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खाद्यान्न संकट: पीडीएस आवंटन में गिरावट, क़ीमतें बढ़ी

इस बीच, मौसम की मार के कारण उत्पादन में भी गिरावट आई है, जो आने वाले महीनों में कठिन समय का संकेत देता है।
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Image courtesy : ET

यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से वितरण के लिए चावल और गेहूं का आवंटन पिछले कई वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है। यह अजीब है क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से खाद्यान्न आवंटन के लिए अपने जनसंख्या मानदंडों को संशोधित करने का आग्रह किया है क्योंकि ये 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित हैं।

2021 के आधिकारिक जनसंख्या अनुमानों के अनुसार, खाद्यान्न वितरण को 90 करोड़ से अधिक लोगों को कवर करना चाहिए था, न कि वर्तमान में 80 करोड़ जनसंख्या का कवरेज होना था।

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है कि खाद्यान्न आवंटन में गिरावट 2016-17 से लगातार हो रही है। 2022-23 में, आवंटन सिर्फ 605 लाख टन रहा है, जिसमें 401 लाख टन चावल और लगभग 204 लाख टन गेहूं शामिल है।

इसमें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के लिए अनाज का आवंटन भी शामिल है; यानी एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस), जो बच्चों के लिए आंगनवाड़ी चलाती है; पीएम-पोषण योजना, जो कि मध्याह्न भोजन योजना का नया नाम है; और विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं जैसे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए छात्रावास, किशोर लड़कियों के लिए योजना, अन्नपूर्णा योजना, आदि शामिल है। इसमें केंद्रीय पूल से बिक्री के लिए खुले बाजार में जाने वाला अनाज शामिल नहीं है। डेटा, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा जारी जुलाई 2022 के खाद्यान्न बुलेटिन से लिया गया है।

हक़ीक़त यह है कि, पिछले तीन वर्षों यानी 2020 से 2022 तक, महामारी से हुई तबाही और पहले दो वर्षों में लगाए गए लॉकडाउन से राहत देने के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटित किया गया था। नीचे दिया गया चार्ट पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई), आत्मनिर्भर भारत, आदि के तहत अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटन को दिखाता है।

इस वर्ष (2022-23) में भारी गिरावट इसलिए है क्योंकि ये योजनाएं सितंबर में बंद होने जा रही हैं क्योंकि मोदी सरकार को लगता है कि अब महामारी के कम होने से समर्थन की जरूरत नहीं है। विभिन्न ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों और वकालत समूहों ने मांग की है कि पीएमजीकेएवाई को बढ़ाया जाए क्योंकि देश में लाखों लोगों का आर्थिक संकट अभी खत्म नहीं हुआ है।

एक बार जब ये अतिरिक्त अनाज आवंटन वापस ले लिया जाएगा तो संकट की वास्तविक तस्वीर उभरने की संभावना है, जो इस साल मौसम से संबंधित फसल क्षति से बढ़ गई है।

गिरता उत्पादन

कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी चौथे और अंतिम अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2021-22 में चावल का उत्पादन 130.29 मिलियन टन (MT) होगा, जो कि पिछले वर्ष के 124.37 मिलियन टन के उत्पादन से लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि है। याद रखें, यह 2021 के खरीफ सीजन का आंकड़ा है। हालांकि, गेहूं का उत्पादन 2020-21 में 109.59 मीट्रिक टन से घटकर 2021-22 में अनुमानित 106.84 मीट्रिक टन हो गया है – लगभग 2.6 प्रतिशत की गिरावट है।

यह मार्च और अप्रैल में भीषण गर्मी के कारण हुआ है, जिससे खड़ी गेहूं की फसल को व्यापक नुकसान हुआ है। बताया गया कि बेमौसम गर्मी में नमी खत्म होने से गेहूं के दाने मुरझा गए थे। हालांकि, नुकसान पहले के अनुमानों में उम्मीद से कम है।

चालू खरीफ सीजन में चावल के उत्पादन में नुकसान के बुरे संकेत मिल रहे हैं, जैसा कि कई क्षेत्रों में कम या देरी से हुई बुवाई से संकेत मिलता है, मुख्य रूप से मानसून की शुरुआत में देरी या समग्र रूप से कम बारिश के कारण ऐसा हुआ है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक धान की बुवाई का रकबा पिछले साल की तुलना में 8.25 प्रतिशत कम रहा है। 21 अगस्त तक 343.7 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया था, जबकि पिछले साल 374.63 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया था। झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में यह गिरावट दर्ज की गई है। कुछ इलाकों में अधिक बारिश के कारण आई बाढ़ से फसलों को नुकसान पहुंचा है। कुल मिलाकर इस साल चावल के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना है।

यद्यपि देश के मजबूत खाद्यान्न उत्पादन में छोटे उतार-चढ़ाव को संभालने की क्षमता है, फिर भी वर्तमान स्थिति चिंता का कारण क्यों है?

सरकार की गुमराह करने वाली नीतियां

जैसा कि न्यूज़क्लिक द्वारा पहले रिपोर्ट किया गया था, कि इस साल की शुरुआत में गेहूं की खरीद में भारी गिरावट आई थी, क्योंकि सरकार द्वारा इसे निर्यात करने और यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न वैश्विक गेहूं की कमी का लाभ उठाने के लिए प्रारंभिक प्रोत्साहन दिया गया था। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष 433.43 लाख टन की तुलना में केवल 187.94 लाख टन गेहूं की खरीद की गई है - यह लगभग 57 प्रतिशत की भारी गिरावट है।

नतीजतन, सरकार के पास गेहूं का स्टॉक वर्तमान में 266.45 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले अगस्त में 564.80 लाख टन था। यहां तक कि चावल का स्टॉक अगस्त 2021 में 291.08 लाख टन की तुलना में 279.52 लाख टन है जो कम है।

ये स्टॉक सार्वजनिक वितरण प्रणाली और विभिन्न अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति का स्रोत हैं। अगर मौजूदा खरीफ सीजन से धान का उत्पादन भी कम होता है - जैसा कि बुवाई में गिरावट और मौसम की अनिश्चितताओं के चलते होने की संभावना है - देश को इस साल के अंत तक खाद्यान्न की कमी का सामना करना पड़ेगा।

इस सामने आने वाले संकट के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया आम तौर पर सुस्त रही है। इसने अनाज आयात करने की जरूरत से इनकार किया है, राशन कोटा में कई राज्यों में गेहूं के बदले चावल दिया जा रहा है, जिससे उपभोक्ताओं में बहुत नाराजगी है, और पीएमजीकेएवाई के तहत महामारी से प्रेरित आर्थिक संकट से राहत देने के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलो के अतिरिक्त आवंटन को रोकने पर तुली हुई है, जिसे 2020 में शुरू किया गया था।

इस बीच खुले बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी का सिलसिला जारी है, जिससे कई महीनों से महंगाई से जूझ रहे लोगों की परेशानी और बढ़ गई है। उपभोक्ता मामलों के विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में गेहूं की कीमतों में 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि गेहूं के आटे की कीमतों में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे परिवार के बजट को बड़ा झटका लगा है।

गेहूं में कमी की सामने आने वाली स्थिति, आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति को और बढ़ा देगी। मोदी सरकार इससे कैसे निपटती है, इसका इंतजार करना होगा और देखना होगा, लेकिन विकल्प सीमित हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Foodgrain Blues: PDS Allocation Dips, Prices Rise

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