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गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?

गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
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विचारधाराओं के खेल से सनी राजनीति... और इसके फेर में फंसी बेचारी भोली जनता अक्सर नेताओं को अपना मसीहा मान बैठने की ग़लती करती है, जबकि ग़लती में ये स्मरण नहीं हो पाता कि नेताओं का काम जनता के विचारों को सुरक्षित रखना नहीं, बल्कि राजनीति के भीतर ख़ुद को सुरक्षित रखना होता है।

इन्ही परिस्थितियों को भुनाने में एक और नाम जुड़ जाता है गुजरात के हार्दिक पटेल का। एक वक्त था जब हार्दिक पटेल, पाटीदार समाज के लिए भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ डटकर खड़े थे, हार्दिक पटेल अपने आंदोलन में इतने तटस्थ हो गए थे कि भारतीय जनता पार्टी को बैकफुट पर आना पड़ा और हालात यहां तक बन गए कि हार्दिक पटेल ने अमित शाह को जनरल डायर तक की उपाधि दे दी। लेकिन सत्ता का लालच नेताओं के विचारों पर कब वार कर दे, कहा नहीं जा सकता। हार्दिक पटेल के साथ भी यही हुआ और अब वो कांग्रेस से हाथ छुड़ाकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।

हार्दिक पटेल ने 2 जून 2022 यानी गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। भगवा ओढ़ने से पहले हार्दिक पटेल ने कोबा इलाके से भाजपा कार्यालय कमलम तक एक रोड शो किया। जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए। कमलम में हार्दिक से स्वागत के लिए पहले से मौजूद मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने उन्हें केसरिया पहना दिया।

‘’मैं मोदी का सच्चा सिपाही’’

भाजपा में शामिल होने से थोड़ी देर पहले ही हार्दिक ने ख़ुद को नरेंद्र मोदी का सच्चा सिपाही बताया था, उन्होंने एक ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ भी की थी।

केसरिया ओढ़ने से पहले हार्दिक पटेल का भव्य रोड शो, फिर कमलम में मुख्यमंत्री द्वारा उनका इंतज़ार और स्वागत ये बताने के लिए काफी है कि वो कितने बड़े नेता हैं। और आने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को कितना फायदा और कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।

पाटीदार आरक्षण आंदोलन से निकले हार्दिक

साल 2015 में गुजरात की सड़कों पर अचानक जनसैलाब उमड़ पड़ा। भीड़ का चेहरा बनकर उभरे हार्दिक पटेल। वो पाटीदार आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। हार्दिक की मांग थी कि पाटीदारों को ओबीसी का दर्जा दिया जाए। उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिले। आंदोलन का प्रभाव पूरे गुजरात में देखने को मिला और पूरे राज्य में प्रदर्शन किए गए। गुजरात में एक बहुत ही मशहूर कहावत है ‘प से पाटीदार और प से पॉवर’। गुजरात की सियासत में पाटीदारों की ताकत ये है कि वे जिधर मुड़ते हैं सत्ता का रूख उधर मुड़ जाता है। आबादी में तो ये सिर्फ 15 प्रतिशत हैं। लेकिन 85 प्रतिशत पर भारी पड़ते हैं। गुजरात की सियासत में पाटीदार को किंगमेकर कहा जाता है।

1995 से पहले पाटीदार कांग्रेस के साथ थे, तो गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनती थी। जब 1995 के बाद वे बीजेपी के साथ आए तो गुजरात में आज तक भाजपा को कोई टस से मस नहीं कर पाया। पाटीदारों की परंपरा रही है कि वे जिस भी पार्टी के साथ गए, पूरी तरह गए। बिखराव की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी। लेकिन करीब दो दशक बाद ऐसा वक्त आया जब पाटीदारों और भाजपा के बीच सबकुछ ठीक नहीं दिखा।

