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पहले यूएपीए लगाया, अब पढ़ने का अधिकार छीन रहे हैं: सफ़ूरा ज़रगर

"जामिया ने उन्हें केवल एक COVID एक्सटेंशन दिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अनुसार पांच के प्रावधान हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने उन्हें और एक्सटेंशन देने से इनकार कर दिया है।"
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"मैंने कोरोना जैसी गंभीर महामारी के दौरान अपने थीसिस को लेकर ग्राउंड पर जाकर कड़ी मेहनत की है। मैं गर्भवती थी, जेल में थी, मुझे ऑनलाइन गालियां दी गयीं। राज्य द्वारा मेरे ऊपर  हमला किया गया। इन सबके बावजूद, मैंने अपने काम से कभी समझौता नहीं किया। समय पर सब कुछ जमा कर दिया और आज आखिरकार मुझे अपना थीसिस  जमा करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। ये मेरे लिए एक गंभीर मानसिक तनाव है"

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एमफिल की छात्रा सफूरा जरगर ने ये बात दिल्ली में  न्यूज़क्लिक को दिए एक साक्षात्कार के दौरान कही,  उन्होंने  आरोप लगाया कि विश्वविद्यायलय प्रशासन उनका थीसिस जमा करने से इनकार कर रहा है। सफूरा जरगर का नाम 2020 में उस वक़्त चर्चा में आया था, जब उन्हें उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कथित तौर पर शामिल होने के लिए कठोर यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी।

"सफूरा ने बरती लापरवाही, इसलिए कर रहे हैं एडमिशन निरस्त"

जामिया प्रशासन का  का कहना है कि थीसिस पर काम करने में में सफूरा जरगर ने काफी लापरवाही बरती है, उन्हें कई बार एक्सटेंशन दिया गया है। विश्वविद्यालय ने अपने स्तर पर उनको हर संभव सहायता प्रदान की, बावजूद इसके उनकी प्रगति असंतोषजनक रही है इसलिए उन्हें और एक्सटेंशन नहीं दिया जा सकता है।

जबकि सफूरा का कहना है कि जामिया ने उन्हें केवल एक COVID एक्सटेंशन दिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अनुसार पांच के प्रावधान हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने उन्हें और एक्सटेंशन देने से इनकार कर दिया है।

"सीएए के खिलाफ अहम भूमिका निभाई, इसलिए किया जा रहा है प्रताड़ित"

हमने सफूरा ज़रगर से इस मसले पर बात की। उनका कहना है कि उन्होंने अपने थीसिस पर तीन साल बहुत मेहनत से काम किया है। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें परेशान करने की मंशा से उनका थीसिस जमा नहीं कर रहा है। सफूरा ज़रगर का कहना है कि उनके साथ जामिया प्रशासन "क्रिमिनल" की तरह बर्ताव कर रहा है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जामिया के आंदोलन को वे और उनके साथी लीड कर रहे थे। उन्होंने कहा "“मुझे विभाग में दंगाई कहा जाता था। मुझसे बार बार कहा गया कि मेरे जैसे छात्रों की वजह से विभाग ब्लैक लिस्टेड हो जाता है। सरकार को हमारे विरोध से समस्या है। हमारी पढ़ाई से समस्या है। इसलिए जामिया प्रशासन इस तरह का बर्ताव कर रहा है।

उन्होंने जामिया  समाजशास्त्र विभाग पर झूठ और निराधार तरीके से उनका थीसिस जमा ना करने की बात कही है।

 "प्रशासन झूठ बोल रहा है। अगर जामिया कहता है कि कोविड-19 एक्सटेंशन केवल एक बार दिया जा सकता है, तो यह पूरी तरह से झूठ है। यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। विश्वविद्यालय में दो या तीन कोविड एक्सटेंशन दिए गए हैं। ऐसा सभी विश्वविद्यालयों में हुआ है। फिर मुझे ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?

