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G7: रूस पर पश्चिमी एकता में दरारें

इस शिखर सम्मेलन ने उजागर कर दिया है कि रूस के ख़िलाफ़ मौजूदा प्रतिबंध ज़्यादातर पश्चिमी नीति निर्माताओं के सहने की सीमा से आगे निकल चुके हैं।
G7
एकता का प्रदर्शन, जर्मनी के बवेरिया स्थित श्लॉस एल्मौ में जून 27, 2022 को G7 और यूरोपीय संघ के नेताओं की मुलाक़ात

तुर्क सुल्तान अब्दुलमेजिद ने 1843 और 1856 के दौरान इस्तांबुल के उस शानदार डोलमाबाह पैलेस का निर्माण करने में कोई कोर क़सर नहीं छोड़ी थी, जिसे दुनिया को प्रभावित करने के लिए बनवाया गया था। इसमें अब तक का सबसे बड़ा बोहेमियन क्रिस्टल झूमर लगाया गया था और छत के निचले हिस्से पर 14 टन सोने का मुलम्मा चढ़वाया गया था।

सबाल्टर्न इतिहास के उस दिखावे पर होने वाले ख़र्च को सुल्तान बर्दाश्त तो नहीं कर सकता था, लेकिन आंशिक रूप से उन लेनदारों को भ्रमित करने की सख़्त ज़रूरत की वजह से वैसा करना आवश्यक था, जिन्हें संदेह था कि दिवालिएपन के नज़दीक पहुंच चुके, मुद्रास्फीति से बेहाल तुर्क साम्राज्य साम्राज्यवाद से पैदा होने वाले जटिल समस्याओं में डूब जायेगा।

रविवार से मंगलवार तक बवेरियन आल्प्स स्थित एल्मौ कैसल में G-7 नेताओं की तीन दिन तक चली यह बैठक जिस तरह के तड़क-भड़क के माहौल में संपन्न हुई, वह अतीत में तुर्क साम्राज्य के उसी पतन की याद दिलाती है। इस बात की बहुत सार्वजनिक आलोचना होती है कि इस तरह का भव्य तमाशा अब समय के अनुरूप नहीं है और यह इस बात की मिसाल है कि ये राजनेता अपने आस-पास के घटनाक्रमों से कितने अनजान हैं, यहां तक कि कितने पतनशील हो गये हैं।

मेज़बान जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने मंगलवार को मीडिया के सामने बैठक का समापन कुछ हद तक उदास माहौल के साथ किया, और यह उदासी वहां इकट्ठे पत्रकारों को दिये गये उनके संदेश में भी झलकती है, “हमारे सामने जो वक़्त है, वह अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। हम इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि यह अनिश्चितता कैसे ख़त्म होगी।"

स्कोल्ज़ असल में यूक्रेन संकट और उसके नतीजों की बात कर रहे थे। स्कोल्ज़ ने "लंबी दौड़" और हर चीज़ और सभी के लिए होने वाली नतीजों की बात कर रहे थे। "रूस को ख़ारिज़ करने" वाली रणनीति को लेकर पश्चिमी की जीत की अवधारणा वाला समय अब निकल चुका है।

दरअसल, G-7 देशों के बीच चल रहे विवाद का मुख्य मुद्दा यह था कि रूस से कैसे निपटा जाये। G-7 देशों को मालूम है कि वे रूस को अलग-थलग कर पाने में नाकाम रहे हैं और शायद, आर्थिक लिहाज़ से मास्को के साथ ख़ुद को पूरी तरह से अलग-थलग किया जाना उनके हित में भी नहीं है।

इस शिखर सम्मेलन में रूस के ख़िलाफ़ लगाये जाने वाले नये प्रतिबंधों पर चर्चाओं पर मुश्किल से ही सहमति हो पायी थी, ऊपर से इस विचार-विमर्श ने रूस को दंडित किये जाने के सिलसिले में अपनाये जाने वाले आर्थिक उपायों के इस्तेमाल की सीमाओं को ही रेखांकित कर दिया है। असल में पश्चिमी रणनीति अपनी ही पेचीदगी का शिकार हो रही है, यानी कि यूक्रेन को अमेरिका की ओर से बड़े पैमाने पर मुहैया कराये जा रहे हथियारों के बावजूद रूस यह युद्ध जीत रहा है; लगाये गये प्रतिबंध रूस को रोक पाने में नाकाम रहे हैं और संभवतः इससे रूस से कहीं ज़्यादा यूरोप को नुक़सान पहुंच रहा है; और इस तरह के विचार का कोई मतलब भी नहीं रह गया है।

