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एमएसपी की बढ़ोतरी को किसानों ने बताया जुमलेबाज़ी, कृषि मंत्री के बयान पर भी ज़ाहिर की नाराज़गी

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा वो किसानों के साथ चर्चा करने को तैयार हैं, लेकिन पहले किसान अपनी ज़िद छोड़ें। इसको लेकर विपक्ष ने सरकार की आलोचना की और कहा कि सरकार किसानों की मांग को बिना शर्त तुरंत माने।
एमएसपी की बढ़ोतरी को किसानों ने बताया जुमलेबाज़ी, कृषि मंत्री के बयान पर भी ज़ाहिर की नाराज़गी

किसान आंदोलन को अब लगभग दो सौ दिन पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन सरकार अभी भी किसानों की मांग मानने को तैयार नहीं है। इसी बीच कल यानि बुधवार को केंद्रीय सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की और इसको लेकर खूब ढोल भी पीटा। इसे किसानों के लिए एक सौगात के तौर पर पेश किया परन्तु संयुक्त किसान मोर्चा ने एमएसपी को लेकर मोदी सरकार की लगातार जुमलेबाजी कहा और इसपर रोष व्यक्त किया। दूसरी तरफ केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा वो किसानों के साथ चर्चा करने को तैयार हैं लेकिन उन्होंने कहा पहले किसान अपनी ज़िद छोड़ें। इसको लेकर विपक्ष ने सरकार की आलोचना की और कहा कि सरकार किसानों की मांग को बिना शर्त तुरंत माने।

बुधवार को जारी किसान मोर्चे के बयान में मोदी सरकार के एमएसपी को लेकर की गई घोषणा को जुमला बताते हुए कहा कहा कि "मोदी सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आज खरीफ 2021 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की, व्यापक लागत C2 को लागत अवधारणा के रूप में उपयोग करने के बजाय, जिस पर कम से कम 50% का लाभ मार्जिन जोड़ा जाएगा। मोदी सरकार ने भुगतान की गई लागतों + पारिवारिक श्रम के आरोपित मूल्य का उपयोग करने की अपनी पुरानी चाल को जारी रखा, जिसे A2+FL फॉर्मूला के नाम से जाना जाता है।"

इसके अलावा, मक्का के लिए पिछले वर्ष की तुलना में केवल बीस रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई। धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का और मूंग जैसी विभिन्न फसलों पर एमएसपी में वृद्धि देश में महंगाई दर के बराबर नहीं है। किसानों ने सवाल किया और कहा "ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो गारंटी देता है कि प्रत्येक किसान को कम से कम एमएसपी न्यूनतम मूल्य के रूप में मिलें। इसलिए, जहां तक किसानों का सवाल है, यह एक अर्थहीन वृद्धि है और इसीलिए यह आंदोलन सभी किसानों के लिए एमएसपी के क़ानूनी अधिकार की मांग करता रहा है ताकि सभी किसानों के लिए एक लाभकारी एमएसपी सुनिश्चित की जा सके। सरकार की पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में पीएम-आशा योजना का भी उल्लेख है और यह फिर से सरकार द्वारा पर्याप्त बजटीय आवंटन के बिना भारत के किसानों के साथ एक क्रूर मजाक है।"

सरकार ने कहा वो किसानों से वार्ता के लिए तैयार हो लेकिन क्या वो सच में है तैयार? विपक्ष ने भी सरकार को घेरा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीति आयोग के कृषि सम्बंधित सदस्य डॉ रमेश चंद ने कहा है कि सरकार बातचीत तभी शुरू करेगी जब आंदोलनकारी किसान उन तीनों काले कानूनों के विशेष कमियों को इंगित करेंगे, जिन्हें रद्द करने की वो मांग कर रहे हैं। इसपर किसान संगठनों ने कहा" ऐसा मालूम पड़ता है कि सरकार के सलाहकार की भूमिका निभाने वाले डॉ रमेश चंद ने 22 जनवरी 2021 तक सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच हुई ग्यारह दौर की बातचीत के बारे में खुद को अपडेट नहीं किया है, जिसमें इन कानूनों की मूलभूत कमियों से पहले ही सरकार को अवगत करा दिया गया है। इस तरह की मूलभूत खामियों की वजह से कानून में कोई सुधार की गुंजाइश नहीं है।"

बादल ने तोमर से किसानों के साथ बिना शर्त वार्ता करने का आह्वान किया

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने बुधवार को केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से केन्द्र के कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों से बिना शर्त वार्ता करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि किसानों की मांगों को खारिज कर उनके घावों पर ‘‘नमक छिड़कने’’ के बजाय कृषि मंत्री को उनसे बिना शर्त बातचीत करनी चाहिए।

बादल ने कहा कि आंदोलनकारी किसान तीन कानूनों को निरस्त करने के अलावा अन्य मुद्दों पर बातचीत नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, “यह केंद्र को पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है। किसानों ने उन सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया है जिनका उद्देश्य कृषि कानूनों को निरस्त करने की मुख्य मांग को स्वीकार किए बिना किसान आंदोलन को अस्थिर करना है।’’

