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ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली पुलिस की बर्बरता की शिकार निशा यादव की मौत का हिसाब मांग रहे जनवादी संगठन

"हमें तो पुलिस के किसी भी जांच पर भरोसा नहीं है। जब पुलिस वाले ही क़ातिल हैं तो पुलिसिया न्याय पर हम कैसे यकीन कर लें? सीबीआई जांच होती तो बेटी के क़ातिल जेल में होते। हमें डरे हुए हैं। "
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उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के मनराजपुर में पुलिसिया दबिश के दौरान कथित जुल्म-ज्यादती की शिकार बेकुसूर निशा यादव (गुड़िया) की मौत से उपजा जनाक्रोश अभी नहीं थमा है। शादी से चंद रोज पहले हुई इस युवती की मौत के गम से उसके परिजन नहीं उबर सके हैं। सैयदराजा इलाके में पुलिस ही नहीं, योगी सरकार के ‘रामराज’ के प्रति गुस्सा और तल्खी है। समूचा इलाका सुलग रहा है और पूर्वांचल के तमाम जनवादी संगठन निशा की मौत के लिए डबल इंजन की सरकार से न्याय मांग रहे हैं। यह मांग इसलिए क्योंकि पुलिस ने इस जघन्य हत्या के मामले में गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। आरोप है कि निशा के पिता ने घटना की जांच सीबीआई से कराने की मांग उठाई थी, लेकिन चंदौली के पुलिस कप्तान ने इसकी विवेचना यूपी की सीबीसीआईडी के हवाले कर दी। निशा के खून के छींटे जिन पुलिसकर्मियों की खाकी वर्दी पर पड़े थे, वो सब के सब आजाद घूम रहे हैं।

बेटी की मौत से गमजदा निशा के पिता कन्हैया यादव और उनका परिवार सहमा हुआ है। इनके चेहरे पर खौफ की रेखाएं साफ-साफ पढ़ी जा सकती हैं। जुबान बंद रखने के लिए इन्हें अब भी लगातार धमकियां मिल रही हैं। कन्हैया कहते हैं, " पिछले हफ्ते हमारा बेटा विशाल घर के सामने मंदिर में पूजा-प्रार्थना करने गया तो उसे रोक दिया गया। धमकी दी गई कि हफ्ते भर में समूचे कुनबे को उठवा लिया जाएगा। हमने धमकी की शिकायत चंदौली के एसपी अंकुर अग्रवाल से की और सैयदराजा कोतवाल शेषधर पांडेय से भी। धमकाने वालों के घर पुलिस पहुंची भी, लेकिन उल्टे पांव लौट आई।"

कन्हैया के घर के पास पुलिस का कड़ा पहरा है। इसके बावजूद मनराजपुर गांव में खौफ है और खामोशी भी। ऐसी खामोशी जो इस गांव से गुजरने वालों को पुलिसिया जुल्म और ज्यादती की कहानी सुनाती है। साथ ही माखौल उड़ाती है उस सुराज का भी जहां ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का नारा उछाला जाता रहा है।

चंदौली जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर मनराजपुर गांव में यादव समुदाय के अलावा बिंद, कुम्हार, राजपूत, दलित आदि जातियों के लोग रहते हैं। करीब 1500 की आबादी वाले गांव में पुलिस का खौफ कम नहीं हुआ है। निशा यादव की मौत के बाद कन्हैया को पुलिस परेशान नहीं कर रही है, इसके बावजूद उनका परिवार काफी डरा और सहमा हुआ है। उनके घर की पहरेदारी में एक प्लाटून सुरक्षाकर्मी तैनात है, जो मनराजपुर पहुंचने वालों को बीच रास्ते में ही रोक देते हैं। कड़ी पूछताछ के बाद ही कन्हैया के घर की ओर जाने देते हैं। कन्हैया के घर जाने वाले हर शख्स पर उनकी कड़ी नजर होती है।

