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भारत और कनाडा के रिश्तों में बढ़ती तल्ख़ी

कनाडा के प्रधानमंत्री यह भी कह रहे हैं कि वह भारत से तनाव नहीं बढ़ाना चाहते और भारत से मिल कर काम करना चाहते हैं पर वो यह चाहते हैं कि भारत सरकार निज्जर की हत्या को गंभीरता से ले।
canada and india
फाइल फ़ोटो।

भारत और कनाडा के कूटनीतिक रिश्तों में तल्खी और बढ़ गई जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में कनाडा के नागरिक और खालिस्तानी विचारों वाले सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियों के हाथ होने की बात कही। जस्टिन ट्रूडो ने अपने देश के ‘हाऊस आफ कॉमन’ में बोलते हुए कहा कि उनकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास इस बात की पुख्ता जानकारी हैं कि निज्जर के कत्ल में भारतीय एजेंसियों का हाथ है। उन्होंने कहा कि यह बात उन्होंने G-20 सम्मेलन के समय भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्पष्ट रूप में बता दी थी और साथ ही अपने नज़दीकी देशों (अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, आस्ट्रेलिया) के नेताओं को भी अवगत करवा दिया था। कनाडाई प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके देश की धरती पर देश के नागरिक का विदेशी एजेंसियों द्वारा कत्ल हमारे देश की सम्प्रभुता को चुनौती देना है। इसके साथ ही कनाडा के विदेश मंत्रालय ने भारत के सीनियर डिप्लोमैट को देश छोड़ने के लिए कह दिया। 

कनाडा से निकाले गये भारतीय डिप्लोमैट का नाम पवन कुमार राय है। भारत ने कनाडा के इस रवैये का सख्त नोटिस लेते हुए व जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा कि यह आरोप ‘बेतुके’ और ‘प्रेरित’ विचार हैं। भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है, “इस तरह के बेबुनियाद आरोप उन खालिस्तानी आतंकवादियों और कट्टरपंथियों से ध्यान हटाने के लिए हैं, जिन्हें कनाडा में शरण मिली हुई है और वे भारत की प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। इस मामले में कनाडा सरकार द्वारा कोई कदम न उठाना लंबे समय से चिंता का विषय बना हुआ है।”

कनाडा के प्रधानमंत्री यह भी कह रहे हैं कि वह भारत से तनाव नहीं बढ़ाना चाहते और भारत से मिल कर काम करना चाहते हैं पर वो यह चाहते हैं कि भारत सरकार निज्जर की हत्या को गंभीरता से ले। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी कनाडा के डिप्लोमैट उलीवर सिल्वेस्टर को पांच दिन में देश छोड़ने को कहा है। कनाडा ने अपने नागरिकों को भारत के नाज़ुक इलाकों में न जाने की सलाह दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी कनाडा रहने वाले भारतीय नागरिकों को सचेत रहने को कहा है। साथ ही भारत ने कनाडा के नागरिकों की वीज़ा अर्जी पर अस्थायी रोक लगा दी है। 

अमरीका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया, जिनके नेताओं को कनाडाई प्रधानमंत्री फोन पर निज्जर मामले के बारे बता चुके हैं, इस मामले पर अपनी चिंता प्रकट कर चुके हैं। याद रहे कि कनाडा की तमाम राजनैतिक पार्टियाँ भी इस मुद्दे पर जस्टिन ट्रूडो सरकार के साथ हैं, सिर्फ कंज़र्वेटिव नेता Pierre Marcel Poilievre ने ही ट्रूडो को सबूत देने को कहा है। कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के विचार इस मामले पर भले ही अलग-अलग हैं पर दोनों देशों में बढ़ रही तल्खी से सभी दुखी हैं। 

