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ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

हर हफ़्ते की तरह इस बार भी कुछ ज़रूरी राजनीतिक ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
Modi
(फ़ाइल फ़ोटो- भाजपा गुजरात फेसबुक पेज)

भारतीय जनता पार्टी कुछ समय पहले तक ऐसी पार्टी मानी जाती थीजहां दूसरी पार्टियों से आए लोगों को प्रवेश तो मिल जाता था लेकिन उन्हें कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। बड़ी जिम्मेदारी पाने के लिए वैचारिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रशिक्षण और प्रतिबद्धता को अनिवार्य माना जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब भाजपा के दरवाजे सभी पार्टियों के नेताओं यहां तक कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेताओं के लिए भी खुले हैं। भाजपा खुल कर यह संदेश दे रही है कि जो भी नेता अपनी पार्टी छोड़ कर भाजपा में आएगाउसे अहम जिम्मेदारी और पद दिया जाएगा। पूर्वोत्तर में तो यह संदेश भाजपा ने काफी पहले दे दिया थाजिसका नतीजा यह हुआ है कि कांग्रेस छोड़ कर कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए और अब वे वहां भाजपा की सरकारों के मुख्यमंत्री और मंत्री हैं। पहले कांग्रेस में रहे हिमंता बिस्वा सरमापेमा खांडू और एन. बीरेन सिंह अब भाजपा में हैं और तीनों क्रमश: असमअरुणाचल प्रदेश तथा मणिपुर के मुख्यमंत्री है। इनके अलावा भी इन प्रदेशों के कई नेता कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर विधायक और मंत्री बने हैं। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ने दूसरे दलों से आए कई नेताओं को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट और महत्वपूर्ण पद दिए थे। दूसरे दलों के नेताओं को अब यह संदेश भाजपा पूरे देश में दे रही है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से उसने कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को टिकट दिए और जितने पद देकर नवाजा है वह हैरान करने वाला है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद को पथ निर्माण जैसा भारी-भरकम विभाग दिया गया हैजो पिछली सरकार में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के पास था। राज्य के कैबिनेट मंत्रियों में आधे से ज्यादा मंत्री बाहरी हैं या सहयोगी पार्टी के हैं। सिर्फ सात ही कैबिनेट मंत्री ऐसे हैंजो मूल रूप से भाजपा के हैं। इसी तरह गोवा में मुख्यमंत्री के साथ आठ मंत्रियों की जो टीम बनी है उसमें सिर्फ दो ही मंत्री मूल रूप से भाजपा हैं। बाकी छह मे से चार कांग्रेस छोड़ कर आए नेता हैं और दो अन्य सहयोगी हैं। इससे पहले मध्य प्रदेश में कांग्रेस छोड़ कर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पहले राज्यसभा में भेजा फिर केंद्र में मंत्री बनाया। उनके साथ कांग्रेस छोड़ कर आए सभी विधायकों को भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ाया और उनमें जितने जीते उनको मंत्री तथा जो हार गए उनको दूसरे सरकारी पद दिए गए। इस तरह भाजपा ने महाराष्ट्रराजस्थानझारखंडबिहार आदि राज्यों में भी कांग्रेस नेताओं के लिए बड़ा ऑफर पेश कर दिया है।