हार्दिक बड़ा चेहरा बनकर निकले

भाजपा के साथ पाटीदारों को जोड़ने में केशुभाई पटेल की बहुत बड़ी भूमिका थी। भाजपा से अलग होने के बाद उन्होंने पाटीदारों की अस्मिता को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में अटकलें लगाई जा रही थी कि अगर पाटीदार केशुभाई पटेल के साथ चले गए तो भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगी। नतीजे आए तो भाजपा की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। जबकि केशुभाई पटेल की पार्टी को करीब 3.6 प्रतिशत वोट मिले थे और 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। मतलब साफ था कि पटेल समुदाय ने मोदी के नेतृत्व में लड़ रही भाजपा को ही चुना था। लेकिन मोदी के जाने के बाद गुजरात के जो हालात बने उन्हें संभालना आनंदीबेन पटेल के लिए बेहद मुश्किल भरा रहा। बतौर मुख्यमंत्री आनंदीबेन की पहली राजनीतिक परीक्षा पटेल आंदोलन के समय हुई लेकिन इस राजनीतिक परीक्षा में आनंदीबेन फ़ेल साबित हुई और जो पाटीदार समुदाय एक समय भाजपा का मजबूत आधार माना जाता रहा वह भाजपा से दूर जाता दिखा।

खुद पटेल समुदाय से आने वाली आनंदीबेन अपने राज में पटेलों को संतुष्ट करने में नाकाम रहीं। उनके कार्यकाल में हार्दिक पटेल भाजपा के विरोध में बड़ा चेहरा बनकर उभरे। हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन को पूरे राज्य में अपार समर्थन मिला।

यही वो वक्त था जब पाटीदारों के आंदोलन के ज़रिए हार्दिक पटेल का राजनीतिक जीवन भी सही मायने में शुरु हुआ। हार्दिक तब पाटीदार संगठन सरदार पटेल ग्रुप से जुड़े थे। इस ग्रुप ने ही आगे चलकर पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया।

सरदार पटेल ग्रुप ने साल 2015 में पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर पहली रैली विसनगर में निकाली थी। इस रैली में शामिल हार्दिक पटेल और अन्य पर बीजेपी विधायक के दफ्तर में तोड़फोड़ करने का आरोप लगा था। इस मामले में कोर्ट ने हार्दिक को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। हार्दिक सुप्रीम कोर्ट गए और सर्वोच्च न्यायालय ने सजा पर रोक लगा दी थी।

ये कह सकते हैं कि हार्दिक पटेल के लिए 2015 की रैली तो बस आगाज़ थी। भाजपा विधायक के दफ्तर में तोड़फोड़ हुआ तो हार्दिक के नाम की चर्चा शुरू हुई थी। लेकिन हार्दिक चर्चा में सूरत रैली से आए। सरदार पटेल ग्रुप के बैनर तले निकली इस रैली में तीन लाख से अधिक लोग जुटे थे और यहीं से शुरू हुआ था पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन से चर्चित हुए हार्दिक पटेल के नेता बनने का सफर।

5 लाख लोगों के साथ पाटीदार आंदोलन

अब 25 अगस्त 2015 को गुजरात के अहमदाबाद में जीएमडीसी ग्राउंड पर पाटीदार समाज के लोगों का सबसे बड़ा आंदोलन देखने को मिला। दावा किया गया कि इसमें पांच लाख लोग शामिल हुए थे। जहां हार्दिक पटेल ने इस क्रांति रैली को संबोधित किया। आंदोलन के बाद कई जगह हिंसा और तनाव की ख़बरे भी आई। पूरे प्रदेश में करीब 500 हिंसक घटनाएं हुई थीं और इसमें पाटीदार समाज के 14 युवकों की मौत हो गई। इसके बाद राज्य के कई शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। राज्य में हिंसा और आगजनी की कई घटनाएं होने के बाद 28 अगस्त 2015 को स्थिति सामान्य हुई। आंदोलन में हुई घटनाओं और मौत के लिए हार्दिक पटेल और अन्य आंदोलनकारियों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज कर लिए गए। आंदोलन के बाद पाटीदारों को भाजपा से दूर होता देख अमित शाह ख़ुद पाटीदारों को मनाने गुजरात पहुंचे। जहां युवाओं ने उनका विरोध कर दिया। यही वो वक्त था जब हार्दिक पटेल ने अमित शाह को जनरल डायर तक कह दिया था।

