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गुजरात चुनाव: सरकारी पदों पर रिक्तियां, पेपर लीक, लंबित भर्ती राज्य में अहम मुद्दे हैं

राज्य सरकार ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ महीने पहले से ही योग्य उम्मीदवारों की चिंताओं को दूर करना शुरू कर दिया था।
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हितेंद्र चौधरी का जीवन गुजरात सरकार की उदासीनता के चलते कुचले गए उनके सपने और अपने परिवार को मदद करने के लिए रोज़ाना संघर्ष करने की एक कहानी है। पुलिस में भर्ती के लिए होने वाली परीक्षाओं की तैयारी करने वाले 28 वर्षीय चौधरी साबरमती रिवरफ्रंट के पास ऑटोरिक्शा चलाते हैं। वह COVID-19 की पहली लहर के दौरान अपने पिता की अचानक मृत्यु के बाद परिवार की स्थिति को याद करते हुए बताते हैं कि पिता की असमय मृत्यु के बाद कैसे उनके परिवार के आजीविका का स्रोत ख़त्म हो चुका था।

गुजरात विश्वविद्यालय से बीकॉम स्नातक करने वाले चौधरी के पास अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए ऑटोरिक्शा चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अचानक उनके सामने आई परेशानी बावजूद चौधरी ने हिम्मत नहीं हारी। वे कहते हैं, "मैं हमेशा हंसमुख इंसान रहा हूं। मुझे कहानियां सुनाना बहुत पसंद है और मैंने खुश रहना सीखा है। जीवन ने मुझे ज़्यादा विकल्प नहीं दिए।" वे आगे कहते हैं उनकी बातों से पैसेंजर मुस्कुरा देते हैं या ठहाके लगाकर हंस पड़ते हैं।

एथलीट के इच्छुक चौधरी पुलिस बल में शामिल होने को बेताब थे। 15 अगस्त, 2018 को लोक रक्षक दल (गुजरात पुलिस कांस्टेबल) के लिए 8.75 लाख से अधिक रिक्तियों की घोषणा की गई थी। चार महीने बाद, जब चौधरी और हज़ारों अन्य उम्मीदवार लिखित परीक्षा दे रहे थे तो एक परीक्षार्थी ने कहा, “पेपर लीक हो गया है; इसे रद्द कर दिया गया है। घबराए हुए परीक्षार्थी परीक्षा हॉल से बाहर इस ख़बर की सच्चाई का पता लगाने के लिए निकले थे। भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विकास सहाय ने मीडिया के सामने परीक्षा के पेपर लीक होने की बात स्वीकार की थी।

आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के चौधरी और अन्य उम्मीदवार भयभीत और नाराज़ थे। हालांकि राज्य में लगातार पेपर लीक होने से दूसरे लोग हैरान नहीं थे। परेशान चौधरी के पास रोज़ी रोटी कमाने के लिए घर वापस जाकर पैसेंजर को ढ़ोने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

ये परीक्षा दोबारा कराने के लिए 6 जनवरी, 2019 को निर्धारित की गई थी। इस बार भी चौधरी के भाग्य ने साथ नहीं दिया क्योंकि वह कट-ऑफ से आगे नहीं बढ़ पाए।

इस बीच, परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। फिजिकल टेस्ट के बाद कई उम्मीदवारों का चयन किया गया। इस बीच, महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के बावजूद चयन समिति ने रिक्त पदों को नहीं भरा और फिजिकल टेस्ट के लिए सामान्य वर्ग की महिलाओं के दूसरे समूह को बुलाया गया। हालांकि, 1,578 पद अभी भी ख़ाली हैं।

नियमों के अनुसार, यदि चयन समिति किसी विशेष लिंग और श्रेणी के उम्मीदवारों से ख़ाली पदों को भरने में असमर्थ है तो उसी श्रेणी के दूसरे लिंग के उम्मीदवारों को फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाता है। इसके बाद, सामान्य वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों के एक समूह को फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया गया।

आरक्षित श्रेणियों की नाराज़ महिला उम्मीदवारों ने विरोध शुरू कर दिया कि सामान्य वर्ग की महिलाएं कम स्कोर करने के बावजूद योग्य कैसे हो गईं। चूंकि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी 2020 में गुजरात का दौरा करने वाले थे, राज्य सरकार ने 73 दिनों के विरोध को समाप्त करने के लिए रिक्तियों की संख्या बढ़ाकर 2,485 कर दी, जिससे महिलाओं का आरक्षण 46% हो गया।