गुजरात और हिमाचल के चुनाव एक साथ क्यों नहीं

भारत में पिछले आठ साल से वन नेशन वन इलेक्शन की बड़ी चर्चा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सैकड़ों मर्तबा यह बात दोहरा चुके हैं कि लोकसभा से लेकर पंचायत तक सारे चुनाव एक साथ होना चाहिए। प्रधानमंत्री की इस 'शहनाई’ पर 'तबले की संगत देते हुए चुनाव आयोग भी कई बार कह चुका है कि ऐसा ही होना चाहिए और वह इसके लिए तैयार है। लेकिन हकीकत में इस इरादे को अंजाम देने का रत्ती भर प्रयास नहीं हुआ है। इसकी मिसाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव है। दोनों विधानसभाओं का कार्यकाल एक महीने के अंतराल पर खत्म होता हैलेकिन चुनाव आयोग इन दो राज्यों के चुनाव भी एक साथ नहीं करा पाता है। इसी तरह हरियाणामहाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव भी एक-एक महीने के अंतराल पर होते हैं। यही नहींनिर्धारित समय से राज्यसभा की एक साथ खाली होने वाली सीटों के चुनाव भी चुनाव आयोग एक साथ नहीं कराता है। इसीलिए सवाल है कि क्या इस बार हिमाचल प्रदेश और गुजरात का चुनाव एक साथ होगापिछली बार यानी 2017 में हिमाचल प्रदेश की सभी 68 सीटों पर नौ नवंबर को मतदान हुआ था। इसके ठीक एक महीने बाद नौ दिसंबर को गुजरात में पहले चरण का मतदान हुआ। दूसरे चरण का मतदान 14 दिसंबर को हुआ और 18 दिसंबर को वोटों की गिनती हुई थी। इस बारे में फैसला चुनाव आयोग को करना है। इसके लिए उसे किसी पूछने या मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। अगर चुनाव आयोग चाहे तो गुजरात का चुनाव एक महीने पहले नवंबर में हिमाचल प्रदेश के साथ करा सकता है। लेकिन पता नहीं क्यों सारे चुनाव एक साथ कराने की ढींगें हांकने वाला चुनाव आयोग दो राज्यों के चुनाव भी एक साथ नहीं करा पाता है। 

भाजपा के क्षत्रपों की चिंता बढ़ी

पांच राज्यों के चुनाव के बाद केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों के साथ ही कई राज्यों में भाजपा के क्षत्रपों की चिंता भी बढ़ी है, क्योंकि कहा जा रहा है कि गुजरात जैसा प्रयोग केंद्र के साथ ही कुछ राज्यों में भी किया जा सकता है। इस साल हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं और लोकसभा के साथ हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हैं। इन दोनों राज्यों में बदलाव की चर्चा है। भाजपा के एक जानकार नेता का कहना है कि हरियाणा में भाजपा मनोहर लाल खट्टर के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगी। उनकी जगह नया चेहरा लाया जाएगा। वहां गुजरात प्रयोग की सबसे ज्यादा संभावना देखी जा रही है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है फिर भी बदलाव की संभावना जताई जा रही है तो कर्नाटक में भी कुछ फेरबदल की सुगबुगाहट है। अगर मुख्यमंत्री नहीं बदला जाता है तब भी मंत्रिमंडल में फेरबदल और संगठन में भी बड़ा बदलाव होगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर पिछले आठ साल से अटकलें चल रही हैं। लेकिन एक बार चुनाव हार कर बाहर होने के बाद भी उन्होंने वापसी की। राजस्थान में पार्टी के अंदर सबसे ज्यादा खींचतान चल रही है। भाजपा आलाकमान के सामने दुविधा है कि फिर वसुंधरा राजे पर दांव लगाया जाए या नया नेता आगे किया जाए। जल्दी ही इस बारे में फैसला होगा। बिहार को लेकर भी कई फॉर्मूलों पर चर्चा चल रही है।

