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ग्राउंड रिपोर्टः चंदौली के शिकारगंज इलाके के 54 गांवों में सूखे से मर रहे किसान 

"मुझे यह कहते हुए बहुत तकलीफ हो रही है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली के शिकारगंज के उस इलाके के लोग सूखे की मार झेल रहे हैं जहां बांध-बंधियों की भरमार है। नहरें हैं और लिफ्ट कैनाल परियोजनाएं भी हैं।"
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उत्तर प्रदेश के चंदौली का चकिया भले ही धान के कटोरे के रूप में विख्यात है, लेकिन इसी इलाके में शिकारगंज के 54 गांव ऐसे हैं जिनके हिस्से में सिर्फ सूखा है...बेकारी है..., पलायन है... और दो वक्त की रोटियों के लिए जद्दोजहद है। नहरों का जाल है, लेकिन पानी नहीं है। सिंचाई के लिए पानी का संकट शिकारगंज इलाके के लिए एक बड़ी त्रासदी है। आजाद भारत में यह इलाका दशकों से सूखे के संकट के जूझ रहा है। भोका बांध से निकलने वाली नहरों और उससे जुड़ी माइनरों में धूल उड़ने से 50 हजार से अधिक किसान परिवार प्रभावित हैं। शिकारगंज इलाके में बांध और बंधियों की कमी नहीं है, लेकिन वो किसी काम की नहीं हैं। मछली मारने वाले माफिया और ठेकेदार इन बंधियों का पानी बहा देते हैं और किसान ताकते रह जाते हैं। स्थिति यह है कि चंदौली के शिकारगंज इलाके के साथ ही मिर्जापुर के दर्जनों गांव भी बांध-बंधियों का पानी अकारण बहाए जाने के कारण सूखे की चपेट में हैं।

शिकारगंज इलाके के किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने के लिए कांग्रेस के शासनकाल में तत्कालीन सिंचाई मंत्री रामलखन ने साल 1973 में करीब नौ किलो मीटर लंबी भोकाकट माइनर का निर्माण कराया था। इस परियोजना पर उस समय लाखों रुपये खर्च किए गए थे। नहर को बनाने के लिए डाइनामाइट लगाकर कई पहाड़ियों को तोड़ना पड़ा था। अफसोस की बात यह है कि सरकार के लाख प्रयास के बावजूद भोकाकट माइनर का पानी किसानों के खोतों में नहीं पहुंच पाया, क्योंकि इलाके के कुछ सामंतों ने मिलकर इस नहर का रुख अपनी खेतों की ओर मुडवा दिया। इस वजह से यह समूची परियोजना सफेद हाथी बनकर रह गई। गर्मी ही नहीं, बारिश के दिनों में भी यह नहर सूखी रहती है।

पहाड़ बनी किसानों की जिंदगी

भोकाकट नहर परियोजना की लंबाई करीब 15 किमी है। विंध्य की पहाड़ियों से निकली यह सर्पीली नहर बलिहारी होते हुए धुसरियाडीह पहुंचती है। यहीं से यह नहर सीधे भोका बांध न जाकर मुड़ जाती है। तत्कालीन हुक्मरानों ने इस नहर में कई स्थानों पर छलका बनाकर "उल्टी गंगा" बहाने की कोशिश की, जो नाकाम साबित हो गई। नतीजा, धुसरियाडीह से भोका बांध जाने वाली करीब सात किमी लंबी नहर का कोई मतलब नहीं रह गया।

शिकारगंज इलाके के 54 गांवों के किसान चाहते हैं कि भोकाकट नहर परियोजना की मरम्मत कराई जाए। खोनवां गांव से इस नहर की चौड़ाई तीस फुट और गहराई पांच फुट बढ़ाई जाए। धुसरिया डीह से आगे करीब 900 मीटर तक नई नहर खोदी जाए ताकि भोकाकट का पानी भोका बांध में जाने लगे। इसका फायदा सिर्फ चंदौली के किसानों को ही नहीं मिलेगा, बल्कि मिर्जापुर के शेरवा, सहजनी, चौकिया, मनउर समेत कई गांवों के अन्नदाताओं की मुश्किलें हमेशा के लिए दूर हो जाएंगी।

