भूख के विरुद्ध भात, रात के विरुद्ध प्रात के लिए है किसान आंदोलन

ऑल इंडिया किसान सभा ( अजय भवन) की ओर से पटना के 'जनशक्ति परिसर' में वृहत किसान संसद का आयोजन किया गया। बिहार के अधिकांश हिस्से के किसानों ने उस संसद में भाग लिया और तीनों कृषि कानूनों तथा बिजली विधेयक को निरस्त करने की समवेत स्वर में मांग की। किसान संसद में प्रख्यात पत्रकार पी. साईनाथ, अतुल अंजान जैसे किसान नेताओं के अलावा बुद्धिजीवियों, कृषि विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया किसानों अलावा पटना शहर के छात्र, नौजवान, साहित्यकार, रँगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता भी पहुंचे।
आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए बिहार राज्य किसान सभा के महासचिव अशोक कुमार सिंह ने कहा "दिल्ली का बॉर्डर आज देश का बार्डर बन चुका है। "
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व अर्थशास्त्री प्रो. नवल किशोर चौधरी सर्वसम्मति से किसान संसद का स्पीकर बनाया गया।
ग्रामीण से शहरी भारत मे धन ट्रांसफर किया जा रहा- प्रो.नवल किशोर चौधरी
प्रो नवल किशोर चौधरी ने शुरुआती संबोधन में कहा " इस संसद में जो आवाज उठेगी वह सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश भर के किसानों को सुनाई देगी। हमने इस देश में दो दुनिया बनाई है । कृषि आधारित ग्रामीण दुनिया और उद्योग आधारित शहरी दुनिया। ग्रामीण दुनिया से शहरी दुनिया में धन ट्रांसफर किया जा रहा है यानि कृषि क्षेत्र की लूट हो रही है। 2011 जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी का 89 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में है। ये कौन सा मॉडल है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र की आमदनी कम हो रही है, आत्महत्याएं हो रही है और व्यापक बदहाली है। 1991 से जो आर्थिक-राजनीतिक दर्शन के आधार पर जो नीतियां अपनाई गई उसने एक सिविल वार जैसे हालात बना डाले हैं। डेढ़ महीने से इस ठंड में किसान खड़े हैं, वह एक नई उम्मीद पैदा कर रहे हैं"
दरिद्रनारायण नहीं, नगद नारायण की है मोदी सरकार है - अतुल अंजान
अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल अंजान ने किसान संसद का उदघाटन करते हुए कहा " राक्षसी बहुमत के आधार पर, संसद की अवमानना करते हुए, रात के अंधेरे में कृषि कानूनों को पास कराया गया। सरकारी पक्ष द्वारा पेश की जा रही दलीलों में कोई दम नहीं है। सरकार ग्रामीण समाज को बांटकर एक नई व्यवस्था कायम करने का प्रयास कर रही है। राज्यों को जो अधिकार दिए गए हैं उसके लिए काफी संघर्ष किया गया है। जो सम्पूर्ण रूप से राज्यों का विषय है उस बारे में कोई चर्चा उनसे नहीं की गई है। पैमाईश, भूमिधर का विषय, दाखिल-खारिज आदि राज्यों का मामला है। सरकारी पक्ष जो बेलगाम हो गया है उसकी गर्दन पर लगाम लगाने का अब समय आ गया है। " अतुल अंजान ने आगे बताया " यह वर्तमान संविधान के लिए खतरा पैदा कर रही है। जबकि भारत की संविधान सभा आजादी की आंच से पैदा लोगों ने बनाया था। जो लोग संविधान में यकीन नहीं करते उनसे संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह टक्कर होगी। मार्मिकता के बगैर धार्मिकता का कोई मतलब नहीं है। यह सरकार लोगों का दामन छीनने वाली पूंजीपतियों के अरमानों को पूरा करने वाली सरकार है। भूख के विरुद्ध भात, रात के विरुद्ध प्रात की लड़ाई है। जिसने नए प्रकाश का जुनून पैदा किया है। वर्तमान सरकार आवारा और बदचलन हो गई है कि किसान नेताओं के खिलाफ एन. आई.ए के तहत मुकदमा कर रही है। वह ऐसा इसलिए कर रही है कि यह दरिद्रनारायण नहीं, नगद नारायण की सरकार है।"