भाजपा की मदद बंद नहीं करेंगी मायावती

बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भारतीय जनता पार्टी पर चाहे जितना हमला करें लेकिन उसकी मदद करना बंद नहीं करेंगी। उन्होंने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कई तरह से भाजपा की मदद की। वे चुपचाप होकर निष्क्रिय बैठी रहीं और अपना वोट आधार भाजपा की ओर शिफ्ट होने दिया। उन्होंने समाजवादी पार्टी के मुकाबले ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार दिए और सौ से ज्यादा सीटों पर सपा के उम्मीदवार की जाति का ही उम्मीदवार उतार कर वोट बांटने का बंदोबस्त किया। अब वे कह रही हैं कि भाजपा ने उनके लोगों के बीच झूठा प्रचार कर दिया कि बहनजी को राष्ट्रपति बनाया जाएगा। वे कभी भी इस तरह का प्रस्ताव स्वीकार नहीं करेंगी। यह अलग बात है कि ऐसा कोई प्रस्ताव भाजपा ने उनको न दिया था और न देने का इरादा है। बहरहालचुनाव बाद अपनी पहली समीक्षा बैठक में भाजपा पर हमला करने के बीच उन्होंने आजमगढ़ की खाली हुई लोकसभा सीट पर उम्मीदवार का ऐलान किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से यह सीट खाली हुई है। इस पर अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है लेकिन मायावती ने अपनी पार्टी के दो बार विधायक रह शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को आजमगढ़ सीट से उम्मीदवार बनाया है। चुनाव से पहले उनको पार्टी से निकाला गया था। अब पार्टी ने उन्हें  वापस शामिल करके सीधे लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया। इसका सीधा मकसद मुस्लिम वोट सपा से दूर करना है। उन्होंने समीक्षा बैठक में यह भी कहा कि मुसलमान को सपा के साथ जाकर कुछ नहीं मिला इसलिए मुसलमान सपा का साथ छोड़ें और बसपा के साथ आएं। यह कहते हुए उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिया। बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार की मदद करेगा।

कुछ जातियां भाजपा को कभी नहीं छोड़तीं 

गुजरात में कांग्रेस को पटेलों से वैसा ही धोखा मिलता रहा हैजैसा उत्तर प्रदेश में जाटों से मिला है। इसके बावजूद कांग्रेस पटेलों को साधने का कोई प्रयास नहीं छोड़ती है। गुजरात में पटेलों के भाजपा से नाराज होने का नैरेटिव पिछले कई सालों से बना हुआ है। केशुभाई पटेल को हटाने के समय भी बना था और आनंदी बेन पटेल को हटाने के बाद भी बना। इसके बावजूद पटेलों ने भाजपा को ही वोट किया। पिछले चुनाव में कांग्रेस को बड़ा भरोसा था कि हार्दिक पटेल की वजह से कांग्रेस को वोट मिलेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सीलिए सवाल है कि क्या नरेश पटेल के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पटेल कांग्रेस को वोट देंगेनरेश पटेल लेउवा पटेल समुदाय के बड़े नेता हैं लेकिन वे इस बात की गारंटी नहीं कर सकते हैं कि पटेल समुदाय भाजपा को छोड़ कर कांग्रेस को वोट देगा। असल में कुछ जातियां ऐसी हैंजो कभी भी भाजपा को नहीं छोड़ती हैं। वे नाराजगी भले जितनी दिखाएं लेकिन वोट भाजपा को देती हैं। गुजरात के पटेल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय की  बिहार और उत्तर प्रदेश में भूमिहार और कायस्थ भी इसी श्रेणी में आते हैं। वे कितनी भी नाराजगी जताएं लेकिन एक समुदाय के रूप में उनका वोट भाजपा को मिलेगा। कर्नाटक में लिंगायत भी कमोबेश भाजपा को ही वोट करते हैं।