19 सितंबर 2015 को एक बार फिर आंदोलन ने हिंसक रुप ले लिया। इसके बाद सरकार ने जनरल कैटेगिरी के छात्रों के लिए सब्सिडी और स्कॉलरशिप और आर्थिक रुप से कमजोर छात्रों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की। अगस्त 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस आरक्षण पर रोक लगा दी।

पाटीदार जिसका गुजरात उसका

गुजरात की सियासत में जितनी अहमियत पाटीदारों की है उससे कहीं ज्यादा सरदार वल्लभ भाई पटेल की है। पाटीदार समुदाय से आने वाले सरदार पटेल पाटीदारों की ताकत के प्रतीक हैं। पटेल के कारण ही पाटीदार सालों तक कांग्रेस से जुड़े रहे। लेकिन 1995 के बाद से पाटीदारों ने भाजपा का दामन थाम लिया। गुजरात की 182 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 92 सीटें चाहिए। वोटों के लिहाज से देखें तो पाटीदार गुजरात में 182 में से कुल 60 सीटों पर अपना दबदबा रखते हैं। जिसमें उत्तर गुजरात में गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांठा, अरवली, मेहसाणा, पाटन जिले और मध्य गुजरात के अहमदाबाद, दाहोद, खेड़ा, आणंद, नर्मदा, पंचमहल, वडोदरा जिले शामिल हैं।

भले ही पाटीदार भाजपा के साथ रहे हों लेकिन पिछले चुनावों को याद करें तो कांग्रेस की परफॉरमेंस भी काफी बेहतर रही थी। शायद इसका कारण बड़े पाटीदार नेताओं का रुख भाजपा के खिलाफ था। जिसमें हार्दिक पटेल का नाम भी शामिल है। जिसे कुछ हद तक कांग्रेस भुनाने में कामयाब रही थी।

हार्दिक का कांग्रेस से इस्तीफा

लेकिन पिछली 17 मई को हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। हार्दिक ने 17 मई को ट्विटर पर इस्तीफे का ऐलान किया था। इस्तीफे के बाद से वह लगातार भाजपा के कामों की तारीफ कर रहे थे और खुद को हिंदुत्व का समर्थक भी बता रहे थे। हार्दिक की कांग्रेस के प्रति नाराजगी अब किसी से छिपी नहीं है। इससे पहले भी कांग्रेस के प्रति वो अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। एक बयान में उन्होंने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस में उनकी हालत ऐसी हो गई है जैसे नए दूल्हे की नसबंदी करा दी हो। हालांकि, उन्होंने कहा कि वे राहुल गांधी या प्रियंका गांधी से नाराज नहीं हैं, प्रदेश नेतृत्व से नाराज हैं।

भाजपा के धुर विरोधी रहे हैं हार्दिक

भाजपा के धुर विरोधी हार्दिक पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी समेत तमाम आर्थिक नीतियों के घोर आलोचक रहे थे, हालांकि उन्होंने इस वक्त तक कोई पार्टी ज्वाइन नहीं की थी, लेकिन इसके बाद भी 2017 में उन्होंने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया। बता दें, हार्दिक पटेल 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। पार्टी ने प्रदेश का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था।

ख़ैर... अब देखना दिलचस्प होगा कि हार्दिक को भाजपा में क्या जगह मिलती है और कितने प्रतिशत पाटीदार उनके साथ जाते हैं। हालांकि हार्दिक ने ये ज़रूर कहा कि वो किसी पद के लिए भाजपा में शामिल नहीं हुए है।

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