खालिस्तानी विचारों वाले भले ही कनाडा के इलावा अमेरिका,ब्रिटेन आदि देशों में भी रहते है पर इस मुद्दे पर भारत कई सालोँ से कनाडा सरकार को ही कटघरे में खड़ा करता रहा है। शायद इसका कारण यह है कि 1985 के एयर इंडिया कांड की साजिश कनाडा की धरती पर ही रची गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय जब कनाडा में कंज़र्वेटिव पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर भारत आए थे तो भारत की विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर ने कनाडा में रहने वाले खालिस्तानियों का मुद्दा उठाया था। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री जब अपना पहला दौरा कनाडा का करते हैं तो उस समय हार्पर ही कनाडा के प्रधानमंत्री थे। 2015 में जस्टिन ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बनते हैं। ट्रूडो ‘लिबरल पार्टी ऑफ़ कनाडा’ के नेता हैं। अक्टूबर 2019 में ट्रूडो दूसरी बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने। जस्टिन ट्रूडो के समय मोदी का कोई कनाडा दौरा नहीं होता। 2018 में ट्रूडो पहली बार भारत सात दिवसीय दौरे पर आये थे। भारत सरकार ने उस समय ट्रूडो के स्वागत में उदासीनता दिखाई थी। माना जाता है कि भारत ने ऐसा कनाडा का सिख कट्टरपंथियों बारे ‘नरम रवैये’ के कारण किया। ट्रूडो के मंत्रीमंडल में सिख समुदाय को अहम स्थान मिला हुआ है 2018 में उनके मंत्रीमंडल में 3 सिख मंत्री थे। जिसमें सज्जन सिंह रक्षा मंत्री थे, जिनको पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने खालिस्तान का समर्थक कहा था। सज्जन सिंह ने उनके इस दावे को पूरी तरह नकार दिया था। सज्जन सिंह अब भी ट्रूडो के मंत्रीमंडल में शामिल हैं। 2018 में भारतीय मीडिया के एक हिस्से में यह भी शोर मचाया गया कि कनाडा के पी.एम. के साथ आने वाले जसपाल अटवाल खालिस्तानी हैं। लेकिन बाद में पता लगा कि इन दिनों तो अटवाल तो मोदी प्रशंसक हैं।

G-20 सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो में कथित तौर पर तीखी बातचीत हुई। भारतीय मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इसे ऐसे पेश किया जैसे मोदी ने ट्रूडो की ‘क्लास लगा दी हो’। भारत सरकार कनाडा में सिख ‘अलगाववादी लहर’ और उनकी कार्यवाहियों से नाराज़ थी। जबकि कनाडाई प्रधानमंत्री इसे अपने देश के आंतरिक मामलों में भारत की दखल अंदाजी बता रहे थे। उन्होंने भारत में भी यह बात कही थी कि “कनाडा लोकतान्त्रिक, बहुलवादी मूल्यों में यकीन रखता है और हर तरह के विचार को जगह देता है। हमारा देश शांतिपूर्वक रोष प्रदर्शनों की आजादी की सदा रक्षा करेगा और नफरत का हमेशा विरोध करेगा। वह अपनी धरती पर हिंसक गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा।” G-20 सम्मेलन में आए कनाडाई प्रधानमंत्री अपने निजी जहाज़ के खराब होने के कारण दो दिन भारत में ही फंसे रहे। उनके वतन पहुँचते ही खबर आई कि कनाडा ने भारत के साथ ट्रेड/व्यापार मिशन रोक दिया। 

