समीक्षा प्रक्रिया नहीं की गई थी या यह प्रक्रिया वन विभागों के पक्ष में समझौता की गई थी।

इसके अलावा, जबकि सभी राज्य सरकारों को एफआरए कार्यान्वयन की स्थिति और चार महीनों में खारिज किए गए दावों की समीक्षा पर हलफनामा दाखिल करना था, केवल कुछ ही इसके बारे में सामने आए हैं। 27 फरवरी, 2019 से 30 अगस्त, 2022 तक मामले की अंतिम सुनवाई के दिन तक, केवल नौ राज्य (झारखंड, गोवा, नागालैंड, गुजरात, मणिपुर, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) और दो केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी और अंडमान और निकोबार) ने ही अपना हलफनामा दाखिल किया था।

मध्य प्रदेश में क्या हुआ?

फरवरी 2019 के अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से यह भी ब्योरा देने को कहा था कि क्या "आदिवासियों को सबूत पेश करने का अवसर दिया गया था" जब उनके दावे खारिज कर दिए गए थे। लगभग पांच महीने बाद, 8 जुलाई, 2019 को, मध्य प्रदेश आदिवासी कल्याण विभाग ने एक परिपत्र जारी कर डीएलसी को अस्वीकृत दावों की समीक्षा के लिए एक प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया। (मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बाद तीसरे सबसे अधिक दावे प्राप्त हुए।)

एफआरए प्रक्रिया को लागू करने के लिए राज्य डिजिटल हो गया। मई 2019 में, विभाग ने 'वनमित्र' नामक एक वेब पोर्टल विकसित करने के लिए महाराष्ट्र नॉलेज कॉरपोरेशन, लिमिटेड, महाराष्ट्र सरकार की एक इकाई, के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसके साथ समीक्षा प्रक्रिया का संचालन किया जा सके। पोर्टल को उसी साल 2 अक्टूबर को लॉन्च किया गया था।

इस पोर्टल पर जिन आवेदकों के दावे खारिज कर दिए गए हैं, वे अपने दावे अपलोड कर सकते हैं। सरकार ने वन अधिकार समितियों (FRCs) का गठन किया और ग्राम पंचायतों के साथ पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग में सहायकों को दावा दायर करने में आवेदकों की सहायता करने का निर्देश दिया। एफआरसी, एसडीएलसी और डीएलसी को बाद में 'वनमित्र' पोर्टल पर ही आवेदनों की समीक्षा करने का काम सौंपा गया था।  (मध्य प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने समीक्षा प्रक्रिया को डिजिटल रूप से संचालित किया।)

वन अधिकारों पर कानूनी शोधकर्ता शिवांक झांजी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर किया और कुछ जानकारी प्राप्त की। जिसके अनुसार, समीक्षा प्रक्रिया शुरू होने से पहले, राज्य में लगभग 3.49 लाख व्यक्तिगत दावों को खारिज कर दिया गया था। उनमें से, लेखक द्वारा प्राप्त आरटीआई डेटा के अनुसार, लगभग 2.69 लाख आदिवासी व्यक्तियों और वनवासियों ने 'वनमित्र' पर अपने दावों की समीक्षा के लिए फिर से आवेदन किया। और उनमें से, कम से कम 2.36 लाख दावे यानी 87% एक बार फिर खारिज कर दिए गए या लंबित रखे गए। लगभग 80,000 दावेदार जिनके दावे पहले खारिज कर दिए गए थे, उन्होंने समीक्षा के लिए आवेदन नहीं किया।

अक्टूबर 2019 से जून 2021 के बीच 'वनमित्र' पर 4.19 लाख दावे अपलोड किए गए। उनमें से, एफआरसी ने 2.69 लाख को पहले खारिज किए दावों के रूप में और शेष को उस समय नए या असत्यापित दावों के रूप में पहचाना। इसके बाद, एफआरसी ने 59,460 दावों को मंजूरी दी, एसडीएलसी ने 39,137 को मंजूरी दी और डीएलसी ने 32,935 को मंजूरी दी। जून 2022 तक, राज्य में 5.85 लाख व्यक्तिगत दावे दायर किए गए थे और आधे से अधिक यानी 3.10 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था।

यह खारिज किए गए दावों की समीक्षा करने के बाद था। जबकि कई राज्यों ने अभी तक अस्वीकृत दावों की समीक्षा की स्थिति पर हलफनामा भी प्रस्तुत नहीं किया है। वहीं, मध्य प्रदेश सरकार ने अधिकांश दावे अस्वीकृति के कारणों के बारे में सूचित नहीं किया और समीक्षा प्रक्रिया में अपनाई गई प्रक्रिया की बाबत भी सवाल अनुत्तरित हैं।

साभार : सबरंग 

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