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क्यों क्रिप्टोकरंसी को ख़त्म होना ही चाहिए?

दुनिया को क्रिप्टोकरंसी की जरूरत नहीं है, जो राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन करने वाली तमाम आपराधिक गतिविधियों को पनाहगाह उपलब्ध करवाती है और लोगों व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।
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बिटकॉइन और इथेरियम, सोलाना, डोजकॉइन और लूना जैसी दूसरी क्रिप्टोकरंसी की बहुत चर्चा रही, लेकिन हमने बीते कुछ सालों में इन क्रिप्टोकरंसी को ढहते हुए देखा है। यह चर्चा मुख्यत: सभी तरह की क्रिप्टोकरंसी के मूल्य में हुए बेहद तेज उछाल के चलते बनी हुई थी। 20 महीनों के अंतराल में बिटकॉइन की कीमत 4000 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 64,000 अमेरिकी डॉलर पहुंच गई, यह 16 गुना वृद्धि थी। दूसरी क्रिप्टोकरंसी तो और भी ज़्यादा तेजी से बढ़ीं, इसी 20 महीने की अवधि में इथेरियम 50 गुना, सोलाना 500 गुना और लूना में 1000 गुना की वृद्धि हुई है।

अब क्रिप्टोकरंसी धड़ाम से गिर रही हैं। बिटकॉइन की कीमत में 55 फ़ीसदी, इथेरियम की कीमत में 60 फ़ीसदी, सोलाना की कीमत में 85 फ़ीसदी कमी आई है, जबकि लूना तो धड़ाम से शून्य पर आकर गिर गई है।

आखिर इन जटिल और रहस्यमयी चीजों के बारे में कोई कैसे समझे, जब इनके समग्र मूल्य की कीमत खरबों डॉलर पहुंच गई और इन्हें डिजिटल युग में भविष्य की मुद्रा बताया जाने लगा था? क्या यह ज़्यादा अनुमान लगाने वाली "पोंजी स्कीम" हैं? या फिर तेजी से डिजिटल लेनदेन की ओर बढ़ती दुनिया में वाकई इनका कोई वैधानिक उपयोग है?

शुरुआत हम क्रिप्टोकरंसी को न्यायोचित बताने वाले तर्कों के परीक्षण से करते हैं। सैद्धांतिक तौर पर इनके ज़रिए बिना किसी माध्यमिक कड़ी के इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को संपन्न कराया जाना था। मतलब एक व्यक्ति से सीधे दूसरे व्यक्ति तक लेनदेन (पीयर टू पीयर ट्रांजेक्शन)। दो पक्षों के बीच इलेक्ट्रॉनिक ढंग से पैसे के हस्तांतरण में समस्या यह आती है कि लेनदेन के बाद बाकी राशि की मात्रा को तय कैसे किया जाए। पहली बात, पैसे भेजने वाले पक्ष के पास संबंधित मात्रा का धन होना चाहिए। जब लेनदेन हो जाता है, तो भेजने वाले पक्ष के खाते से पैसे कट जाने चाहिए और लेने वाले पक्ष के खाते में जुड़ जाने चाहिए। दरअसल हम कई दशकों से डिजिटल नगदी का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह बहुत बेहतर तरीके से काम करती हैं, हर सेकंड में लाखों डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं। डेबिट और क्रेडिट कार्ड, वायर ट्रांसफर, यूपीआई और डिजिटल वालेट यह सारी चीजें डिजिटल लेनदेन का हिस्सा हैं। लेकिन इन सारे लेनदेन में एक माध्यमिक कड़ी होती है, ज़्यादातर मामलों में यह बैंक होता है, जो खाते के रूपयों के जोड़-घटाने का काम करता है।