कनाडाई प्रधानमंत्री ने अपने देश की संसद में जिस हरदीप सिंह निज्जर की हत्या मामले में भारत सरकार को कटहरे में खड़ा किया है वह सरी डैलटा के गुरु नानक सिख गुरुद्वारा के अध्यक्ष थे। गत 18 जून को जब वह गुरुद्वारा से अपने घर जाने की तैयारी कर रहे थे तो गुरुद्वारा की सीमा के अंदर ही उन्हें गोलियां मारकर कत्ल कर दिया गया था। हरदीप सिंह निज्जर खालिस्तानी विचारधारा के समर्थक थे। 45वर्षीय निज्जर जालंधर ज़िला के भार सिंह पुरा गाँव से सम्बन्ध रखते थे। वह 1997 में कनाडा गये थे। उनके दो पुत्र हैं। भारत सरकार के मुताबिक निज्जर पाबंदीशुदा ‘खालिस्तान टाईगर फ़ोर्स’ के मुखिया थे, जो भारत में आंतरिक माहौल को खराब करने वाला संगठन है। भारत सरकार के मुताबिक निज्जर का सबंध गुरपतवंत सिंह पन्नू के पाबंदीशुदा संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ से था । एन.आई.ए. ने निज्जर को मोस्ट वांटेड ऐलाना हुआ था और उस पर 10 लाख रुपए का नकद इनाम भी था। दूसरी तरफ निज्जर के करीबियों का कहना है कि भारत सरकार ने लगातार उनके किरदार को बिगाड़ कर पेश किया है। सरी में रहने वाले निज्जर के एक शुभचिंतक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “भले ही निज्जर खालिस्तानी विचारों के समर्थक थे पर वह कोई आतंकी नहीं थे। वह बड़े शांत स्वभाव के थे, लगातार मानव अधिकार मामलों पर बोलते थे। वह सिर्फ सिखों से हो रहे अन्याय पर ही नहीं बल्कि अन्य समुदायों के साथ होती ज्यादतियों बारे भी आवाज़ उठाते थे।” निज्जर के कत्ल के बाद उसके समर्थकों ने कनाडा, अमरीका और ब्रिटेन के कई शहरों में प्रदर्शन किये थे। गत जुलाई में खालिस्तानी समर्थक संगठनों ने कनाडा में कुछ भारतीय राजदूतों के पोस्टर लगा कर उन्हें निशाना बनाने की अपील की थी। इसके बाद भारत ने कनाडा के राजदूत को तलब कर सख्त एतराज़ जताया था। 

निज्जर से पहले कुछ और खालिस्तानी विचारों वाले लोगों की हत्या हो चुकी है जिन पर कनाडा में रहने वाले सिखों के एक हिस्से को शक है कि निज्जर समेत अन्य लोगों की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का हाथ है। गत मई में पाकिस्तान के लाहौर में खालिस्तान हिमायती परमजीत सिंह पंजवड़ की हत्या होती है। वह भारत के मोस्ट वांटेड अपराधियों में से एक था और कई सालों से पाकिस्तान में रह रहा था। गत 15 जून को यू.के. में खालिस्तान समर्थक और ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखी अमृतपाल सिंह के नज़दीकी अवतार सिंह खंडा का बर्मिंघम के हस्पताल में देहांत हो गया था। खंडा की मौत का सही कारण अभी स्पष्ट नहीं हुआ। खालिस्तानी समर्थकों का कहना है कि उसकी हत्या करवायी गई है। कुछ रिपोर्ट्स उनकी मौत का कारण ब्लड कैंसर बताती हैं। 15 जून 2022 को कनाडा के सरी में गोली मार कर कत्ल किये गए रिपुदमन सिंह मलिक का कत्ल भी अभी रहस्य बना हुआ है। मलिक 2005 में 1985 के एयर इंडिया जहाज़ को उड़ाने की साजिश के आरोपों से सबूतों की कमी के कारण बरी हुए थे। इस घटना में 331 लोग मारे गए थे। रिपुदमन मलिक बब्बर खालसा से जुड़े हुए थे। भारत सरकार ने उनका नाम ‘ब्लैक लिस्ट’ से हटा दिया था। उसने दो-तीन बार भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की खुल कर तारीफ की थी। कनाडा में सिखों का एक बड़ा हिस्सा (सिर्फ खालिस्तानी ही नहीं आम सिख भी) मलिक को भारत सरकार और भारतीय एजेंसियों से ‘मिला हुआ’ मानने लगे थे। 