चंदौली के पर्यटक स्थल राजदरी फाल से करीब एक किमी पश्चिम धुसरिया डीह के जंगल में मिले शामू यादव। सूखे के चलते शिकारगंज इलाके के पंडी बोदलपुर गांव से अपने 55-60 गायों को लेकर वो धुसरिया डीह के जंगलों में रह रहे हैं। जाड़े के दिनों में इन गायों से इन्हें सिर्फ 30-40 लीटर दूध मिल पाता है। इसी जंगल में एक पेड़ के नीचे झाड़ियों का घेरा बनाकर अपने मवेशियों के लिए आरामगाह बना रखा है। साथ ही अपने सोने-खाने पीने के लिए एक मचान भी।

शामू कहते हैं, "हमारे गांव पंडी बोदलपुर ही सूखा नहीं पड़ा है। नेवाजगंज, मुड़हुआ, बिसौरा, बलिया, लठिया, उचहरा, भंगड़ा, मजगांवा, गायघाट, बुढ़ैना, आगर, लठिया, कुशही, करौदिया, छुछहाड़, मादापुर, अदारपुर, जोगिया ताजपुर, गनेशपुर, सीतापुर आदि गांवों में पशुपालकों को अपने मवेशियों को जिंदा रख पाना मुश्किल हो गया है। इस इलाके में दशकों से अकाल पड़ रहा है। इस बार हमारे कई पालतू जानवर मर गए हैं। सभी छोटे किसान हैं और सूखे के संकट के चलते वो बेहद तनाव में जी रहे हैं।"

शामू यह भी बताते हैं, "सूखे के चलते किसानों का क़र्ज़ बहुत बढ़ गया है। साथ ही खेती की लागत भी। हमारी तबाही के पीछे बहुत सारे कारण हैं। इस साल तो पूरी तरह धरती सूखी पड़ी है। मानसूनी बारिश होने पर पहले फसल लगा दिया करते थे, लेकिन बढ़ती क़ीमतें, खेती की लागत, बीज की क़ीमत, ये सब चीजें पिछले दस-बीस सालों में प्रभावित हुई हैं। छुट्टा पशुओं की समस्या इन दिनों ज्यादा गंभीर हो गई है। समझा जा सकता है कि जब एक रोज़ सवेरे उठते हैं और देखते हैं कि आपकी सारी फ़सल छुट्टा पशुओं ने बर्बाद कर दी है। इस बर्बादी को भला कौन झेल पाएगा। कुछ किसान तो इस दबाव को झेल भी नहीं पाते और उनकी समूची गृहस्थी बिखर जाती है।"

भोका बांध, जिसे अफसरों ने कागजों पर बंधी में तब्दील कर दिया

एसकेएम ने छोड़ी मुहिम

मानसूनी बारिश न होने के कारण चकिया के शिकारगंज इलाके में इस साल हजारों हेक्टेयर ज़मीन पर धान की फसलें नहीं लग पाईं। जिन किसानों ने किसी तरह रोपाई कर भी दी, वो पूरी तरह बर्बाद हो गईं। चंदौली के जिला कृषि अधिकारी बसंत दुबे कहते हैं, "खरीफ की फ़सल को थोड़ा नुक़सान हुआ है, जिसकी भरपाई रबी सीजन में हो जाएगी।"

सूखे की मार झेल रहे किसानों के मुद्दे को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बड़ी मुहिम छेड़ दी है। मजदूर किसान मंच के राज्य कार्य समिति के सदस्य अजय राय "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "भाजपा सरकार की नाकामी के चलते शिकारगंज इलाके के हजारों किसान मर रहे हैं और सरकार सो रही है। नौजवानों के सामने रोजी-रोटी का गंभीर संकट पैदा हो गया है। सिंचाई महकमे के अफसर और सत्तारूढ़ दल के नेता दशकों से किसानों के साथ छलावा कर रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा आंदोलन छोड़ा है। जब तक भोकाकट परियोजना नगर भोका बांध से नहीं जोड़ी जाएगी, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।"