अंत में अतुल अंजान ने नारा लगाया
'धन और धरती बंट के रहेगी, रात अंधेरी कट के रहेगी'
तीनों कृषि कानून असंवैधानिक हैं-पी.साईनाथ
सुप्रसिद्ध पत्रकार पी. साईनाथ ने विशाल किसान संसद में कृषि कानूनों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा " पिछले एक महीने से लगातार घूम रहा हूँ। अभी जो संघर्ष चल रहा है उसका महत्व जितना मीडिया दिखा रहा है उससे बहुत ज्यादा है। किसानों का यह संघर्ष मेरे जीवन का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण व लोकतांत्रिक संघर्ष है। आज किसान वर्ग कॉरपोरेट पावर को सीधे चुनौती दे रहा है। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। हिंदुस्तान में कौन सा खेती चाहिए सामुदायिक खेती या कॉरपोरेट खेती ? "
पी साईनाथ ने बताया " पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम भी इस कानून पर निर्भर है। जब कोरोना से देश की हालत खराब थी तभी संसद के एक ही सत्र में मजदूरों के खिलाफ भी कानून लाया गया। लेकिन कानून अभी ही क्यों लाया ? सरकारी मीडिया और उसके इंटेलेक्चुअलों ने सरकार को बताया कि जो रिफॉर्म करना है अभी करो फिर इतना बढिया मौका नहीं मिलेगा। इन लोगों ने मोदी जी को समझाया कि यह 1991 मोमेंट है आपके लिए। उत्तरप्रदेश में 38 लेबर लॉ को सस्पेंड किया गया। उसमें सबसे बेहतर था यानि 8 घण्टा काम करने वाला कानून। उसे भी समाप्त कर दिया गया। इस कानून को 'गोल्ड स्टैंडर्ड ऑफ लेबर लॉ' कहा जाता है। केंद्र सरकार ने 29 कानूनों को 4 लेबर कोड में तब्दील कर दिया है। कानून का टाइमिंग भी याद रखना चाहिए। न मज़दूर, न किसान और न ही संसद से बल्कि कैबिनेट से भी कंसल्ट नहीं किया गया। बगैर कंसल्टेशन के कैसे कानून लाई सरकार? कृषि, संविधान के अनुसार राज्य लिस्ट में है। लेकिन केंद्र सरकार ने एक भी राज्य सरकार से बात नहीं किया। अब तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जैसे लोगा गौड़ा और लोढ़ा जैसे लोगों ने इसे कानून को असंवैधानिक बताया।"
ए. पी.एम.सी और कॉन्ट्रेक्ट सहित खेती संबंधी पेचीदे कानूनों उदाहरण देते हुए पी.साईनाथ ने बताया " आप कोर्ट नहीं जा सकते यदि कोई विवाद हुआ तो। किसी भी हालत में कानूनी केस नहीं कर सकते। न केंद्र, न राज्य सरकार और न किसी और व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकते। किसी और व्यक्ति से उनका मतलब "अंबानी-अड़ानी" से है। इन कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण है राइट टू लीगल रिमेडी, उसे कमजोर कर दिया गया है। जो लोग अपराध करते हैं, जो लोग मर्डरर और क्रिमिनल्स हैं उन्हें लोकहित में काम करने वाला बताया जा रहा है, उन्हें पब्लिक सर्वेंट बताया जा रहा है।"
पी.साईनाथ ने मीडिया की भूमिका के बारे में बताते हुए कहा "हिंदुस्तान में सबसे बड़ा पूंजीपति मुकेश अंबानी है, देश का सबसे बड़ा मीडिया चैनल मुकेश अंबानी के हाथों में है। 24 चैनल मुकेश अंबानी के हाथों में हैं मुकेश अंबानी को कानूनों ने सबसे ज्यादा पहुंचने वाला है तो वो कृषि कानूनों के बारे में कैसे सच बता सकता है ? अभी सुप्रीम कोर्ट की कमिटी से मान ने कमिटी छोड़ दिया क्योंकि उनके अपने ही संग़ठन बी.के यू (मान)ने उन्हें निकाल दिया लेकिन किसी भी मुख्यधारा की मीडिया ने यह नहीं दिखाया। "
खरीद की गारंटी के बगैर एम.एस. पी का कोई मतलब नहीं