अपनी मौत से कुछ दिन पहले हरदीप सिंह निज्जर ने कनाडा में भारतीय मूल के पत्रकार और रेडियो  ब्रॉडकास्टर गुरप्रीत सिंह को दिए इंटरव्यू में आशंका जतायी थी कि वह भी भारतीय एजेंसियों की हिट लिस्ट पर हैं। गुरप्रीत हमें बताते हैं, “पाकिस्तान में परमजीत सिंह पंजवड़ की हत्या के बाद निज्जर ने एक बयान जारी कर सिख समुदाय को सचेत रहने को कहा था। उसने गुरु नानक सिख गुरुद्वारा में पंजवड़ की याद में अरदास भी की थी।” गुरप्रीत ने निज्जर के साथ जो आख़री रेडियो इंटरव्यू किया था उसका क्लिप हमारे पास है जिसमें निज्जर कह रहे हैं, “पंजवड़ के कत्ल के बाद यहाँ बसने वाले सभी सिखों, मानव अधिकारों से जुड़े लोगों और खासकर खालिस्तान की विचारधारा वालों को सचेत होने की जरूरत है। भारत सरकार अपने भाड़े के बन्दों से उनका कत्ल करा सकती हैं। सचेत होना पड़ेगा। भारतीय एजेंसियां यहाँ कनाडा में भी सरगर्म हैं। पिछले दिनों भारत सरकार ने उन 9 लोगों की लिस्ट जारी की है जो कौम की आजादी की बात करते हैं उनमें एक नाम हरदीप सिंह का भी है (निज्जर का इशारा अपने ओर है) । हम कनाडा सरकार की एजेंसियों को भी कहेंगे के हमारी सुरक्षा यकीनी बनाई जाए। पिछले समय से मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने कनाडा की राजनीति में बुरी तरह से घुसपैठ की है।  हमारी धार्मिक संस्थाओं में उनकी एजेंसियों के बन्दे घुसपैठ कर चुके हैं। वो किसी का भी यहाँ कत्ल करवा सकते हैं। अजीत डोभाल जैसे खुद मान चुके हैं के उनकी एजेंसियों का दूसरे देशों में भी जाल बिछाया हुआ है।” 

आप को बता दें कि निज्जर की मौत के बाद उनके समर्थकों ने ऑनलाइन और फिजीकल पीटिशन चलाई जिसमें मांग की गई थी कि कनाडा सरकार निज्जर की हत्या की जाँच करवाए कि इसमें भारतीय एजेंसियों का क्या हाथ है। यह पीटिशन कनाडा के ‘हाउस ऑफ़ कॉमन’ को संबोधित थी। ‘हाउस ऑफ़ कॉमन’ को यदि कोई पीटिशन ऑनलाइन भेजी जाती है तो उसके लिए शर्त होती है कि इसकी आख़री डेट तक 500 लोगों के हस्ताक्षर जरूर हों। लेकिन इस पीटिशन पर 1000 के करीब लोगों के हस्ताक्षर थे। इस पीटिशन को लिबरल पार्टी के सांसद सुख धालीवाल ने स्पांसर किया था। सुख धालीवाल का कनाडाई प्रधानमंत्री के संसद में दिये बयान पर कहना है, “हमारे प्रधानमंत्री ने यह बयान देकर स्पष्ट कर दिया कि कनाडा एक प्रभुसत्ता सम्पन्न देश है। कोई भी देश हमारी धरती पर आकर इस तरह की कार्यवाही कर हमारी प्रभुसत्ता को चैलेंज नहीं कर सकता।” आप को बता दें कि ‘हॉउस ऑफ़ कॉमन’ में ट्रूडो  के बयान से पहले कनाडा के ‘ग्लोबल मेल’ अख़बार ने बिना किसी का नाम लिए, सरकारी सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि कनाडा की इंटेलिजेंस के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि निज्जर के कत्ल के पीछे भारतीय एजेंसियों का हाथ है। 

दोनों देशों के तल्ख़ हुए सबंधो पर कनाडा के टोरंटो शहर के एक पंजाबी अखबार के सम्पादक नाम न उजागर करने की शर्त पर बताते हैं, “इस मामले को कई नजरियों से देखा जा सकता है। एक विचार तो यह है कि जैसे मोदी सरकार लोगों का असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हिन्दुत्व और भावुक मुद्दों पर राजनीति करती है उसी तरह जस्टिन ट्रूडो भले ही उदार विचारों के नेता हैं पर उनका कुछ समय से रिपोर्ट कार्ड पहले से खराब हुआ है। यह मुद्दा उठाकर वह कनाडा की सम्प्रभुता के रखवाले के तौर पर उभरेंगे और देश में गिनती में भले कम पर महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाले सिख समुदाय का उन्हें समर्थन हासिल होगा।”

