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क्या वाकई देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में कमी आई है?

एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में 8.3% की गिरावट देखी गई है। हालांकि इन आंकड़ों का वास्तविकता से कोई मेल नहीं है।
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Image courtesy : Feminism in India

देश के तमाम अलग-अलग राज्यों से दुष्कर्म, यौन हिंसा और महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की खबरों के बीच नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट सामने आने के बाद चारों ओर देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी की सुर्खी छाई हुई है। एनसीआरबी ने साल 2020 में देश में हुए अपराधों का डेटा जारी किया है। इसमें महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को लेकर 2019 की तुलना में 2020 में 8.3% की गिरावट देखी गई है। हालांकि इन आंकड़ों का वास्तविकता से कोई मेल नहीं है, ये खुद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा भी कह रही हैं।

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “सभी DGPs के साथ मीटिंग में भी हमने पाया था कि पुलिस ने कम मामले दर्ज किए, जबकि एनसीडब्लू ने पिछले साल की तुलना में ज्यादा शिकायतें रिसीव की थीं। हो सकता है कि लॉकडाउन की वजह से औरतें पुलिस स्टेशन्स तक न पहुंच पाई हों और मदद न मांग पाई हों।”

आपको बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में दुनिया भर से घरेलू हिंसा की शिकायतों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली। एनसीआरबी के आंकड़ों को मानें, तो भारत में भी बीते एक साल में घरेलू हिंसा के रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं। लेकिन ये केवल वही आंकड़े हैं, जो पुलिस तक पहुंचे। बहुत से मामले तो ऐसे होते हैं, जो सामने ही नहीं आ पाते, रिपोर्ट और कार्रवाई तो दूर की बात है।

क्या कहती है एनसीआरबी की रिपोर्ट?

एनसीआरबी के आंकड़ों की जो रिपोर्ट जारी की गई है, उसका शीर्षक 'क्राइम इन इंडिया-2020’ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, “25 मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक कोविड-19 के चलते देश में पूरी तरह से लॉकडाउन था। इस समय पब्लिक स्पेस में मूवमेंट काफी कम था। इसी वजह से औरतों, बच्चों और सीनियर सिटिज़न्स के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी देखी गई। चोरी, सेंधमारी और डकैती की घटनाओं में भी कमी आई। साल 2020 में औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों के 3 लाख 71 हज़ार 503 मामले दर्ज हुए। जबकि साल 2019 में ये आंकड़ा 4 लाख 5 हज़ार 326 था। माने कुल 8.3 फीसद की कमी देखी गई।”

ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि आईपीसी यानी इंडियन पीनल कोड के तहत औरतों के खिलाफ दर्ज होने वाले अपराधों में सबसे ज्याद ‘महिला के ऊपर उसके पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ करने यानी घरेलू हिंसा के मामले दर्ज हुए।

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‘महिलाओं के ऊपर होने वाले असॉल्ट’

वहीं दूसरे नंबर पर ‘महिलाओं के ऊपर होने वाले असॉल्ट’ के मामले रहे। इनकी संख्या 23 फीसद है। तीसरे नंबर पर “महिलाओं की किडनैपिंग” और चौथे पर “रेप” जैसे गंभीर अपराध हैं। किडनैपिंग का आंकड़ा “क्राइम अगेन्स्ट विमन’ वाली कैटेगरी में 16.8 फीसद का है, तो वहीं रेप जैसे जघन्य अपराध 7.5 फीसद दर्ज हुए हैं। 2020 में हर एक लाख औरतों में से 56.5 औरतें अपराध का शिकार हुईं। जबकि ये आंकड़ा साल 2019 में 62.3 था।

रिपोर्ट के अनुसार औरतों के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 49 हज़ार 385 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। ये वही उत्तर प्रदेश है जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न्यूनतम अपराध का दावा करते हैं। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां कुल 36 हज़ार 439 मामले दर्ज हुए। तीसरे नंबर पर 34 हज़ार 535 मामलों के साथ राजस्थान है।

केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें, तो सबसे ज्यादा मामले दिल्ली से सामने आए, संख्या 10 हज़ार 93 है। पिछले साल ये संख्या 13 हज़ार 395 थी। यानी दिल्ली में औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी देखी गई।

‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’

साल 2020 में आईपीसी के सेक्शन 498-ए, यानी ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ का शिकार होना जैसे कुल एक लाख 11 हज़ार 549 मामले दर्ज हुए। करीब एक लाख 12 हज़ार 292 औरतें इसका शिकार हुईं। सेक्शन 498-ए के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल से सामने आए, कुल 19 हज़ार 962 मामले यहां दर्ज हुए। दूसरे नंबर पर 14 हज़ार 454 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश है। वहीं तीसरे नंबर पर 13 हज़ार 765 मामलों के साथ राजस्थान है। केंद्र शासित प्रदेशों में पहले नंबर पर दिल्ली है, जहां दो हज़ार 557 मामलों दर्ज किए गए।

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दुष्कर्म के मामलों की बात करें, तो आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत रेप के पूरे देश में साल 2020 में 28 हज़ार 46 मामले सामने आए।

करीब 28 हज़ार 153 लड़कियां और औरतें इस जघन्य अपराध का शिकार हुईं। इनमें 18 के ऊपर की पीड़िताओं की संख्या 25 हज़ार 498 है और 18 से कम उम्र की विक्टिम्स की संख्या दो हज़ार 655 है। आईपीसी की धारा 376 के तहत रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान से सामने आए, इनकी संख्या 5310 है। दूसरे नंबर पर 2769 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश है। वहीं 2339 मामलों के साथ मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर है।

महिला की मॉडेस्टी भंग करने के इरादे से उसका असॉल्ट करना यानी आईपीसी की धारा 354 के तहत देशभर में पिछले साल कुल 85 हज़ार 392 मामले सामने आए। राज्यों की बात करें तो सेक्शन 354 के सबसे ज्यादा मामले ओडिशा से आए, इनकी संख्या 12 हज़ार 605 है।

बड़े शहरों के घटते अपराध!

बड़े शहरों यानी मेट्रोपॉलिटन सिटीज़ की बात करें, तो एनसीआरबी ने कुल 19 शहरों को इस सूची में शामिल किया है। इनमें साल 2020 में औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों के कुल 35 हज़ार 331 मामले सामने आए। ये संख्या 2019 से कम है, इस साल कुल 44 हज़ार 783 मामले आए थे। और 2018 में इनकी संख्या 42 हज़ार 180 थी। 2020 की बात करें तो कुल मामलों में सबसे ज्यादा 9 हज़ार 782 मामले दिल्ली से सामने आए, साल 2019 में यही आंकड़ा 12 हज़ार 902 था।

गौरतलब है कि भले ही कोरोना संकट के दौरान एनसीआरबी के आंकड़े महिलाओं के खिलाफ अपराध के ग्राफ को कम दिखा रहे हों लेकिन हक़ीकत यही है कि आपदाएं और महामारी महिलाओं के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर देती हैं। एक ओर उन्हें कठिन परिस्थिति का सामना करना होता है तो वहीं दूसरी ओर खुद को शोषण से बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। मौजूदा समय में घर में कैद होने के कारण महिलाओं के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बढ़ते मामले अक्सर खबरों में रहे हैं। हालांकि अभी भी ऐसे मामलों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है जो न तो दर्ज हो पाते हैं और न ही खबरों में जगह बना पाते हैं।

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