तो इन बिचौलियों से दिक्कत क्या है? 2008 के वित्तीय संकट के बाद पश्चिम में बैंकिंग क्षेत्र ढह गया था। पश्चिमी केंद्रीय बैंकों ने बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए बड़ी मात्रा में मुद्रा छापी। नतीज़तन लोगों के एक बड़े वर्ग का बड़े बैंकों में विश्वास कम हो गया। मुद्रा की छपाई ने यह डर पैदा किया कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आज्ञापत्र वाली मुद्राओं की कीमत का अवमूल्यन हो जाएगा। क्रिप्टोकरंसी के ज़रिए, बिना बिचौलियों के सीधे एक व्यक्ति/पक्ष से दूसरे व्यक्ति/पक्ष तक डिजिटल लेनदेन की व्यवस्था कर इन समस्याओं का निदान किया जाना चाहिए था। इसके जरिए लेनदेन के लिए बैंकों की जरूरत खत्म हो जाती। कम से कम इसकी वकालत करने वालों के दिमाग में तो यह बात थी। मुद्रा के अवमूल्यन की समस्या का खात्मा, पैसे बनाने में केंद्रीय बैंक की भूमिका का खात्मा और क्रिप्टोकरंसी की आपूर्ति तक सीमित कर किया गया। इस दौरान हमेशा के लिए बिटकॉइन की सीमा दो करोड़ दस लाख सिक्के तय कर दी गई।

तो मुद्रा कैसे बनाई जाती है? यह प्रस्तावित किया गया कि इसका निर्माण एक एल्गोरिद्म प्रक्रिया के जरिए की जाएगी, जिसे "डिजिटल माइनिंग" कहा जाता है। जैसा स्वाभाविक भी था, राजनीतिक नज़रिए से यह बहुत समस्याग्रस्त लक्ष्य था। इससे मुद्रा और मुद्रा की आपूर्ति पर राज्य की संप्रभुता खत्म होती और यह अधिकार निजी संस्थाओं के पास पहुंच जाते। "डिजिटल माइनिंग" के लिए ताकतवर कंप्यूटर और बहुत मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। इसलिए ज़्यादा ताकतवर कंप्यूटर के स्वामित्व वाले लोगों और बड़ी मात्रा में विद्युत खरीद सकने वालों का मुद्रा निर्माण पर एकाधिकार होने का डर था, इसमें भी राज्य की भूमिका खत्म हो जाती। क्रिप्टोकरंसी को प्रोत्साहन देने के पीछे "मुक्तिवादी स्वपन (लिबेरिटेरियन ड्रीम)" रहा है और बिटकॉइन की वकालत करने वाले कई अहम लोगों ने मुक्तिवाद के विचारों को माना। दरअसल मुक्तिवाद एक अति दक्षिणपंथी अमेरिकी राजनीतिक विचार है, जो सिर्फ़ कानून और शासन को बनाए रखने व निजी संपत्ति की सुरक्षा करने के अलावा किसी भी दूसरी भूमिका को राज्य के कार्य के तौर पर नहीं मानता।  

अब हम वापस लौटते हैं कि कैसे बिटकॉइन और दूसरी क्रिप्टोकरंसी को बिना बिचौलियों की मदद से बनाया जाता है। क्रिप्टोकरंसी शेष राशि को प्रबंधित करने और उनकी पुष्टि करने की समस्या का खात्मा उन्हें सार्वजनिक कर करती हैं, लेकिन इसके लिए छद्मनामों का उपयोग किया जाता है। मतलब क्रिप्टो की दुनिया में आप, "आप" नहीं रह जाते। पारंपरिक बैंकिंग व्यवस्था से उलट, यहां कोई केवायसी नहीं होती। इसके बजाए आप, कंप्यूटर उत्पादित एक बेहद लंबे अनियमित संख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो आपके छद्मनाम का प्रतिनिधित्व करती है। अंकों को अनियमित रखा जाता है, ताकि अपकी पहचान बेनाम बनी रही। हर किसी के खाते को सार्वजनिक रखा जाता है, लेकिन इन्हें सिर्फ इन्ही छद्मनामों के जरिए जाना जाता है। इस सार्वजनिक खाते को "ब्लॉकचेन" कहा जाता है।

जब दो पक्षों के बीच में एक लेनदेन होता है, तो ब्लॉकचेन का परीक्षण किया जाता है और उसे राशि में जरूरी जोड़-घटाव करने के लिए अपडेट कर दिया जाता है। लेकिन, चूंकि ब्लॉकचेन सार्वजनिक है, इसलिए इसमें कोई माध्यमिक बिचौलिया नहीं होता, तो फिर इसमें यह कैसे सुनिश्चित किया जाता है कि कोई फर्जी लेनदेन तो नहीं कर रहा है? या अपने ही खाते में तो पैसा नहीं जोड़ रहा है?

