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बिहार : अस्तित्व की लड़ाई क्यों लड़ रहा हाजीपुर का विश्व प्रसिद्ध चिनिया केला?

"केले का उचित मूल्य ना मिलने की वजह से भी कई किसान केले की खेती छोड़ रहे हैं। 10 साल पहले तक हाजीपुर से केले के ट्रक भरकर दूसरे राज्यों में भेजे जाते थे। शायद जीआई टैग मिलने से चिनिया केले का बाज़ार फिर से बन जाए।"
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वैशाली/भागलपुर : केला अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार बिहार में केले की खेती करीब 32 हज़ार हेक्टेयर में हो रही है और प्रतिवर्ष 13 लाख टन केले का उत्पादन हो रहा है। इसमें सबसे ज़्यादा वैशाली जिले में सर्वाधिक 3400 हेक्टेयर में खेती हो रही है। इस लिस्ट में हाजीपुर स्थित केले की 'चिनिया' किस्म देश में बहुत प्रसिद्ध है और निर्यात भी की जाती थीं। हाजीपुर का चिनिया केला बिहार के अलावा अन्य राज्यों के कुछ क्षेत्रों में भी निर्यात किया जाता है। वैशाली जिला स्थित 'जंदाहा' और 'देसरी प्रखंड' चिनिया केला का मुख्य केंद्र हैं। बदलते वक्त में 'चिनिया केला' की खेती का 'रकबा' दिनों-दिन घटता जा रहा है। बिहार में वैशाली, कटिहार, किशनगंज, भागलपुर और पूर्णिया जैसे जिलों में केला उगाया जाता है। यूं तो चिनिया केला साल भर उगाया जाता है लेकिन जून और जुलाई महीने में पकने वाले केले स्वादिष्ट और अच्छी किस्म के होते हैं।

चिनिया केले का रकबा क्यों कम हो रहा हैं?

वैशाली जिला के देसरी प्रखंड के केला किसान संघ से जुड़े रजनीश कुमार बताते हैं, "चिनिया केले का उत्पादन समय के साथ कम हो रहा है। केले की कुछ अन्य किस्में चिनिया केले की जगह ले रही हैं, इसमें पहले नंबर पर 'मालभोग' है, वैशाली क्षेत्र में इसका रकबा दिनों-दिन बढ़ रहा है। मालभोग के अलावा 'अलपान' और 'मुठिया केले' का उत्पादन भी बढ़ रहा है। चिनिया केले पर अस्तित्व का संकट आने की मुख्यतौर पर दो वजहें हैं-एक तो केले का साइज़ छोटा होना और दूसरा कीमत का न मिलना। समय-समय पर होने वाली प्राकृतिक आपदाएं तो मुख्य कारण हैं ही। केले से बनने वाले अन्य प्रोडक्ट की बात करें तो वैशाली के कुछ जगह पर आजीविका को छोड़कर कोई खास उपलब्धि नहीं है। केले से बनने वाले उत्पादों के संयत्र भी यहां नहीं हैं, न तो कोई व्यवस्था है और न ही केले से बने चिप्स एवं अन्य सामग्री के निर्माण हेतु कोई उद्योग। कई किसानों ने उचित समर्थन और वित्तीय दबाव की कमी के कारण अन्य फसलों या आजीविका के अन्य स्रोतों की ओर रुख किया है।"

वैशाली जिला के कंचनपुर गांव के वार्ड नंबर 11 के किसान मिथुन भगत बताते हैं, "अल्पान और मुठिया किस्म का केला चिनिया की तुलना में बड़ा होता है। इसकी उपज जल के अभाव में भी औसतन अच्छी होती है। जबकि चिनिया और मालभोग केले में सिंचाई ज़्यादा करनी पड़ती है। सिंचाई की कोई कारगर व्यवस्था नहीं होने से किसान निजी पंप सेट से सिंचाई करने को बाध्य होते हैं। अल्पान केले को तो कुछ समय के लिए बिना ख़राब हुए रखा जा सकता है जबकि चिनिया केले में पानामा रोग के कारण किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए वैशाली के किसान अल्पान और मुठिया किस्म के केले की उपज ज़्यादा कर रहे हैं।"

केले के विशेषज्ञ अनिल कुमार के मुताबिक केले के उचित मूल्य ना मिलने की वजह से भी कई किसान केले की खेती छोड़ रहे हैं। 10 साल पहले तक हाजीपुर से केले के ट्रक भरकर दूसरे राज्यों में भेजे जाते थे। शायद जीआई टैग मिलने से चिनिया केले का बाज़ार फिर से बन जाए। क्योंकि जीआई टैग चिनिया केले को उचित मूल्य सुनिश्चित करेगा।

मौसम में बदलाव और सरकारी नीतियां बेअसर

जलवायु परिवर्तन का असर बिहार पर भी पड़ रहा है। 2022 में जहां बिहार के कई क्षेत्र सूखा से ग्रस्त रहे, वहीं 2021 में बिहार के कई क्षेत्रों में 4 बार बाढ़ आई थी। भागलपुर जिला के नवगछिया प्रखंड के जैबार मियां बताते हैं कि," बार-बार मौसम के बदलने की वजह से केला समय से पहले ही पक रहा हैं। इस वजह से शुरुआत से ही किसान को खेती करने में परेशानी हो रही है। 2021 में कई इलाकों में पानी की वजह से केले की फसल बर्बाद हुई थी। नुकसान और मुआवज़े के नाम पर सरकार से कुछ नहीं मिलता है।"