कन्हैया के घर में प्रवेश द्वार पर प्लास्टिक की एक कुर्सी पर उनकी 21 वर्षीय बेटी (दिवंगत) निशा यादव की फ्रेम में लगी तस्वीर रखी है। पास में अगरबत्ती का पैकट और स्टैंड भी, जो राख से भरा हुआ है। घर के सामने चौकी पर लेटे कन्हैया यादव हर आने-जाने वालों के आगे हाथ जोड़ देते हैं। यह वही कन्हैया यादव है जो बालू का कारोबार करते रहे हैं। आरोप है कि पुलिस को चौथ न देने पर योजनाबद्ध तरीके से इनकी पहले हिस्ट्रीशीट खोली गई और बाद में गुंडा एक्ट में निरुद्ध करने के बाद जिला बदर करा दिया। मीडिया और नेताओं को देखते ही कन्हैया यादव को न्याय की उम्मीद बंधने लगती है।

वह कहते हैं, "पता नहीं कि हम अपनी बेटी को न्याय दिला पाएंगे या नहीं। अगर लड़ाई लंबी खिंचेगी तब क्या होगा? हमारी बेटी चली गई और हम उसके हाथ पीले नहीं कर सके। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती से हम टूट चुके हैं। आखिर कैसे लड़ेंगे सिस्टम के खिलाफ यह लंबी लड़ाई? पुलिस से भरोसा उठ गया है। बेटी की मौत के बाद से हमारा परिवार उबर नहीं पाया है। निशा की मौत के समय ही पुलिस ने सीबीआई जांच कराने के बहाने एक चिट्ठी पर सीबीसीआईडी जांच की बात लिखवा दी और हमें तब पता चला जब जांच-पड़ताल के लिए एक महिला अफसर आईं।"

"हमें तो पुलिस के किसी भी जांच पर भरोसा नहीं है। जब पुलिस वाले ही कातिल हैं तो पुलिसिया न्याय पर हम कैसे यकीन कर लें? सीबीआई जांच होती तो बेटी के कातिल जेल में होते। हमें डरे हुए हैं। जब वो हमारे घर में घुसकर बेटी का कत्ल कर सकते हैं तो वह कुछ भी कर सकते हैं। खासतौर पर तब जब सभी आरोपी आजाद घूम रहे हैं। चंदौली के पुलिस अफसर यह कहकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं अब वे कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि जांच-पड़ताल सीबीसीआईडी कर रही है। न किसी से पूछताछ, न पड़ताल। इस एजेंसी की जांच हमारी समझ में नहीं आ रही है। मेरी बेटी को न्याय तो तभी मिलेगा जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में जांच होगी।"

पुलिस बर्बरता की शिकार कन्हैया की दूसरी बेटी गुंजा की सेहत में अब सुधार है। हालांकि पुलिस की लाठियों ने उसके हौसले को भी बुरी तरह तोड़ दिया है। गुड़िया की मौत का जिक्र आते ही गुंजा की आंखें बरसने लगती हैं और शरीर में कंपकंपी छूटने लगती है। कुछ देर बात संयत होने पर वह समूचा दास्तां सुनाती है। कहती है, "हम कैसे भूल पाएंगे अपनी दीदी की मौत के कातिलों को? सैयदराजा पुलिस ने तो हमारे ऊपर भी थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया था। इत्तेफाक था कि हम जिंदा बच गए। दीदी के साथ पुलिस हमारे बदन पर भी ताबड़तोड़ बेल्ट और लात-घूते बरसा रही थी। हमारी पिटाई तब तक होती रही, जब तक हम बेदम नहीं हो गए। पुलिस का एक जत्था हमें पीट रहा था और तीन सितारा वाला इंस्पेक्टर उदय प्रताप सिंह मेरी दीदी निशा को दौड़-दौड़ाकर बेल्ट और बेंत से मार रहा था। दीदी को वह दरोगा तब तक पीटता रहा जब तक कि उसकी मदद के लिए चीख-पुकार बंद नहीं हो गई। घटना के समय घर में कोई नहीं था। यह घटना 01 मई 2022 की है।"