G-7 के नेताओं के उस सार्वजनिक प्रदर्शन पर असहमति का कोई संकेत नहीं था, बल्कि G-7 नेताओं ने यूक्रेन को अपना अटूट समर्थन दिये जाने का भी वादा किया, लेकिन इन सबके बीच उनके दिमाग़ में यह बात ज़रूर थी कि G -7 और यूरोपीय संघ की ओर से मास्को की अर्थव्यवस्था, ऊर्जा को लक्षित करते हुए निर्यात और केंद्रीय बैंक के रिज़र्व के सिलसिले में रूस के ख़िलाफ़ जिन अभूतपूर्व प्रतिबंधों को लागू किया गया है, उन प्रतिबंधों से वैश्विक बाज़ार में अस्थिरता पैदा हुई है और ऊर्जा लागत में वृद्धि हुई है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा, “अब उच्च मुद्रास्फीति, धीमी गति से विकास, और इस सर्दी में यूरोप में ऊर्जा की कमी की काली छाया मास्को के ख़िलाफ़ लगाये गये कड़े प्रतिबंधों को लेकर पश्चिम की छटपटाहट को कम कर रही हैं। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली और जापान के नेताओं के बीच के मतभेद ने उन्हें ठोस नये प्रतिबंधों पर सहमत होने से रोक दिया है, बल्कि इस समूह ने रूसी तेल ख़रीद पर मूल्य सीमा से लेकर सोने के प्रतिबंध तक के उपायों पर भी काम शुरू करने पर सहमति जता दी है। रूस को दंडित किये जाने को लेकर तत्काल उपलब्ध विकल्प काफ़ी हद तक समाप्त हो गये हैं, सिर्फ़ ज़्यादा जटिल और ज़्यादा विवादास्पद विकल्प ही अब बच गये हैं।”

G-7 की विज्ञप्ति में गया गया है: "हम सभी सेवाओं के संभावित व्यापक निषेध के विकल्पों सहित उन कई दृष्टिकोणों पर विचार करेंगे, जो विश्व स्तर पर रूसी समुद्री कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन को सक्षम करते हैं। हम अपने सम्बन्धित मंत्रियों को रूसी हाइड्रोकार्बन के विकल्प के रूप में तीसरे देशों और निजी क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों के साथ-साथ ऊर्जा के मौजूदा और नये आपूर्तिकर्ताओं के साथ परामर्श करते हुए इन उपायों पर तत्काल चर्चा को करना जारी रखने का काम सौंपते हैं।”

G-7 नेताओं ने उस अमेरिकी प्रस्ताव पर भी चर्चा की, जो इस बात का प्रावधान करता है कि रूसी तेल के ख़रीदार ख़ुद ही उस ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत को निर्धारित करें, जिन्हें वे इसके लिए भुगतान करने को तैयार हैं। आख़िरकार, यूरोपीय संघ के आपत्तियों की पृष्ठभूमि में कोई भी ठोस फ़ैसला नहीं लिया गया। यह अमेरिकी प्रस्ताव यूरोपीय संघ के सभी देशों के साथ-साथ चीन और भारत की पूर्ण भागीदारी के साथ ही धरातल पर आ पायेगा, जिनके इस तरह के फ़ैसले का समर्थन करने की संभावना फिलहाल नहीं दिखती है। हक़ीक़त तो यही है कि कुछ यूरोपीय संघ के देश रूसी तेल पर तक़रीबन 100% निर्भर हैं और अगर रूस कम क़ीमत पर तेल की आपूर्ति करने को लेकर सहमत नहीं होते हैं, तो इन देशों के सामने पूरी तरह से कच्चे माल के बिना हो जाने का संकट पैदा हो हो जायेगा।

G-7 शिखर सम्मेलन में भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, सेनेगल और अर्जेंटीना को आमंत्रित करने का एक मुख्य कारण रूस के ख़िलाफ़ वैश्विक गठबंधन का विस्तार करना था, लेकिन यह चाल भी काम नहीं आ पायी। वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक द्विपक्षीय बैठक में स्कोल्ज़ से कहा कि भारत रूस के ख़िलाफ़ किसी भी प्रयास में शामिल नहीं हो सकता, और मोदी ने सार्वजनिक रूप से रूस से तेल ख़रीदे जाने का बचाव भी किया।    

इसी तरह, वह दूसरा क्षेत्र, जहां G-7 रूस की आय में गिरावट लाने की उम्मीद की जा रही है, वह है-रूसी सोने के आयात को रोकना। यहां भी आम सहमति की कमी थी। स्कोल्ज़ चाहते थे कि अमेरिकी प्रस्ताव पर पहले यूरोपीय संघ के स्तर पर चर्चा कर ली जाये। लेकिन, यूरोपीय परिषद के प्रमुख चार्ल्स मिशेल को इसे लेकर संदेह था,उन्होंने कहा: “जहां तक सोने का सवाल है, तो हम उन बातों पर चर्चा करने और यह देखने के लिए तैयार हैं कि क्या सोने पर इस तरह से प्रहार कर पाना संभव है कि रूसी अर्थव्यवस्था को प्रभावित भी किया जाये और ख़ुद को पहुंचने वाली चोट से बचा भी लिया जाये।”