नवगछिया प्रखंड के ही नारायणपुर के शिक्षक ललन झा रिटायरमेंट के बाद केले की खेती कर रहे हैं, वो बताते हैं, "गंगा और कोसी इलाके में 80 प्रतिशत केला खेत ज़मींदारों का है जहां बटाईदार किसान 25-30 हज़ार रुपए प्रति बीघा की दर से खेत लेते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से प्राकृतिक आपदा आएं दिन आती रहती है। लेकिन बटाईदार किसानों को नुकसान के बदले मुआवज़ा नहीं मिल पाता है। क्योंकि फसल क्षति का सरकारी लाभ ज़मीन के मूल मालिक को मिलता है न कि किराये पर उस पर खेती कर रहे किसानों को। हमारे इलाके में रोबेस्टा केले की खेती अधिकांश मात्रा में होती है, क्योंकि चिनिया केले को यहां लोग कम मुनाफे वाली खेती मानते हैं।"

जीआई टैगिंग के शुरुआती स्‍टेज में चिनिया केला शामिल

बिहार से कुल 14 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। जिसमें भागलपुर के जरदालू आम, मुजफ्फरपुर की शाही लीची और नालंदा के सिलाव खाजा शामिल हैं। हाल में ही मिथिला मखाना को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है। आसान भाषा में कहें तो जीआई टैग वाले उत्पाद पंजीकरण अधिनियम, 1999 के तहत संरक्षित किए जाते हैं। मतलब किसी भी अन्य उत्पाद के द्वारा उस उत्पाद टैग का इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता है। जीआई टैगिंग उत्‍पाद की गुणवत्‍ता और विशेषता को अलग पहचान देती है। इसी क्रम में हाजीपुर के चिनिया केले के अलावा मुख्यमंत्री के गृह जिला नालंदा की बावन बूटी साड़ी और गया के हस्‍तशिल्‍प पत्‍थरकट्टी (पत्‍थर शिल्‍प) को भौगोलिक संकेत (जीआई) रजिस्ट्री के तहत स्‍वीकार कर लिया गया है, यानी शुरुआती स्‍टेज के बाद अब हाजीपुर का केला किसान संघ, GI टैग के इंतज़ार में हैं। वित्त मंत्रालय के तहत नाबार्ड इस पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

नाबार्ड-बिहार के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार बताते हैं कि, "जनवरी 2022 से ही उत्पादों और गतिविधियों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। चेन्नई में जीआई रजिस्ट्री कार्यालय में बिहार के तीन प्रोडक्ट को रजिस्टर्ड किया गया है, हालांकि बिहार के 5-6 उत्‍पाद जीआई टैग के लिए चुने जाने की क्षमता रखते हैं। जिला अधिकारियों के द्वारा प्रस्ताव भेजने के बाद हमनें इन उत्पादों को भी भेजने का निर्णय लिया था। हमें बिहार के अन्‍य उत्‍पादों की मंज़ूरी का भी इंतज़ार है।"

वैशाली केला किसान संघ का भी मानना हैं कि जीआई टैग मिलने के बाद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे चिनिया केले को वैश्विक बाज़ार में और बेहतर उपज मिलेगी।

केले के कूड़े को बनाया कमाई का ज़रिया

वैशाली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम योजना के तहत 'जीविका दीदियों' के द्वारा केला वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स तैयार कर कमाई की जा रही हैं। वैशाली जिला के बिदुपुर ब्लॉक स्थित खिलवत पंचायत में तारा जीविका महिला ग्राम संगठन के द्वारा केले के रेशे से राखी, ग्रो बैग सहित दर्जनभर प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं। वहीं कुछ क्षेत्रों में केले से बने खाने के प्रोडक्ट्स खासकर चिप्स और आचार आदि और बड़े पैमाने पर वर्मी कंपोस्ट भी तैयार किए जाते हैं।

संचिता देवी 'जीविका दीदी' की प्रधान है। वो बताती हैं, "केले के रेशे से कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं। इसके अलावा जैविक खाद को भी तैयार किया जाता है। ये ग्रामीण महिलाओं को सशक्तिकरण की ओर ले जा रही है।" संचिता देवी जैसी कई ग्रामीण महिलाओं को केला उद्योग ने आत्मनिर्भर बनाया हैं। वहीं कई किसान संघ, राज्य के केला बहुल क्षेत्रों में केला आधारित उद्योग लगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अगर उद्योगों का निर्माण अधिक संख्या में हो तो केला के उत्पादों से काफी संख्या में लोगों को रोज़गार मिलेगा।

चिनिया केले के बारे में जानिए

केले के विशेषज्ञ अनिल कुमार बताते हैं कि, "केले की खेती के लिए 6 से 7.5 पीएच मान की अम्लीय मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है जिसके लिए वैशाली की भूमि उपयुक्त है। वैशाली जिले के अलावा समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में भी चिनिया केले की खेती होती है‌।

चीनिया केले का तना लंबा व पतला और पत्ते चौड़े व लंबे होते हैं। केले की घैर या घौद काफी जकड़ी और कसी हुई होती है। एक घौद में 8 से 10 हत्थे होते हैं। वज़न के हिसाब से लगभग 14-16 किलो और संख्या के हिसाब से 120-150 केले होते हैं।"

"केले की लंबाई लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर होती है। केले का ऊपरी हिस्सा यानी नोक काफी पतली होती है। पकने के बाद केले के ऊपरी हिस्से का रंग चमकीला पीला होता है। करीब 15 से 16 महीने चिनिया केले का एक पूरा फसल चक्र होता है। अगर केला बीमारी और आपदा से बचा रहें तो एक हेक्टेयर में लगभग 42-45 टन केले का उत्पादन होता है। अन्य केले की अपेक्षा इसके भंडारण में आसानी होती है। केले को कमरे के सामान्य तापमान पर 3-4 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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