गोरखनाथ मंदिर प्रकरण: क्या लोगों को धोखे में रखकर ली गई ज़मीन अधिग्रहण की सहमति?
योगी आदित्यनाथ सरकार कथित तौर पर गोरखपुर के ऐतिहासिक गोरखनाथ मंदिर के आसपास से मुस्लिम समुदाय की आबादी को हटाने की योजना बना रही है। मुस्लिम समुदाय पर अपने पुश्तैनी घरों को खाली करने के लिए प्रशासन दबाव बना रहा है।
मंदिर व मुख्यमंत्री की सुरक्षा के नाम पर मंदिर के इर्द-गिर्द रहने वाले 11 मुस्लिम परिवारों पर, मकान ख़ाली करने का दबाव बनाया जा रहा है। पीड़ित परिवारों का दावा है कि वे इन मकानों में एक सदी से अधिक समय से रहते आ रहे हैं।
गोरखनाथ मंदिर, जिसके महंत स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, के दक्षिण-पूर्व की ओर 11 मुस्लिम परिवार 125 वर्षों से निवास कर रहे हैं। लेकिन अब प्रदेश सरकार मंदिर की सुरक्षा के नाम सभी 11 घरों का अधिग्रहण कर वहां, पुलिस थाना बनाने की योजना बना रही है।
प्रशासन ने दबाव बनाकर 11 में से 9 परिवारों से सहमति पत्र हासिल कर लिया है। जबकि दो परिवारों ने प्रशासन से असहमति जताई और सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
अधिग्रहण की शुरुआत
लोक निर्माण विभाग की एक टीम जिसका नेतृत्व कनिष्ठ अभियंता स्तर के एक अधिकारी कर रहे थे, 27 मई को अचानक, मुस्लिम समुदाय के घरों के क्षेत्रफल की माप के लिए पहुँच गई। टीम को देखकर वहां पर मौजूद सभी लोग दंग रह गए। निवासियों द्वारा माप के कारण के बारे में पूछे जाने पर, टीम ने चुप्पी साध ली।
लेकिन अगले दिन 28 मई को, बिना किसी सूचना के ज़िला प्रशासन के अधिकारी,स्थानीय पुलिस के साथ वहां पहुंचे। अधिकारियों जिसमें तहसीलदार, राजस्व विभाग के अधिकारी और इलाक़े के एसडीएम शामिल थे।
अधिकारियों ने स्थानीय निवासियों, जो सभी मुस्लिम समुदाय से हैं, को अवगत कराया कि सरकार प्रसिद्ध मंदिर की सुरक्षा के बारे में चिंतित है, जहां मुख्यमंत्री अक्सर आते-जाते हैं। इसलिए आप सभी अपना घर खाली कर दें क्योंकि यहाँ पुलिस थाने के निर्माण किया जायेगा।
प्रशासन पर धमकी का आरोप
स्थानीय लोग उस समय चौंक गए जब उसी समय अधिकारियों ने उनसे उनके घरों के अधिग्रहण के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। आरोप है कि जब कुछ निवासियों ने पत्र पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया तो अधिकारियों ने उन्हें धमकियां देना शुरू कर दी।
स्थानीय लोग जिनमें अधिकतर कुशल श्रमिक हैं, बताते हैं कि, प्रशासन उन पर सहमति पत्र हस्ताक्षर करने के लगातार दबाव डाल रहा था। प्रशासन हस्ताक्षर न करने पर परिणाम भुगतने की धमकी भी दे रहा था।
लेकिन कुछ बुजुर्गों ने सरकार के फैसले के खिलाफ खड़े होकर प्रशासन के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करने का फ़ैसला किया है। वह ज़बरदस्ती बेदखली के मामले में न्याय के लिए अदालत जाने की योजना बना रहे हैं। वहीं पुलिस और प्रशासन की धमकी भरे कॉलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों ने अपने फोन बंद कर दिए हैं।
स्वतंत्रता से पहले से रहने का दावा
मंदिर के पास रहने और अपने घरों में ही छोटा-मोटा कपड़े का काम करके, घर चलाने वाले नौ परिवार प्रशासन के दबाव में आ गए। पुलिस द्वारा किसी भी कठोर कार्रवाई के डर से, उन्होंने अपनी संपत्ति के हस्तांतरण के लिए प्रशासन को अपनी सहमति भी दे दी। लेकिन वह दावा करते हैं कि, यह मकान कानूनी रूप से स्वतंत्रता से भी पहले उनके बुजुर्गों के कब्जे में हैं। हालाँकि दो परिवारों ने प्रशासन द्वारा दिये गए सहमति पत्र हस्ताक्षर करने करने से इनकार कर दिया।
प्रशासन से सवाल
सरकार की योजना से ख़फ़ा लोग अब प्रशासन पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्होंने (प्रशासनिक अधिकारियों ने) मंदिर परिसर के अंदर किसी अन्य भूमि की पहचान क्यों नहीं की, जहां एक बड़ा हिस्सा खाली पड़ा है, पुलिस चौकी के निर्माण के लिए?