अब, पुरुष उम्मीदवारों ने यह जानने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया कि 85% से अधिक स्कोर करने के बावजूद उनका चयन कैसे नहीं किया जा रहा है। सागर पाटिल 87.5 परसेंटाइल के साथ इन प्रदर्शनकारियों में से एक उम्मीदवार थे। पाटिल को थोड़े समय के लिए विरोध प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिया गया था। पाटिल और अन्य पुरुष उम्मीदवारों ने तब तक प्रदर्शन जारी रखा था जब तक कि गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी उनसे मिलने के लिए तैयार नहीं हो गए थे।

अप्रैल में संघवी ने 20% प्रतीक्षा सूची की उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। हालांकि, 1,200 पद अभी भी ख़ाली हैं, पाटिल जैसे सैकड़ों उम्मीदवार छोटे-मोटे काम करते हुए नतीजों का इंतजार कर रहे हैं।

प्राथमिक विद्यालय में शिक्षकों के हज़ारों पद हैं ख़ाली

2017 से विद्यासहायक (प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक) के कम से कम 12,000 पद ख़ाली हैं। राज्य सरकार ने अक्टूबर में 2,600 रिक्तियों के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। नियमों के अनुसार, राज्य सरकार को सालाना 3,300 अस्थायी विद्यासहायकों की भर्ती करनी होती है, जिन्हें पांच साल बाद नियमित किया जाएगा।

विद्यासहायकों की भर्ती के लिए परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवार महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल के कार्यालय का दौरा कर रहे हैं। एक उम्मीदवार किंजलबेन कहती हैं, "या तो हमारे लिए स्थिति आंशिक रूप पुरी हो चुकी है या हमें चुनाव से ठीक पहले लॉलीपॉप थमा दिया गया है।"

कच्छ की वर्षा (32) को हाल ही में ज्वाइनिंग लेटर मिला है। हालांकि, वह ज्वाइनिंग को लेकर निश्चित नहीं है क्योंकि उनका परिवार उन पर शादी करने का दबाव बना रहा है। वह कहती हैं, “एक महिला के रूप में परिवार के ख़िलाफ़ जाना आसान नहीं है। यहां तक कि अगर मैं विद्रोह करती हूं, तो मेरे माता-पिता अंततः मेरे लिए वहीं फैसला करेंगे।”

लेक्चररशिप के लिए सात साल का इंतज़ार

लेक्चररशिप की भर्ती के लिए अधिसूचना 2015 में जारी की गई थी। दाहोद निवासी नीरव ने 2019 में बीटेक इंजीनियर उम्मीदवारों के लिए परीक्षा पास की थी, लेकिन ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला। हालांकि, चुनाव से ठीक पहले, 60 योग्य उम्मीदवारों को इस महीने ज्वाइनिंग लेटर मिलना शुरू हो गया।

नीरव कहते हैं,“ऐसे कई उम्मीदवार हैं जो क्लास-1 और क्लास-2 की इन परीक्षाओं को क्रैक करने के लिए दिन-रात पढ़ाई करते हैं। हमारे लिए हार मानने के लिए ये इंतज़ार काफ़ी लंबा है।” नीरव ने मास्टर डिग्री हासिल करने के बावजूद चार साल पहले ज़िला अदालत में क्लर्क के रूप में ज्वाइनिंग किया है।

सात साल की देरी के अलावा, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के उम्मीदवारों के लिए पदों की संख्या क्रमशः 68 और 111 से घटाकर 2019 में 36 और 24 कर दी गई थी। नीरव पूछते हैं, "सरकार ने चयन प्रक्रिया में देरी के बाद यह फ़ैसला क्यों लिया।"

इस बीच, अनुबंध के आधार पर रखे गए लेक्चरर के अनुबंध को भी हर 11 महीने पर रिन्यू नहीं किया गया, जैसा कि क़ानूनी रूप से कई वर्षों के लिए आवश्यक था। राज्य सरकार ने कॉन्ट्रैक्चुअल लेक्चरर को नियुक्त करके बहुत पैसा बचाया, जिनका मासिक वेतन लगभग 25,000 रुपये है, जबकि स्थायी लोगों को 75,000 रुपये से 80,000 रुपये का वेतन दिया जाता है।

संघवी के कार्यालय से रिक्तियों के संबंध में की गई फोन का जवाब नहीं मिला।

लेखक दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह विधानसभा चुनाव की रिपोर्ट करने के लिए गुजरात के दौरे पर हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Gujarat Elections: Govt Vacancies, Paper Leaks, Delayed Recruitment Plague State

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