"सैयदराजा थाने का दरोगा हमारे परिवार को सबक सिखाने के लिए पूरी तैयारी के साथ आया था। वारदात से पहले ही करीब 35-40 पुलिसकर्मियों ने हमारे घर घेर लिया था, जिसमें कई महिला सिपाही भी थीं। हम लोग छत पर थे। अंदर से दरवाजा बंद था। पुलिस दरवाजा तोड़कर अंदर घुसी। हमने उनका विरोध किया तभी खाकी वर्दी वालों ने हमारे साथ मारपीट शुरू कर दी। महिला सिपाहियों से ज्यादा पुरुष पुलिसकर्मी हमें पीटते जा रहे थे। गुंजा बताती है, "दीदी कमरे के अंदर भागी और ऊपर एक कमरे में छिपने की कोशिश की तो पीछ से कई पुलिसकर्मी भी वहां पहुंच गए। उन्होंने हमारी दीदी को बेल्ट और डंडों से पीटना शुरू कर दिया। दीदी की मदद के लिए मैं चिल्ला रही थी। इंस्पेक्टर को देखकर मैंने आवाज लगाई कि सर यह क्या कर रहे हैं...? हमारी दीदी को छोड़ दीजिए। उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी और दीदी पर लात-घूसों की बरसात करते रहे। बाहर मेरे साथ मारपीट की जा रही थी। थोड़ी देर में दीदी की आवाज आनी बंद हो गई। मैंने पूछा तो मेरी बात का कोई जवाब नहीं दे रहा था। मैं ऊपर पहुंची तो देखा कि दीदी पंखे से लटकी थीं। गले में साड़ी थी और पैर जमीन पर थे। बक्से से नई साड़ी निकालकर फंदा बनाया गया था। फंदे की गांठ बहुत ढीली थी। मैंने खुद फंदा खोला और दीदी को फर्श पर लिटाया। हम दोनों का गुनाह सिर्फ इतना था कि हमने चौतरफा घर घेरकर खड़े पुलिस वालों यह पूछ दिया था कि बिना वारंट के कैसे आ गए? पहले तो वो डाटते रहे..., गालियां देते रहे...फिर उन्होंने हमारी ताबड़तोड़ पिटाई शुरू कर दी।"

नहीं सुलझ पाई गुत्थी

21 वर्षीया निशा यादव की मौत की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझ पाई है। पुलिस का कहना है कि वह हिस्ट्रीशीटर कन्हैया (निशा के पिता) को पकड़ने के लिए लगातार दूसरे दिन दबिश देने मनराजपुर पहुंची थी। दूसरी ओर, परिजनों का साफ-साफ कहना है कि जब कन्हैया नहीं मिले तो खीझ उतारने के लिए इंस्पेक्टर उदय प्रताप सिंह और उसके हमराहियों ने दोनों बहनों पर गुस्सा उतारना शुरू कर दिया। इस घटना के लेकर समूचा विपक्ष अभी तक सरकार पर हमला बोल रहा है। मृतक निशा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी है, जिसमें गंभीर चोट के निशान नहीं दर्शाए गए हैं। तीन डाक्टरों की टीम ने शव का पोस्टमार्टम किया है। रिपोर्ट में सिर्फ गले और जबड़े पर चोट के हल्के निशान तस्दीक किए गए हैं।

इसी पंखें से निशा को लटकाने का आरोप है

मृतका निशा यादव के परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने मारपीट के बाद शव को फांसी के फंदे पर लटका दिया था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हैंगिंग की बात नहीं आई है। अगर लड़की ने घर में फांसी लगाई, तो उसे फंदे पर लटकते हुए किसी बाहरी आदमी ने क्यों नहीं देखा? गले के सामने खरोंच और बाएं जबड़े के नीचे आधा सेमी की चोट कैसे आई? इसके अलावा शरीर पर आंतरिक और बाहरी किसी तरह की चोट के निशान क्यों नहीं पाए गए? मौत का कारण अभी तक साफ नहीं हो सका है, इसलिए विसरा परीक्षण के लिए सुरक्षित रखा गया है। लेकिन विसरा तो तब सुरक्षित रखा जाता है जब किसी के जहर खाने से मौत होती है। बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि न कोई चोट है और न ही सुसाइड की पुष्टि तो फिर निशा की जान कैसे गई?