क्या कहते हैं स्थानीय नागरिक
मुशीर अहमद (70) ने न्यूज़क्लिक को फ़ोन पर बताया कि उनका परिवार उनके परदादा के जन्म से पहले से मंदिर के पास के इलाके में रह रहा है। उन्होंने कहा, "घर खाली करने से न केवल हमारी पुश्तैनी ज़मीन बल्कि हम लोगों का रोजगार भी छिन जाएगा। क्योंकि ज़्यादातर लोग घरों पर ही कपड़े का काम (हैंडलूम) आदि का करते हैं, या घरों में बनी छोटी-छोटी दुकानों से अपना घर चलाते हैं।
उन्होंने कहा “घरों के हस्तांतरण से हमारे छोटे व्यवसायों और छोटे हथकरघा कार्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो हम अपने घरों में कर रहे हैं। घर के साथ हमारा रोज़गार भी चला जायेगा।”
मुशीर दावा करते है कि योगी उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। उन्होंने कहा कि उनको, योगी सरकार से इस तरह के कठोर और अमानवीय फैसले की उम्मीद नहीं थी। क्योंकि मुख्यमंत्री होने के साथ वह हमारे पड़ोसी हैं। उनके फैसले से हम सभी को निराशा हुई है।
उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री से, थाने के प्रोजेक्ट को कहीं और शिफ्ट करने और मंदिर के गरीब पड़ोसियों की शांति से वही रहने देने का का आग्रह करेंगे।
प्रशासन के दबाव से नाराज मुशीर ने आगे कहा कि अगर प्रशासन ने हमारे घर को जबरदस्ती खाली करने की कोशिश की, या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया तो हम इसके विरुद्ध अदालत का रुख करेंगे।
मुशीर ने कहा कि वह डिप्रेशन के रोगी है और उसका रक्तचाप लगातार बढ़ा हुआ है। क्योंकि हम पर हमारे घरों में छोड़ने के लिए नाजायज़ दबाव डाला जा रहा है।
मोहल्ले के एक अन्य निवासी ने अब अपने घर के जबरदस्ती अधिग्रहण किये जाने विरोध कर रहे हैं। जमशेद आलम ने मीडिया से कहा कि हम लंबे समय से मंदिर के आसपास रहते हैं और हम लोगों का कभी किसी से कोई विवाद नहीं है।
फोटो- सहमति पत्र
विश्वासघात का आरोप
जमशेद का आरोप है कि प्रशासन ने स्थानीय लोगों के साथ विश्वासघात किया है। प्रशासन ने स्थानीय लोगों को अंधेरे में रखकर सहमति पत्र हस्ताक्षर कराए हैं। क्योंकि हस्ताक्षर लेने के समय कहा था कि उन्हें मंदिर की सुरक्षा के लिए स्थानीय निवासियों के समर्थन की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया जब लोगों ने हस्ताक्षर कर दिए गए, तब प्रशासन के तेवर बदल गए,और उन्होंने इसके पीछे की असली मंशा का खुलासा किया और मकान ख़ाली करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया।
"हम यहां एक सदी से भी अधिक समय से रह रहे हैं, और अब दुर्भाग्य से हम मंदिर की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं," उन्होंने उदास स्वर में पूछा?
दबाव बनाकर हस्ताक्षर लिए
स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन ने उन्हें सहमति पत्र पर लिखी तहरीर को पढ़ने नहीं दिया। गोरखनाथ मंदिर के पास के निवासी जावेद अख्तर (65) ने मीडिया से बात करते हुए आरोप लगाया कि उनसे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर जबरदस्ती, दबाव बनाकर कराई गई है।
उन्होंने यह भी कहा कि, जिन मकानों के मालिकों ने अपनी जमीन के हस्तांतरण के लिए सहमति दे दी है, उन्होंने भी सहमति पत्र को पढ़ने नहीं दिया गया था। जमशेद आगे कहते हैं कि हम सभी अपनी पैतृक संपत्ति, जिसको सरकार जबरदस्ती हासिल करना चाहती है, को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे।
समाजसेवक मदद के लिए आगे आए
एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे समय में निवासियों का समर्थन कर रहे हैं, जब ज़्यादातर स्थानीय लोग पुलिस और प्रशासन से डराने-धमकाने के बाद डरे हुए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता इंतजार अहमद, जो एक शिक्षक भी हैं, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए,कहा कि स्थानीय लोगों ने अपने घरों को खाली करने के लिए नहीं, बल्कि मंदिर सुरक्षा कवच को मजबूत करने के लिए अपनी सहमति दी है।