दरअसल, भोकाकट माइनर परियोजना को भोका बांध में मिलाकर सिंचाई का पुख्ता इंतजाम करने का मुद्दा कोई नई मांग नहीं है। करीब दो दशक पहले शिकारगंज इलाके के किसानों ने पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को मौके पर बुलाया था और उनके सामने अपनी बेहाली का दुखड़ा सुनाया था। उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जंगलों के बीच धुसरियाडीह पहुंचकर नहर बनाने के लिए अपने हाथ से फावड़ा चलाकर तत्कालीन सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि चंद रुपये खर्च करके सरकार हजारों किसानों के चेहरों पर मुस्कान ला सकती है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मुद्दे को लेकर 25 सितंबर 2022 को शिकारगंज स्थित चौधरी चरण सिंह इंटर कालेज में विशाल किसान पंचायत बुलाई थी। किसानों के लाख प्रयास के बावजूद सरकारी मशीनरी अब तक मौन है। सूखे की मार झेल रहे किसानों ने कुछ रोज पहले ही चकिया के भाजपा विधायक कैलाश खरवार और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबलि सिंह को मौके पर बुलाया। दोनों नेताओं ने पीड़ित किसानों की मांग को जायज तो माना, लेकिन सिंचाई विभाग के अफसरों की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने कई मांगें उठाई हैं। शिकारगंज इलाके के किसान चाहते हैं, कि उनकी मुश्किलें तभी दूर होंगी, जब भोकाकट माइनर परियोजना को सीधे भोका बांध में मिला दिया जाए। विंध्य पर्वत श्रृंखला की अतरसुंघवा पहाड़ियों से रिसकर भोकाकट माइनर में पानी आता है। यही पानी धुसरिया जंगल में पहुंचकर छितर-बितर हो जाता है। शिकारगंज इलाके में किसानों के लिए सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए भोकाबंधी, गुलालबंधी, मुकरमबंधी, बहेलियापुर बंधी, हेमियाबंधी, बिहड़ी बंधी, गणेशपुर बंधी का निर्माण कराया गया, लेकिन सिर्फ 900 मीटर नहर खोदकर भोकाकट माइनर को भोका बांध से जोड़कर सालों पुराने नसूर को खत्म करने की कोशिश नहीं की गई।

जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबलि सिंह

धान का कटोरा कहे जाने वाले चकिया इलाके में पिछाड़ की बारिश के बावजूद सूखे का जबर्दस्त असर है। इस इलाके के मशहूर गांव भभौरा में सैकड़ों बीघा जमीन परती पड़ी हुई है। यह गांव देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का है। सिंचाई का इंतजाम न होने के कारण भभौरा के कुछ ही खेतों में खरीफ की फसलें बोई जा सकी हैं। कुशही, करवंदिया, बलिया कला, बलिया खुर्द, शिकारगंज, बोदलपुर, मुड़हुआ, पण्डी, जोगिया कला, दायुदपुर, गायघाट, बोदलपुर, अलिपुर भंगड़ा,  गणेशपुर, पिपडखडिया, रामपुर सहित दर्जनों गांव सूखे के चपेट में हैं।

रद हो मछली मारने का ठेका

किसान संयुक्त मोर्चा की दूसरी सबसे बड़ी मांग यह है कि बांध-बंधियों का ठेका रद हो। चंदौली के किसान तब तक सूखे की मार झेलते रहेंगे, जब तक बांध और बंधियों में मछली मारने का गैर-कानूनी खेल चलता रहेगा। शिकारगंज के कुशही निवासी किसान नेता सरोज यादव कहते हैं, "चंदौली में मछली ठेकेदारों का एक बड़ा नेक्सेस काम कर रहा है। कई मछली माफिया ऐसे हैं जिनके इशोरों पर सिर्फ सिंचाई व बंधी विभाग के अफसर ही नहीं, सत्तारूढ़ दल के नेता भी नाचते हैं। चकिया इलाके के अतिथि गृहों में आए दिन मछली की दावतें होती हैं, लेकिन शिकारगंज इलाके के 54 गांवों के किसानों के दुर्दिनों पर कोई चर्चा नहीं होती।"

मछली माफिया के खेल को उजागर करते हुए सरोज यादव यह भी कहते हैं, "ठेकेदारों ने मुनाफा कूटने के लिए भोका बांध को बंधी में तब्दील करा दिया है। पिछले कई सालों से इस बंधी का मछली ठेका खुलेआम और निष्पक्ष तरीके से नहीं हो रहा है। एक ही ठेकेदार दशकों से भोका बंधी का पानी बहाकर मछली मार रहा है। इस मछली माफिया का दंश हजारों किसानों को भुगतना पड़ा रहा है। यही वजह है कि दशकों से दर्जनों गांवों में अनाज का एक दाना भी पैदा नहीं हो पाया है। सिर्फ पशुपालन और मजूरी व तेंदू पत्ता तोड़कर लोग दो वक्त की रोटी का किसी तरह से जुगाड़ कर पा रहे हैं।"