यहीं "माइनिंग" की अवधारणा आती है। लेनदेन की क्रिप्टोग्राफिक सवालों (बेहद जटिल गणितीय सवाल) को कंप्यूटर द्वारा हल कर पुष्टि की जाती है। इन सवालों की प्रवृत्ति कुछ इस तरह होती है कि इनके हल के लिए बड़ी मात्रा में कंप्यूटिंग के लिए वक्त और संसाधन की जरूरत होती है। लेकिन जब एक बार यह हल हो जाते हैं, तो कोई भी इन समाधानों/हल की पुष्टि कर सकता है। जो लोग माइनिंग करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए, उनके द्वारा "क्रिप्टोग्राफिक वेरिफिकेशन प्रॉब्लम" को हल करने के लिए, हर बार उन्हें क्रिप्टोकॉइन्स दिए जाते हैं। इस तरह नए सिक्कों का "खनन (माइनिंग)" या निर्माण होता है।

इन लेनदेन की पुष्टि करने और नए सिक्कों के खनन के लिए बड़ी मात्रा में बिजली, वक़्त और कंप्यूटिंग के लिए जरूरी संसाधनों की जरूरत होती है। ऐसा अनुमान है कि बिटकॉइन नेटवर्क इतनी विद्युत की खपत करते हैं, जितनी कोई मध्यम आकार का देश मिलकर करता है। ऊपर से यह प्रति सेकेंड चार से सात लेनदेन ही कर सकता है, जबिक क्रेडिट कार्ड नेटवर्क प्रति सेकंड लाखों लेनदेन कर रहे हैं। तो ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में हमने भविष्य के लिए एक ऐसे सिस्टम का निर्माण कर दिया है, जो बहुत बड़ी मात्रा में बिजली बर्बाद कर देता है, जबकि हमारे पास इससे कहीं बड़े स्तर का एक सिस्टम मौजूद है, जो कई दशकों से जारी है।

एक और दूसरा मुद्दा यह है कि क्रिप्टोकरंसी के गलती से हुए लेनदेन, फर्जीवाड़े और हैकिंग के जरिए हुई चोरी को वापस ठीक नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कोई विश्वासपात्र बिचौलिया मौजूद नहीं है। यहां शिकायत करने के लिए कोई प्राधिकरण नहीं है!

इन समस्याओं को देखते हुए क्रिप्टोकरंसी ऑनलाइन लेनदेन के लिए व्यवहारिक समाधान नहीं हैं। और हमने यह भी देखा है कि इनकी कीमत बड़े पैमाने पर ऊपर-नीचे होती है, इसलिए संपदा को इकट्ठा करने या विनिमय के माध्यम के तौर पर भी यह उपयोगहीन हैं। यहां तक कि यह मुद्रास्फीति के खिलाफ़ सुरक्षा भी प्रदान नहीं करतीं। मौजूदा वक़्त की तरह के उच्च महंगाई वाले दौर में वास्तविक, तो छोड़ें "नॉमिनल टर्म" में भी क्रिप्टोकरंसी में भयंकर गिरावट आई है। बल्कि क्रिप्टोकरंसी के निर्माण के लिए यही पहला तर्क था कि केंद्रीय बैंक द्वारा बड़ी मात्रा में नोट छापने से पैदा हुई मुद्रास्फीति की तुलना में क्रिप्टोकरंसी की बड़ी मात्रा से महंगाई नहीं बढ़ती। इस तरह यह महंगाई से सुरक्षा प्रदान करती है। उच्च मंहगाई दर वाले देशों; जैसे- अर्जेंटीना, नाइजीरिया और पाकिस्तान में कई लोगों ने अपनी जीवन की पूरी कमाई स्टेबलकॉइन्स (क्रिप्टोकरंसी जिसे डॉलर से जोड़ा जाता है) खरीदने में लगा दी, ताकि महंगाई से उनकी रक्षा हो सके, लेकिन अब उच्च महंगाई के दौर में उन्होंने सब खो दिया।

तो फिर क्रिप्टोकरंसी से हासिल क्या होता है? छद्मनाम के ज़रिए यह आपकी पहचान जाहिर नहीं होने देते, जिससे इन्हें आपराधिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे- हैकिंग हमले के बाद इन्हें किसी से वसूली के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, इनके ज़रिए कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराध भी किए जा सकते हैं।

