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ज्ञानवापी की सुनवाई पूरीः मसाजिद कमेटी ने कहा, नहीं बदला जा सकता स्वरूप, हिंदू पक्ष ने कहा 1993 तक होती थी पूजा

दोनों पक्ष की बहस खत्म हो चुकी है और जिला जज ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख़ 12 सितंबर तय की है। माना जा रहा है कि इसी दिन फ़ैसला सुनाया जाएगा।
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वाराणसी के ज्ञानवापी प्रकरण में श्रृंगार गौरी और अन्य विग्रहों के नियमित पूजन की अनुमति वाले केस की पोषणीयता पर बुधवार को भी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में करीब साढ़े तीन घंटे तक सुनवाई चली। हिन्दू पक्ष की महिलाओं की दलीलों पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी जवाबी बहस आज पूरी कर ली। मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में कई मर्तबा मुगल शासक औरंगजेब का जिक्र किया और कहा कि संपत्ति आलमगीर ने दी थी, जिस पर ज्ञानवापी मस्जिद बनी है। आजादी के दिन ज्ञानवापी मस्जिद का जो धार्मिक स्वरूप था, वह आज भी है, जिसे अब नहीं बदला जा सकता है।

जिला जज की अदालत में बुधवार को सुनवाई के दौरान कुल 34 लोग मौजूद थे। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि वह सभी पक्षों को आज ही सुनेंगे। इसके बाद किसी पक्ष को दोबारा मौका नहीं दिया जाएगा। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता शमीम अहमद ने बुधवार को बहस दौरान फिर दोहराया कि ज्ञानवापी परिसर का असली मालिक 'औरंगज़ेब' है, जिसे आलमगीर के नाम से भी जाना जाता है। उनकी दी हुई जमीन पर ही मस्जिद बनाई गई है। जिस वक्त मस्जिद बनी उस वक्त उनका ही शासन था। उनकी दी हुई जमीन पर ही मस्जिद बनाई गई है। जिस तरह से सरकार की संपत्ति पर दर्ज होता कि उत्तर प्रदेश या केंद्र सरकार की संपत्ति उसी तरह से इस संपत्ति पर भी औरंगजेब का नाम आलमगीर के तौर पर दर्ज है। उनके द्वारा ही यह संपत्ति दी गई जिस पर मस्जिद बनाई गई है।

ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ की संपत्ति बताते हुए अधिवक्ता शमीम अहमद ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मसले की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को नहीं है। इसकी सुनवाई केवल वक्फ बोर्ड ही कर सकता है।

जिरह के दौरान मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता ने 25 फरवरी 1944 के शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि तत्कालीन वक्फ कमिश्नर ने प्रदेश सरकार को भेजी रिपोर्ट में आलमगीर बादशाह ने ज्ञानवापी मस्जिद को संपत्ति समर्पित की थी, जिसे प्रदेश शासन ने गजट में प्रकाशित किया था। इससे साबित होता है कि ज्ञानवापी पुरानी मस्जिद है। इस बाबत 1291 फसली वर्ष यानी 1883-84 के खसरा खतौनी में दर्ज इंद्राज जिसमें आलमगीर बादशाह द्वारा वक्फ को समर्पित संपत्ति के जिक्र होने का साक्ष्य दाखिल किया गया है। साल 1995 के वक्फ एक्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रश्नगत वाद जो ज्ञानवापी से संबंधित है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने 25 फरवरी 1944 का प्रदेश शासन का एक गजट भी प्रस्तुत किया। उन्होंने अदालत में बताया कि वाराणसी में वक्फ की संपत्तियों की रिपोर्ट तैयार की गई थी। तत्कालीन वक्फ कमिश्नर ने वाराणसी में मौजूद वक्फ की संपत्तियों की सूची बनाई थी, उसमें ज्ञानवापी का भी जिक्र था।

जवाबी बहस के दौरान वादी पक्ष की महिलाओं की ओर से कहा गया कि आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश कर मुस्लिम पक्ष उसे ज्ञानवापी मस्जिद का बता रहा है। मुस्लिम पक्ष द्वारा ज्ञानवापी को वक्फ की संपत्ति बताकर धोखाधड़ी की जा रही है। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक श्रृंगार गौरी की पूजा होती रही है। उनकी पूजा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अचानक और अनायास रोक लगा दी थी। यह मामला सुनवाई योग्य है।

दोनों पक्ष की बहस खत्म हो चुकी है और जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 12 सितंबर को तय की है। माना जा रहा है कि इसी दिन कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा।

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