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किसानों ने दो किसान नेताओं को याद किया- और जंग जारी रखने का लिया संकल्प

23 फ़रवरी को अजीत सिंह और स्वामी सहजानंद सरस्वती को याद करते हुए "पगड़ी संभाल दिवस" मनाया गया।
किसान

यह एक ऐसा दिन था जब एक सदी पहले की घटनाएं और हस्तियाँ ज़िंदा हो उठी जो आज भी पंजाब, हरियाणा और भारत के अन्य हिस्सों में किसानों की प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। तीन कृषि-कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान-आंदोलन की नई कड़ी में 23 फरवरी को "पगड़ी संभाल दिवस" के रूप में मनाया गया, जिसे मोटे तौर पर अँग्रेजी में "गार्ड योर टर्बन डे" में अनुवादित किया जा सकता है।

पगड़ी संभाल दिवस को चिह्नित करने के लिए पंजाब, हरियाणा और अन्य जगहों पर दर्जनों  सभाएं आयोजित की गईं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली के सीमावर्ती विरोध स्थलों सहित हरियाणा में, रतिया (फतेहाबाद), सिरसा, चूली बगदियान गाँव (हिसार), जींद-पटियाला हाईवे पर खटकर टोल प्लाजा, कैथल जिले में हिसार-चंडीगढ़ हाईवे पर बधोवाल टोल प्लाज़ा और महेंद्रगढ़-भिवानी हाईवे पर किटलाना टोल प्लाज़ा पर बड़ी सभाएँ हुईं। 

सिंघू बार्डर धरने पर, शहीद-ए-आजम भगत सिंह के परिवार के सदस्य मौजूद थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ चले संघर्ष के दिनों को याद किया। अजीत सिंह भगत सिंह के चाचा थे। पंजाब में, संगरूर, पटियाला, बरनाला, बठिंडा, फिरोजपुर, और अन्य जिलों में हजारों लोगों ने इन सभाओं में भाग लिया, महिला और पुरुष दोनों रंगीन पागड़ी पहने थे। महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के किसानों की इसी तरह की बड़ी सभाओं की रिपोर्ट मिली है।

याद रखें 23 फरवरी को सरदार (यानि चाचा) अजीत सिंह की 140 वीं जयंती थी, जिन्होंने 1907 में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बड़े पैमाने के किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था। इतिहास अब एक विडंबनापूर्ण मोड़ पर आ गया है, वह आंदोलन भी तीन कानूनों के खिलाफ था लेकिन फर्क इतना है कि इन क़ानूनों को अंग्रेज लाए थे। 

इसी दिन को एक और क्रांतिकारी किसान नेता, स्वामी सहजानंद सरस्वती की याद के लिए जाना जाता है, जिन्होंने 1920 के दशक से बिहार में किसान और खेतिहर मजदूरों को संगठित किया, शक्तिशाली आंदोलनों का नेतृत्व किया और किसान सभा (किसान यूनियन) का गठन किया, जो बाद में जाकर अखिल भारतीय किसान सभा बनी (1936 में AIKS) जो साथ ही देश का सबसे बड़ा किसान संगठन बन गया था। 

इन दोनों किसान नेताओं के जीवन और विचारों को- इन असंख्य बैठकों में याद किया गया, क्योंकि वे आज भी प्रासंगिक हैं, वास्तव में सीखने के साथ-साथ दोनों प्रेरणा के स्रोत भी हैं।

अजीत सिंह: एक सम्मोहक भाषण देने वाले लड़ाकू नेता

पंजाब में किसान पहले से ही क्रूरता के शिकार था और शोषित था, लेकिन उनके शोषण को बढ़ाने के लिए जब अंग्रेज तीन कानून लाए तो किसानों में गुस्से की लहर दौड़ गई, क्योंकि ये कानून उनकी भूमि को ज़ब्त करने और पानी की दरों में वृद्धि करने का रास्ता बन रहे थे।  वर्ष 1907 के मार्च और मई के बीच, पंजाब में इन कानूनों के विरोध में किसानों ने 33 बड़ी सभाए आयोजित की थी। वह इन सभाओं में से ही एक थी जिसमें लाला बांके दयाल ने अपनी कविता ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ का पाठ किया था, जो किसानों का संघर्ष-गीत बन गया था।

इन सभाओं में से उन्नीस को अजित सिंह ने संबोधित किया था, जो काफी "प्रभावशाली वक्ता थे, जो अपने भाषण के ज़रीए दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे", भगत सिंह के जीवन और विचारों पर विस्तार से लिखने वाले प्रोफेसर चमन लाल लिखते हैं। अंग्रेजों की औपनिवेशिक सरकार ने उनके एक भाषण को 'देशद्रोही' करार दिया था और उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत उन पर मुकदमा थोप दिया था,  उसी धारा का इस्तेमाल मोदी सरकार आज बिना किसी रोक-टोक के कर रही है।

अंग्रेजों का आकलन था कि आंदोलन अब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ परवान चढ़ रहा है और इसलिए उन्होंने मई 1907 में तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। क़ानूनों की वापसी के बाद, उन्होंने लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मंडाले  कारागार (वर्तमान में म्यांमार में है) भेज दिया था। कुछ महीने बाद उन्हें छोड़ दिया गया। लेकिन अजीत सिंह को निर्वासित करने का आदेश दे दिया गया और अगले 40 साल तक वे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहे, विभिन्न सरकारें उनका पीछा करती रही क्योंकि वे जहां भी गए उन्होंने भारतीय क्रांतिकारियों को संगठित करने का प्रयास किया था।