बिहार में ए.पी.एम.सी के बारे में बताते हुए कहा" ए.पी.एम.सी कोई स्वर्ग न था। सभी किसान संगठन ए.पी.एम.सी में रिफॉर्म की मांग कर रहे थे । लेकिन कॉरपोरेट जो रिफॉर्म की मांग करता है और किसान जो मांग करता है उसमें बहुत फर्क है। जब तक खरीद का गारंटी नहीं होगा तब तक एम. एस. पी की गारंटी का कोई मतलब नहीं है। जब कपास के किसानों की आत्महत्या होती है तो सरकार एम. एस. पी की तो गारंटी कर देती है कुछ दिनों के लिए एम.एस. पी बढ़ा भी देती है लेकिन खरीद बन्द कर देता है जिससे किसान प्राइवेट हाथों में बेचने पर मजबूर हो जाता है।"
ए. पी.एम.सी कृषि क्षेत्र का सरकारी स्कूल है
पी साईनाथ ने ए. पी.एम.सी की तुलना सरकारी स्कूलों से की " ए.पी.एम.सी कृषि क्षेत्र का सरकारी स्कूल है। सरकारी स्कूल शिक्षा क्षेत्र का ए.पी.एम.सी और जिला हॉस्पीटल है उसी स्वास्थय क्षेत्र का ए.पी.एम.सी है। वो लोग कहते हैं कि मध्यप्रदेश में स्वामीनाथन से बेहतर कानून है लेकिन देखिये क्या हुआ ? मंदसौर में छह किसानों की गोली मार कर हत्या कर दी गई। भाजपा में नितिन गडकरी ने ईमानदारी से कह डाला कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बहुत ज्यादा है। आज 95 वर्षीय स्वामीनाथन पर दबाव डाल रहे हैं कि वो कृषि कानूनों के पक्ष में बयान दे दें।
जस्टिस लोढ़ा ने क्रिकेट के ऊपर रिपोर्ट बनाया सुप्रीम कोर्ट के लिए लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने बनाये कमिटी जी रिपोर्ट को कूड़े में फेंक दिया। बीटी कॉटन और जीम फूड्स के लिए सुप्रीम कोर्ट ने देश के टॉप साइंटिस्ट को लेकर कमिटी बनाया। इस कमिटी ने जीएम रिसर्च पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया। कृषि में कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी के किसानों से बात कर स्वामीनाथन आयोग बना लेकिन क्या हुआ उन रिपोर्टों का ? सुप्रीम कोर्ट तो अपने ही बनाई कमिटियों का सम्मान नहीं करती। " अंत में साईनाथ ने उपस्थित किसानों से आह्वान किया " आपको हर जिला में किसान बचाओ, देश बचाओ कमिटी बनाना चाहिए। जी.इस. टी पर स्पेशल पर सेशन किया गया क्योंकि वह पूंजीपतियों के फायदे के लिए था जबकि स्वामीनाथन कमीशन का रिपोर्ट 15 सालों से है उसे अब तक लागू नहीं किया गया है। किसानों के मसले पर भी एक घण्टे तक बात क्यों नहीं हुई ? संसद का एक सत्र होना चाहिए किसानों के मसले पर। हम कॉपोरेट के सामानों का बहिष्कार का भी निर्णय ले सकते हैं।"
हमें तय करना है :कंपनी राज या किसान राज - राजाराम सिंह
ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार संयोजक राजाराम सिंह ने किसान संसद को को संबोधित करते हुए कहा " सहजानन्द सरस्वती का बिहार, गुरु गोविंद सिंह के पंजाब के साथ खड़ा है। अभी किसानों की लड़ाई ठीक वैसे ही है जैसे 1857 की लड़ाई थी। उस वक्त हम दिल्ली हार गए थे तो बाकि जगहों पर भी हार गए थे। इस बार हमें वो लड़ाई नहीं हारना है। वर्तमान सरकार हमारे चोखा- भात को भी हमसे छीन लेना चाहती हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम पाकिस्तान से भी पीछे हैं । उस देश मे खाद्यान्न पदार्थो से अखाद्य पदार्थ बनाने का खतरनाक खेल किया जा रहा है। अभी देश मे हमे सोचना है कि कंपनी राज चाहिए कि किसान राज ? यह आंदोलन बहुत बड़ा काम कर रहा है। आज पंजाब व हरियाणा के किसान आपस मे मिल गए हैं। हरियाणा के किसान कह रहे हैं कि पंजाब के किसान हमारी खेती बचाने को आगे आये हैं। इस लिए हम आंदोलनकारी किसानों को जलावन के लिए लकड़ी और दूध आदि की कमी नहीं होने देंगे। इस लड़ाई में लाल झंडे, हरा झंडा और पीले झंडे के लोग एक साथ हैं। आज बॉर्डर का मतलब भारत-पाकिस्तान बॉर्डर नहीं अपितु दिल्ली बॉर्डर है। हमें बिहार में गांधी जी की शहादत के दिन यानि 30 जनवरी को मानव श्रृंखला खड़ा करना है।"