सैयदराजा कोतवाली क्षेत्र के मनराजपुर गांव के कन्हैया पर पुलिस का आरोप है कि वह बालू का अवैध कारोबार करता था और उसका आपराधिक इतिहास काफी पुराना है। घर के कई सदस्यों पर अलग-अलग मामले दर्ज हैं। पुलिस उसे पकड़ने के लिए मनराजपुर स्थित उसके घर गई थी। 

‘न्यूज़क्लिक’ से बातचीत में कन्हैया सैयदराजा थाना पुलिस पर कई आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, "निशा को खाकी वर्दी वालों ने पहले बेरहमी से मारा और हत्या करने के बाद लाश को कमरे में लटकार भाग खड़े हुए। मेरे ऊपर लगे गए सभी आरोप मनगढ़ंत, झूठे और फर्जी हैं। मैं कोई खनन माफिया नहीं हूं। मैं पुलिस को सुविधा शुल्क नहीं दे रहा था, इसलिए वह मेरे पीछे पड़ी थी। रिश्वत देने के लिए वह मेरे ऊपर लगातार दबाव बना रही थी। हमारे पास बालू की दुकान लगाने का लाइसेंस है। हम तो जीएसटी की अदायगी भी करते रहे हैं। थानेदार ने मुझसे दस हजार रुपये रिश्वत मांगी थी। मेरा कारोबार ठीक से चल नहीं पा रहा था। हम पुलिस को भारी-भरकम सुविधा शुल्क देने की स्थिति में नहीं थे। अपनी बेटी के हाथ पीला करना चाहता था, लेकिन हालात ने हमें उस मोड़ पर पहुंचा दिया कि हमारी दुनिया ही उजड़ गई। हमें नहीं मालूम कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या आया, लेकिन निशा के शरीर पर चोट के निशान के अक्स आज भी हमारे मन में उभरते हैं तो रूह कांप जाती है। आखिर उसकी पीठ, गले और जबड़े पर पर पुलिस की पिटाई के निशान पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैसे गायब हो गए? यह बात तो हर कोई जानता है कि वारदात के बाद से समूचा सिस्टम कातिल पुलिस वालों को बचाने में जुटा था। ऐसे में इस राज में हम न्याय की गुहार कहां लगाएं?"

पुलिस की नीयत पर सवाल

पुलिसिया जुल्म की शिकार निशा को न्याय दिलाने के लिए मनराजपुर में कन्हैया के घर पर मौजूद अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की स्टेट सेक्रेटरी कुसुम वर्मा भी पुलिस की बर्बर कार्रवाई और सरकार की नीयत पर बड़ा सवाल खड़ा करती हैं। वह कहती हैं, " आखिर यह कैसा रामराज है, जहां खाकी वर्दी जघन्य तरीके से किसी की जिंदगी छीन ले, सरकार और उनके नुमाइंदे हत्यारों को आजाद घूमने के लिए छोड़ दें। नंगा सच तो यह है कि यूपी में औरतें सुरक्षित नहीं हैं। योगी सरकार की पुलिस वाहवाही लूटने के लिए घर में घुसकर बर्बर तरीके से बेटियों का कत्ल कर रही है और सत्ता तमाशबीन बना बैठी है। क्या बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा ढोंग है? आखिर यह कैसा न्याय है कि 25 रोज गुजर जाने के बावजूद दोषी पुलिसकर्मी फरार हैं और उन तक जांच एजेंसी नहीं पहुंच पा रही है। हमें तो यही लगता है कि डबल इंजन की सरकार न्याय देने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि इस खेल में जातिवाद का पेच भी फंस गया है। औरत मारी गई है, जिसकी चिंता किसी को नहीं है। समूचे प्रकरण में हाईकोर्ट को स्वतः संज्ञान में लेकर निष्पक्ष जांच और कार्रवाई करानी चाहिए।"