संयुक्त किसा मोर्चा से जुड़े अमर बहादुर चौहान कहते हैं, "योगी सरकार अगर वाकई शिकारगंज इलाके के किसानों का हित चाहती है तो सबसे पहले नेवाजगंज पंप कैनाल की क्षमता बढ़ाए। चंद्रप्रभा नदी का पानी उठाकर भोका बांध में गिराए। संयुक्त किसान मोर्चा की तीसरी सबसे बड़ी मांग यह है कि सूखे की मार झेलने वाले किसानों का कर्ज माफ किया जाए। साथ ही भरण-पोषण के लिए सरकार उन्हें अनुदान मुहैया कराए।"

शिकारगंज इलाके में सूखे के साथ पेयजल का भी गंभीर संकट बना हुआ है। गर्मी के दिनों में इन इलाकों में टैंकरों के जरिये पानी का आपूर्ति की जाती रही है। इलाके के किसान आदित्य मौर्य, अमित कुमार, लालू यादव, सुधार यादव, बलवंत यादव, राजेंद्र यादव सुदामा, विमलेश कुमार, अजय सिंह, कपिल यादव आदि ने न्यूजक्लिक से कहा, "किसान हितों की अनदेखी करने वाली योगी सरकार के खिलाफ लड़ाई तेज की जाएगी। यह सरकार चाहती है कि देश के किसान अपनी जमीनें कारपोरेट घरानों के हवाले कर दें और वो खुद अपनी जमीनों पर गुलाम बन जाएं। इसी मकसद को अमलीजमा पहनाने के लिए मोदी सरकार किसान  विरोधी कृषि बिल लेकर आई थी। किसानों के कड़े विरोध के चलते उसे तीनों काले किसान विरोधी बिलों को वापस लेना पड़ा था।"

सूखे की मार झेल रहे चकिया के शिकारगंज इलाके के किसान सरोज कुमार, रूपेंद्र चौहान, बाढू चंद यादव, रामचंद्र सिंह यादव, उदय नाथ यादव, हिम्मत बहादुर सिंह, प्रवीण कुमार सिंह,  हनुमान प्रसाद न्यूजक्लिक से कहते हैं, "भोका कट माइनर परियोजना को भोका बांध से जोड़ने के लिए जल्द ही धन मुहैया नहीं कराया गया तो शिकारगंज इलाके के लाखों किसान अगामी लोकसभा चुनाव का न सिर्फ बायकाट करेंगे, बल्कि सियासी नेताओं की गाड़ियों को अपने गांवों में घुसने भी नहीं देंगे।"

दशकोंं पर खोदी गई नहर बेमतलब साबित

सुखाड़ की जद में चंदौली का बड़ी हिस्सा

चकिया इलाके से लजीज व्यंजन बनाने के लिए सुगंधित चावल समूचे उत्तर भारत में भेजा जाता है। बादशाह भोग और जीआर-32 जैसे सुगंधित धान का रकबा अब लगातार घटता जा रहा है। सूखे के संकट के चलते किसानों की बर्बादी थमने का नाम नहीं ले रही है। चकिया इलाके में ज्यादातर किसान खाद्यान्नों की खेती करते हैं। नकदी फ़सल उगाने वाले किसान कम हैं। असल दिक्कत पानी की है। पानी तो है, लेकिन मछली माफिया बांधों का पानी बहा देते हैं। किसान महासभा के अनिल पासवान "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बावजूद किसानों पर सूखे का बुरी तरह से असर पड़ा है। सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों, खेती के दबाव, फ़सल की नाकामी जैसे कारणों से किसानों की मौतें हो रही हैं। बहुत सारे लोग खेती से सीधे नहीं जुड़े हैं, लेकिन उनकी जिंदगी की तंगहाली बढ़ती जा रही है। खेती पर निर्भर रहने वाले पूर्वांचल में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न के उत्पादन में हर साल कमी आ रही है। अबकी सूखे के चलते धान की फसल पर बहुत बुरा असर पड़ा है। रबी की खेती से उम्मीद नहीं है। इससे खाद्यान्न की उपलब्धता और उनकी क़ीमतों पर इसका ज़रूर असर पड़ेगा।"