अंतरिम प्रधानमंत्री नेहरू ने 1946 में एक जर्मन जेल से उनकी रिहाई की व्यवस्था की और उन्हें वापस हिंदुस्तान लाया गया। समय के साथ उनकी तबीयत बिगड़ रही थी और 15 अगस्त, 1947 की सुबह 3.30 बजे उनका निधन हो गया। भारत को आजादी मिले अभी कुछ ही घंटे हुए थे, लेकिन अजीत सिंह ने आजाद भारत में अंतिम सांस ली।

वर्तमान किसान आंदोलन में काफी समान किस्म की समानताएं हैं। तब भी और अब भी, तीन कानून थे। सरकारों ने लड़ने वाले किसानों को तब भी और अब भी शांत करने के लिए कानून में बदलाव का प्रस्ताव रखा। किसानों ने तब भी और अब भी जोर देकर कहा कि केवल कानूनों को खारिज करना ही स्वीकार होगा। 1907 में, किसानों ने जीत हासिल की- अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। और पगड़ी संभाल दिवस पर आयोजित सभाओं में, इसी तरह उल्लास और नारों को दोहराया गया- कि वे तब तक नहीं झुकेंगे, जब तक कि मौजूदा काले कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता।

स्वमी सहजानंद सरस्वती: क्रांतिकारी तपस्वी 

जब अजीत सिंह पंजाब के किसानों का नेतृत्व कर रहे थे, तब बिहार में एक और महान क्रांतिकारी तैयार हो रहे थे। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में जन्मे सहजानंद सरस्वती एक युवा जो  काशी में भिक्षु बन गए थे। वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, सक्रिय रूप से बिहार के गांवों में घूम-घूमकर लोगों को असहयोग आंदोलन के लिए प्रेरित किया। यह उन दिनों और रातों के गहन प्रचार के दौरान था कि उन्होंने महसूस किया कि किसानों और भूमिहीन मजदूरों की गंभीर स्थिति ब्रिटिश शासन के चलते जमींदारों के अमानवीय शोषण के परिणामस्वरूप थी, और वास्तविक मुक्ति का मतलब दोनों से उनकी ताक़त छिनना था। 

उन्होंने किसानों को संगठित करना शुरू किया और 1928 में, सोनीपुर में के सम्मेलन में बिहार प्रांतीय किसान सभा के अध्यक्ष बने। उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में किसानों के मुद्दों को उठाना शुरू किया और 1936 में, कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के साथ  अखिल भारतीय किसान सभा का पहला सम्मेलन भी आयोजित किया गया जहाँ उन्हें अध्यक्ष चुना गया।

उन्होंने किसानों को बेदखल करने, कमर तोड़ टैक्स के खिलाफ और बड़े कर्ज़ों के खिलाफ बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिसने आम किसानों को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि तथाकथित पिछड़ी जातियों और अन्य ‘निचली’ जातियों को सबसे अधिक संगठित किया जाए क्योंकि वे देख चुके थे कि उनका शोषण सबसे अधिक है। 

स्वामी सहजानंद ने किसानों और भूमिहीन मजदूरों को लामबंद करने के अलावा, अद्भुत अध्ययन किया और बहुत ही सरल हिंदी में कई राजनीतिक और वैचारिक पुस्तकें लिखीं ताकि आम लोग सब कुछ समझ सकें। लोगों के बीच उनका खड़ा होना अद्भुत था और उनकी बैठकों में हजारों लोग आते थे और उनके बुलावे पर आंदोलनों में भाग लेते थे। उनकी पुस्तकों को व्यापक रूप से पढ़ा गया और प्रचारित किया गया।

यह सहजानन्द थे जिन्होने ये नारा दिया था- "कैस लोगे मालगुज़ारी, लट्ठ हमरा ज़िंदाबाद" और इससे भी अधिक क्रांतिकारी नारा था, "जो लोग अनाज और कपड़े का उत्पादन करते हैं, वे ही केवल कानून बनाएंगे; यह भारत उनका है, केवल वे ही उस पर शासन करेंगे”।

उनके नारे आज भी लाखों किसानों के दिलों में बसे हैं खासकर जब वे मांग कर रहे हैं कि मौजूदा कानूनों को रद्द किया जाए और किसान सभा द्वारा प्रस्तावित नए मसौदे को नए  कानून के रूप में पारित किया जाए।

दो किसान नेता, अजीत सिंह और स्वामी सहजानंद, फिर से किसानों के प्रेरणादायक प्रतीक बन गए हैं, जैसे वे एक सदी पहले थे। यह दुखद है कि तब, वे औपनिवेशिक यानि अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ रहे थे लेकिन आज, लड़ाई एक विधिवत चुनी हुई सरकार के खिलाफ है जो ‘राष्ट्रवादी’ होने का दंभ भरती है। लेकिन किसानों से सबक छिपे नहीं है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Farmers Remember Two Peasant Leaders – And Resolve to Fight on

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