कुसुम के साथ खड़ी मिर्जापुर ऐपवा की प्रतिनिधि जीरा भारती कहती हैं, "यह योगी का कैसा सुराज है जहां पुलिस ही अपराधियों की राह पर चल पड़ी है। चंदौली से लगायत ललितपुर, सिद्धार्थनगर, गोंडा, आगरा, प्रयागराज की तमाम घटनाओं में पुलिस की संलिप्तता उजागर हो चुकी है। योगीराज-2 में पुलिसिया जुल्म-ज्यादती और बर्बरता के सारे रिकार्ड टूट गए। फिर भी सिस्टम पर कोई असर नहीं है। स्थितियां जस की तस हैं। निशा ही हत्या से सिर्फ पुलिस पर ही नहीं, योगी सरकार के सुशासन पर भी खून के छींटे पड़े हैं। इस घटना से हर कोई आहत है। खासतौर पर वो औरतें जो पुलिसिया जुल्म-ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाने के लिए खड़ी हो रही थीं, लेकिन आतताई पुलिसवालों ने निशा के साथ उन सभी औरतों के मंसूबों का गला घोंट दिया। सीबीसीआईडी जांच से कुछ भी मिलने वाला वाला नहीं है। जांच एजेंसी के अफसर आ रहे हैं और जा रहे हैं, लेकिन फिर भी परिजनों पर खतरा मंडरा रहा है। आजाद घूम रहे पुलिस वाले उद्वेलित लोगों की आवाज दबाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। अब औरतों का भरोसा योगीराज से उठता जा रहा है।"

गोलबंद हो रहे जनवादी संगठन

मृतका निशा यादव को न्याय दिलाने के लिए जनसरोकार के लिए मुहिम चलाने वाले दर्जन भर संगठनों ने मिलकर बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया है। जनवादी संगठनों को ग्राउंड पर जनसमर्थन भी मिलता हुआ दिखा रहा है। चंदौली जिला मुख्यालय पर लगातार धरना-प्रदर्शन चल रहा है। आंदोलन स्थल से कुछ ही दूरी पर है चंदौली के कलेक्टर का दफ्तर भी। बनारस-कोलकाता हाईवे से सटे धरना स्थल पर चिलचिलाती धूप और उमस के बावजूद लोग जमे हुए हैं। पीपल के एक विशाल पीपल के वृक्ष के ओट में टेंट लगाया गया है। सिकुड़ी हुई एक-दो दरियां बाहर तक फैली हुई थी और कई जोड़े जूते-चप्पल बिखरे हुए थे, जो यह तस्दीक कर रहे थे टेंट में कई लोग मौजूद हैं।

चंदौली में कलेक्ट्रेट के समीप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), भारतीय किसान मोर्चा,  भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक), अखिल भारतीय प्रगतिशील एसोसिएशन (ऐपवा) और सभी विपक्षी दलों का साझा धरना चल रहा है। टेंट में कोने पर टेबल मृतका निशा यादव की एक तस्वीर रखी हुई थी। धरना स्थल पर मौजूद लोग सावधान अवस्था में बैठे थे और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श में तल्लीन थे। अंदर दरी पर भूख हड़ताल पर बैठे कार्यकर्ताओं से सीपीआई-एमएल यूपी के स्टेस्ट सेक्रटरी सुधाकर यादव किसी विषय पर चर्चा में मगन थे। मनराजपुर से सैयदराजा थाने तक आक्रोश मार्च निकालने की तैयारी चल रही थी।

कल तक सुरक्षा का भरोसा बने खाकी वर्दी पर लगे निशा की हत्या आरोपों के धब्बे अभी मिटे नहीं हैं। आसपास के गांवों में इस घटना को लेकर आक्रोश थमता नजर नहीं आ रह है। तीन दिन से लगातार भूख हड़ताल पर बैठे भारतीय किसान यूनियन के वीरेंद्र यादव अर्द्ध मूर्छित अवस्था में धरना स्थल पर लेटे हुए मिले। उनके पास बैठे थे किसान यूनियन के लोग। बातचीत में उन्होंने पुलिस और सरकार पर सवालों की झड़ी लगा थी। उनका कहना था कि सरकार निशा यादव को न्याय दे, नहीं तो हम लोग गर्मी के बाद बरसात में भी यहीं बैठे मिलेंगे। धरने में 48 घंटे की भूख हड़ताल बैठी सपना की सेहत बिगड़ती जा रही थी। हालांकि सीपीआई-एमएल के स्टेट सचिव सुधाकर यादव ने थोड़ी देर बाद खिचड़ी खिलाकर उनका अनशन तुड़वा दिया।