समाज सेवी इंतज़ार का दावा है प्रशासनिक अधिकारियों ने अंधेरे में रखकर लोगों से सहमति पत्र पर दस्तख़त कराए हैं। स्थानीय लोगों ने यह मानकर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए कि पुलिसकर्मी मंदिर परिसर में निगरानी रखने के लिए उनकी छत पर बैठेंगे। इंतज़ार ने यह भी दावा किया कि यह परिवार आसपास के क्षेत्र में उस समय से रह रहे हैं, जब गोरखनाथ मंदिर एक बहुत छोटे क्षेत्र में “मठ” की तरह था।
मीडिया को धमकी
गोरखपुर प्रशासन भी इस मामले को मीडिया कवरेज से छिपाने की कोशिश कर रहा है। आरोप है कि दिल्ली के एक पत्रकार ने जिलाधिकारी से सुरक्षा के नाम पर मुस्लिम परिवारों को कथित तौर पर जबरन बेदखल करने के बारे में प्रश्न किया तो ज़िलाधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन, ने पत्रकार को रासुका के तहत जेल भेजने की धमकी दे डाली।
एक न्यूज़ पोर्टल के लिए काम करने वाले दिल्ली के पत्रकार मासिहुज़मा अंसारी ने धमकी देने के मामले में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में ज़िलाधिकारी शिकायत दर्ज कराई है।
अंसारी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि उन्होंने ज़िलाधिकारी गोरखपुर, को मुस्लिम परिवारों को कथित रूप से जबरन बेदखल करने से संबंधित मामले में आधिकारिक टिप्पणी के लिए फ़ोन किया था। मैं ख़बर के लिए तथ्यों की पुष्टि भी उनसे करना चाहता था। लेकिन डीएम नाराज़ हो गए और कहने लगे कि जो भी कोई भी इस रिपोर्ट को प्रकाशित करेगा, उसे जेल भेज दूँगा।
अंसारी ने अपने और डीएम के बीच टेलीफोन पर हुई कथित बातचीत का एक ऑडियो क्लिप भी उपलब्ध कराया है। जिसमें सुना जा सकता है कि, ज़िलाधिकारी पत्रकार के सवालों से नाराज होकर कहते सुनाई दे रहे हैं, ''आप आग में घी डाल रहे हैं...'', “सब जेल जाएंगे…”
प्रशासन क्या कहता है?
संपर्क करने पर ज़िलाधिकारी पांडियन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने किसी ख़ास व्यक्ति या पत्रकार को जेल भेजने की बात नहीं कही थी। मीडिया मेरी बातचीत की गलत व्याख्या कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि मेरे कहने का मतलब यह था, कि जो भी इस बेदखली अभियान को सांप्रदायिक रंग देगा, उसके खिलाफ प्रशासन कार्रवाई करेगा।
डीएम ने यह भी माना कि प्रशासन ने 11 मुस्लिम परिवारों को मंदिर की सुरक्षा के लिए अपना घर देने को कहा है। लेकिन किसी को अपनी संपत्ति देने के लिए मजबूर नहीं किया जा रहा है। सभी अपनी मर्जी से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब तक 11 में से 9 परिवारों ने अपनी सहमति दी है।
मीडिया को धमकाने की निंदा
वरिष्ठ पत्रकारों ने गोरखपुर के ज़िलाधिकारी के इस कृत्य को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया और अपमानजनक बताया है। वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, हम आखिर एक पुलिस राज्य में नहीं रह रहे हैं, लेकिन जिस तरह से एक ज़िलाधिकारी पत्रकारों को धमका रहा है, उससे पता चलता है कि उसे सुप्रीम कोर्ट की भी परवाह नहीं है” जिसने हाल में विनोद दुआ मामले में पत्रकारों की सुरक्षा और अधिकारों की बात कही है।
जबरन अधिग्रहण पर टिप्पणी करते हुए शरत प्रधान, जो एक राजनीतिक विश्लेषक भी हैं, कहते हैं कि, भाजपा ने 2022 चुनावों से पहले अपने ध्रुवीकरण का अपना एजेंडे पर काम शुरू किया कर दिया है। यह उसी का एक हिस्सा है। जिला प्रशासन द्वारा बाराबंकी में एक सदी पुरानी मस्जिद के अवैध विध्वंस के बाद, मुख्यमंत्री के गृह जनपद, गोरखपुर, मुसलमानों को निशाना बना रहा है।
सवाल यह भी है कि चार साल से योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री हैं और गोरखनाथ मंदिर में उनका लगातार आना जाना है तो अब इस अंतिम साल में जब 2022 की शुरुआत में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं, अचानक मंदिर में उनके आने-जाने को लेकर सुरक्षा का सवाल कहां से उठ गया। और क्यों युद्धस्तर पर लोगों से उनके घर खाली कराके पुलिस चौकी बनाने का विचार आया। जबकि अभी यह भी तय नहीं कि चुनाव बाद कौन सा दल सत्ता में आएगा और कौन नेता मुख्यमंत्री होगा।
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