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने खुले तौर पर इसे दरकिनार करते हुए कहा: “क़ीमती धातुओं का यह बाज़ार वैश्विक है, यह काफी बड़ा, विशाल और बहुत ही विविधताओं से भरा-पड़ा है। निश्चित ही रूप से अन्य चीज़ों की तरह अगर कोई बाज़ार किसी ग़ैर-मुनासिब फ़ैसलों के चलते अपना आकर्षण खो देता है, तो बाज़ार की बनावट और दशा-दिशा में वहां बदलाव आ जाता है, जहां इन चीज़ों की मांग ज़्यादा होती हैं और जहां वे ज़्यादा सहूलियत और ज़्यादा क़ानूनी आर्थिक व्यवस्था होती हैं।”

इस G-7 शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की कम अहम भूमिका अपने आप में सबकुछ बयान कर देती है,वह दूसरे नेताओं को ज़्यादातर बात करने देने को लेकर ही संतुष्ट थे। इस शिखर सम्मेलन के आख़िरी दिन जैसे ही सूरज ढल गया और श्लॉस एल्मौ के पीछे की पहाड़ी पर मंडरा रहे काले बादल जैसे ही शांत हो गये, वैसे ही बाइडेन ने एक आंधी की संभावना का हवाला देते हुए म्यूनिख हवाई अड्डे के लिए जल्दबाज़ी में कूच करने की गुहार लगायी, यहां तक कि उस भाषण को भी छोड़ दिया, जिसे देने की उनकी योजना थी।

दरअसल, यह अलगाव तक़रीबन अजीब सा है। 2015 में जर्मन राष्ट्रपति की अगुवाई वाले पिछले G-7 शिखर सम्मेलन में पश्चिमी नेताओं ने 2030 तक 500 मिलियन लोगों को भूख से मुक्त करने का संकल्प लिया था, जबकि यह संख्या 2017 से ही बढ़ रही है, और 2022 में 150 मिलियन से ज़्यादा लोग कुपोषण से पीड़ित हैं। जलवायु इसी तरह का एक और उदाहरण है।

जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ इस G-7 शिखर सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु संरक्षण पर समझौतों को कम अहमियत देने की कोशिश को लेकर आलोचनाओं की ज़द में आ गये हैं। ऊर्जा संकट के कारण जर्मनी 2022 के आख़िर तक जीवाश्म ईंधन के सार्वजनिक वित्तपोषण को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने की अपनी स्वैच्छिक प्रतिबद्धता को उलटने की कोशिश कर रहा है।

निस्संदेह, यह साल जलवायु के लिहाज़ से एक अहम साल है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने नवंबर में मिस्र में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन से पहले राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को दुरुस्त करने और उन्हें 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को पूरा करने के सिलसिले में अनुकूलित होने का वादा किया है, और ऐसा हो,इसके लिए G-7 को एक अच्छी मिसाल क़ायम करनी चाहिए।  

इसके उलट, रूसी गैस आपूर्ति को लेकर चल रही अनिश्चितताओं के चलते जर्मनी कोयले के अपने आयात को बढ़ा रहा है। G-7 ने तरलीकृत प्राकृतिक गैस की डिलीवरी को बढ़ाये जाने की भूमिका पर ज़ोर दिया, उन्होंने कहा कि वे "स्वीकार करते हैं कि मौजूदा संकट से पार पाने के लिए इस क्षेत्र में निवेश ज़रूरी है।" स्कोल्ज़ ने फिर से जर्मन अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की कमी के वास्तविक जोखिम और लेहमैन जैसे डोमिनोज़ प्रभाव(यह एक संचयी प्रभाव होता है, यह तब पैदा होता है, जब कोई एक घटना समान घटनाओं के सिलसिले की शुरुआत कर देती है) की चेतावनी दी। निःसंदेह, यह जलवायु रणनीति का ज़बरदस्त उलटफेर है।

मूल रूप से इन सब बातों से जो बात सामने आती हैं,वह यह है कि G-7 को यह बात सूझ नहीं रही है कि रूस के ख़िलाफ़ लगाये गये अपने इन "बेहद बुरे प्रतिबंधों" से बाहर निकलने का रास्ता आख़िर कैसे निकाला जाये। इस शिखर सम्मेलन ने उजागर कर दिया है कि रूस के ख़िलाफ़ मौजूदा प्रतिबंध ज़्यादातर पश्चिमी नीति निर्माताओं की दर्द सीमा से आगे निकल चुके हैं। इसके अलावे, यूरोपीय नेताओं को अब पता चल रहा है कि आगे इन प्रतिबंधों के लिए एक क़ीमत चुकानी होगी।

इतना तो तय है कि रूस के साथ लंबे समय तक आर्थिक टकराव के मामले में एक नयी पश्चिमी रणनीति पर फ़ैसला लेने और संभावित नतीजों के सिलसिले में मतदाताओं को शिक्षित करने की तत्काल ज़रुरत है। जर्मनी की सरकार ने पिछले ही हफ़्ते गैस की उस संभावित कमी की चेतावनी दी थी, जिससे कारखाने तक बंद हो सकते है और घरों में होने वाली गैस की आपूर्ति की संभावित सीमा भी तय हो सकती है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें: 

G7: Cracks in Western Unity on Russia

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