धरनास्थल पर कई दिन पहले आईं रानी मौर्य भी निशा यादव के साथ हुई पुलिसिया बर्बरता से बहुत दुखी नजर आईं। वह कहती हैं, "इस तरह की घटना का दुहराव नहीं हो, इसके लिए आरोपी पुलिस कर्मियों पर सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें अविलंब जेल भेजा जाना चाहिए। पुलिस पर एक्शन न होने की वजह से चंदौली में महिलाओं और लड़कियों पर जुल्म-ज्यादती की घटनाओं में इजाफा हो रहा है।"

आंदोलन की तैयारियों में जुटे सीपीआई-एमएल के चंदौली जिला सचिव शशिकांत सिंह “न्यूज़क्लिक” के कहते हैं, " निशा के हत्यारों में तत्कालीन सैयदराजा इंसपेक्टर यूपी सिंह की भूमिका सबसे ज्यादा खतरनाक रही। पुलिस ने सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए दफा 304 में रपट लिखी और उन्हें फौरन भगा दिया। यूपी में हाल ही में चार महिलाओं की जघन्य तरीके से हत्याएं हुई हैं। भाजपा का पूरा राज फासीवाद में बदल गया है। हम बड़ी जनगोलबंदी कर रहे हैं। पूर्वांचल को घेरना होगा तो घेरेंगे और कई संगठनों के साथ मिलकर लखनऊ में राज्यस्तरीय प्रतिवाद भी करेंगे। चंदौली को पहले नक्सल इलाका बताकर बदनाम किया गया और अब इसे लूट-खसोट का बड़ा गढ़ बना दिया गया है। असल लड़ाई तो बालू के लूटपाट पर वर्चस्व की ही है। मनराजपुर केस के तार भी बालू व्यापार के धंधे से जुड़े हैं। कड़ियों को जोड़ा जाएगा तो सत्तारूढ़ दल के तमाम जनप्रतिनिधि नंगे हो जाएंगे और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ सकती है।"

लंबे संघर्ष के मूड में आंदोलनकारी

वाराणसी ऐपवा की जिला सचिव स्मिता बागड़े ने कहा, " समाज में सांप्रदायिकता का जहर भरने वाली भाजपा सरकार का बुलडोजर अब गरीबों और औरतों का दमन कर रहा है। पुलिस बेधड़क लोगों के घरों में घुस रही है। लूटपाट और बलात्कार तक कर रही है। फिर भी डबल इंजन की सरकार को तनिक भी शर्म और हया नहीं है। निशा को न्याय दिलाने के लिए आगामी 20 जून को लखनऊ में ऐपवा धरना देगी।"

उधर, भीम आर्मी के चंदौली जिलाध्यक्ष शैलेश कुमार भी पुलिस पर भ्रष्टाचार और माफिया गिरोहों को संरक्षण देने का खुलेआम आरोप लगा रहे हैं। वह कहते हैं, "मृतका के पिता के सिर पर मढ़े गए फर्जी गुंडा एक्ट और जिलाबदर की कार्रवाई वापस ली जानी चाहिए। घटना की न्यायिक अथवा सीबीआई जांच करे। पीड़ित परिवार को मुआवजा और परिवार में एक सदस्य को नौकरी की मांग जब तक पूरी नहीं होगी, हम आंदोलन जारी रखेंगे। पुलिस की कलई खोलते रहेंगे और योगी सरकार की भी।"

सकलडीहा ब्लॉक से आए अखिल भारतीय खेत-ग्रामीण मजदूर सभा के जिला कमेटी के सदस्य तूफानी गोंड और मजदूर सभा के रामबचन पासवान कहते हैं, " प्रशासन का यही हाल रहा तो आम जनता न्याय पाने कहां जाएंगी? जब तक आरोपी गिरफ्तार नहीं होते तब तक लड़ाई जारी रहेगी।"