"ना वीसी से मिल सकते हैं ना विभाग कोई जवाब दे रहा है"

24 अगस्त को सफूरा जरगर ने विश्वविद्यालय के कुलपति को एक लेटर लिखकर उनकी समस्याओं के बारे में अवगत कराया था, लेकिन उन्हें इसका कोई जवाब नहीं मिल सका। उन्होंने कहा कि उनकी रिपोर्ट को अगस्त 2020 में अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) के सदस्यों द्वारा स्वीकार कर लिया गया था। फरवरी 2021 में उनकी दूसरी आरएसी के बाद, उन्हें 4.5 महीने के एक्सटेंशन की अनुमति दी गई थी। उन्होंने  तर्क दिया कि एक्सटेंशन छह महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए था, जैसा कि यूजीसी COVID  एक्सटेंशन पत्र द्वारा अनिवार्य था।

वीसी को लिखे अपने पत्र में, ज़रगर ने कहा कि यह एक्सटेंशन यूजीसी के 3 दिसंबर 2020 के पत्र के आधार पर दिया गया था।

"हालांकि, यूजीसी COVID एक्सटेंशन पत्र  के अनुसार, मेरे एक्सटेंशन को 7 अगस्त 2021 के बजाय केवल 30 जून 2021 तक ही मंजूरी दी गई थी।"

इसके तुरंत बाद, उन्हें दिसंबर 2021 तक एक और एक्सटेंशन दिया गया। जरगर ने दावा किया कि विश्वविद्यालय ने 22 दिसंबर 2021 को एक पत्र लिखा था जिसमें सिवाए उनके उन सभी छात्रों को एक्सटेंशन दिया गया था, जिनकी जमा करने की तिथि जुलाई 2022 से पहले समाप्त हो गई थी।

उन्होंने  कहा कि अपने तीसरे COVID  एक्सटेंशन आवेदन की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते हुए, उन्हें अपने पर्यवेक्षक से 8 अप्रैल 2022 को एक ईमेल प्राप्त हुआ। सफूरा ने हमें बताया कि, "मुझे सूचित किया गया कि मैं COVID एक्सटेंशन के लिए योग्य नहीं थी और मुझे महिला वर्ग के तहत विस्तार के लिए आवेदन करना चाहिए था।"

जरगर ने आगे दावा किया कि पर्यवेक्षक ने कहा कि "चूंकि आवेदन का समय पहले ही समाप्त हो चुका था, विभाग मेरा पंजीकरण रद्द करने और एमफिल / पीएचडी एकीकृत कार्यक्रम में प्रवेश के साथ आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने इस ईमेल का जवाब देते हुए लिखा था कि वह अपना काम जमा करना चाहती हैंऔर किसी भी एक्सटेंशन का लाभ उठाना चाहती हैं जो उनके लिए लागू होगा।" लेकिन उन्हें इसका जवाब नहीं मिला।

“उनके लिए मुझ पर यूएपीए थमा देना और मुझे जेल भेज देना ही काफी नहीं था”

विभाग ने 26 अगस्त को एक नोटिस जारी किया था जिसमें लिखा था, "सुश्री सफूरा जरगर, एम.फिल./पी.एच.डी स्कॉलर का प्रवेश निम्नलिखित आधारों पर निरस्त किया जाता है:

  • पर्यवेक्षक द्वारा दी गयी प्रोग्रेस रिपोर्ट असंतोषजनक थी
  • उन्होंने इससे पहले एक महिला स्कॉलर के रूप में एक्सटेंशन के लिए आवेदन नहीं किया था
  • निर्धारित समय का ख्याल नहीं रखा गया
  • स्कॉलर ने अपना एम.फिल शोध प्रबंध प्रस्तुत नहीं किया
  • 5 सेमेस्टर का अधिकतम निर्धारित समय प्लस COVID एक्सटेंशन का (छठा सेमेस्टर) लाभ जो उन्हें भी दिया गया था। यह 6 फरवरी 2022 को समाप्त हुआ इसलिए सुश्री सफूरा जरगर का एम.फिल./पीएचडी से पंजीकरण (समाज शास्त्र) दिनांक 01.04.2015 से रद्द किया जाता है।"

ज़रगर ने इसके जवाब में ट्वीट किया और लिखा  "उनके लिए मुझ पर यूएपीए थमा देना और मुझे जेल भेज देना ही काफी नहीं था। मेरा शिक्षा का अधिकार छीनने की हर संभव कोशिश की गई है। मुझे अपने प्रोफेसरों की बेईमानी और विश्वासघात से गहरा दुख हुआ है, जिन्हें मैंने हमेशा उच्च सम्मान दिया है। ”

समर्थन में आए छात्र, समाजिक संगठन

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA), फ्रेटरनिटी मूवमेंट, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI), स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइज़ेशन समेत  विभिन्न संगठन सफूरा ज़रगर के  समर्थन में सामने आए हैं। सामूहिक तौर पर जारी एक बयान में कहा गया है कि "हम सफूरा जरगर के साथ पूरी तरह से एकजुटता के साथ खड़े हैं और मांग करते हैं कि उन्हें एक एक्सटेंशन दिया जाना चाहिए और अपने शोध प्रबंध को जमा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

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