पासवान कहते हैं, " भोकाकट नहर परियोजना को भोका बंधे से नहीं जोड़ा गया तो इसका असर दूरगामी होगा। आगामी लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ माहौल बनेगा और जनता अपनी उपेक्षा का हिसाब मांगेगी। शिकारगंज इलाके के लाखों लोग सरकार से नाराज़ हैं कि आप सालों से सिर्फ आश्वासनों की घुट्टी पिलाते आ रहे हैं। सत्ता में चाहे एनडीए रही हो या यूपीए की। किसानों की मुश्किलें दोनों ही सरकारों में जस की तस रहीं। दरअसल, खामी हमारी बुनियादी नीतियों में है। हमारी आर्थिक नीतियां सही नहीं हैं। पूर्वांचल में धान-गेहूं के विपणन की समस्या सबसे ज्यादा विकट है। हमारे कृषि विश्वविद्यालयों ने पिछले तीन दशकों में आम किसान के लिए कुछ नहीं किया है। कोई नया और सस्ता बीज नहीं लाए हैं। राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ एमएस स्वामीनाथन ने पांच खंडों में अपनी रिपोर्ट पेश की, लेकिन संसद ने साल 2005 से आज तक उस पर बहस कराने की जरूरत नहीं समझी।"

चंदौली जिले नौगढ़ प्रखंड से बहने वाली कर्मनाशा और चंद्रप्रभा नदी इन दिनों सूखी दिखाई दे रही हैं। इनका हाल पहले ऐसा नहीं था। इन नदियों की तलहटी में आजकल लोग चहलकदमी करते देखे जा सकते हैं। समझा जा सकता है कि यह हाल अभी है तो गर्मी के दिनों में क्या होगा? आमतौर पर बरसाती नदियां चंदौली के बांध-बंधियों को लबालब भरा करती रही हैं। सिंचाई के लिए लोग इन नदियों पर निर्भर रहते हैं, लेकिन इस बार परिस्थितियां एकदम उलट हैं। ऐसा लग रहा है जैसे चंदौली के एक बड़ा हिस्सा भारी सुखाड़ के जद में आ चुका है।

जनवादी नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह "न्यूजक्लिक"  से कहते हैं, "हमारी सरकार सिर्फ बोलती है कि सूखा पीड़ित किसानों को मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन देती नही है। पूर्वांचल में 80 फीसदी खेती बारिश के पानी पर निर्भर है। भूजल व सतही जल के अत्याधिक दोहन और ग्लोबल वार्मिंग से बदली परिस्थितियों ने देशभर में सूखे के दायरे को और व्यापक बनाया है। किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। फसलें नष्ट होने के साथ ही उनके सामने रोजगार का भीषण संकट पैदा हो गया है। पूर्वांचल में रोजगार की तलाश में पलायन का सिलसिला शुरू हो गया है। मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि आखिर वह किसानों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ क्यों कर रही है? सरकार से मांग करना चाहूंगा कि पूर्वांचल के साथ ही सूखे से प्रभावित शिकारगंज के हजारों किसानों को तत्काल मुआवजा दिया जाए।"

शिकारगज इलाके में परती पड़े खेत

"सूखे ने सरकार की बेपटरी आपदा प्रबंधन की पोल खोलकर रख दी है। न कहीं कोई मानिटरिंग की व्यवस्था और न ही इंटरनल ऑडिट की। पैसा कैसे खर्च हो रहा है, कहां जा रहा है, इसकी जानकारी खुद आपदा प्रबंधन विभाग को ही नहीं है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में सूखा और बाढ़ की चपेट में होने और सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद देश में विकास की गाड़ी बहुत ही मद्धिम चल रही है। शायद डबल इंजन की सरकार को सही मायने में प्राकृतिक आपदा की जानकारी ही नहीं है।"

अखिलेंद्र यह भी कहते हैं, "मुझे यह कहते हुए बहुत तकलीफ हो रही है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली के शिकारगंज के उस इलाके के लोग सूखे की मार झेल रहे हैं जहां बांध-बंधियां की भरमार है। नहरें  हैं और लिफ्ट कैनाल परियोजनाएं भी हैं। अगर कुछ नहीं है तो सिर्फ सरकार के पास इच्छा शक्ति। शायद मोदी-योगी की सरकार शिकारगंज इलाके के लोगों को अपना हिस्सा मानने को तैयार नहीं है जो इस आपदा से हर साल जूझते आ रहे हैं। देश की रीढ़ की हड्डी कहा जाने वाला किसान इस कभी सूखे की चपेट में आ रहा है तो कभी उसे बाढ़ तबाह कर देती है। तब किसानों के सामने सिर्फ दो ही विकल्प बचता है। सूखे से पीड़ित किसान सुसाइड कर लेता है या फिर अपनी मातृभूमि को छोडकर पलायन कर जाता है।"

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