उन्होंने यहां एक बयान में कहा, ‘‘मैं नरेंद्र तोमर से अपील करता हूं कि वे आंदोलनकारी किसानों के साथ बिना शर्त बातचीत करें और किसान समुदाय के हित में उनकी मांगों को स्वीकार करें।’’ उन्होंने कहा कि केंद्र को कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग को सिरे से खारिज कर किसानों के जख्मों पर ‘नमक छिड़कने’ के बजाय उनसे बातचीत करनी चाहिए।

बादल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसान नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद केंद्र को कृषि कानूनों की खामियों का एहसास नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार कॉर्पोरेट क्षेत्र के हिसाब से चलने पर अडिग है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को समाप्त करना चाहता है। संकट के समाधान के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की वार्ता की अपील ठुकराने का और कोई कारण नहीं हो सकता।’’

तोमर के बयान से सरकार का अहंकार प्रदर्शित होता है: सुरजेवाला

कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर द्वारा प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर दिए गए बयान की निंदा करते हुए बुधवार को कहा कि यह दिखाता है कि सरकार ‘अंहकारी’ और ‘सत्ता के नशे में चूर’ है।

तोमर ने मंगलवार को ग्वालियर में कहा था कि सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के विकल्प को छोड़ सभी मुद्दों पर किसानों से बातचीत को तैयार है।

सुरजेवाला ने कहा देश के कृषि मंत्री ने एक अहंकारी नेता का परिचय दिया है और किसानों की मांगों को खारिज करने वाला बयान दिया है।

उन्होंने कहा कि इससे साफ है कि केंद्र का अहंकार हिमालय से भी बड़ा है जिसको देश के 62 करोड़ अन्नदाता नजर नहीं आते।

सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार देश के 25 लाख करोड़ के कृषि कारोबार को केवल तीन उद्योगपतियों को सौंपना चाहती है।

उन्होंने कहा कि मोदी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी), मनोहर (हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर) व दुष्यंत चौटाला (उप मुख्यमंत्री) आज भूल गए हैं कि किसान को लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा देने का वादा कर वे सत्ता में आए थे।

भाजपा सरकार को किसानों की रत्ती भर भी फिक्र नहीं : अखिलेश

समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक बयान में कहा, ‘‘भाजपा के चार साल किसानों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं। तीन काले कृषि कानून लाकर किसानों को बड़े पूंजीघरानों का आश्रित बना दिया गया है, न किसान को फसल का दाम मिल रहा है और न हीं उससे किए गये वादे पूरे हो रहे हैं। पिछले दिनों हुई बरसात में हजारों टन गेहूं क्रय केंद्रों में खुले में पड़े रहने से बर्बाद हो गए। किसानों को बहाने बनाकर परेशान किया जा रहा है।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘प्रदेश में भाजपा सरकार को किसानों की रत्ती भर भी फिक्र नहीं है। उनकी धान की फसल भी वैसे ही बर्बाद हुई, जैसा आज गेहूं की फसल के साथ हो रहा है। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला है। भाजपा सरकार ने किसानों के साथ कोई वादा नहीं निभाया। उल्टे उसे खेत के मालिक की जगह मजदूर बनाने का कुचक्र रच दिया।’’

उन्होंने कहा कि सरकार की किसान विरोधी नीति भाजपा को भारी पड़ेगी। किसान 2022 के चुनाव के इंतजार में हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार बनने पर किसानों के साथ न्याय हो सकेगा।

संयुक्त मोर्चे ने कहा ऐसे समय में जब यह किसान आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर लगभग 200 दिनों के विरोध प्रदर्शन को पूरा करने जा रहा है और जब आंदोलन में 502 किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, संयुक्त किसान मोर्चा सरकार के इस रवैये की निंदा करता है। जब प्रधानमंत्री बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि सरकार सिर्फ एक कॉल दूर है, सरकार का असली किसान विरोधी रवैया बहुत स्पष्ट है। विरोध करने वाले किसान बार-बार ये कह रहे कि सरकार का रवैया अतार्किक और अनुचित है, ये अहंकार और गुमराह करने वाला है। सबसे पहले इन तीनों केंद्रीय कानूनों को पूर्ण रूप से रद्द किया जाए और किसानों को एमएसपी की गारंटी के लिए एक नया कानून लाया जाए।

दूसरी तरफ आंदोलन स्थलों पर बुधवार को सिख योद्धा बंदा सिंह बहादुर और आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की शहादत को बड़े सम्मान के साथ याद किया गया। अखिल भारतीय किसान सभा, क्रांतिकारी किसान यूनियन और बीकेयू कादियान जैसे विभिन्न किसान संगठनों के कई बड़े दल आज पंजाब से अलग-अलग आंदोलन के मोर्चें पर पहुंचे। कल काफी संख्या में आंदोलकारी उधमसिंह नगर और उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों से गाजीपुर आंदोलन स्थल पर आए थे। साथ ही किसान संघर्ष समिति हरियाणा के सैकड़ों प्रदर्शनकारी वाहनों का एक समूह कल प्रदर्शन स्थल पर पंहुचा।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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