गुजरात की लड़ाई अभी से शुरू

यह अनायास नहीं था कि चार राज्यों में भाजपा की जीत का जश्न मनाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात गए। उत्तर प्रदेश के नतीजे 10 मार्च को आए और उन्होंने 11 और 12 मार्च को अहमदाबाद और गांधीनगर में रोडशो किया। इसके बाद वे सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की बैठक में शामिल हुए और एक संस्थान का उद्घाटन भी किया। दोनों मौकों पर गृह मंत्री अमित शाह उनके साथ थे। उत्तर प्रदेश और बाकी राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्रियों के शपथ लेने के बाद शाह फिर गुजरात पहुंचे। इस बार उन्होंने दावा किया कि गुजरात भाजपा का घर है और यहां कांग्रेस का सफाया हो जाएगा। ध्यान रहे कांग्रेस ने पिछली बार गुजरात चुनाव में विधानसभा की 182 में से 77 सीटें जीती थीं और भाजपा सौ का आंकड़ा नहीं पार कर पाई थी। भाजपा ने 16 सीटें गंवाई थीं और कांग्रेस को इतनी ही सीटों का फायदा हुआ था। भाजपा का वोट 1.15 फीसदी बढ़ा था, जबकि कांग्रेस के वोट में 2.57 फीसदी की बढ़ोतरी हई थी। पांच साल बाद कांग्रेस की अब वह स्थिति नहीं है। अब आम आदमी पार्टी के रूप में एक नई ताकत खड़ी हो गई है, जो कांग्रेस का नुकसान करेगी। इसके बावजूद अमित शाह का कांग्रेस पर हमला करना और गुजरात को भाजपा का घर बता कर अभी से चुनावी बिसात बिछाना मामूली बात नहीं है। राहुल गांधी भी गुजरात के नेताओं से मिले हैं और आम आदमी पार्टी ने भी अपना हरावल दस्ता गुजरात भेज दिया है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस का झगड़ा शुरू

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से अंदाजा लगाया जा रहा था कि सबसे पहले किस राज्य में कांग्रेस के अंदर खींचतान शुरू होगी। महाराष्ट्र और झारखंड में से किसी एक राज्य में या दोनों में विवाद की संभावना जताई जा रही थी और सचमुच महाराष्ट्र में विवाद शुरू भी हो गया। पार्टी के 25 विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व और राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार के मंत्रियों के प्रति नाराजगी जताई है और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की है। ध्यान रहे कांग्रेस पार्टी ने राज्य में गठबंधन की सरकार बनते ही अपने विधायकों के क्षेत्र की समस्या सुनने और उसे दूर करने का जिम्मा मंत्रियों को दिया था। हर मंत्री के जिम्मे तीन विधायक थे। लेकिन विधायकों का कहना है कि उनको इस बारे में पता ही नहीं है। सरकार बनने के ढाई साल बाद एक मंत्री एचके पाटिल ने तीन विधायकों के साथ बैठक की तब इस व्यवस्था की जानकारी मिली। इस बीच इस व्यवस्था से कांग्रेस के नेता आशंकित भी हो गए हैं। उनको लग रहा है कि पार्टी मंत्रियों के जरिए उनकी निगरानी करा रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को अंदेशा है कि उसके कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है कि कांग्रेस की चिंता बढ़ती जा रही है। ऊपर से पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हारी हैजिसके बाद भगदड़ मचने की आशंका जताई जा रही है।

कर्नाटक में समय से पहले चुनाव

कर्नाटक में अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होना हैं लेकिन प्रदेश कांग्रेस के कई नेता कह रहे हैं कि साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के साथ ही कर्नाटक में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने 27 नवंबर को चुनाव की घोषणा होने का भी दावा किया है। पता नहीं उनके दावे का स्रोत क्या है लेकिन उन्होंने कहा है कि नवंबर के अंत में चुनाव की घोषणा होगी और दिसंबर में चुनाव हो जाएगा। ध्यान रहे कर्नाटक में सांप्रदायिक राजनीति इस समय चरम पर है। मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने का विवाद अभी चल ही रहा है। स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने पर हाई कोर्ट की रोक के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को चुनौती दी गई है। इस बीच राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले पर अमल शुरू कर दिया है। इस वजह से परीक्षा के दौरान छात्राओं को हिजाब उतारना पड़ा या परीक्षा छोड़नी पड़ी। बोर्ड की परीक्षा और उसके आगे भी यह विवाद चलता रहेगा। इस बीच भाजपा के एक विधायक ने दूसरा मुद्दा उठा दिया है। उन्होंने हिंदुओं से हलाल मीट नहीं खाने की अपील की है। पिछले कुछ दिनों में हिजाब और हलाल मीट का विवाद बढ़ा है। इसलिए कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि ध्रुवीकरण की इस राजनीति का फायदा उठाने के लिए भाजपा समय से पहले चुनाव करा सकती है।

(लेखक अनिल जैन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, व्यक्त विचार निजी हैं)

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