पंजाबी अखबार के संपादक आगे यह भी कहते है, “भले ही ट्रूडो इसमें राजनैतिक लाभ देख रहे हों पर इस सच्चाई को भी हम झुठला नहीं सकते कि भारत सरकार का अपने दूतावासों के जरिए प्रवासी भाईचारे के सांझे सांस्कृतिक केन्द्रों, गुरद्वारों, मंदिरों आदि में प्रभाव बढ़ा है। दूतावासों से ही प्रवासी भारतीय मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिशें की जा रही है । भारत सरकार के विरुद्ध विचार रखने वाले प्रवासी भारतीय पत्रकारों की जुबांबंदी की जा रही है। भारतीय हकूमत द्वारा असहमति वाले विचार रखने वालों के वीज़ों पर रोक लगाई जाती है या उन्हें ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाला जाता है।” 

वह कहते हैं, “खालिस्तानी विचारों वाले कनाडा में बहुत ही कम हैं। इस सोच के बन्दे तो अमरीका, इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी हैं पर भारत सरकार हमेशा कनाडा पर ही क्यों सवाल खड़े करती है? ‘सिख फॉर जस्टिस’, जिस पर भारत सरकार ने पाबंदी लगाई हुई है, उसका मुखिया गुरपतवंत पन्नू तो अमरीका में रहता है, मोदी जी ने कितनी बार अमरीकी राष्ट्रपति को इस मामले में घेरा है? जब से भारत में मोदी सरकार आई है तब से कनाडा में हिन्दू कट्टरपंथियों ने भी सर उठाना शुरू किया है। भारतीय मूल के सेकुलर लोगों को यह धमकाते हैं। हाल ही में आपने पढ़ा होगा कि ऑस्ट्रेलिया के एक मंदिर में खालिस्तानी नारे लिखने वाले हिन्दुत्ववादी सोच के ही लोग ही निकले। मोदी सरकार ने कभी इन पर सवाल खड़े क्यों नहीं किये? शायद इस लिए कि यह उनकी सोच वाले हैं! मुझे लगता है खालिस्तान का विचार बिलकुल खत्म है। पंजाब में किसी को खालिस्तान नहीं चाहिये। कनाडा और दूसरे देशों में जो इस विचार के लोग बैठे हैं उनकी गिनती बहुत कम है। मोदी सरकार ही खालिस्तान का राग अलाप कर इस शब्द को जिंदा रखना चाहती है ताकि उनकी साम्प्रदायिक राजनीति की दुकान चलती रहे। मुझे लगता कि कनाडा में बसने वाले पंजाबियों ने किसान आन्दोलन के पक्ष में ज़ोरदार आवाज़ बुलंद की थी शायद मोदी सरकार उसी का बदला लेने में लगी हुई है।” 

2020 में कनाडा के एक मीडिया ग्रुप ने खबर प्रकाशित की कि भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी ‘रॉ’ एक भारतीय पत्रकार/सम्पादक के जरिए कनाडा के नेताओं को भारतीय सरकार के पक्ष में भुगताने के लिए माहौल बना रही है इसी रिपोर्ट को बाद में ‘द क्विंट’ ने 17 अप्रैल 2020 प्रकाशित किया था।  