बिहार में 97 प्रतिशत सीमांत किसान हैं- डी एम दिवाकर
ए. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज , पटना के पूर्व निदेशक डी. एम दिवाकर ने जीसान संसद में कहा" बिहार में 16 लाख 39 हजार टन का लक्ष्य था जबकि खरीद अब तक मात्र 42 हजार टन ही हुई है। यदि कृषि उत्पादन बाजार समिति मजबूत होता तो बेहतर होता। पैक्स में भी सरकार से इतना पैसा नहीं मिलता की वो कुछ खरीद पाते। बिहार में खरीद ही बहुत कम होती है। अक्टूबर में फसल होती है जबकि खरीद दिसम्बर में शुरू होता है। इस कारण किसानों को धान 900 से 1200 के बीच बेचना पड़ता है जबकि समर्थन मूल्य 1868 रुपया है और बिहार के मुखिया दावा कर रहे हैं कि किसान खुशहाल है। बिहार में ब्लॉक -ब्लॉक पर धरना दिया जा रहा है, प्रदर्शन दिया जा रहा है लेकिन मीडिया उसे दिखा नहीं रही है और कहा जा रहा है कि बिहार के किसान आंदोलन ही नहीं कर रहा है। बिहार में 97 प्रतिशत किसान सीमांत किसान हैं। इस कानून को यदि हम ग्राम सभा से निरस्त करें तो उसे सुप्रीम कोर्ट भी कुछ नहीं कर पायेगा।"
ए. एन सिन्हा इंस्टीट्यूट के असिस्टेंट प्रोफेसर विद्यार्थी विकास ने कहा " कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में गुणवत्ता, ग्रेड आदि का कॉन्ट्रेक्ट होगा। सर्टिफिकेशन में भी प्राइवेट प्लेयर रहेंगे।"
अंबानी-अडानी भारत के नए जमींदार हैं- डॉ सत्यजीत सिंह
सीताराम आश्रम ट्रस्ट, बिहटा के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने कहा "स्वामी सहजानन्द सरस्वती के इस नारे से सीखने की जरूर है कि 'अन्न वस्त्र उपजायगा, वो राजा चलाएगा"। अपना देश तो ठीक से पूंजीवादी भी नहीं यहां तो मात्र दो परिवार के लोगों -अंबानी और अडानी- की जमींदारी चल रही है। यही लोग सब कुछ तय कर रहे है। इंग्लैंड-अमेरिका जैसे पूंजीपतियों देशों में पूंजीपतियों पर मोनोपोली कानून लागू है। उन पर अंकुश लगाया जाता है। कभी कभी उन पर फाइन भी लगाया जाता है।लेकिन यहां तो पूंजीवादी कानून भी लागू नहीं है । "
झारखंड से आये किसान नेता के.डी सिंह ने कहा " दिल्ली के समीप विभिन्न बोर्डरों पर 2 किमी से लेकर 15 किमी तक किसान बैठे हैं। लॉकडाउन ने साबित कर दिया कि देश किसान चलाता है। सब चीज बन्द होने के बावजूद दूध अनाज बन्द नहीं हुआ। किसान का कानून अंबानी-अडानी के इशारे पर एक आई.ए. एस लिखता है जबकि उसे किसानों के बेटे-बेटियों और उनके पोतों-पोतियों को लिखने का अधिकार है।"
कई किसान कार्यकर्ताओं ने संसद में अपनी बातें रखी। अखिल भारतीय कृषक मज़दूर संगठन के मणिकांत पाठक ने किसान आंदोलन को बिहार के गांव-गांव और मोहल्ला स्तर पर पहुंचाने पर बल दिया। सामाजिक कार्यकर्ता गालिब खान ने बिहार स्तर पर रोडमैप बनाने की बात की जबकि एन. ए. पी.एम के महेंद्र यादव ने मक्का किसानों का सवाल उठाया।
अंत में स्पीकर ने उपस्थित किसानों से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने, बिजली विधेयक को निरस्त करने संबंधी मांगों के प्रस्ताव को उपस्थित किसानों से हाथ उठाकर पास कराया गया।
सभा स्थल पर चर्चित किसान नेताओं - स्वामी सहजानन्द सरस्वती, भोगेन्द्र झा, लोकनाथ कुंवर, भोला मांझी, नक्षत्र मालाकार, राहुल सांकृत्यायन, तेज नारायण झा, सत्यनारायण सिंह, जलालुद्दीन अंसारी- की तस्वीरें लगाई गई थी।
इस मौके पर किसानों पर केंद्रित एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
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