टारगेट किलिंग की घटनाओं के बीच 'खीर भवानी महोत्सव' में कुछ ही कश्मीरी पंडित शामिल हुए
श्रीनगर: कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग बुधवार को वार्षिक खीर भवानी मेला आयोजन से दूर रहे क्योंकि इस क्षेत्र में हिंसा की एक ताजा घटना के बाद गंदरबल के तुलमुल्ला गांव में मंदिर में हुआ आयोजन निराशाजनक था।
इस क्षेत्र के हिंदू समाज के बीच अमरनाथ यात्रा के बाद मध्य कश्मीर में आयोजित खीर भवानी मेला सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक कार्यक्रमों में से एक है। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण दो साल की रोक के बाद यह त्योहार मनाया जा रहा था। हालांकि, श्रद्धालुओं का कहना है कि निरंतर टार्गेड किलिंग के कारण उनकी आत्मा को "चोट" पहुंचा है। इस घटना में कश्मीरी पंडित समुदाय के एक सदस्य राहुल भट भी मारे गए।
घटना से दुखी श्रद्धालुओं ने श्रद्धेय झरने के पास और गौरवमय चिनार के पेड़ों के छाए में बनाए गए मंदिर में समुदाय की भलाई और कश्मीर घाटी में स्थिति में सुधार के लिए प्रार्थना की। पवित्र झरने के पानी का श्रद्धालुओं के बीच एक विशेष महत्व है, जो मानते हैं कि इसका बदलता रंग घाटी की स्थिति के बारे में संकेत देता है।
मंदिर आए एक श्रद्धालु ने कहा, “हमें उम्मीद है कि माता के आशीर्वाद से स्थिति में सुधार होगा। यह स्थान पंडितों और मुसलमानों सहित सभी मान्यताओं के लोगों के लिए शुभ है। हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। कश्मीर हमारा जन्मस्थान है, और यह हम सभी का है।”
श्रीनगर शहर से करीब 25 किमी दूर आयोजित मेले में प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्थानीय लोगों द्वारा स्टॉल भी लगाए गए।
उपराज्यपाल के कार्यालय की ओर से किए गए ट्वीट में लिखा गया कि, “ज्येष्ठ अष्टमी के पावन अवसर पर लोगों को, विशेषकर कश्मीरी पंडित समुदाय को हार्दिक बधाई। आइए हम माता खीर भवानी से प्रार्थना करें कि वह हमें धर्म के मार्ग पर ले जाए और हमारी भूमि को शांति, सुख और समृद्धि प्रदान करे।”
संघ शासित प्रशासन द्वारा किए गए उच्च स्तरीय व्यवस्था के बावजूद बड़ी संख्या में पंडित समुदाय के श्रद्धालु अधिकारियों के विरोध में इस आयोजन से दूर रहे।
वेसु और हाल सहित घाटी के विभिन्न हिस्सों में पंडित ट्रांजिशन कैंप के लोगों ने भाग लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी उपेक्षा की गई है और इस तरह की व्यवस्था केवल एक "ढकोसला" है।
एक अन्य श्रद्धालु जो इस वर्ष के आयोजन में शामिल नहीं हुए उन्होंने कहा कि यह समुदाय पिछले 12 वर्षों से लगातार मेले में शामिल हुआ है, लेकिन इस बार संघ शासित प्रशासन की उदासीनता के कारण इसे नजरंदाज किया है।
वेसु वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष सनी रैना ने न्यूज़क्लिक से कहा कि दक्षिण कश्मीर कैंप के बाहर ट्रांसपोर्ट फ़ेरी सेवा के मद्देनजर लोगों को अंदर बंद रखा गया था। रैना ने कहा, "इसका कोई दूसरा अर्थ नहीं है। हमें सुरक्षा कारणों से शिविर के अंदर बंद कर दिया गया और वे हमें मेला तक ले जाने के लिए बसें लाए। मुझे इन सब का कोई आधार समझ में नहीं आता।"
रैना के अनुसार, जम्मू के सैकड़ों श्रद्धालु जो इस वार्षिक मेले में आते हैं वे भी विरोध में स्थानीय पंडितों में शामिल हो गए हैं। स्थानीय प्रवासी शिविरों के लोगों ने इस बस सेवा को रद्द करने के लिए परिवहन अधिकारियों को पत्र लिखा था।
पुलवामा कैंप के लोगों ने कहा, "..आपकी भलाई के लिए किया गया है कि हम हवल प्रवासी कॉलोनी पुलवामा के कर्मचारियों/निवासियों ने इस वजह से वार्षिक खीर बवानी यात्रा का बहिष्कार करने का फैसला किया है कि हमें हत्या करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है और हम घाटी में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।"
राहुल की हत्या के बाद एक स्कूल शिक्षक, एक पुलिसकर्मी और एक गैर-स्थानीय मजदूर की हत्या हुई जिसके बाद अल्पसंख्यक समुदाय के लोग घाटी के बाहर पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Fewer Kashmiri Pandits Attend Key Festival Kheer Bhawani Amidst Wave of Target Killings
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