क्रिप्टोकरंसी का पोंजी स्कीम (धोखाधड़ी वाली योजनाएं) में भी बहुत उपयोग होता है। इस वित्तीय धोखाधड़ी में नए निवेशकों से वित्त लेकर, शुरुआती निवेशकों को ऊंची मात्रा में निवेश पर धन वापसी की जाती है। यह पोंजी स्कीम तब ख़त्म हो जाती हैं, जब इन्हें सूली पर चढ़ने वाले नए निवेशक मिलना बंद हो जाते हैं और उन्हें नया वित्त नहीं मिल पाता है। चूंकि इन "मुद्राओं" को हल करने के लिए दुनियाभर की सरकारें और केंद्रीय बैंक तेजी से कार्रवाई नहीं करते, इसलिए यह वित्त, बैंकिंग और प्रतिभूति नियमों के दायरे से बाहर रहती आई हैं। जबकि यही प्रावधान इस तरह की पोंजी स्कीम से लोगों को बचाने का काम करते हैं। इससे हर तरह की वित्तीय संस्थाओं, जिसमें हेज फंड और वेंचर कैपिटलिस्ट शामिल हैं, उन्हें क्रिप्टोकरंसी में अरबों डॉलर लगाने का प्रोत्साहन मिलता है, ताकि वे इन पोंजी स्कीम और वित्तीय अनुमानों से बेहद असामान्य लाभ कमा सकें।

इसी तरह की एक योजना के चलते टेर्रा फाउंडेशन द्वारा चलाई जाने वाले दो क्रिप्टोकरंसी- लूना और टेर्रायूएसडी पिछले महीने पूरी तरह ढह गईं, जिसके चलते 50 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का नुकसान हुआ। इसके बावजूद इन योजनाओं को चलने दिया जा रहा है, बल्कि तमाम ख्यात लोगों (जैसे- किम कार्दाशियां और एक्टर मैट डेमन, अरबपति ऐलन मस्क) द्वारा इनका प्रचार किया जा रहा है। इन लोगों को क्रिप्टोकरंसी का प्रचार करने के लिए या तो बड़ी मात्रा में बाज़ार में उपलब्ध क्रिप्टोकरंसी दी जाती हैं, या फिर जब क्रिप्टोकरंसी का पर्याप्त प्रचार हो जाता है, तो उन्हें शुरुआती पहुंच और नगद भुनाने की सुविधा दी जाती है।

वित्तीय तंत्र के लिए क्रिप्टोकरंसी कैंसर की तरह हैं। यह कोई उद्देश्यपूर्ण कार्य नहीं करतीं, बड़ी मात्रा में विद्युत और कंप्यूटिंग शक्ति जैसे संसाधनों की खपत करती हैं और तमाम तरह की अवैधानिक गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं। इसने एक खरबों डॉलर की इंडस्ट्री बना दी है, जो तमाम ताकतवर वित्तीय संस्थानों, जैसे हेज फंड को नुकसानदेह गतिविधियों में लिप्त होने की सुविधा उपलब्ध कराती है, जैसे लोगों की ताउम्र की बचत को पोंजी स्कीम द्वारा हड़प लेना। दुनिया की तमाम सरकारों को इन जोख़िमों पर सावधान होने और कार्रवाई करने की जरूरत है। चीन ने इस मामले में अग्रणी भूमिका निभाते हुए तमाम तरह की क्रिप्टोकरंसी माइनिंग और लेनदेन पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत सरकार ने प्रतिबंध पर चर्चा की, लेकिन अब अपने पैर जमा लिए हैं। रिपोर्टों के मुताबिक़ भारत सरकार इन्हें नियंत्रित कर इनके ऊपर कर लगाकर उन्हें वैधानिक वित्त उपकरण बनाने की तैयारी में है। इस कैंसर को नियंत्रित करने की नहीं, बल्कि उखाड़ फेंकने की जरूरत है।

क्रिप्टोकरंसी पर प्रतिबंध लगाते हुए चीन ने "सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी" जिसे ई-युआन या डिजिटल युआन के नाम से भी जाना जाता है, उसे जारी किया। ताकि बेतरतीब ढंग से बढ़ते डिजिटल लेनदेन की जायज जरूरतों को पूरा किया जा सके। क्रिप्टोकरंसी से उलट सीबीडीसी को राज्य का समर्थन प्राप्त है। इन्हें क्रिप्टोकरंसी की तरह की मुद्रा मानने की भूल नहीं करना चाहिए। यह प्रति सेकंड, बिना माइनिंग के ही हजारों लेनदेन कर सकती हैं। जहां तक क्रिप्टोकरंसी की बात है, तो इसे ख़त्म होना होगा!

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Why Cryptocurrency Must Die

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