कनाडा के सीनियर पत्रकार गुरप्रीत सिंह कहते हैं, “मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि ट्रूडो सिखों को खुश करने के लिए यह कर रहे हैं या वह भारत के विरुद्ध हैं। पहली बात कि कनाडा में सिखों की आबादी महज़ दो फीसद है। उसमें भी सभी खालिस्तानी सोच वाले नहीं हैं। यहाँ बसने वाले हिन्दुओं की गिनती सिखों से थोड़ी सी ज्यादा है, ट्रुडो हिन्दू वोटर्स को अपने खिलाफ भला क्यों करेंगे । अभी तक ट्रूडो का रिश्ता मोदी सरकार के प्रति नरमी वाला और मिल कर चलने वाला ही रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री पर यह दोष लगते रहे हैं कि वह दूसरे देशों में हो रहे मानव अधिकार के हनन पर तो बोलते हैं पर भारत के मामले में कड़ा रुख नहीं अपनाते। उनके मंत्री मंडल में मोदी की सोच की प्रशंसक अनिता आनंद जैसी मंत्री हैं। उनकी लिबरल पार्टी के एक सांसद हैं चंद्रा आर्य जो हिन्दुत्वी सोच वाले हैं। जस्टिन ट्रूडो को कभी उन पर इतराज़ नहीं हुआ। ट्रूडो ने एकदम तो संसद में यह बयान नहीं दिया है, उन्होंने भारत यात्रा के दौरान भी मोदी को भारतीय एजेंसियों की कनाडा में कार्यवाहियों बारे बताया है, अपने सहयोगी देशों से भी बात की है। कनाडा के एक अखबार में इसके बारे रिपोर्ट छप चुकी थी। उन्होंने वही किया जो इस हालत में किसी भी देश का नेता करता ।” 

कनाडा के पूर्व सेहत मंत्री व ब्रिटिश कोलंबिया स्टेट के पूर्व मुख्यमंत्री (प्रीमियर) उज्जल दोसांझ जो कि कट्टर खालिस्तान विरोधी के तौर पर जाने जाते हैं उन्होंने ‘ग्लोबल न्यूज़’ को दिये इंटरव्यू में कहा कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों के हाथ होना है तो ‘अविश्वसनीय’ लेकिन पूरी से सवालों से बाहर नहीं है। उनका मानना है कि अब भारत पहले जैसा देश नहीं रहा जब उन्होंने उस वतन को छोड़ा था। मोदी के आने के बाद वहां बहुत कुछ बदल चुका है। 

दोनों देशों में तनाव के कारण भारत और कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के लोग बहुत चिंतत हैं। कनाडा में स्टडी वीजा के लिए अप्लाई करने वाले स्टूडेंट्स के मां-बाप को चिंता है कि कहीं उनका वीजा रद्द न हो जाए। हालांकि जानकारों का मानना है कि इससे स्टडी वीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 2002 की रिपोर्ट के अनुसार कनाडा में पढ़ रहे विदेशी छात्रों में से 40 प्रतिशत से अधिक भारतीय हैं। गुरप्रीत सिंह कहते हैं, “भारतीय समुदाय के बीच बेचैनी बढ़ीं है। इस समय कनाडा में जो भारतीय लोग रहते हैं उनकी चिंता है कि दोनों देशों के बीच सम्बन्ध खराब होने का इमीग्रेशन और वीज़ा पर क्या असर होगा। दोनों देशों में मैन-टू-मैन रिश्ते हैं । लोगों की चिंता है कि वीजा लेकर यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ आना-जाना कितना प्रभावित होगा। लोगों की रिश्तेदारियाँ बंटी हुई है। कोई वहाँ रहता है, कोई यहाँ रहता है। एक और बड़ी बात कि दोनों देशों के बीच कारोबार कितना प्रभावित होगा।’’

कनाडा उन 17 देशों में से एक है यहाँ भारत का सबसे अधिक व्यापर  होता है। रायटर्स की रिपोर्ट बताती है कनाडा में टीसीएस, इनफ़ोसिस, विप्रो जैसी 30 भारतीय कम्पनियों ने अरबों डालर का निवेश किया हुआ है, जिससे हजारों लोगों को रोज़गार मिलता है।  पंजाब के अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह गिल कुछ ज्यादा ही आशावादी होकर कहते हैं, “दोनों मुल्कों के रिश्ते बहुत गहरे हैं इसलिए मुझे लगता है कि यह कड़वाहट ज्यादा समय नहीं रहेगी। दोनों देशों का एक-दूसरे पर बहुत निर्भरता है, हमने देखा है कि अगर किन्हीं देशों के बीच बहुत ज्यादा तनाव हो तो भी थर्ड पार्टी के जरिये व्यापार होता रहता है । इसलिए मुझे लगता है कि व्यापर ज्यादा परभावित नहीं होगा।"

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