चंदौली में समाजवादी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष बलिराम सिंह सैयदराजा पुलिस पर संगीन आरोप मढ़ते हुए कहते हैं, " इंस्पेक्टर यूपी सिंह हमराहियों के साथ लड़कियों के सम्मान से खेलने पहुंचा था। उसे मालूम था कन्हैया की बेटियों के अलावा घर में कोई नहीं है। पुलिस ने एक दिन पहले ही कन्हैया यादव के बड़े बेटे को उठा लिया था। वह जानता था कि घर में सिर्फ जवान लड़किया हीं होंगी। मामला बिगड़ते देख इंस्पेक्टर ने अपने हमराहियों को घर के अंदर बुलाया और दोनों लड़कियों पर लाठियां तोड़नी शुरू कर दी।"

कितना सच है एसपी का दावा?

पुलिस-प्रशासन पर अभियुक्त पुलिसकर्मियों को बचाने और समूचे प्रकरण में लीपापोती के आरोपों पर चंदौली के पुलिस अधीक्षक अंकुर अग्रवाल कहते हैं, "शासन से 12 मई को सीबीसीआईडी का आदेश आया था। इसके बाद विवेचना और सभी दस्तावेज पुलिस ने उसके हवाले कर दिए थे। सीबीसीआडी के एडीजी मामले की जांच-जांच-पड़ताल करके लौट चुके हैं। जांच पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। जो भी पुलिसकर्मी आरोपी हैं उनपर सीबीसीआईडी ही जांच के बाद एक्शन लेगी। कन्हैया और उनके पक्ष के लोगों ने सीबीसीआईडी जांच की मांग की थी, जिसके आधार हमने इस जांच के लिए शासन को पत्र लिखा था। निशा यादव का पोस्टमार्टम तीन डॉक्टरों की टीम ने किया है। बाकायदा इसकी वीडियोग्राफी कराई गई है। इस मामले में प्रशासन पुलिस को सहयोग दे रहा है। हाल ही में निशा के भाई विशाल को कुछ स्थानीय लोगों उठाने की धमकी दी थी, जिसके बारे में हमें जानकारी है। हमने सैयदराजा के एसएचओ को निर्देशित किया है कि वो सख्त एक्शन लें। पीड़ित परिवार की सुरक्षा के लिए हमने पर्याप्त फोर्स लगा रख है, ताकि जांच को प्रभावित न किया जा सके।"

सीपीआई-एमएल के सेक्रटरी सुधाकर यादव चंदौली पुलिस की संदिग्ध कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हैं। वह "न्यूज़क्लिक" से कहते हैं, "सबसे पहले निशा हत्याकांड में सैयदराजा विधायक की संलिप्तता की जांच होनी चाहिए। सरकार का कार्यप्रणाली को देखकर लगता है कि वह बेशर्म हो गई है। ऐसी सरकार पर हम यकीन नहीं कर सके। विगत 14 मई से जनवादी संगठन भूख हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं। यह बात हर कोई जानता है कि निशा की हत्या इंस्पेक्टर यूपी सिंह ने ही की है। फिर उसे पकड़ने में सीबासीआईडी खामोश क्यों है? आखिर निशा हत्याकांड पर लीपापोती क्यों की जा रही है? लोकतंत्र और न्याय के लिए हम लड़ते रहेंगे। हमने गृह सचिव को चिट्ठी भेजी है। जल्द ही हमारी पार्टी का डेलिगेशन उनसे मिलेगा। लगता है कि चंदौली जला प्रशासन का अपराधियों, माफिया गिरोहों और तस्करों के साथ फेविकोल जैसा गठजोड़ है।"

सुधाकर यह भी कहते हैं, "यह दौर पूरी तरह से फासिज्म का है, जिसका हम सभी मिलकर मुकाबला करेंगे। विपक्ष हमारे साथ है। यह बात समझ से परे है कि सीबीसीआईडी आखिर किस बात की जांच कर रही हैं? लड़की की हत्या कर फांसी के फंदे पर लटकाने की अथवा कसूरवार खाकी वर्दी वालों को बचाने की? हम दो तरह का कानून कतई नहीं चलने देंगे। हमारी पहली मांग है कि मामले की जांच सीबीआई करें या फिर हाईकोर्ट के जज। न्याय मिलने तक पुलिस के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।" 

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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